यदि कांग्रेस खत्म हो जाये, तो हिन्दू-मुस्लिम दंगे नहीं होंगे…- सन्दर्भ मिरज़ के दंगे Miraj Riots & Communal Politics by Congress

प्रायः सभी लोगों ने देखा होगा कि भारत में होने वाले प्रत्येक हिन्दू-मुस्लिम दंगे के लिये संघ-भाजपा को जिम्मेदार ठहराया जाता है, जब भी कभी, कहीं भी दंगा हो, आप यह वक्तव्य अवश्य देखेंगे कि “यह साम्प्रदायिक ताकतों की एक चाल है… भाजपा-शिवसेना द्वारा रचा गया एक षडयन्त्र है… देश के शान्तिप्रिय नागरिक इस फ़ूट डालने वाली राजनीति को समझ चुके हैं और चुनाव में इसका जवाब देंगे…” आदि-आदि तमाम बकवास किस्म के वक्तव्य कांग्रेसी और सेकुलर लोग लगातार दिये जाते हैं। महाराष्ट्र के सांगली जिले के मिरज़ कस्बे में हुए हिन्दू-मुस्लिम दंगों के बारे में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने भी ठीक यही रटा-रटाया बयान दिया है कि “महाराष्ट्र के चुनावों को देखते हुए राजनैतिक लाभ हेतु किये गये मिरज़ दंगे साम्प्रदायिक शक्तियों का एक षडयन्त्र है…”।

कुछ दिनों पूर्व मैंने एक पोस्ट लिखी थी, जिसमें इन दंगों के लिये जिम्मेदार हालात (अफ़ज़ल-शिवाजी और स्थानीय मुस्लिमों की मानसिकता के बारे में) तथा उन घटनाओं के बारे में विस्तार से चित्रों और वीडियो सहित लिखा था, जिस कारण दंगे फ़ैले। यहाँ देखा जा सकता है http://sureshchiplunkar.blogspot.com/2009/09/miraj-riots-ganesh-mandal-mumbai.html

आईये सबसे पहले देखते हैं कि अशोक चव्हाण मुख्यमंत्री बने कैसे, और किन परिस्थितियों में? गत 26 नवम्बर को जब पाकिस्तान से आये कुछ आतंकवादियों ने मुम्बई में हमला किया था, और उसके नतीजे में “कर्तव्यनिष्ठ”, “जिम्मेदार” और “सक्रिय” सूट-बूट वाले विलासराव देशमुख अपने बेटे रितेश और रामगोपाल वर्मा को साथ लेकर ताज होटल में तफ़रीह करने गये थे, उसके बाद शर्म के मारे उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा था और अचानक अशोक चव्हाण की लाटरी लग गई थी, तो क्या हम मुम्बई हमले को अशोक चव्हाण का षडयन्त्र मान लें जो कि उन्होंने अपने राजनैतिक फ़ायदे के लिये रचा था? यदि मिरज़ दंगों के बारे में ऊपर दिये गये तर्क के अनुसार चलें, तो इस आतंकवादी घटना का सबसे अधिक राजनैतिक फ़ायदा तो अशोक चव्हाण को ही हुआ, इसलिये इसमें उनका हाथ होने का शक करना चाहिये। जब विधानसभा की दो-चार सीटें हथियाने के लिये भाजपा-शिवसेना यह दंगों का षडयन्त्र कर सकती हैं तो मुख्यमंत्री पद पाने के लिये अशोक चव्हाण आतंकवादियों का क्यों नहीं? लेकिन ऐसा नहीं है, यह हम जानते हैं। इसलिये ऐसे मूर्खतापूर्ण वक्तव्य अब बन्द किये जाने चाहिये।

एक गम्भीर सवाल उठता है कि क्या हिन्दू-मुस्लिम दंगों की वजह से भाजपा को सच में फ़ायदा होता है? जब मुम्बई में हुए भीषण पाकिस्तानी हमले के बावजूद (जो कि एक बहुत बड़ी घटना थी) तत्काल बाद हुए चुनावों में मुम्बई की लोकसभा सीटों पर भाजपा को जनता ने हरा दिया था, तब एक मिरज़ जैसे छोटे से कस्बे में हुए दंगे से सेना-भाजपा को कितनी विधानसभा सीटों पर फ़ायदा हो सकता है?

