मुस्लिम आक्रांता की कब्र हेतु 25 लाख और हिन्दू राजा का स्मारक उपेक्षित… लानत भेजो ऐसी "शर्मनिरपेक्षता" पर

Muslim Invaders, Indian History, King Hemu, Ibrahim Lodi

क्या आपने इब्राहीम लोदी का नाम सुना है? ज़रूर सुना होगा… क्या आपने हेमचन्द्र विक्रमादित्य (हेमू) का नाम सुना है? क्या कहा – याद नहीं आ रहा? इतनी आसानी से याद नहीं आयेगा… असल में हमें, बाबर, हुमायूं, अकबर, शाहजहाँ, औरंगज़ेब आदि के नाम आसानी से याद आ जाते हैं, लेकिन हेमचन्द्र, सदाशिवराव पेशवा, पृथ्वीराज चौहान आदि के नाम तत्काल दिमाग में या एकदम ज़ुबान पर नहीं आते… ऐसा क्यों होता है, इसका जवाब बेहद आसान है – हमारी मैकाले आधारित और वामपंथी शिक्षा प्रणाली ने हमारा “ब्रेन वॉश” किया हुआ है।

सबसे पहले ऊपर दिये गये दोनों राजाओं का संक्षिप्त परिचय दिया जाये… इब्राहीम लोदी कौन था? इब्राहीम लोदी एक मुस्लिम घुसपैठिया था जिसने मेवाड़ पर आक्रमण किया था और राणा सांगा के हाथों पराजित हुआ था। इब्राहीम लोदी के बाप यानी सिकन्दर लोदी ने कुरुक्षेत्र के पवित्र तालाब में हिन्दुओं के डुबकी लगाने पर रोक लगाई थी, और हिमाचल में ज्वालामुखी मन्दिर को ढहा दिया था, उसने बोधन पंडित की भी हत्या करवा दी थी, क्योंकि पंडित ने कहा था कि सभी धर्म समान हैं। इब्राहीम लोदी का दादा बहोल लोदी अफ़गानिस्तान से आया था और उसने दिल्ली पर कब्जा कर लिया था। ऐसे महान(?) वंश के इब्राहीम लोदी की कब्र के रखरखाव और मरम्मत के लिये केन्द्र और हरियाणा सरकार ने गत वर्ष 25 लाख रुपये स्वीकृत किये हैं, जबकि रेवाड़ी स्थित हेमू के स्मारक पर एक मस्जिद का अतिक्रमण हो रहा है।

अब जानते हैं राजा हेमू (1501-1556) के बारे में… “राजा हेमू” जिनका पूरा नाम हेमचन्द्र था, हरियाणा के रेवाड़ी से थे। इतिहासकार केके भारद्वाज के शब्दों में “हेमू मध्यकालीन भारत का ‘नेपोलियन’ कहा जा सकता है”, यहाँ तक कि विन्सेंट स्मिथ जिन्होंने समुद्रगुप्त को भी नेपोलियन कहा था, मानते थे कि हेमू को भी भारतीय नेपोलियन कहा जाना चाहिये। हुमायूं के पतन के बाद हेमचन्द्र ने बंगाल से युद्ध जीतना शुरु किया और बिहार, मध्यप्रदेश होते हुए आगरा तक पहुँच गया। हेमचन्द्र ने लगातार 22 युद्ध लड़े और सभी जीते। आगरा को जीतने के बाद हेमचन्द्र ने दिल्ली कूच किया और 6 अक्टूबर 1556 को दिल्ली भी जीत लिया था, तथा उन्हें दिल्ली के पुराने किले में “विक्रमादित्य” के खिताब से नवाज़ा गया। 5 नवम्बर 1556 को अकबर के सेनापति बैरम खान की विशाल सेना से पानीपत में उसका युद्ध हुआ। अकबर और बैरम खान युद्ध भूमि से आठ किमी दूर थे और एक समय जब हेमचन्द्र जीतने की कगार पर आ गया था, दुर्भाग्य से आँख में तीर लगने की वजह से वह हाथी से गिर गया और उसकी सेना में भगदड़ मच गई, जिससे उस युद्ध में वह पराजित हो गये। अचेतावस्था में शाह कुलीन खान उसे अकबर और बैरम खान के पास ले गया, अकबर जो कि पहले ही “गाज़ी” के खिताब हेतु लालायित था, उसने हेमू का सिर धड़ से अलग करवा दिया और कटा हुआ सिर काबुल भेज दिया, जबकि हेमू का धड़ दिल्ली के पुराने किले पर लटकवा दिया… हेमू की मौत के बाद अकबर ने हिन्दुओं का कत्लेआम मचाया और मानव खोपड़ियों की मीनारें बनीं, जिसका उल्लेख पीटर मुंडी ने भी अपने सफ़रनामे में किया है… (ये है “अकबर महान” की कुछ करतूतों में से एक)।

