“गुलाबी चड्डी” अभियान से ये महिला पत्रकार(?) क्या साबित करना चाहती है?

Pink Chaddi Campaign, Women Liberation and Mangalore Pub Incidence

दिल्ली स्थित एक स्वयंभू पत्रकार महोदया हैं निशा सूसन, इन्होंने श्री राम सेना के प्रमोद मुतालिक के विरोध करने के लिये वेलेण्टाइन डे के अवसर पर सभी पब जाने वाली लड़कियों और महिलाओं से अनुरोध किया है कि वे 14 फ़रवरी को बंगलोर स्थित श्रीराम सेना के दफ़्तर में “गुलाबी चड्डियाँ” (गुलाबी रंग की महिला अण्डरवियर) भेजें। इन आभिजात्य वर्ग की महोदया (जो पत्रकार हैं तो जाहिर है कि पढ़ी-लिखी भी होंगी) का कहना है कि पब जाने वाली महिलाओं के समर्थन में यह एक अनूठा विरोध प्रदर्शन है। (इनका छिछोरा ब्लॉग यहाँ देखें)

इस तथाकथित “महिला समर्थक”(???) अभियान के अनुसार दिल्ली, मुम्बई, पुणे, हैदराबाद आदि शहरों में 11-12 फ़रवरी तक गुलाबी अंडरवियर एकत्रित की जायेंगी और उन्हें 14 फ़रवरी को श्रीराम सेना को भेजा जायेगा। नारी स्वतन्त्रता की पक्षधर निशा सूसन ने सभी महिलाओं (जाहिर है हाई सोसायटी की) से आव्हान किया है कि 14 फ़रवरी के दिन वे पब-बार आदि में भीड़ करें, श्रीराम सेना का नाम लेकर “चियर्स” करें और खूब “मस्ती”(???) करें। एक इंटरव्यू (जो कि उन्हीं जैसे किसी विद्वान ने उनसे लिया होगा) में इस महान महिला ने कहा कि चूँकि “गुलाबी” एक स्त्री रंग माना जाता है इसलिये उन्हें गुलाबी अन्तर्वस्त्र भेजने का आयडिया आया, साथ ही गुलाबी रंग कलर चार्ट स्पेक्ट्रम में “खाकी” के ठीक सामने आता है, सो “खाकी चड्डी” का विरोध करने के लिये यह “गुलाबी चड्डी” अभियान जारी किया गया है।

हालांकि अभी इस बात की पुष्टि होना बाकी है कि इस कथित नारी मुक्ति आन्दोलन के पीठ पीछे “तहलका” का हाथ है या नहीं, क्योंकि इन मोहतरमा का पता है –

निशा सूसन (9811893733)
द्वारा – तहलका
M-76, “M” Block Market
Greater Kailash, Delhi

यदि इस मुहिम को “तहलका” का समर्थन हासिल है तब तो यह विशुद्ध रूप से एक राजनैतिक अभियान है, क्योंकि तहलका की विश्वसनीयता और उसकी निष्पक्षता पहले से ही सन्देह के घेरे में है। “वेलेन्टाइन डे के दिन पब-बार को भर दो” का आव्हान तो निश्चित रूप से दारू कम्पनियों द्वारा प्रायोजित लगता है (क्योंकि पैसे के लिये इस प्रकार की पत्रकार कुछ भी कर सकते हैं) और यदि यह मुहिम निशाजी ने स्वयंस्फ़ूर्त ढंग से पैदा किया है तब तो इनकी मानसिक कंगाली पर तरस ही किया जा सकता है, लेकिन दिक्कत यह है ऐसे “मानसिक कंगाल” मीडिया के चहेते बने हुए हैं और इनका यथोचित “इलाज” करना बेहद आवश्यक होता जा रहा है। “गुलाबी चड्डी” को एकत्रित करने का काम भी अधिकतर महिलाओं ने ही संभाल रखा है, जो भी इच्छुक हों वे दिव्या (9845535406), रत्ना (09899422513) से भी सम्पर्क कर सकते हैं।

अब इस कथित अनूठे विरोध प्रदर्शन से कई सवाल खड़े होते हैं,

1) गुलाबी चड्डी और पब का आपस में क्या सम्बन्ध है?

2) क्या श्रीराम सेना को गुलाबी चड्डियां भेजने से पब-बार में जाने वाली महिलाओं को नैतिक बल मिलेगा?

3) क्या रत्ना जी को यह मालूम है कि गोवा में स्कारलेट नाम की एक लड़की के साथ बलात्कार करके उसकी हत्या की गई थी और उसमें गोवा के एक मंत्री का बेटा भी शामिल है, और वे वहाँ कितनी बार गई हैं?

4) क्या निशा जी को केरल की वामपंथी सरकार द्वारा भरसक दबाये जाने के बावजूद उजागर हो चुके “सिस्टर अभया बलात्कार-हत्याकांड” के बारे में कुछ पता है?

5) इंटरव्यू लेने वाले पत्रकार को दिल्ली की ही एक एमबीए लड़की के बलात्कार के केस की कितनी जानकारी है?

6) जिन उलेमाओं ने सह-शिक्षा को गैर-इस्लामी बताया है क्या उन्हें भी निशा जी गुलाबी चड्डी भेजेंगी? या यह विशेष कृपा सिर्फ़ भाजपा की कर्नाटक सरकार और श्रीराम सेना के लिये है?

7) कश्मीर में आतंकवादियों ने कई लड़कियों से बन्दूक की नोक पर शादी कर ली है, क्या दिव्या जी गुलाबी चड्डियों का एक बन्डल श्रीनगर भिजवा सकती हैं?

8) तसलीमा नसरीन भी तो औरत ही है जो कलकत्ता, जयपुर और न जाने कहाँ-कहाँ मारी-मारी फ़िर रही थी, तब यह “तहलका” कहाँ चला गया था?

9) यदि प्रमोद मुतालिक इन सभी चड्डियों के साथ चिठ्ठी लगाकर वापस भेजें कि “…कल शायद पब में आप नशे में अपनी गुलाबी चड्डी वहीं भूल गई थीं और इसे गलती से मेरे पास भेज दिया गया है, कृपया वापस ले लीजिये…” तो क्या इसे अश्लीलता समझा जायेगा?

10) सबसे अन्तिम और महत्वपूर्ण सवाल कि क्या भारत में नारी स्वतन्त्रता आन्दोलन का यह एक नया, बदला हुआ और परिष्कृत रूप है? (इस विषय पर महिला लेखिकाओं और ब्लॉगरों के विचार जानना भी दिलचस्प रहेगा)

नोट : चूंकि यह मुहिम एक महिला द्वारा शुरु की गई है, इसलिये यह लेख बनती कोशिश सभ्य भाषा में लिखा गया है, जिसे “भारतीय संस्कृति” का एक हिस्सा माना जा सकता है, और जिसका नाम भी इन “पेज-थ्री महिलाओं” ने शायद नहीं सुना होगा… और इस लेख को श्रीराम सेना द्वारा मंगलोर में किये गये कृत्य का समर्थन नहीं समझा जाये…

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64 Comments

  1. चन्दन चौहान said,

    February 11, 2009 at 9:13 am

    निशा जो अपने आपको पत्रकार कह रही है लड़कियों के नाम पर कंलक है।

    पब में आओ सटो खाओ कटो का हिसाब चलता है जिसे डेली-डेली खाना बदल कर खाने का शौक है जाता है और उसी का प्रचार भी करता है।

    निशा जैसी प्रत्रकारों के कारण ही आज कल कोई पत्रकार पर भरोसा नही करता है और कुछ तो पत्रकारों को पुलिस से भी गया-गुजरा कहतें हैं

  2. परमजीत बाली said,

    February 11, 2009 at 9:32 am

    आप ने बहुत से वाजिब प्रश्न उठाएं है। लेकिन बहुत मुश्किल है की कोई जवाब आए।विचारणीय पोस्ट लिखी है।

  3. संजय बेंगाणी said,

    February 11, 2009 at 9:35 am

    कोई पब जाए न जाए यह उसका व्यक्तिगत मामला है. पब जाना गलत है तो सरकार ने उसको लाइसेंस क्यों दिया?

    गुलाबी चड्डी एक “छिछोरापन” है…इसके अलावा कोई शब्द ध्यान में नहीं आता. प्रचार पाने का और राम सेना को उक्साने का एक घटिया तरीका.

    पब में जाने से रोकने के ज्यादा गलत सहशिक्षा का विरोध करना है, मगर लगता है हरे रंग के विरोध में कोई रंग जमता नहीं है.

  4. पंकज बेंगाणी said,

    February 11, 2009 at 9:39 am

    लोकतंत्र है, इसलिए निशाजी चड्डी, गड्डी जो चाहें भेज सकती हैं.