यह तथ्य स्थापित हो चुका है कि इस प्रकार के हिन्दू-मुस्लिम दंगों की वजह से कभी भी हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण नहीं होता, लेकिन मुस्लिम वोट जरूर एकमुश्त थोक में एक पार्टी विशेष को मिल जाते हैं। मुसलमानों को डराने के लिये कांग्रेस और सेकुलर पार्टियाँ हमेशा भाजपा-संघ का हौवा खड़ा करती रही हैं, राजनैतिक पार्टियाँ जानती हैं कि हिन्दू वोट कभी एकत्र नहीं होता, बिखरा हुआ होता है, जबकि मुस्लिम वोट लगभग एकमुश्त ही गिरता है (भले ही वह कांग्रेस के पाले में हो या सपा या किसी अन्य के)। इसलिये जब भी हिन्दू-मुस्लिम दंगे होते हैं उसके पीछे कांग्रेसी षडयन्त्र ही होता है, भाजपा-संघ का नहीं। कांग्रेसी लोग कितने बड़े “राजनैतिक ड्रामेबाज” हैं उसका एक उदाहरण — सन् 2000 में शिवसेनाप्रमुख बाल ठाकरे को गिरफ़्तार करने का एक नाटक किया गया था, खूब प्रचार हुआ, मीडिया के कैमरे चमके, बयानबाजियाँ हुईं। कांग्रेस को न तो कुछ करना था, न किया, लेकिन मुसलमानों के बीच छवि बना ली गई। मुम्बई के भेण्डीबाजार इलाके में शिवसेना की पीठ में “छुराघोंपू” यानी छगन भुजबल का, मुस्लिम संगठनों द्वारा तलवार देकर सम्मान किया गया, एक साल के भीतर समाजवादी पार्टी के विधायक राकांपा में आ गये और उसके बाद मुम्बई महानगरपालिका में एकमुश्त मुस्लिम वोटों के कारण, शरद पवार की पार्टी के पार्षदों की संख्या 19 हो गई… इसे कहते हैं असली षडयन्त्र। इतना बढ़िया षडयन्त्र सेना-भाजपा कभी भी नहीं कर सकतीं। इससे पहले भी कई बार पश्चिमी महाराष्ट्र के मिरज़, सांगली, इचलकरंजी, कोल्हापुर आदि इलाकों में दंगे हो चुके हैं, कभी भी सेना-भाजपा का उम्मीदवार नहीं जीता, ऐसा क्यों? बल्कि हर चुनाव से पहले कांग्रेस द्वारा बाबरी मस्जिद, गुजरात दंगे आदि का नाम ले-लेकर मुस्लिम वोटों को इकठ्ठा किया जाता है और फ़सल काटी जाती है।

गुजरात की जनता समझदार है जो कि हर बार कांग्रेस के इस षडयन्त्र (यानी प्रत्येक चुनाव से पहले गुजरात दंगों की बात, किसी आयोग की रिपोर्ट, किसी फ़र्जी मुठभेड़ को लेकर हल्ला-गुल्ला आदि) को विफ़ल कर रही है। मुसलमानों को एक बात हमेशा ध्यान में रखना चाहिये कि हिन्दू कभी भी “क्रियावादी” नहीं होता, नहीं हो सकता, हिन्दू हमेशा “प्रतिक्रियावादी” रहा है, यानी जब कोई उसे बहुत अधिक छेड़े-सताये तभी वह पलटकर वार करता है, वरना अपनी तरफ़ से पहले कभी नहीं। कांग्रेस हमेशा मुसलमानों को डराकर रखना चाहती है और हिन्दुओं के विरोध में पक्षपात करती जाती है, राजनीति करती रहती है, तुष्टिकरण जारी रहता है… तब कभी-कभार, बहुत देर बाद, हिन्दुओं का गुस्सा फ़ूटता है और “अयोध्या” तथा “गुजरात” जैसी परिणति होती है।

यदि अशोक चव्हाण षडयन्त्र की ही बात कर रहे हैं, तब यह भी तो हो सकता है कि पिछले लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र के इस इलाके से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का पत्ता साफ़ हो गया था, इसलिये फ़िर से मुस्लिम वोटों को अपनी तरफ़ करने के लिये यह षडयन्त्र रचा गया हो (वीडियो फ़ुटेज तो यही कहते हैं)।

मिरज़ के इन दंगों के बारे में कुछ और खुलासे, तथा पुलिस-प्रशासन की भूमिका पर कुछ बिन्दु निम्नलिखित हैं…

1) पुलिस की सरकारी जीप पर चढ़कर हरा झण्डा लहराने वाले शाहिद मोहम्मद बेपारी को पुलिस, दंगों के 12 दिन बाद गिरफ़्तार कर पाई (Very Efficient Work)