एक तरह से देखा जाये तो हेमचन्द्र को अन्तिम भारतीय राजा कह सकते हैं, जिसके बाद भारत में मुगल साम्राज्य और मजबूत हुआ। ऐसे भारतीय योद्धा राजा को उपेक्षित करके विदेश से आये मुस्लिम आक्रांता को महिमामण्डित करने का काम इतिहास की पुस्तकों में भी किया जाता है। भारत के हिन्दू राजाओं और योद्धाओं को न तो उचित स्थान मिला है न ही उचित सम्मान। मराठा पेशवा का साम्राज्य कर्नाटक से अटक (काबुल) तक जा पहुँचा था… पानीपत की तीसरी लड़ाई में सदाशिवराव पेशवा, अहमदशाह अब्दाली के हाथों पराजित हुए थे। भारत में कितनी इमारतें या सड़कें सदाशिवराव पेशवा के नाम पर हैं? कितने स्टेडियम, नहरें और सड़कों का नाम हेमचन्द्र की याद में रखा गया है? जबकि बाबर, हुमायूँ के नाम पर सड़कें तथा औरंगज़ेब के नाम पर शहर भी मिल जायेंगे तथा इब्राहीम लोदी की कब्र के रखरखाव के लिये 25 लाख की स्वीकृति? धर्मनिरपेक्षता नहीं विशुद्ध “शर्मनिरपेक्षता” है ये…।

धर्मनिरपेक्ष(?) सरकारों और वामपंथी इतिहासकारों का यह रवैया शर्मनाक तो है ही, देश के नौनिहालों का आत्म-सम्मान गिराने की एक साजिश भी है। जिन योद्धाओं ने विदेशी आक्रांताओं के खिलाफ़ बहादुरी से युद्ध लड़े और देश के एक बड़े हिस्से में अपना राज्य स्थापित किया उनका सम्मानजनक उल्लेख न करना, उनके बारे में विस्तार से बच्चों को न पढ़ाना, उन पर गर्व न करना एक विकृत समाज के लक्षण हैं, और यह काम कांग्रेस और वामपंथियों ने बखूबी किया है।

इतिहास की दो महत्वपूर्ण घटनायें यदि न हुई होतीं तो शायद भारत का इतिहास कुछ और ही होता – 1) यदि राजा पृथ्वीराज चौहान सदाशयता दिखाते हुए मुहम्मद गोरी को जिन्दा न छोड़ते (जिन्दा छोड़ने के अगले ही साल 1192 में वह फ़िर वापस दोगुनी शक्ति से आया और चौहान को हराया), 2) यदि हेमचन्द्र पानीपत का युद्ध न हारता तो अकबर को यहाँ से भागना पड़ता (सन् 1556) (इतिहास से सबक न सीखने की हिन्दू परम्परा को निभाते हुए हम भी कई आतंकवादियों को छोड़ चुके हैं और अफ़ज़ल अभी भी को जिन्दा रखा है)। फ़िर भी बाहर से आये हुए आक्रांताओं के गुणगान करना और यहाँ के राजाओं को हास्यास्पद और विकृत रूप में पेश करना वामपंथी “बुद्धिजीवियों” का पसन्दीदा शगल है। किसी ने सही कहा है कि “इतिहास बनाये नहीं जाते बल्कि इतिहास ‘लिखे’ जाते हैं, और वह भी अपने मुताबिक…”, ताकि आने वाली पीढ़ियों तक सच्चाई कभी न पहुँच सके… इस काम में वामपंथी इतिहासकार माहिर हैं, जबकि कांग्रेस मुस्लिम तुष्टिकरण में… इसीलिये अकबर और औरंगज़ेब का गुणगान करने वाले लोग भारत में अक्सर मिल ही जाते हैं… तथा शिवाजी की बात करना “साम्प्रदायिकता” की श्रेणी में आता है…

