फ़ॉक्स न्यूज़ अमेरिका की एक खबर के अनुसार न्यूयॉर्क से 150 मील दूर पश्चिमी कैट्स्किल्स के घने जंगलों में एक प्राइवेट कालोनी बनाई गई है, जिसका नाम रखा है “इस्लामबर्ग”। यह बस्ती मुख्य सड़क से थोड़ी दूर अन्दर जाकर बनाई गई है और बाहर नाम के साथ “बिना इजाज़त प्रवेश निषेध” का बोर्ड लगा हुआ है। इस बस्ती में कुछ छोटे-छोटे मकान हैं जिनमें लगभग 100 परिवार रहते हैं।
“इस्लामबर्ग” की स्थापना 1980 में शेख सैयद मुबारिक अली शाह गिलानी (पता नहीं ‘गिलानी’ नाम में ऐसा क्या है?) नामक एक पाकिस्तानी व्यवसायी ने बसाई है, जिसने उस समय 70 एकड़ का यह फ़ार्म खरीदा था, और इसमें प्लॉट खरीदने की अनुमति सिर्फ़ उन्हीं को थी जो मुस्लिम हैं। इस छोटी सी टाउनशिप में उनकी खुद की एक मस्जिद, बाज़ार और स्कूल भी है, आसपास के गाँवों के निवासी बताते हैं कि उक्त बस्ती में एक “फ़ायरिंग रेंज”(?) भी है। गिलानी ने इसी से मिलती-जुलती और भी बस्तियाँ बसाई हैं, जिसमें प्रमुख है दक्षिण वर्जिनिया में बसी “रेड हाउस कम्यूनिटी”, गिलानी महाशय ने “मुस्लिम्स ऑफ़ अमेरिका” नाम का एक संगठन भी बनाया हुआ है।
अमेरिकी अधिकारी कहते हैं कि गिलानी जमात-अल-फ़क्रा का संस्थापक भी है, जो कि विभिन्न इलाकों में बम विस्फ़ोट के लिये जिम्मेदार माना जाता है, इस समूह का 1993 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में हुए बम विस्फ़ोट में भी हाथ रहा है और इसके 10 सदस्य पोर्टलैण्ड में एक होटल में हुए विस्फ़ोट के मामले में दोषी पाये गये हैं, हालांकि गिलानी इस आरोप से इन्कार करते हैं। यह गिलानी साहब वही व्यक्ति हैं जिनका पाकिस्तान में इंटरव्यू लेने की कोशिश डेनियल पर्ल कर रहे थे। पाकिस्तान सरकार ने भी गिलानी को पूछताछ के लिये रोका था, लेकिन बाद में छोड़ दिया था। इस मुस्लिम बस्ती को छोड़ चुके एक व्यक्ति ने नाम गुप्त रखने पर बताया कि यहाँ रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को अपनी आय का 10 से 30 प्रतिशत हिस्सा गिलानी को देना पड़ता है। फ़ॉक्स न्यूज़ ने यहाँ रहने वाले अन्य लोगों से बात करने की कोशिश की, लेकिन सभी ने मीडिया से बात करने से मना कर दिया…
ऐसा लगता है कि अमेरिका को आज पता चला है कि “अलग मुस्लिम बस्ती” नाम की भी कोई चीज़ होती है…बेचारा!!! भारत के पाठक अपने दिल पर हाथ रखकर कहें कि क्या भारत के प्रत्येक शहर में इस प्रकार की दो-चार बस्तियाँ नहीं हैं? और इन बस्तियों में वे खुद जाना तो दूर, प्रशासनिक अधिकारी, जल-विद्युत आपूर्ति अधिकारी और पुलिस अधिकारी भी सोच-समझकर ही घुसते हैं… 60 साल के कांग्रेस के “जय हो…” शासन की यह भी एक देन है…
खबर का स्रोत – यहाँ देखें
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संजय बेंगाणी said,
March 25, 2009 at 1:46 pm
अभी तो अमेरिका को शरियत का कानून क्या होता है वह भी पता चलेगा…जब एक देश दो कानून होंगे.