2) शाहिद मोहम्मद बेपारी ने इन 12 दिनों में से अपनी फ़रारी के कुछ दिन नगरनिगम के एक इंजीनियर (यानी सरकारी कर्मचारी) बापूसाहेब चौधरी के घर पर काटे। आज तक इस सरकारी कर्मचारी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है।

3) इससे पहले इसी बापूसाहेब चौधरी ने ईदगाह मैदान पर नल के कनेक्शन को स्वीकृति दी थी, और नल लगवाया जबकि उस विवादित मैदान पर कोर्ट केस चल रहा है। इस नल कनेक्शन को लगवाने पर PHE विभाग को कोई पैसा नहीं दिया गया, और अब बात खुलने पर रातोंरात इस नल कनेक्शन को उखाड़ लिया गया है, ऐसे हैं कांग्रेसी सरकारी कर्मचारी।

4) इसके पहले इस साजिश के मुख्य मास्टरमाइंड (यानी पहले भड़काऊ भाषण देने वाले और बाद में, गणेश मूर्तियों पर पत्थर फ़ेंकने की शुरुआत की) इमरान हसन नदीफ़ को पुलिस ने आठ दिन बाद गिरफ़्तार किया (सोचिये, जिन व्यक्तियों के चित्र और वीडियो फ़ुटेज उपलब्ध हैं उसे पकड़ने में आठ दिन और बारह दिन लगते हैं, तो पाकिस्तान से आये आतंकवादियों को पकड़ने में कितने दिन लगेंगे)।

5) जब शाहिद बेपारी जीप पर चढ़कर हरा झण्डा लहरा रहा था, तब एक बार उसके हाथ से झण्डा गिर गया था, उस समय वहाँ एएसपी के सामने उपस्थित एक सब-इंस्पेक्टर ने वह झण्डा उठाकर फ़िर से ससम्मान शाहिद के हाथ में थमाया, इस “महान” सब-इंस्पेक्टर का तबादला 21 दिन बाद पुणे के एक ग्रामीण इलाके में किया गया। जबकि पिछले साल ठाणे में हुए दंगों के दौरान मुस्लिम युवकों को बलप्रयोग से खदेड़ने वाले इंस्पेक्टर साहेबराव पाटिल का तबादला अगले ही दिन हो गया था…। कांग्रेसियों की नीयत पर अब भी कोई शक बचा है?

देश में होने वाले प्रत्येक हिन्दू-मुस्लिम दंगों के पीछे रची गई कुटिल चालों को उजागर करना चाहिये, ताकि हर दंगे का ठीकरा भाजपा-संघ के सिर ही न फ़ोड़ा जाये, लेकिन अक्सर यही होता कि परदे के पीछे से चाल चलने वाली कांग्रेस तो साफ़ बच निकलती है और हिन्दुओं की “प्रतिक्रिया” व्यक्त करने वाली भाजपा-सेना-संघ सामने होते हैं और उन्हें साम्प्रदायिक करार दिया जाता है, जबकि असली साम्प्रदायिक है कांग्रेस, जो शाहबानो मामले पर सुप्रीम कोर्ट को लतियाकर मुसलमानों को, तथा तुरन्त ही जन्मभूमि का ताला खुलवाकर हिन्दुओं को खुश करने के चक्कर में देश की हवा खराब करती है। मेरी यह दृढ़ मान्यता है कि यदि देश से कांग्रेस (सिर्फ़ कांग्रेस नहीं, बल्कि कांग्रेसी मानसिकता) का सफ़ाया हो जाये तो हिन्दू-मुस्लिम दंगों की सम्भावना बहुत कम हो जायेगी, और देश सुखी रहेगा… आप क्या सोचते हैं?

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55 Comments

  1. कुश said,

    September 29, 2009 at 8:52 am

    हम लोगो को नेताओ की कठपुतली बनने से खुद को रोकना चाहिए फिर चाहे वो हिन्दू हो या मुसलमान कोई फर्क नहीं पड़ता.. क्योंकि बरगलाया दोनों को ही जाता है..पार्टी से ऊपर उठकर नेताओ को देखना चाहिए..

  2. September 29, 2009 at 8:54 am

    जनता समझने लगी है.ये पूरे दंगे फसाद राजनैतिक खेल तो है ही.

  3. ek aam aadmi said,

    September 29, 2009 at 8:55 am

    absolutely right. This so-called sicularism should be eradicated. It is only to befool Hindooos.