जाते-जाते एक बात बताईये, आपके द्वारा दिये गये टैक्स का पैसा इब्राहीम लोदी जैसों की कब्र के रखरखाव के काम आने पर आप कैसा महसूस करते हैं?

लेख के कुछ स्रोत – http://www.hindujagruti.org तथा विकीपीडिया से

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24 Comments

  1. March 27, 2009 at 7:57 am

    पहली बात तो यह कि नाम पुरा लें व सम्मान से लें…हेमचन्द्र. हेमू कहना गलत लगता है. एक सच्चाई, अगर अपने बच्चे से कहूँ की हेमचन्द्र के बारे में जानते हो तो वह कहेगा…कौन? वह जिसका सर “महान” अकबर से उड़ा दिया था? इसमें अकबर के लिए सम्मान होगा, न कि रोष. दिल रोता है अपनो को ही इतिहास से गायब देख और गैरों पर गर्व करते भारतीय इतिहास पर.

  2. Mired Mirage said,

    March 27, 2009 at 7:59 am

    जो बात विजयी राजा को खुश करने के लिए लिखी जाती थी वही इतिहास बन गया। एक ही घटना को दोनों पक्ष अलग अलग तरीके से प्रस्तुत करते हैं। स्वाभाविक है विजयी का बताया सत्य सब तक पहुँचता है पराजित का नहीं। वैसे भी पराजित सभ्यता के ग्रन्थ, पुस्तकालय आदि तो जला दिए जाते थे। अब सत्य को कभी जाना नहीं जा सकता, हम तो बस इतना जान जाएँ की पराजित क्यों हुए और उससे कुछ सीख लें तो बहुत होगा।घुघूती बासूती

  3. March 27, 2009 at 8:04 am

    सुरेश जी ,आप सही कहते हैं, हमारी कमाई का हिस्सा हमारे ही देश पर हमला करने वालों पर खर्च हो रहा है …

  4. March 27, 2009 at 8:08 am

    इस इतिहास के बारे में मुझे पहले से पता था लेकिन ये शर्मनिर्पेक्ष और चीन के चम्मचों लाल तालिबानीयों को किसी और का जुता चाटने में मजा आता है

  5. March 27, 2009 at 8:12 am

    हेमचन्द्र विक्रमादित्य के साथ इतिहासकारों ने अन्याय किया है, लेकिन ये इतिहासकार कौन होते है? इतिहासकार विजेताओं की कठपुतलियां होते हैं जो इनके पैसे खाकर, पद पाकर जयहो, जयहो, पुकारते रहते है.

  6. March 27, 2009 at 8:51 am

    आपको मालूम है, अफजल गुरु को फांसी अब तक इसलिए नहीं हो सकी है, क्योंकि प्रगतिशील इस सजा से सहमत नहीं। साथ ही, ये लोग कश्मीरी पंडितों की हत्यों पर खामोश रहते हैं।

  7. March 27, 2009 at 9:27 am

    मैं तो सिर्फ इतना कहूँगा कि विद्यार्थियों को झूठे इतिहास की शिक्षा देना स्वयं शिक्षा के लिये अपमान की बात है|

  8. March 27, 2009 at 9:39 am

    हेमचन्द्र विक्रमादित्य का नाम इतिहास में कहाँ से आएगा? वहां तक पहुँचते-पहुँचते लिखने वालों को स्याही की सप्लाई बंद कर दी जाती है. साथ में इतिहासकारों को आराम करने की सलाह दी जाती है.