    राम सेना वाले बाद मे सेल लगा लें, खूब बिकेंगी! 🙂

    =========

    जितनी अक्ल उतनी बात! जैसी सोच वैसा कर्म!

  5. Anup Kumar Srivastav said,

    February 11, 2009 at 9:45 am

    is lekh ka nisha ji ko jabab dena hoga….
    nisha ji ka dimagi diwaliya pan hai aur kuch nahi?

    anup

  6. रंजना said,

    February 11, 2009 at 9:59 am

    क्या कहा जाय……जैसे एक सडा हुआ आम बोरे भर आम को गंधा देता है,वैसे ही तथाकथित प्रगतिवादी कुछ महिलाओं की ऐसी सोच और कार्यकलाप एक बहुत बड़े स्त्री समुदाय को शर्मसार कर देती है….
    सचमुच यह बड़ा ही कष्ट देता है कि नारी मुक्ति आन्दोलन का यह कौन सा रूप है यह ……..

    नग्नता,व्यभिचार,दुरव्यसन में संलिप्तता ही प्रगतिवादिता का पर्याय और नारी स्वतंत्रता का आधार है क्या ? यह विषय सिर्फ़ नारी के सोचने के लिए नही बल्कि स्त्री पुरूष समस्त समाज के लिए सोचने की बात है…..सभ्यता संस्कृति को ध्वस्त भ्रष्ट करने का यह कुत्सित प्रयास है,जिसके लिए सबको मिलकर इसकी भर्त्सना करनी चाहिए.
    पुरूष यदि ग़लत करता है और वह अपराध भर्त्सनीय/ दंडनीय है तो स्त्री की गलती, उसके कुसंस्कार उसके स्वतंत्रता का अधिकार नही.

    बहुत ही सही कहा आपने,कहाँ रहती हैं ये तथाकथित प्रगतिवादी नारीवादियाँ जब लो प्रोफाइल आम स्त्रियों का शील हरण होता है,उनपर परिवार समाज द्वारा पाशविक आत्याचार किए जाते हैं? आपने जितने भी प्रश्न किए हैं,सचमुच वह इन्हे एक चुनौती है,कि इतनी ही नारी मुक्ति की पक्षधर हैं तो वो सब कर के दिखाएँ…
    आज चड्डी तो लेकर निकल पड़ीं,आजतक अपने जीवन में स्त्री साक्षरता,शोषित पीड़ित स्त्री समुदाय की मुक्ति के लिए कितनी बार घर से निकली हैं ये…..जरा बताएं…

    मिडिया का क्या है,उसे तो ऐसे ही विवादित मुद्दों की तलाश रहती है,चड्डी बिके तो चड्डी,मौत और रेप बिके तो मौत रेप……कोई बड़ी बात नही कि इन मोहतरमा,शराब कंपनियों और मिडिया की मिलीभगत हो,शराब खपत के लिए…..
    यह कैसा वेलेंटाइन डे और नारी मुक्ति है जो शराबघर जाकर ही संपन्न और सफल होगी ??????क्या प्रेम का स्वरुप फ़िर से नए रूप में गढा जा रहा है,परना जो भी था वह ग़लत था ????…वेलेंटाइन डे ( जिसे प्रचलित हुए,कुछेक वर्ष ही हुए हैं) नही था तो प्रेम और उसकी अभिव्यक्ति नही होती थी ?या बिना इस पुण्य दिवस के न मनाये प्रेम पूर्ण ही न होगा ?

    आज जो इसका इतना व्यापक प्रचार प्रसार हुआ है,इसके पीछे की बाज़ार संस्कृति किसी को क्यों नही दीखती,पता नही. एक दिन में एकसाथ प्रेम संदेशों से भरे मोहक कार्ड और गिफ्ट आइटम का देशभर में कितने रुए का कारोबार होता है,बस आँख खोलकर देखने की जरूरत है.पश्चिम में एकदिवसीय प्रेम परम्परा है..माँ बाप भाई बहन रिश्ते नाते सामाजिक सरोकार सब एक दिवसीय स्मरण और श्राद्ध का विषय है,परन्तु हमारे संस्कृति में ये सर्वदिवसीय है. रिश्ते प्रेम सामाजिक सरोकार सबकुछ सदैव स्मरणीय और आदरणीय है.

  7. Anil Pusadkar said,

    February 11, 2009 at 10:27 am

    अफ़सोस की हम भी पत्रकार है मगर आपसे सहमत हैं।

  8. sareetha said,

    February 11, 2009 at 10:32 am

    तरक्की पसंदगी के नाम पर छिछौरेपन से अलग कुछ नहीं है ये घटिया हरकत । होगा किसी चड्डी निर्माता क्म्पनी का हाथ आंदोलन के पीछे । इस तथाकथित आंदोलन से उन लोगों के मानसिक दीवालियेपन का सबूत भी मिलता है ,जो बढ चढकर महिलाओं के आधिकारों की बात करते हैं । थोक बंद चड्डियां भेजने से कभी बदलाव आया है ……? प्रेम के ये पुजारी इस खास दिन ही क्यों इठलाते हैं ,साल भर प्रेम करो किसने रोका है । छुप – छुप कर करो ,सरे आम करो , इससे करो ,उससे ,करो चाहे जिससे करो किसे क्या पडी है । लेकिन इनका मकसद तो कुछ और ही है । युवाओं को भटकाव के रास्ते पर धकेलना ,विवाद बनाकर उसे हवा देना ,जुनून फ़ैलाना ,लोगों को उकसा कर उसे बगावत का जामा बहना और बाज़ार से माल समेटना ।

  9. Sanjay Sharma said,

    February 11, 2009 at 10:41 am

    स्थिति तनावपूर्ण है और अब शायद नियंत्रण से बाहर है . इस दयनीय स्थिति की दवा दया ही है .
    शाम तक मिडिया में छा जायेगी निशा अँधेरी रात की तरह .फ़िर भला आपके बताएं उन सभी
    जगहों पर निशा जैसी नारी खड़ी हो पाती ? काम जरा मुश्किल नही बता रहे हैं ?
    श्री राम सेना के महाबली से भी अनुरोध है कि वो भारतीय मानस के श्री और राम शब्द को आपस करे.

  10. इंडियन said,

    February 11, 2009 at 10:52 am

    ये तहलका छाप पत्रकारों (?) का बेहूदापन है, घटिया दिमाग घटिया क्रिया कलाप, ये छिछोरापन किस मायने में पब में जाती लड़कियों की पिटाई से कम है ? चड्डी भेजने का विचार शायद संघ परिवार की पहचान “खाकी चड्डी” से आया है ये विचार कांग्रेस जनित विचारधारा से उत्पन्न हुए लगते हैं, शर्मनाक।

  11. mahashakti said,

    February 11, 2009 at 11:06 am

    वाहियात पना की हद होती है, आज पत्रकारिता के नाम पर नंगापना करन पर उतारू है पह कृत्‍य कुकृत्‍य की श्रेणी में आता है।

  12. RAJIV MAHESHWARI said,

    February 11, 2009 at 12:00 pm

    सुरेश भाई , चड्डी किस साइज़( नम्बर) की भेजनी है ?????????????

  13. सुजाता said,

    February 11, 2009 at 12:07 pm

    सुरेश जी ,

    निशा जो भी हों और उनका जो भी कैम्पेन हो -उनका मोबाइल नम्बर और पता यहाँ चेपना सरासर आपकी गलती है।

    राम सेना का विरोध करने के लिए सबके अलग अलग तरीके हो सकते हैं,आप खुद अपने जीवन मे किन बातों का विरोध करेंगे और कैसे करेंगे यह आप ही डिअसाइड करते होंगे।इसलिए मै मानती हूँ कि बाकी दुनिया वाले भी अन्धाधुन्ध अनुकरण न करके पिंक चड्डी अभियान से सहमत असहमत होंगे ही।इसलिए मै इसे महज़ एक तरीके के रूप मे देख रही हूँ , इससे ज़्यादा नही।आप कितने क्रियेटिव हो सकते हैं बस यही मामला है।
    दूसरी बात ,
    आपके सवालों का मतलब यह है कि जिसे उपरोक्त सवालों के जवाब मालूम हों केवल वही किसी गलत बात का विरोध करने के योग्य हैं बाकी अयोग्य हैं।

    इन महिला से अधिक मेरी दिलचस्पी यह जानने मे है कि आपका इस इश्यू पर क्या स्टैंड है ? और आपके विरोध का तरीका क्या होगा या हो सकता था।
    पिंक चड्डी की जगह कोई अन्य रचनात्मक तरीका हो तो उस पर हम सभी को विचार करना चाहिए।