  4. September 29, 2009 at 9:06 am

    बिलकुल ठीक. कांग्रेस अंगरेजो की नाजायज औलाद है जिसका एक ही काम है "फूट डालो – राज करो". देश की अधिकांश समस्याओं की जड़ में यही है. इसके समाप्त होने से देश का जितना भला हो सकता है वह स्वयं ईश्वर के धरती पर उतर आने से भी नहीं हो सकता.

  5. September 29, 2009 at 9:12 am

    माने दंगे केवल गुजरात में ही नहीं होते? यह नई जानकारी दी. मुझे लगा भारत में केवल एक बार ही दंगे हुए थे. कांग्रेस आजादी से पहले ही सत्तासुख भोग रही थी और दंगे तब भी होते थे, राजनीतिक लाभ के लिए. कमिनिष्टों के लिखे इतिहास से हट कर पढ़ेंगे तो पता चलेगा. आजादी से पहले की बात है. गाँधी को दुख हुआ था कि मरने को तैयार कोंग्रेस के नेताओं को मुसलमान मार रहे है ऐसे में हिन्दुओं को ज्यादा देर तक रोका नहीं जा सकता. बात शायद कानपुर को लेकर थी. कॉंग्रेस सत्ता में थी. दंगों को रोकने के लिए सुरक्षाबल भेजे गए थे.

  6. psudo said,

    September 29, 2009 at 11:00 am

    Most of us who read your post already know who is invloved in riots in India and who beifits from them. But the problem is people who dont think and belive our media blindly think otherwise. Any way good one from you.

  7. Shyam Verma said,

    September 29, 2009 at 11:37 am

    Good analysis of post-riot government activities. We all should carefully watch such incidents and communicate to all. At least all of my Facebook friends will know these information. (I try to share your every post on my facebook profile).ThanksShyam

  8. September 29, 2009 at 11:47 am

    आपकी बात से १०० % सहमत ! पर मुसलमान भाई समझने की कोशिश करे तब तो !

  9. September 29, 2009 at 12:28 pm

    bhai cheepi jee, aap bahut achha likhte hain. likhte rahye. sampardykta phalte rahiye, akhir sangh parivar ke agenda ko age badhane ke apke uper bahut zimmedari hai.

  10. September 29, 2009 at 12:30 pm

    आप की कुछ बातों से इत्तेफाक रखता हूँ जैसे की कांग्रेस भी जिम्मेदार है दंगों के पीछे पर यह पूरी बात नहीं है पूरी बात यह है कि एक सुव्यवस्थित संकीर्ण मानसिकता जिम्मेदार है इन सब के पीछे और हर वो शख्स दंगों के लिए जिम्मेदार है जो ऐसी मानसिकता रखता है फिर चाहे वो कांग्रेस हो या भारतीय जनता पार्टी या जनसंघ या अन्य कोई धार्मिक संस्था चाहे वोह किसी धर्म की हो !

  11. September 29, 2009 at 12:31 pm

    bhai umarinhe to inke hal par chhor do. ye sudharne wale nahin hain. ye log heen bhawna ke shikar hain. isliye keawl babar aur ghznvi ko hee 1925 se kos rahe hain.