  9. March 27, 2009 at 10:50 am

    हमारे विधाताओ के लिये आज भी ब्रिटेन महान है अकबर महान है सिंकंदर महान है ,स्वतंत्रता सेनानी ( गांधी वादी को छॊडकर )आतंकवादी है महाराज रणजीत सिंह डकैत है पूरू टुच्चा है क्या कहे इन हरामजादो को

  10. March 27, 2009 at 11:45 am

    आपने जो लिखा है बिलकुल नंगा सच है….एक अदद गुजारिश है कि अकबर जैसे आक्रांता को महिमामंडित करने वाली और शर्मनिरपेक्षता के झंडे गाड़ने वाली फिल्‍म ‘अकबर-जोधा’ के बारे मे भी एक पोस्‍ट लिखी जाए…तथाकथित इतिहासकार जिस दुष्‍ट का महिमामंडन अब तक कर रहे हैं उससे कई गुना ब्रेनवाश तो ये फिल्‍म 3 घंटे में कर दे रही है…और सबको पता है फिल्‍मों का कितना प्रभाव है हमारे समाज परअकबर जैसे दुष्‍ट को इस तरह प्रस्‍तुत किया गया है कि जैसे राम का चरित्र भी उसके सामने फीका पड़ जाये

  11. Pratik Jain said,

    March 27, 2009 at 12:31 pm

    सुरेशजी आज तीसरी बार लगातार गुजरात में भाजपा की सरकार है और इससे पहले भी केंद्र और राज्‍य में भाजपा की सरकारें बन चुकी है। कांग्रेस तो एक महानीच पार्टी है। उससे तो कोइ उम्‍मीद की नहीं जा सकती परंतु भाजपा ने भी आज तक अहमदाबाद और औरंगाबाद जैसे शहरों का नाम परि‍वर्तन करने का प्रयत्‍न कयों नहीं कि‍या। पि‍छले कुछ वर्षों में बंबइ को मुंबइ, कलकत्‍ता को कोलकाता आदि‍ नाम परि‍वर्तन कि‍ये गए है, फि‍र दूसरे शहरों के भी नाम कयों ना बदल दि‍ये जाएं।

  12. March 27, 2009 at 3:52 pm

    अत्यंत विचोरोत्तेजक बातें लिखी हें आपने।आप की बात से मैं पूरी तरह सहमत हूँ।और इसी तरह लिखते रहिये।इस उत्तम लेख स अपनी कविता की कुछ पंक्तियाँ याद आ गयीं।प्रस्तुत हैं: अन्याय व अत्याचारजनित धर्मंपरिवर्तन विरुद्ध,अस्त्र उठा, सदैव सिंह की भांति लड़ने और जीतने,छत्रपति शिवाजी पुनः चाहिए।घोर विपदा मध्य, सूखी घास की रोटी का सेवन कर,संकट में भी स्वाभिमान, और स्वधर्म की रक्षा करने,महाराणा प्रताप पुनः चाहिए।निर्बल और असहाय की, रक्षा हेतु सदैव तत्पर रह,कठिनाई में भी अडिग हो, धर्म रक्षा हेतु बलिदान देने,गुरु तेग बहादुर पुनः चाहिए।शिवाजी जैसे सिंह बालक को जन्मने, वीरता के पाठ पढा कर,रगों में उसकी लौह डालकर, उसे वीर क्षत्रपति बनाने,माता जीजा बाई पुनः चाहिए।परिवारवाद को परे हटा, बालक चन्द्रगुप्त की प्रतिभा परखकर,उत्तम विद्या से उसे ढालकर, एक महान शासक बनाने,पंडित चाणक्य पुनः चाहिए।जो भारत माँ पर सर्वस्व लुटा दे , बाह्य-आंतरिक शत्रु से रक्षा दे,माँ का गौरव गान करा दे, उसकी खोई गरिमा लौटा दे,ऐसे महानायक पुनः चाहिए।ऐसे महानायक पुनः चाहिए।