चन्दन चौहान said,
March 25, 2009 at 1:52 pm
इसमें कोई शक नही कि खबर तो चौकाने वाला है।और आप सब छोड़ कर खोजी पत्रकार बन जाओ तो देश और समाज के लिये अच्छा होगा
रंजना said,
March 25, 2009 at 3:38 pm
बिलकुल नयी जानकारी है यह मेरे लिए…मुझे लगा केवल भारत में ही ऐसा है……संजय जी की बात गौर करने वाली है….यह केवल भारत में ही संभव है कि सम्प्रदाय विशेष देश के कानून से आजाद है….यह कैसी धर्मनिरपेक्षता है,समझ से परे है….जहाँ कानून का कोई धर्म नहीं,वहां कि एक बहुत बड़ी आबादी अपने कानून के हिसाब से चलती है……
अजय said,
March 25, 2009 at 3:47 pm
आमेरिका की इस पर क्या राय है
Neeraj नीरज نیرج said,
March 25, 2009 at 4:16 pm
यह स्टोरी हमने कुछ महीनों पहले चलायी थी.. आप यहां पूरा वीडियो देख सकते हैं. http://www.youtube.com/watch?v=4QAtEGyg8N4और यहां भी दूसरे चैनल पर http://www.youtube.com/watch?v=rjp5_HwYIDQ
Neeraj नीरज نیرج said,
March 25, 2009 at 4:18 pm
दरअसल, अमेरिकी प्रशासन इन पर आतंकनिरोधी क़ानूनों के तहत कार्यवाही नहीं करता है क्योकिं अमेरिका के ख़िलाफ़ किसी कार्यवाही में ये लोग सीधे लिप्त नहीं है. इनका सारा मिशन रिमोटली चलाया जाता है.. पाक जेहादियों के बीच. इन सबके अलावा एक बड़ा नाम है.. अनवर अल अवलाकी..मुंबई हमलावरों को मोटीवेट करने में जिसका बड़ा हाथ था.. अवलाकी आए दिन पाक जाता रहता है.. आप उसकी लिखी कई जेहादी किताबे ऑनलाइन देख सकते हैं.
Vivek Rastogi said,
March 25, 2009 at 5:00 pm
भारत में तो शायद हर जिले में इस तरह की बस्ती मिल जाये ।
Madhaw Tiwari said,
March 25, 2009 at 5:24 pm
जीवन में हमारे सामने कई तरह के सवाल आते हैं… कभी वो अर्थ के होते हैं… कभी अर्थहीन.. अगर आपके पास हैं कुछ अर्थहीन सवाल या दें सकते हैं अर्थहीन सवालों के जवाब तो यहां क्लिक करिए
cmpershad said,
March 25, 2009 at 5:30 pm
आज का बच्चा कल का बडा़- उसी तरह आज की बस्ती कल का देश:)
बवाल said,
March 25, 2009 at 7:16 pm
इसका मतलब है सुरेश भाई हमें तो एक प्लाट इस्लामबर्ग में मिल ही जाएगा, है ना । हा हा ।हो सकता है ना भी मिले और उन्हें शक हो जाए के ये तो बिल्कुल ईसाई टाइप का मुसलमान नज़र आ रहा है हैट वाला । इसकी झीनी सी कमीज़ में से जनेऊ भी झलक रहा है, कहीं पण्डित तो नहीं ? देखना तो ज़रा इसका हैट उतार के सरदार जी भी हो सकता है , हा हा ।क्या करें हम हिन्दुस्तानी हैं ना तो अपने आप में सबकी ही झलक देखते हैं ।हमसे अकेले मुसलमान होकर नहीं रहा जाता सुरेश भाई। हा हा ।
राज भाटिय़ा said,
March 25, 2009 at 8:02 pm
सुरेश जी अमेरिका इतना भोला नही कि उसे इन सब का पता ना हो, या फ़िर पाकिस्तान मै क्या हो रहा है यह मालुम ना हो, क्योकि इन सब बिमारियो का अन्नदाता यह अमेरिका ही तो है, लेकिन जल्द ही अमेरिका का भी सत्य नाश इन्ही के हाथो होगा….. अगर हम बाबुल बोयेगे तो कांटे भी हमे ही चुभेगे.धन्यवाद
PCG said,
March 26, 2009 at 5:47 am
मैं तो सोचता था की अमेरिका में रहकर इन पर कुछ समाज की और सभ्यता की हवा लग गयी होगी, मगर अफ़सोस की वहाँ भी ये इंसानों से हटकर रहना ही ज्यादा पसंद कर रहे है !
आलोक सिंह said,
March 26, 2009 at 6:58 am
बेचारा और अमेरिका कब से ऐसा हो गया . हमारे यहाँ तो शहरो को छोड़ दीजिये छोटे-छोटे कस्बो में भी ऐसी बस्तियाँ है की एक बार अन्दर चले गए तो वापस आने का रास्ता ढूढ़ते हुए भी नहीं मिलेगा . जय हो
Kajal Kumar said,
March 26, 2009 at 8:04 am
भाई चिपलूनकर जी,आप, डेबिट कार्ड सम्बन्धी अपने प्रश्न का उत्तर कृपया निम्न लिंक की पोस्ट पर देख सकते हैं.http://sahibaat.blogspot.com/2009/03/blog-post_5663.htmlआभार सहित.