  14. सुजाता said,

    February 11, 2009 at 12:13 pm

    यह स्त्री आन्दोलन का नया रूप तो कतई नही है, लेकिन देखिये इस पोस्ट के बाद आपके ब्लॉग पर तो च्ड्डी का साइज़ पूछते हुए बेहूदे कमेंट भी आने लगे।
    आपकी आपत्ति विरोध के तरीके से है या विरोध से ही आपत्ति है?
    शायद मै नही समझ पा रही।शायद इसे समझने के बाद बेहतर कमेंट कर पाऊँ।

  15. मुंहफट said,

    February 11, 2009 at 12:15 pm

    अब तो भैये लगता है कि बियाग्रा और कंडोम भर बाकी बचा है. कोई ऐसी-वैसी बात वाली पोस्ट देखते ही न जाने क्यों तमाम चिट्ठाकारों की लेखनी क्यों कुलबुलाने लगती है. लगता है, यह भी बाजार की माया है. बाजारू इंटरटेनमेंट ने चारो ओर खुजली मचा रखी है. सो चिट्ठाकारी भी भला कैसे वंचित रहे. लिखने-पढ़ने के लिए अब यही सब रेला-पेला जा रहा है. पब, दारू, भव्य सेलरी के साथ बहुमंजिले मकान में बैठकर वामपंथ की बातें, जैसे कि प्रणव रॉय बेचारे रिन-करज के भरोसे एनडीटीवी पर करते रहते हैं. किसी बौरायी लेडीज ने चड्ढी-सड्ढी साधु-संतों के नाम भेज ही दी तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा. जहां तक नारी आंदोलन की बात है तो वह गई फलाने के ऊ में. जैसे बाकी आंदोलन फलाने के ऊ में विलोपित हो चुके हैं. कोई भगत सिंह को बेंच-खा रहा है, कोई लेनिन-मार्क्स को. लाल सलाम भी उन ससुरों के लिए रोजी-रोटी का साधन बन गया है. जैसे राम को भाजपा वाले बेंच-खा रहे हैं….जयश्री राम…जय हो चिट्ठाकारी महरानी की.

  16. अनुनाद सिंह said,

    February 11, 2009 at 12:44 pm

    ये सब तमाशा इसलिये किया जा रहा है कि तालीबन की नवीनतम् धमकी से भारत की आम जनता का ध्यान हटाया जा सके।

  17. दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi said,

    February 11, 2009 at 12:48 pm

    सुरेश जी आप ने गुलाबी चड्डी मामले पर पूरा एक आलेख लिख कर एक गंदगी को महत्व दे दिया। इन्हें तो उपेक्षा के हथियार की आवश्यकता है।

  18. Shiv Kumar Mishra said,

    February 11, 2009 at 12:49 pm

    इससे यह साबित होता है कि पब्लिसिटी बटोरना कितना आसान है.

  19. PD said,

    February 11, 2009 at 1:04 pm

    main sujata ji ke puchhe gaye prashn ke uttar ke intjar me hun..

  20. प्रवीण शर्मा said,

    February 11, 2009 at 1:19 pm

    दरअसल श्रीराम सेना और ये महोदया एक ही मानसिक स्तर के लोग है, इसलिए इनके प्रेम का प्रतीक चड्ढी है.

  21. cmpershad said,

    February 11, 2009 at 1:32 pm

    हर कोई गांधी लंगोट पहन कर गांधीगिरी करना चाहता है- तो गुलाबी लंगोट ही सही:)

  22. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said,

    February 11, 2009 at 2:00 pm

    अब भारतवर्ष को ऐसे ही आन्दोलनों और विरोध के तरीकों को देखना बदा है।

    देखना यह है कि शर्मसार कौन होता है। प्रमोद मुथालिक या निशा सूसन… या हमारे जैसे साधारण भारतीय जिन्हें अपनी संस्कृति और मर्यादा से अनुराग है।

  23. अनिल कान्त : said,

    February 11, 2009 at 2:40 pm

    प्रशंसनीय पोस्ट ……पर आपको उनका पता यहाँ प्रकाशित नही करना चाहिए था …. बाकी आपने बहुत गंबीर सवाल उठाये हैं …जिनका जवाब देना हर किसी के बस की बात नही ..

    मेरी कलम – मेरी अभिव्यक्ति

  24. dhiru singh {धीरू सिंह} said,

    February 11, 2009 at 2:57 pm

    शर्म शर्म , बेशर्मी की हद पार हो ही गई और कुछ भेजने की बात हो इससे पहले हमें इन मानसिक विछुवद की बातें मान ले . इनेह छुट है कही जाए कही भी अपने माँ बाप का नाम रोशन करे .

  25. पंगेबाज said,

    February 11, 2009 at 2:59 pm

    हम इस दिन और पब दोनो का विरोध कर रहे है .
    सभी समर्थित लोगो से अनुरोध है कि मे ९० नंबर की चड्ढिया ही भेजे . भेजे चाहे जित्ती मर्जी . मंदी के दौर मे कुछ तो मुफ़्ती का मिले 🙂

  26. अतुल चौरसिया said,

    February 11, 2009 at 3:04 pm

    सुरेश चिपलूनकर की पिंक चड्डी से चिढ़न और जवाब

    सुरेशजी आपने निशा के अभियान के चपेटे में तहलका को भी ले लिया है. इसलिए तहलका का एक पत्रकार होने के नाते आपकी कुछ बातों का जवाब देना बहुत जरूरी हो जाता है.
    आपने तहलका का जिक्र किया है और लगे हाथ उसकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े किए हैं. सिर्फ इस आधार पर कि निशा ने तहलका का पता दिया है. निशा तहलका की पत्रकार हैं और एक पता देने की जरूरत ने ऐसा करवाया. इसके अतिरिक्त तहलका का इस अभियान से किसी तरह का वास्ता नहीं है. और जिस तहलका की विश्वसनीयता को आप संदेहास्पद मानते हैं उसे आप जैसे किसी व्यक्ति के प्रमाण की दरकार नहीं हैं. आज तक तहलका ने जो किया है उसकी सत्यता पर किसी तरह की उंगली नहीं उठी है, देश के सर्वोच्च न्यायालय ने तहलका को प्रमाण दिया है. देश के करोड़ो लोग तहलका पर विश्वास करते हैं. लिहाजा अपना संदेह अपने पास रखें.
    – रही बात एक एक मामले में निशा की हिस्सेदारी की तो आपको पता होना चाहिए कि देश में लाखों की संख्या में पत्रकार हैं और संभव नहीं कि हर विवाद में हर पत्रकार शिरकत करे ही करे. और तहलका को आपने खींचा है तो आपको पता होना चाहिए कि अकेले तहलका ने स्कारलेट बलात्कार-हत्याकांड को अपनी कवर स्टोरी बनाया है (29 मार्च 2008 अंक, गोइंग गोइंग गोवा)
    – आपने पूछा है कि पिंक चड्डी भेजने से महिलाओं को नैतिक बल मिलेगा. अगर अबला, असहाय स्त्री को सरेआम पीटने से संस्कृति की रक्षा होती है तो पिंक चड्डी भेजने से नैतिक बल क्यों नहीं मिल सकता?
    – दिल्ली की पत्रकार के बलात्कार की कितनी जानकारी निशा को है इसकी जानकारी तो आपको उनसे बात करके ही पता चलेगी. हो सकता है उनकी जानकारी आपको बगले झांकने पर मजबूर कर दे.
    – तस्लीमा नसरीन के जरिए तहलका को घेरने की कोशिश भी की है आपने. आपकी जानकारी पर तरस आता है अकेले तहलका ऐसा संस्थान है जिसने दो-दो कवर स्टोरी तस्लीमा को देश से निकाले जाने के बाद की थी. इसके अलावा छोटी-मोटी खबरों की गिनती नहीं है. मुसलमानों को गरियाने वाली तस्लीमा की फिक्र है आपको पर एमएफ हुसैन की परवाह नहीं. ये दोगलापन क्यों?
    आखिरी एक लाइन में श्रीराम सेना से अपना गला छुड़ा कर पोलिटिकली करेक्ट होना भी दोगलेपन की निशानी है. हिंदी में कहावत है गुण खाओ और गुलगुले से परहेज. इस भड़ास की वजह सिर्फ ये है कि आपने बिना जाच-पड़ताल किए जबरिया एक व्यक्तिगत अभियान में तहलका को घसीट लिया हैं. कोई और शंका हो तो संपर्क कर सकते हैं.
    दो बातें और साफ कर दूं. शायद निशा के अभियान को आप ठीक से समझ नहीं सके हैं. उसने पहले ही साफ कर दिया था कि वैलेंटाइन डे से उसका कोई लेना-देना नहीं है, न ही वो उसकी समर्थक या बैरी है. उसका विरोध सिर्फ श्रीराम सेना के तरीके, उनकी स्वयंभू ठेकेदारी, दूसरों की व्यक्तिगत आजादी का फैसला कोई तीसरा करे जैसे कुछ बेहद मूल मसलों से है.
    अतुल चौरसिया

  27. पंगेबाज said,

    February 11, 2009 at 3:30 pm

    नोट करे हमारी टिप्पणी के बाद से हमे ढेरो चड्ढिया मिली है अब हम इन्हे बेचने के मूड मे आ गये है क्या करे भाई धंधे वाले आदमी है . सो सभी ब्लोगर बलोगर्नियो से निवेदन है कि किसी को चड्डी भेजने के लिये चड्ढी हम से ही खरीदे आधे दाम पर गुलाबी होने की १००% गारंटी के साथ 🙂

  28. Amit said,

    February 11, 2009 at 3:37 pm

    वाह भाई वाह ! अभी तक जितनी भी टिपण्णी आई है सब पुरूष प्रधान समाज की मानसिकता से ग्रसित है |
    सुरेश जी किस दुनिया मैं है आप ? और ऐसा क्या है इसमे जो आपको इतना खल गया ……..