  13. March 27, 2009 at 4:53 pm

    एक बड़ा ही अद्भुत लगा आपका ब्लॉग भाई सुरेश….आश्चर्य है कि मैं इससे अब तक अछुता कैसे रहा भला………कीप ईट अप….इसी तरह इन खामियों को उजागर करते रहिये….हम भी आप के साथ हैं….आपके ब्लॉग की बातें बाद में इत्मीनान से देखूंगा….!!

  14. March 27, 2009 at 5:20 pm

    बिल्कुल सच्ची बात लिखी है आपने। बधाई।

  15. March 27, 2009 at 5:38 pm

    क्या कह रहे हो जनाब! साम्प्रदायिक हो या भाजपाई? इस तरह की इतिहासपरक बातें करेंगे तो संस्कृति के ठेकेदार कहलायेंगे। अरे, ब्लागिंग करनी है तो अपने रोज की रुटीन बातों को लिखो, किसी हसीना के गालों, बालों की बातें लिखो, सैर सपाटा लिखो और अधिक हुआ ताक हिन्दुओं की, हिन्दुस्तान की दुर्दशा लिखो। इस तरह के लेखन से तो ब्लागिंग नहीं चलने वाली……

  16. बवाल said,

    March 27, 2009 at 5:48 pm

    बिल्कुल वाजिब है आपका कहना सुरेश जी। हम आपके साथ हैं।

  17. cmpershad said,

    March 27, 2009 at 6:07 pm

    आज आवश्यकता है इतिहास के पुनर्रचना और पुनर्पाठ की ताकि भारतीय इतिहास भारत की दृष्टिसे लिखा जाय न कि चीन या इंग्लैड की आँख से। क्या हमारे इतिहासकार इसका बीडा उठाने के लिए तैयार है? सुरेशजी, आपको बधाई कि आप इस ओर ध्यान दिलाने के कार्य में संलग्न है।

  18. March 27, 2009 at 8:24 pm

    सुरेश जी आप की एक एक बात मै सचाई है, लेकिन हमारे भारत के लोगो को ६० सालो मै भी अकल नही आई हर बार इस काग्रेस को ही जिताती है, ओर तब तक जीताती रहेगी जब तक हमारी आने वाली पीढी फ़िर से गुलाम ना हो जाये, पहले मुगलो के, फ़िर अग्रेजॊ के, अब लगता है दो टके के ईटालिय्न के गुलाम होगे…धन्यवाद

  19. March 28, 2009 at 1:45 am

    सुरेश जी: आपने अपने प्रोफाइल में लिखा: “नजदीक के लोग कहते हैं कि “लिखने से कुछ नहीं होता…” लेकिन सोचता हूँ कि कुछ न करने से बेहतर है कि “कुछ” किया जाये। तालाब के किनारे बैठकर सिर्फ़ यह सोचने से कि “तालाब गन्दा है…” काम नहीं बनेगा… उसमें विचारों, लेखों के पत्थर फ़ेंको, धीरे-धीरे एक लहर बनेगी, जो अन्ततः गंदगी को बहा ले जायेगी…”अरे महाराज! आप खूब लिखिए, लिखते जइएये, आपकी लेखनी अपना प्रभाव छोड़ रही है. देश में छदम सेकुलर लोगों ने सबका चैन ख़राब किया हुआ है, उनसे टक्कर आसन नहीं! आपके ब्लॉग को पढना मुझे अच्छा लगता है.

