रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गये

रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गये
धोये गये हम ऐसे कि बस पाक हो गये

आपने लता मंगेशकर निर्मित लेकिन फिल्म का गाना सुनियो जी एक अरज म्हारी सुना होगा यह फिल्म सन 1990 में बनी थी और पंडित हृदयनाथ मंगेशकर और लताजी की भाई बहन की जोड़ी ने संगीत के मामले में कमाल किया था।

अभी पिछले दिनों मैने मिर्जा गालिब की एक गज़ल रोने से और इश्क में बेबाक हो गये……सुनी जो सन 1969 में लताजी ने हृदयनाथजी के संगीत निर्देशन में गाई थी। खास बात यह थी कि इस गज़ल का संगीत बिल्कुल सुनियो जी एक अरज…जैसा था, यों या कहना चाहिये कि सुनियो जी का संगीत बिल्कुल रोने से इश्क में … जैसा है। हृदयनाथजी ने 21 साल बाद अपने ही संगीत को वापस अपनी फिल्म में दूसरे गीत के लिये कितनी खूबसूरती से उपयोग किया!

लीजिये सुनिये मिर्ज़ा असदुल्ला बेग खान مرزا اسد اللہ خان या मिर्ज़ा गालिब की यह सुन्दर गज़ल।

ghalib

11 Comments

  1. डॉ. अजीत कुमार said,

    May 4, 2008 at 5:30 am

    क्या बात है सागर भाई!
    अच्छे गोताखोर हैं आप,ऐसे ही ये मोती थोड़े ना ढूँढ़ लाते हैं.
    वैसे अगर इस फ़िल्म का नाम पता चल जाये तो मजा आ जाये.
    सचमुच ये गीत उस ” सुनियो जी …” की ही एक प्रति मालूम होती है, वही आवाज़ वही संगीत.

  2. डॉ. अजीत कुमार said,

    May 4, 2008 at 5:44 am

    चचा गा़लिब के ये अशआर कितने उम्दा हैं..
    “.. परदे में गुल कि लाख ज़िगर चाक़ हो गये.”
    “करने गये थे उससे तग़ाफ़ुल का हम गिला.
    कि,एक निगाह में बस ख़ाक हो गये.”
    वाह.. वाह…

  3. Parul said,

    May 4, 2008 at 7:58 am

    meri pasand ki ghazal sunvaai aapney …shukriyaa SAGAR ji

  4. मीत said,

    May 4, 2008 at 10:14 am

    बहुत दिनों बाद सुना …. मज़ा आ गया. शुक्रिया सागर भाई.

  5. anitakumar said,

    May 4, 2008 at 10:33 am

    वाह वाह सागर जी कहां कहां से ढूंढ लाते है ऐसे विरले गीत आप को तो विविध भारती का भूले बिसरे गीत का कार्य सौंप देना चाहिए। श्रोतागण भी और खुश

  6. Manish said,

    May 4, 2008 at 12:18 pm

    वाह सागर भाई बिल्कुलसही पकड़ा। जैसे ही ये ग़ज़ल शुरु हुई लेकिन का वो गाना ज़ेहन में घूम गया। एकदम वही तर्ज।

    इस नायाब ग़ज़ल को हम तक पहुँचाने का शुक्रिया !

  7. खु़शबू said,

    May 4, 2008 at 2:22 pm

    सुन्दर ।

  8. yunus said,

    May 4, 2008 at 4:40 pm

    सागर भाई
    नमन है । आपने सुंदर गीत सुनवया है ।
    रविवार को यादगार बना दिया ।
    अनीता जी का सादर समर्थन ।

  9. अभिषेक ओझा said,

    May 4, 2008 at 8:15 pm

    वाह, बहुत सुंदर !

  10. Dr Prabhat Tandon said,

    May 7, 2008 at 2:51 am

    धन्यवाद !

  11. महेन said,

    June 27, 2008 at 8:37 pm

    कहाँ से ढूंढ लाये ये ख़ज़ाना? अद्भुत है। मज़ा आ गया।
    शुभम।


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