    चलिए कुछ जवाब आप भी दे दीजिये …….

    १) जब गोवा में स्कारलेट नाम की एक लड़की के साथ बलात्कार करके उसकी हत्या की गई थी और उसमें गोवा के एक मंत्री का बेटा भी शामिल है, तब आपने उसके बारे में क्यूँ नही लिखा |

    2) केरल की वामपंथी सरकार द्वारा भरसक दबाये जाने के बावजूद उजागर हो चुके “सिस्टर अभया बलात्कार-हत्याकांड” के बारे में आपने क्यूँ नही लिखा ?

    3) एक एमबीए लड़की के बलात्कार के केस के बारे में आपने क्यूँ नही लिखा ?

    4) जिन उलेमाओं ने सह-शिक्षा को गैर-इस्लामी बताया है के बारे में आपने क्यूँ नही लिखा ?

    5) कश्मीर में आतंकवादियों ने कई लड़कियों से बन्दूक की नोक पर शादी कर ली है, के बारे में आपने क्यूँ नही लिखा ?

    ६) कहीं आपको ये तो नही खल रहा की वो औरत होकर ऐसी बात कर रही है ?

    ७) कहीं आपको पुरूष प्रधान समाज की सत्ता पुरूष के हाथ से जाती हुई दिख रही है ?

    ८) कहीं आप औरत को सिर्फ़ घर में और बिस्तर पर देखना पसंद करते हो?

    ९) पुरूष करे तो चलता है ..स्त्री करे तो हाय – तौबा ? क्यूँ सुरेश जी ?

    १०) या आप श्री राम सेना के भक्त हैं… उन्होंने जो किया उसके बारे में तो आपने शायद कुछ नही लिखा , क्यूँ ?

    देखिये सुरेश जी | ये सिर्फ़ विरोध जताने के उनका अपना तरीका है | इसमे इतनी हाय-तौबा क्यूँ? वो किसी को मार तो नही रही है ?
    और अगर हम बात करें आपके पूछे हुए सवाल के बारे में तो आपको तो खुश होना चाइये की स्त्री कम से कम एक मंच पर एक जुट होकर विरोध तो कर रही है ? या ये आपको नही पच रहा है |
    मैं न पब कल्चर का समर्थक हूँ न ही श्री राम सेना का |
    ख़ुद को मोरल पुलिस कहने वाली श्री राम सेना के हर मेंबर को सरे आम गोली मार देनी चाइये | अगर पब कल्चर इतना ही ख़राब है तो भाई सरकार इसे बंद कर दे न |
    पुरूष समाज पब में जाए तो बहुत अच्छा लकिन अगर कोई महिला जाए तो हमारी धर्म, संस्कृति की बात आ जाती है | वाह भाई , बहुत सही …ये कहाँ का न्याय है ? अगर आपको रोकना ही है तो दोनों को रोकिये | ये भेद-भाव किस बात का है |

    वक्त आ गया है की हम ओछी मानसिकता से बहार आयें | स्त्री को सिर्फ़ उपभोग का सामान न समझे | उन्हें भी अपने तरह से जीने का हक़ है | और हम और आप कोई नही होते हैं उनकी स्वतंत्रता उनसे छीन ने वाले | सिर्फ़ वो स्त्री हैं इसलिए वो ऐसा नही कर सकती ऐसा सोचने वाले भाड़ में जाएँ |

    जहाँ तक बात है चड्डी परकरण की , तो जरा याद दिला दूँ आपको , मुंबई में दिलीप कुमार के घर के सामने शिव सेना वाले नंगा होकर विरोध प्रदर्शन किए थे | क्या सुरेश जी वो सही था क्या ? वो भी तो विरोध करने का बस एक तरीका था |

    मैं तो बस इतना कहूँगा की अब भी चेत जाए ..वरना जब स्त्री अपनी पर आ जाती हैं तो आप बगल झाकने को मजबूर हो जायेंगे | ये तरीका एक हद तक ग़लत हो सकता है , लकिन इसका मकसद साफ़ है , इसका उदेश्य साफ़ है | अब ये निर्भर करता है आपकी मानसिकता पर की आप इसको कैसे लेते हैं |

  29. DEEPAK BABA said,

    February 11, 2009 at 4:18 pm

    आदरनिये सुरेश गुरूजी,
    आप आदर के पात्र हैं। आपने जो लिखा सही लिखा है। अमित भाई की टिपण्णी का जवाब है :
    गोवा में जो बलात्कार हुवा ताजुब है सुरेश जी नें कुछ नहीं लिखा : भाइयों आप जैसे लाखों पत्रकार हैं इस आजाद भारत में कुछ भी लिखने के लिए आपने क्या लिख दिया या और नारीवादी संगठनो ने कों सी हाय तोबा मचा दी।
    २) इसका उत्तेर भी उपरोक्त है
    ३) इसका उत्तेर भी उपरोक्त है
    4) इसका उत्तेर भी उपरोक्त
    ५) इसका उत्तेर तो आप दे ही नहीं सकते, क्योंकि इस देश में जो भी हिंदू लोगों की बात करता है तो उनको सांप्रदायिक करार दे दिया jata है। bhala आप क्यों लिखने लगे
    ६) ओरत हो कर इसी बात कर रही है, yehi तो बात khal रही हमारे लोगों को … एक ओरत भला पिंक पेंटी भेजने का अर्थ नहीं समझती … अगर समझती है तो क्यों मर्दों को पिंक पेंटी bheji जा रहीं है।
    ७) भइया सत्ता तो ओअरतों के हाथ में ही है .. चाहे घर हो या प्रधानमंत्री करालाय या राष्ट्रपति भवन

    भाइयों, हालातों को सम्भालों, एक प्रशन का जवाब अपने में से तलाशो क्या हमारी बहन बेटी इन्ही पब से रात को २ बजे आती है तो क्या हम शाबाशी देंगे ? अगर नहीं तो राम सेना (में नहीं जानता की वो लोग कों हैं) वाले ठीक हैं.

  30. Sanjeet Tripathi said,

    February 11, 2009 at 4:19 pm

    बातें आपकी कितनी सही या गलत है यह एक अलग मुद्दा है पर चूंकि मै पहले भी एक ब्लॉगर द्वारा बिना इजाजत किसी महिला का मोबाईल नंबर अपने ब्लॉग पर दिए जाने का विरोध कर चुका हूं और अभी भी कर रहा हूं।

    आपने एक महिला का मोबाईल नंबर शायद उसकी इज़ाज़त के लिए बिना अपने ब्लॉग पर दिया है, इस पर मेरा विरोध है।

    आशा है अन्यथा नहीं लेंगे।

  31. Suresh Chiplunkar said,

    February 11, 2009 at 4:31 pm

    @ संजीत भाई, @ अनिलकान्त जी और @ सुजाता जी, मैंने इन मोहतरमा का मोबाइल नम्बर और पता सिर्फ़ इसलिये दिया है क्योंकि इन्होंने खुद अपने ब्लॉग पर दे दिया है, और जिसकी लिंक भी मैंने दी है, इसलिये जब वे खुद अपना मोबाईल नम्बर बाँटती फ़िर रही हैं तो इसमें मेरा कोई दोष नहीं है… बाकी प्रश्नों का जवाब भी दूँगा… शान्ति रखें, पहले सारे कमेंट्स आ जायें…

  32. मसिजीवी said,

    February 11, 2009 at 6:19 pm

    अमित की बात से सहमति है।

    रोजगार के लिए, वेतन वृद्धि के लिए, मँहगाई के खिलाफ अक्‍सर कच्‍छा बनियान प्रदर्शन, भीख्‍ा मॉंगकर प्रदर्शन किए जाते रहे हैं… प्रतिरोध की इस नई रचनात्‍मकता से संभव है आप असहमत हों, आपको इसका हक भी है किंतु आपके पास इनके विरोध में कोई दमदार तर्क है ये कम से कम दिखाई तो नहीं दे रहा है।

    आप पिंक चड्डी के शॉक मूल्‍य से उबर नहीं पा रहे हैं, मुझे इस अभियान के विषय में नहीं पता था, आपने लिंक दिया शुक्रिया मैंने ब्‍लॉग देखा पर तमाम पढ़ने के बाद भी मुझे वह छिछोरापन नहीं दिखाई जिसकी घोषणा आपने इस ब्‍लॉग के बारे में की है।

  33. PD said,

    February 11, 2009 at 6:26 pm

    दीपक बाबा जी ने लिखा – “भाइयों, हालातों को सम्भालों, एक प्रशन का जवाब अपने में से तलाशो क्या हमारी बहन बेटी इन्ही पब से रात को २ बजे आती है तो क्या हम शाबाशी देंगे ?”