  20. March 28, 2009 at 5:24 am

    मैं तो हमेशा से यही कहता आया हूं कि कांग्रेस के हाथ में सत्ता जाना एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी, जिस पार्टी ने भारत के लोगों को शिक्षित करना ही आवश्यक नहीं समझा, जिसके लिये इतिहास सिर्फ मुगलों से ही प्रारम्भ होता है, जिसने कभी देश में स्वाभिमान नाम की चीज पैदा होने नहीं दी, वह और क्या करा सकती है. इस देश के लोग व्यापारी बन चुके हैं जो कुछ भी बेच-खरीद सकते हैं>

  21. March 28, 2009 at 6:09 am

    घूघूती बासूती जी की बात से सहमत हूं। विजयी राजाओं को खुश करने के लिए लिखा गया इतिहास बन गया। इतिहास को भी नये सिरे से लिखे जाने की बात कई बार उठती रही है।

  22. March 28, 2009 at 9:13 am

    आपमें से सभी ने अह्छा लिखा, अच्छी टिपण्णी दी, मगर आप सभी सिर्फ आवेग और आवेश में आकर लिख रहे हैं. मैं मानता हूँ मुस्लिम बाहर से आये और यहाँ आकर बस गए| साथ में रहने लगे | अब दोनों एक साथ रहते हैं भारत के सुख दुःख के साथ!!!अब सिर्फ आपका ही पैसा नहीं जा रहा है, मुस्लिम्स भी टैक्स देते हैं, आप की तरह! अमाँ भईया, मुस्लिम्स तो टैक्स भी देते हैं अपने भारत देश को और ज़कात भी देते हैं………खैरात भी करते हैं, जनाब |और हाँ, आपको इब्राहीम लोधी की कब्र नज़र आ रही और उस रोना भी आ रहा है लेकिन वहीँ दुसरे भारत के मुसलमान सम्राटों कब्र नहीं जिससे भारत सरकार को करोणों अरबों डॉलर की आय हो रही है, पर्यटन से | लोग उन्हें देखने के लिए बाहर से आते हैं और पैसा देते हैं| वह पैसा क्या कब्र से निकल कर खुद इस्तेमाल करते है?????ताज महल, सुना है नाम | सुना होगा………..उससे कितना पैसा मिलता है हमारे भारत को |बात करते हैं……….आप सब |बीबीसी के एक सर्वे में यह बात कही गयी थी कि दुनिया में भारत को कैसे पहचाना जाता है–तीन चीजों से एक गरीबीदूसरा ताज महल और तीसरा महात्मा गाँधी से….मेरा मानना भी यही है कि आज अगर कोई बाहर का आकर हमारे देश में भारत को ढूँढना शुरू करे तो यहाँ भारतीय तो खैर नहीं मिलेंगे, लेकिन कथित राष्ट्रवादी मिलेंगे, हिन्दू कट्टरवादी मिलेंगे, मुस्लिम कट्टरवादी मिलेंगे | एक भी भारतीय या हिन्दोस्तानी नहीं मिलेगा |छोडिये सब कुछ, आईये एक ऐसा भारत बनाये जहाँ अमन हो, जहाँ चैन हो| जहाँ एक दुसरे से नफरत के बजाये मोहब्बत हो | जहाँ दुसरे की जान लेने के बजाये दुसरे के लिए अपनी जान देने वाले हों| आईये हम लौटे उस वैदिक परंपरा की तरफ, जिसकी वकालत कुरान भी करता है|आईये………………आयेंगे ना………..इंतज़ार है…………..उन सबका जो भारतीय है…………. सलीम खानसंरक्षक स्वच्छ सन्देश: हिन्दोस्तान की आवाज़ भड़ास फॉर यूपीलखनऊ व पीलीभीत, उत्तर प्रदेश

  23. March 28, 2009 at 4:45 pm

    Taj Mahal: Was it a Vedic Temple?The Photographic Evidencewww.stephen-knapp.com/was_the_taj_mahal_a_vedic_temple.htm

  24. March 29, 2009 at 7:38 pm

    जय हो।सुरेश भाऊ की जय हो।


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