    मेरा कहना है, “अगर बेटे को हम शाबासी दे सकते हैं तो बेटियों को भी देना चाहिए.. या फिर हर दिन देश के हर पब से बेटों को भी खिंच-खिंच कर मारना चाहिए..”

  34. shashi said,

    February 11, 2009 at 6:39 pm

    सुरेशजी, इस मुद्दे पर Times of India में एक लेख छापा था – वेंडी डोनेगर का, जिसमें भारतीय संस्कृति में पुरुष प्रधान द्वारा नारी पर शासन और अत्याचार की बात करी गयी है, वह भी इसी पब कल्चर के सिलसिले में | उसका जवाब मैंने दिया है, जिसमें भारतीय संस्कृति की सही झलक दी है | सुधि पाठक खुले दिमाग से पढ़ें मनुस्मृति का उद्धरण किया है |

    http://pinchingshoes.blogspot.com/2009/02/bring-good-through-non-violent-means.html

  35. swapandarshi said,

    February 11, 2009 at 9:26 pm

    Sorry for using English for comments here.

    1. I believe that taking an opposition stand for “forced and self-guardianship” of Ramsena for Indian women, is right stand for any person who believes in democracy, and is freedom loving.

    2. The second question, is what should be the nature of that stand?
    I would say that one extreme results in another extreme and the “Pink chaddi” campaign is the logical consequence of the actions of Ram Sena.

    3. Indeed Ram in “Indian Manas” is the most moderate person, who seeks consensus among different beings, and These goons should not be allowed to use name of Ram or any other respected Hindu Deity for their purpose. And their actions and misconceived believes are not equal to hindu philosophy and teachings.

    3. Going to the pub or not going should be left as a individual choice for women as well, as it is for men. If going to the pub is wrong for women, then Menfolks should not enter their either. And I believe in 60 years of freedom, there is very little objection from the society for men. So lets recognize that aspect as well.

    4. “Pink-Chaddi” is used probably as a sensational and attention catching word, it could have been virtually and “pink-roomal”.
    But the use of extreme in this case serves two purpose,
    -one of course is publicity and letting people know, that their is resistance.

    -the second purpose is more hidden probably, but reflects the anger of women, when goons start to decide for them, what is right or what is wrong, and people buy their point in name of the “sanskriti”. It is also there to express this anger in the crudest form, and to reflect some sense of power of the rebels.

    Conclusion: Before we start totally, rejecting this campaign, lets see,
    -if we are happy “if Ram Sena ” becomes face of Hindu values and Indian culture?
    -What else can be done, if we do not expect “This goon-sena” our moral leader? becoz doing something is better than nothing.

    -The third question relates to culture Invasion, effect of consumerism, economy and western culture, and it again requires another dimension of discussion, and a huge array of solutions can be found to counter that, probably the mode of action of “ram Sena” bajrang dal and “shiv sena” are not the way, Indian can invent.

  36. राज भाटिय़ा said,

    February 11, 2009 at 9:31 pm

    सुरेश जी अब हम क्या बोले है तो शर्म आती है,ओर हेरानगी होती है, कि हम बंदरो से भी ज्यादा नकल करने लगे है, अब विरोध का नया ढंग गुलाबी चड्डी पहन कर पब जाओ, ओर वहां चड्डी उतार कर घर आओ…..
    वाह क्या मान्सिकता है, क्या विचार है, धन्य है यह लोग, कल कोई बोले गा की चड्डी पहनो तो उस का विरोध केसे करेगे…
    सुरेश जी आप की बात से सहमत हुं.
    धन्यवाद

  37. प्रवीण त्रिवेदी...प्राइमरी का मास्टर said,

    February 12, 2009 at 3:08 am

    आप ने बहुत से वाजिब प्रश्न उठाएं है।देखना यह है कि शर्मसार कौन होता है। प्रमोद मुथालिक या निशा सूसन…??सचमुच यह बड़ा ही कष्ट देता है कि नारी मुक्ति आन्दोलन का यह कौन सा रूप है यह ……..??

  38. सुजाता said,

    February 12, 2009 at 3:27 am

    मुझे लगता है सुर्श जी का रामसेना के पक्ष को लेकर कोई विचार नही बना है।

    पिंक चड्डी प्रतीक है -प्राइवेट स्पेस का ।

    इसमे दखल देकर मुतालिख ने सरासर गलते ही किया है अब उन्हें प्रावेट स्पेस के प्रतीक भेजे जा रहे हैं तो इसमें किसके शर्मिन्दा होने का इंतज़ार आप लोग कर रहे हैं?निशा सूसन का? क्या यह वही मानसिकता नही है कि जिसका बलात्कार हो यदि वह अदालत मे खुलकर तफसील बयान करे तो आप उसे ही शर्मिंदा होते देखना चाहेंगे।
    इस मानसिकता से उबर जाना चाहिए ।
    you need to grow !!
    सुरेश जी ने लिखा –

    ” जब निशा खुद ही अपना नम्बर देती फिर रही है तो मैने भी चेप दिया …..”

    आपके वाक्य की टोन समझी जाए तो खतरनाक है ! उम्मीद है आप पुन: पढने पर इसे समझ जाएंगे।

  39. सुजाता said,

    February 12, 2009 at 3:33 am

    आपका वाक्य है – जब वह खुद ही अपना मोबाइल नम्बर बांटती फिर रही है तो इसमे मेरा कोई दोष नही है ….

    जिस उद्देश्य से आपने नम्बर बांट दिया है , वह शायद सूसन की फजीहत करने का है।बहती गंगा मे हाथ धोने का यह तरीका जिस मानसिकता की ओर इशारा करता है उसे समझदार समझ ही गए होंगे।
    केवल लिंक देकर काम चलाया जा सकता था, यूँ भी पिंक चड्डी और किसी स्त्री के नाम से बड़ी संख्या मे ब्लॉगर वहाँ पहुँच जाते।

    मुझे लगता है हमें बहस का फोकस तय कर लेना चाहिए और मेरी समझ से निशा सूसन नाम की महिला इस बहस का फोकस नही होनी चाहिए।कोई मुद्दा हो ठोस तो बहसिए।

  40. shashi said,

    February 12, 2009 at 3:51 am

    बहुत सही कहा है सुजाता जी, लेकिन इसमें दोष समय का है, जो इतना ख़राब हो गया है,कि लोगों को अपनी ही संस्कृति नहीं मालूम, दूसरों के संकीर्ण विचार हम अपने मान बैठे हैं | कृपया http://pinchingshoes.blogspot.com/2009/02/bring-good-through-non-violent-means.html पढ़ें तो पायेंगे कि मनुस्मृति, उपनिषद् भागवद में भी विचार उदार थे, जीवन कि कमजोरियों को माना गया था, उनको channelize किया गया, लेकिन कभी पूरी तरह से दबाया नहीं गया | यह मुतालिक कि बेहूदा राजनीतिक चाल है जिससे जनता में और नए तरह के रोष और द्वेष भरे जायेंगे – वैसे जात-भाषा-राज्य आदि के द्वेष कम नहीं हैं |

  41. Rachna Singh said,

    February 12, 2009 at 4:23 am

    अरे हमने तो बहुत से भद्र जानो को सड़क के किनारे देखा हैं बिना परवाह किये की की कौन देख रहा हैं .
    और ये नौजवान ही नहीं ७० साल के भी होते हैं . किस ज़माने का ज़िक्र हैं और किस भद्रता की बात हैं .
    प्रेशर होता तो सब ठीक लगता हैं . पिंक समुदाय के ऊपर भी प्रेशर हैं
    हमे आप को ना पसंद आए तो क्या . कही हम आँख बंद करके , नाक पर रुमाल रख कर निकलते हैं कहीं आप निकल जाए . बदलाव आ रहा हैं चेत जाए वो जो अपने को पेडस्टल पर बता मानते हैं क्युकी अब लड़कियां फोल्लो कर रही हैं वही जो देखती रही हैं .

  42. Dr. shyam gupta said,

    February 12, 2009 at 6:59 am

    gulavi chaddi abhiyan se sidd ho rahaa hai ki -RAM senaa ka abhiyaan eisee sharaav sanskriti waalee mahilaaon ke liye uchit he hai. kyaa in mahilayon ko rozana sharaav peekar marte hue log tathaa dokors kee salaah samajh main naheen aati. Kyaa ye mahilayen yeh dikhaanaa chaahteen hain ki ham to chaddi pahankar bazar main ghoomenge , kyaa kar legaa ye zamaanaa.
    shyamgupt

  43. अतुल चौरसिया said,

    February 12, 2009 at 7:11 am

    उम्मीद है शशि, सुजाता, रचना की बातों ने स्थिति काफी हद तक साफ कर दी होगी. व्यक्तिगत तौर पर पूरे मामले से रंज है और तहलका की तरफ से जो दिक्कत थी उसका जवाब देने की कोशिश भर है. वैसे मणिपुर में भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा बलात्कार के बाद मनोरमा की हत्या से उपजे रोष में महिलाओं ने लाचार होकर जब निर्वस्त्र विरोध प्रदर्शन का सहारा लिया तब तो शायद आपको दिक्कत नहीं हुई थी. सारी व्यवस्था का सिर शर्म से झुकाने वाली इस घटना को भदेस मानने को कोई तैयार नहीं था. सरकारी अत्याचार के खिलाफ कुछ नहीं मिला तो निर्वस्त्र प्रदर्शन का सहारा लेने वाली महिलाओं की हिम्मत की दाद सभी ने दी. क्योंकि अपनी बात रखने का उनके पास और कोई जरिया नहीं समझ आया या कहें कि बचा था. श्रीराम सेना की गुंडई के खिलाफ कुछ महिलाओं के समूहों ने अगर अंतर्वस्त्रों को हथियार बनाने का फैसला किया है तो इतनी हायतौब क्यों? क्योंकि कहीं न कहीं, किसी हद तक, उस विचारधारा से आप भी सहमति रखते हैं इसलिए?

  44. डॉ .अनुराग said,

    February 12, 2009 at 8:00 am

    दुखद है की एक स्वस्थ बहस फ़िर अपने मूल मुद्दे से ग़लत मोड़ की ओर मुड गयी है …ये ज्ञान ओर विद्वता का अपव्यय है ..किसी भी बहस को निजी ओर व्यक्तिगत नही होना चाहिये..
    न तो मै मुतालिक को संस्क्रति का सरंक्षक मानता हूँ ,ओर न पब जाने वाली लड़कियों को संस्क्रति का दूत ….न हमारी संस्क्रति इतनी कमजोर है की लड़कियों के पब में जाने से टूट कर गिर जायेगी ….
    यहाँ सवाल व्यक्तिगत स्वतंत्रता का है ..जब तक कोई व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के दायरे में रहकर कोई भी असामाजिक या गैर कानूनी कार्य नही कर रहा है ..किसी समूह या व्यक्ति को (उनकी नापसंदगी के कारण )उसको किसी भी तरह से रोकने का कोई अधिकार नही है .
    जब हम किसी समाज में रहते है तो उसके कई अलिखित नियम कानून होते है जो आदर ,स्नेह ,स्वतंत्रता ओर एक दूसरे की भावनाओं के सम्मान का प्रतीक का मिश्रण होते है …समाज के ढांचे को ओर व्यवस्थित करने के लिए हम ने मिलकर एक राज्य की स्थापना की ओर उसमे पुलिस ओर कानून व्यवस्था की ..जिसका काम प्रत्येक नागरिक को न्याय ओर सुरक्षा प्रदान करना है ..जाहिर है राज्य प्रशासन ने अगर कोई पब खुलवाया है तो वहां जाकर कोई भी पी सकता है ..उसमे जाने आने ,बंद करने का अधिकार केवल ओर केवल पुलिस ओर कानून व्यवस्ता को है…यदि किसी व्यक्ति को आपति है तो …. सभ्य समाज में विरोध करने के कई तरीके है…कानूनी ओर सामजिक दोनों रूपों में ….
    पर यदि हम इस ढाँचे को तोड़कर स्वंय निर्णय लेगे .तो शायद हम ख़ुद ही एक अव्यवस्था को जन्म देंगे .क्यूंकि कल को किसी एक को किसी दूसरे की कोई बात पसंद नही आयी तो ? वैसे भी संस्क्रति की परिभाषा एक के लिए अलग है दूसरे के लिए अलग.
    हम सब जानते है की बडो को आदर देने के लिए प्रणाम करना-चरण छूना हमारी सामाजिक व्यवस्था -परम्परा है ..पर इसे थोपा नही जा सकता ….यदि मोहल्ले का कोई बच्चा आपको प्रणाम नही कर रहा है तो आप या कोई ओर उसे पीट नही सकते की प्रणाम करो .ज्यादा से ज्यादा उसके घरवाले या निकट के लोग कह सकते है या उसे समझा सकते है की उसे बडो का आदर करना चाहिये …
    हमारी स्वतंत्रता की सीमा की हद वहां जाकर ख़त्म हो जाती है जहाँ से दूसरे की सीमा शुरू हो जाती है …
    पहाडो में ओर अक्सर कई महल्लो में कई बार बहुत सारी औरतो ने शराब की दुकानों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किए है ओर उनकी वाजिब मांग ओर सामाजिक व्यवस्था के तहत सरकारों ओर वहां के स्थानीय प्रशासन ने उनकी मांग को सुना भी है ….अधिक मात्रा में शराब पीकर गाड़ी चलाना …अपराध है हमारे कानून में ….(उसमे कही भी उल्लेख नही है की ये कानून स्त्री के लिए अलग है पुरूष के लिए अलग )जाहिर है कानून सबके लिए बराबर है ……..

    विरोध करने के तरीके को लेकर असहमति हो सकती है ..पर विरोध से नही ….

  45. डॉ .अनुराग said,

    February 12, 2009 at 9:04 am

    वैसे अगर पब में खाली लड़को को भी पीटा जाता तो भी मेरे विरोध की भाषा यही रहती

  46. COMMON MAN said,

    February 12, 2009 at 1:16 pm

    मैं तो कहता हूं कि पब और बार बन्द होने चाहिये. पढिये :- http://incitizen.blogspot.com
    कडुवा सच यह है कि अगर इस तरह के स्वतन्त्रता चाहने वाले अंग्रेजों के समय या मुगलों के समय में पैदा हुये होते तो हम आज भी गुलाम होते. एक चुनौती इन सभी चड्डी ब्रिगेड के लिये – जायें अफगानिस्तान, ईरान, ईराक, पाकिस्तान और विरोध प्रदर्शित करें, वहां के लोगों के प्रति भी इनके दिल में संवेदना होनी चाहिये या फिर यह केवल भारत तक ही सीमित रख क्षुद्रता का परिचय दे रहे हैं. ग्लोबल बनें. मकबूल फिदा हुसैन से अपने घर की किसी स्त्री की ऐसी ही सुन्दर तस्वीर क्यों नहीं बनवाते फिदा के समर्थक. बनवायें तो मुझे एक प्रति अवश्य दें, मैं आभारी रहूंगा. मर कर चले गये सुभाष, भगत, आजाद और अशफाक और शहादतों से पाई स्वतन्त्रता इसलिये दे गये कि छिछोरों के हवाले कर दी जाये. खुलेपन और नंगई में कोई तो सीमा होना चाहिये.

  47. COMMON MAN said,

    February 12, 2009 at 1:21 pm

    रही बात व्यक्तिगत स्वतन्त्रता की तो बहुत लोग यह भी कहेंगे कि ब्लू फिल्में बनाना और दिखाना लीगल कर दिया जाये, चरस-गांजा-अफीम-स्मैक के सेवन, बनाने और बेचने पर पाबंदी लगा दी जाये, मुस्लिम शरीयत के लिये चिल्लाते हैं, सिख अपना कानून बनायेंगे, ईसाई अपना, हिन्दू अपना. कुछ लोग कहेंगे कि नरमांस भक्षण की छूट दी जाये, दी जायेगी, कुछ यह कहेंगे कि अपने यौन सम्बन्धों को लाइव दिखाना चाहते हैं, छूट दी जायेगी?? सत्य यह है कि जिस समय स्वतन्त्रता मिली हम लोग उसे पाने के हकदार थे ही नहीं. आसानी से मिली चीज का मूल्य समझ में नहीं आता, जिन्हें इसका मूल्य पता था वे शहीद हो गये. बन्दरों को उस्तरा मिल गया.

  48. COMMON MAN said,

    February 12, 2009 at 3:27 pm

    “चरस-गांजा-अफीम-स्मैक के सेवन, बनाने और बेचने पर पाबंदी लगा दी” में “पाबंदी लगा” के स्थान पर “पाबंदी हटा दी” पढे़. और राम का नाम तो गाली बना दिया इन …………..ने.

  49. pink chaddhi said,

    February 12, 2009 at 3:55 pm

    तरस आता है इन औरतों पर च्च्च्च

  50. प्रबुद्ध said,

    February 12, 2009 at 5:20 pm

    सुरेश जी, असल दिक़्क़त ये है कि हम आजकल अपने में इतने मस्त हो गए हैं कि पड़ोस में होने वाली किसी नाजायज़ हरकत से लेकर गुंडों की मारपीट तक कुछ नहीं बोलना चाहते…कौन लफ़ड़े में पड़े। इस कैंपेन की मुख़ालफ़त में आपके पास टिप्पणियों की बौछार हो गई- किसी ने ये नहीं कहा कि हमें ऐसे नहीं वैसे विरोध करना चाहिए था…क्यूंकि इनके लिए विरोध किसलिए…जो होना था हो गया…अब आगे बढ़ो। हिन्दुस्तान में हर रोज़ हज़ारों विरोध प्रदर्शन होते हैं लेकिन वो किसी की नज़र में नहीं आते, इसलिए नहीं कि उनमें सच्चाई नहीं होती बल्कि इसलिए क्यूंकि वो बेहद छोटे स्तर पर रस्मअदायगी भर होती है। और जब आततायी की हिम्मत आपको कहीं भी पीटने की हो जाए तो आपको भी विरोध का तरीक़ा बदलना होगा…लड़ाई के हथियार बदलने होंगे। इस विरोध के अलावा मैंगलौर घटना के ख़िलाफ़ क्या कहीं कोई और बड़ा विरोध हुआ?

    रही बात आपके 10 सवालों की तो वो आपके पिछले लेखन को देखते हुए थोड़ा चौंकाता है। आपके मुताबिक़ बस्तर में रहने वाले आदिवासी को अपने ख़िलाफ़ हो रहे अत्याचारों का विरोध करने का हक़ नहीं है क्यूंकि उस बेचारे को भी न तो स्कारलेट का पता है और न दिल्ली की एमबीए छात्रा का।

    @COMMON MAN
    महोदय, कितनी शान से अपना ब्लॉग बनाया, दूसरे की पोस्ट पर तीन-तीन टिप्पणियां कीं….कहां हो पाएगा ये सब अगर आपसे ऐसी अभिव्यक्ति की आज़ादी छीन ली जाए !!!

  51. संकेत पाठक... said,

    February 12, 2009 at 6:15 pm

    सुरेश जी,
    अच्छे सवाल उठाये है आपने, आप की बात से सहमत हूँ. ये जो लोग आपका विरोध कर रहे है, वो शीशे से दुनिया देखते है. हकीकत इन्हे मालूम नही है, कि दुनिया के बाकी देश भारतीय संस्कृति को अपना रहे है, और इन्हे पब संस्कृति का घर में लाने की पड़ी है…मुझे नही लगता जितना सम्मान हमारे देश में औरतों का किया जाता है उतना कहीं और होता होगा, तालिबान की कहानी तो आप सब सुनही चुके है. खैर चड्डी गुलाबी हो या काली उसे सरेआम प्रर्दशित करना सही नही है…

  52. kabirakhadabazarmein said,

    February 12, 2009 at 6:38 pm

    I really get upset when they equalize the status of men and women, who are constitutionally so diffrent. You cant imagine a women urinating on the wall.Those who believe in MEN and WOMEN should get equal treatment shouallow their near and dear womens to start doing so from today onwards.
    SORRY FOR BEING HARSH.
    1.One should understand thata human being and its living is not self concered.YOu and Your conduct should be responsible to your parents, society and culture, because whatever you are today, is a prized contribution of all.
    2.If you think just just in terms of freedom without considering any values,you may be expected to marry your sister tomorrow. Because why to import a GOOD from other place, bearing such expense, if possibility exists at home.
    3.CHADDI Bhejna, ………shame shame
    I would ask Nisha N Her supporters that , if THEY threw out your type “WANNA BEs” you found yourself compelled to throw out chaddi.What comes next if they ban your UB_GOING, we expect you to stop putting on Chaddi.
    You are first for the nation , then for yourself.

  53. अजित वडनेरकर said,

    February 13, 2009 at 7:44 am

    महिला का फोन नंबर यहां देना अच्छी बात नहीं। उन्होने अपने ब्लाग पर सार्वजनिक किया हुआ हो, तब भी नहीं। इसका क्या उद्देश्य हो सकता है ? लिंक से भी काम तो हो ही रहा था…
    जिस छिछोरेपन की बात उछाल कर आप इनका लिंक दे रहे हैं वहां पर इस किस्म का छिछोरापन तो हमें भी नजर नहीं आया। यानी लिंक देना और टेलीफोन नंबर देना एक उकसावा मात्र तो नहीं?
    विरोध गलत है या विरोध का तरीका गलत है ? 1.एक रचनात्मक-गंभीर ब्लागर होने के नाते इस मामले में आपके पास विरोध समर्थक होने के नाते सभ्य तरीका अपनाने के क्या बेहतर विकल्प थे…कुछ तरीके सुझाते।
    2.अगर विरोध के खिलाफ हैं तो कृपया इसे खुलकर स्वीकार करें…

  54. COMMON MAN said,

    February 13, 2009 at 10:04 am

    @प्रबुद्ध जी – अभिव्यक्ति की आजादी किस परिप्रेक्ष्य में है और किस हद तक है, मैं फिर वही बात दोहराता हूं कि नंगई और खुलेपन में कोई सीमारेखा होना चाहिये. क्या दूसरों को गाली देना अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता में आयेगा.

  55. PD said,

    February 13, 2009 at 10:21 am

    @ Common Man – nahi ji, abhivyakti ki aajadi to Pub me jaane vaalon ko maarne se hi milti hai..

  56. COMMON MAN said,

    February 13, 2009 at 12:50 pm

    @pd saahab, daaroo peeke naali me girne se to jaroor milti hogi ya nashe me doosron ke oopar gaadi chadha kar yaa phir nashe me doosri ke baahon me gark hokar, yaa doosron ko gaali dekar, main phir kahta hoon ki saath-saath ghoomne phirne par yadi koi maarta hai to uske viruddh kathor kaarrvaai hona chahiye, lekin pink chaddhi ko yah ajadi bharat tak hi seemit n rakhkar afgaan, iraan, pakistan, malasia bhi jaana chahiye. unhen bhi udarta ka paath padhayen.

  57. PD said,

    February 13, 2009 at 2:16 pm

    सबसे पहले मैं यह साफ कर देना चाहता हूं की मैं ना तो पब में जो मार-पीट हुआ उसका समर्थक हूं और ना ही पिंक चड्डी का..
    अब आते हैं आपकी बात पर, जहां तक मुझे नहीं याद है एक भी महिला का नाम गाड़ी पीकर किसी पर चढ़ाने में आया हो..(अगर मैं गलत हूं तो मुझे सही करके मेरी जानकारी बढ़ायें..)
    कोई किसी को नशे में परेशान करे, मैं इसका भी विरोध करता हूं(चाहे शराब के नशें में करे या धर्म के ठेकेदार होने के नशे में..)
    आगे आप नाम लेते हैं ईरान, पाकिस्तान, अफ़गान, मलेशिया ईत्यादी का.. अपने से नीचे वालों से तुलना करना भी मैं अपने देश का अपमान ही समझता हूं.. अगर तुलना ही करना है तो अमेरीका, इंगलैंड, फ्रांस, स्पेन, जापान से क्यों नहीं करते हैं? मुझे पूर्ण विश्वास है कि वहां इस तरह के अभियान की ओर कोई मुंह उठा कर भी नहीं देखेगा.. वे लोग इसे तुच्छ समझेंगे, उन लोगों के लिये यह तुच्छ बात होगी, इसकी चर्चा किसी मीडिया में भी ना होगी….(इस पर भी कई दोस्तों को आपत्ती होगी की फिर से पाश्चात्य सभ्यता की ओर हमारा समाज जा रहा है.. अब ऐसे में मैं यही कह सकता हूं की कुछ लोगों को आप अपना सर काट कर भी संतुष्ट नहीं कर सकते हैं.. सर काट कर देने पर उसका कहना होगा की सर भी काटने नहीं आता है.. देखो टेढ़ा काट कर दिया है..)

  58. PD said,

    February 13, 2009 at 2:16 pm

    My previous comment was reply for Common Man..

  59. COMMON MAN said,

    February 14, 2009 at 6:05 am

    @pd-बिल्कुल बात तुलना की नहीं है, क्या अपने सामने आप यह अन्याय सहन कर सकते हैं, क्या ईरान, ईराक, पाकिस्तान, अफगानिस्तान में जो कुछ हो रहा है महिलाओं के साथ, क्या वह अत्याचार की श्रेणी में नहीं आता है.रही बात तुलना की तो मैं अभी भी कहता हूं कि वे पुरुष जो सिर्फ अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिये महिलाओं के समर्थक बनने का दिखावा करते हैं, उनमें से पिचानवे प्रतिशत अपनी बहन के साथ किसी लड़के का दिखायी देना गवारा नहीं कर सकते. कितना दोहरा चरित्र लेकर घूमते हैं. रही बात यूरोपीय देशों की तुलना की तो वहां टोनी ब्लेयर की पत्नी द्वारा पाये गिफ्ट पर एक्साइज चुकाना पड़ जाता है, बुश की पुत्रियों पर शराब पीकर गाड़ी चलाने पर जुर्माना पड़ता है, (याद रखें कि यह धर्मनिरपेक्ष देश नहीं हैं), और इन्हीं देशों में कम उम्र के बच्चे यदि शराब पीकर हुड़दंग मचाते हुए पकड़े जाते हैं तो उनके मां-बाप की जिम्मेदारी फिक्स की जाती है. रही बात सर कटाने की, तो जिन्होंने सर कटाये उन्हीं ने हमें बचाया, हमें आजादी दी, यदि वे सर न कटाते तो आजादी न मिलती और यही दुर्भाग्य रहा कि काश उनमें के कुछ लोग तो बच जाते.

  60. गोविन्द K. प्रजापत "काका" बानसी said,

    February 14, 2009 at 10:32 am

    ये जिन-जिन के मोबाईल नंबर चस्पा किये गये। क्या? उनकी इतनी आर्थिक स्थिति खराब हो गई है क्या जो अपना business चलाने के लिये नंबर भी देने पड रहे है>>>>>>>>>>>

  61. Devesh said,

    February 15, 2009 at 8:19 pm

    श्रीराम सेना ने पब में लडकियों को पीटा (आदमियों को क्यों छोड दिया?), निशा सूसन एंड पार्टी ने पिंक चड्ढी की धूम मचाई, शायद इसके अलावा विरोध का कोई जरिया नजर ही नहीं आया होगा, आखिर प्रगतिशीलता भी तो कोई चीज है। इस क्रम की बचीखुची कसर ऐन वैलेंटाइन डे पर बर्लिन में पिंक पैंथर पार्टी में एश्वर्या की हार्टशेप सेक्सी टापलेस ड्रेस ने पूरी कर दी। इससे माडर्न, एडवांस और ग्लोबल सोच वाली यूथ (बुढाती उमर में खुद को जवां दिखाने की अंतिम कोशिश एक्सपोजर पर मजबूर) आइकन और ख्यात बच्चन घराने की बहू ( जिसमें कई लोग अपनी बहू की छवि ढूंढते हैं) भला और कहां होगी… पर क्या करेगा काजी जब मियां बीबी राजी
    असल में सब के सब अपने आप को मार्केट करने के लिए कंसेप्ट बेच रहे हैं, निशाना है अलग-अलग क्लास और कैटेगिरी के लोग। कई बार तो लोगों को ये चाले नजर ही नहीं आती और कुछ को आती भी है तो वे बहती गंगा में हाथ के साथ नहा-धो लेने में विश्वास करते हैं। चाहे श्री राम सेना का मुतालिक हो या सूसन सबको चाहिए इमोशनल सपोर्ट क्रिएट करने वाला ऐसा फंडा जो बिना एड और एक्सपेंडेचर के उन्हें ब्रांड बना दे, जिससे ये वक्ती नायक बाद में अपनी दुकानें चलाते रहें। मुतालिक ने पहले पब में हंगामा मचाया और बाद में वेलेंटाइन डे प्रोग्राम घोषित कर दिया, बस फिर क्या था, सज गई दुकान… गृहमंत्री का बयान और विरोध शबाब पर आ गया कल जिसे कोई जानता तक नहीं था नेशनल फीगर हो गया… अकल के अजीर्ण वाले बयानवीर ब्लागरों से ले कर फुरसती धंधेबाजों को काम मिल गया… कुछ कमअकल लोग बेकार में ही अब्दुल्ला दीवाना बन कर लगे नाचने….
    खैर उनका तो काम हो गया अब चैप्टर नंबर दो शुरू होना था विरोध का… इसके लिए कुछ तय दुकानों की मोनोपाली है उनके बयान-बयान और स्ट्रेटेजी घोषित हो ही रही थी कि निशा सूसन के दिमाग के न्यूज एनालिसिस सेंसे ने सेक्स भडकाऊ, दिल धडकाऊ और बत्ती बुझाऊ टाइप का आइडिया उगल मारा और पुरानी दुकानों का दिवाला पिटने के साथ ही शुरू हो गया पिंक चड्ढी कैंपेन… अब यहां भी निठल्ले ज्ञानियों को कर्तव्य विद् लाइम लाइट एक्सपोजर का बोध हो गया और सौ पचास रुपए की चड्ढी की कीमत पर फेमेनिस्टि और एडवांस होने की डिग्री बंटने लगी। दुकान तो ऐसे सजाई गई गोया चड्ढी नहीं संपूर्ण स्त्रीत्व को पैक करके मुंह पर मार दिया गया है। चड्ढी भेजने के आइडिए के मायने सूसन बेहतर जाने पर किसी भी आम लडकी या औरत से पूछ कर देखें कि उसकी चड्ढी के मायने क्या हैं चाहे वह दुनिया के किसी भी हिस्से में रहती हो। उधर चड्ढी के बाजार में सेंध लगाने के लिए लगे हाथ कुछ भाइयों ने कंडोम का तडका लगाया, थोडी बहुत हलचल भी मची, लेकिन तब तक हमें क्या करना की खुमारी खेल बिगड ही रही थी कि मारल पुलिसिंग का महोत्सव वैलेंटाइन डे आ गया… देश भर में महान समाज सेवक निकल पडे लोगों को मोहब्बत और नैतिकता का पाठ पढाने…
    इस मौके का फायदा उठाने की सबसे अलग कोशिश की ऐश्वर्या राय ने… हाथ से नक्षत्र समेत लगातार निकलते एड, पिटती फिल्में, घटती टीआरपी और जलवे के बुझते दीपक के बीच पिंक पैंथर की उम्मीद पर आलोचकों ने ढीला रिस्पांस और थकी फिल्म की मुहर लगा दी। तो… अब क्या करें, कैसे बताए कि रूप का जादू वही है जो मिस वर्ल्ड और उन दिनों के न्यूड पिक सेशन में था। सो अब तक के सबसे कम ( सार्वजनिक) कपडों में बर्लिन में फोटो सेशन करती नजर आईं.. क्या पता कल वे ही इसे इश्यू बनवा दें और पिंक पैंथर बगैर प्रमोशन के इतना नाम तो कमा ही जाए कि घोर पिटी के टैग और घाटे से बाहर आ जाए, ताकि आगे गुंजाइश बनी रहे खैर… देखते चलिए वक्त के इम्तिहान अभी और बाकी हैं। दुकानें बहुत हैं बच के चलें… समझदारी ओवरफ्लो हो तो अपनी भी सजा लें… टेपे हर कैटेगिरी में मिलते हैं, चाहिए बस एक ढंग का दुकानदार… जय हो… जय हो

  62. रेखा श्रीवास्तव said,

    February 17, 2009 at 11:14 am

    ये नारी मुक्ति या नारी स्वातंत्र्य का ढिढोरा पीटना और बात है और उसको अमल में लाना और बात है. ऐसी हरकत किसी के मानसिक दिवालियेपन की निशानी तो हो सकती है, बुद्धिजीवी और नैतिकता के प्रति जागरूक हरगिज नहीं हो सकती है. पब और बार जाने वाली कितनी आम महिलाएं होती हैं? इस देश कि कितने प्रतिशत महिलाएं जीवन में एक बार भी पब या बार में गयीं है. फिर वे प्रतिनिधित्व किसका कर रहीं है?
    आज भी ५० % महिलायें गृहणी हैं और उनको आज के ज़माने में घर कैसे चलाया जाय इसके लिए ही संघर्ष करना होता है. उन्हें नहीं मालूम है कि यह वेलेंटाइन डे होता क्या है? बेवजह सुर्खियों में आने के रास्ते तलाशे जाते हैं और फिर हफ्तों तक वही चर्चा. सोचने और चर्चा करने के लिए बहुत कुछ है. अपनी सोच सार्थक विषयों पर लगाइए , इसलिए नहीं कि अखबार के हेडिंग बनें बल्कि इसलिए कि आपकी सोच कोई हल या दिशा दे सकती है.

  63. naveentyagi said,

    September 10, 2009 at 8:11 am

    bhai chhichori to chhichori harkat hi karegi.

  64. naveentyagi said,

    September 10, 2009 at 8:12 am

    bhai chhichori to chhichori harkat hi karegi.


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