  12. September 29, 2009 at 12:40 pm

    खोजने पर नये तथ्य प्रकट हुए हैं कि भारत का इतिहास अंग्रेजों ने कम और हिन्दू लेखकों ने अधिक झूठे तथ्य घुसेड़ कर साम्प्रदायिक बनाया है और मुसलमानों के प्रति विषवमन किया हैदेश का विभाजन हुआ इसके लिए मुसलमान दोषी नहीं है। यदि गहराई से खोज की जाय तो तथ्य यही सामने आते हैं कि देश विभाजन की योजना तो सावरकर जैसे हिन्दू नेताओं के घरों में बनायी गयी थी। इस प्रकार मुसलमानों को दोषी ठहराना नितांत गलत है। आज तो धर्म और सम्प्रदाय के नाम पर राजनैतिक पार्टियां बन रही हैं। आज तो धर्म के नाम पर ही नेतागीरी चमक रही है। धर्म के नाम पर राजनैतिक नेता यात्रायें निकाल रहे हैं। आज विभिन्न धार्मिक सम्प्रदायों में कटुता पैदा करके राजनीति चलायी जा रही है। आज इस देश में धर्मयुद्ध लड़े जा रहे हैं.हिन्दू समाज के उच्च तबकों (जातियों) में श्रेष्ठता का एक महारोग व्याप्त है। धर्म, जाति और लिंग सम्बंधी श्रेष्ठता की मानसिकता भी बहुत कुछ हमारी साम्प्रदायिक भावना को उभारने के लिए उत्तरदायी है। श्रेष्ठता की मानसिकता दूसरे के महत्व को स्वीकार करने की गुंजाइश समाप्त कर देता है और जब तथाकथित श्रेष्ठ तबके के अंह को कहीं ठेस पहुंचती है तो वह साम्प्रदायिकता पर उतर आता है। यह एक सामंती मनोवृत्ति है जो समानता की भावना के विपरीत है। यह सामंतवादी दर्शन हिन्दू समाज की आधारशिला है। इसमें सहनशीलता की कोई गुंजाइश नहीं है। आज अनेक हत्याकांड केवल श्रेष्ठता की सामंती भावना के परिणामस्वरूप ही ऊँचे हिन्दुओं द्वारा दलितों के किये जाते हैं। ये अपने धर्म को श्रेष्ठ मानते हैं इसलिए मुसलमानों की हत्याएं करते हैं। इस प्रकार सामंतवादिता और श्रेष्ठता की भावना ने सहनशीलता समाप्त कर हिन्दू समाज में जड़ता पैदा कर दी है। इस जड़ता को जब कोई कुरेदता है तो हिंसक साम्प्रदायिकता खड़ी हो जाती है। इस प्रकार इस श्रेष्ठता और सामंतवादी भावना का उन्मूलन हुए बिना साम्प्रदायिकता को रोक पाना सम्भव नहीं है।

  13. September 29, 2009 at 12:45 pm

    ईस तरह का हि मत मैने मेरे ब्लॉगपे कूच दिनो पहले किया थाआभारी हुं कि आप के और मेरे खायालात काफी मिलते है

  14. September 29, 2009 at 12:45 pm

    यदि इस्लाम के धार्मिक दृष्टिकोण को समझा जाय तो हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि स्वार्थ और सत्ता के लालच के कारण ही इस्लाम और मुसलमान समुदाय की हिन्दुओं द्वारा आलोचना की गयी है. इस्लाम को असहिष्णु तथा मुसलमानों को आक्रामक बताया है किन्तु यह हिन्दू कथन नितांत गलत एवं भ्रामक है. हिन्दू और हिन्दू धर्म की तुलना में इस्लाम और मुसलमान अधिक सहिष्णु है. यहां दोनों समुदायों की तुलना का विषय नहीं है अन्यथा यह सिद्ध करने में एक अलग से पूरा ग्रंथ ही बन जायगा. इस तुलना को छोड़ कर हम यह सिद्ध कर रहे हैं कि यह मात्रा हिन्दुओं का पूर्वाग्रह है और पूर्ण राजनैतिक सत्तासीन होने का फरेब है. हम इस्लाम के कुछ सिद्धांतों का जिक्र करते हैं. इससे यह समझने में समर्थ हो सकेंगे कि यह धर्म सहिष्णु है या असहिष्णु है. इस्लाम के बारे में कहा जाता है कि यह धर्म यह कहता है कि जो इस्लाम का बंदा नहीं वह काफिर है अर्थात्‌ वह एकत्ववाद का हामी है और अनेकत्व को नकारता है. परंतु ऐसा नहीं है.

  15. September 29, 2009 at 12:49 pm

    ''यदि अल्लाह की मर्जी होती तो तुम सबको एक ही जन समुदाय बनाता परंतु वह उसी में तुम्हारी परीक्षा ले सकता है जो तुम्हें उसने दिया है।'' (कुरान- 5:48)''हमने हर जाति समूह के लिए धर्माचरण के नियम निश्चित कर दिये हैं जिसका वे पालन करते हैं इसमें ऐसा कुछ नहीं किया जिस बात को लेकर वे तुझसे झगडं।'' (कुरान-22-67) ''हर समुदाय के लिए हमने कुछ धार्मिक किया कर्म तय कर दिये हैं जिनका पालन करते हुए वे परवर दिगार का नाम पढ़ सकते हैं।'' (कुरान 22:34)। कुरान इस्लाम को स्पष्ट करते हुए कहता है कि यह धर्म बाध्यता का समर्थन नहीं करता है अर्थात्‌ किसी को बाध्य नहीं करता कि वह इस्लाम का बंदा बन जाये (कुरान-2:256)। इस्लाम के बारे में प्रचार किया जाता है कि वह दूसरे धर्मस्थलों को खसाने की सलाह देता है। कुरान कहता है ''यदि अल्लाह ने कुछ लोगों को दूसरों के द्वारा नहीं रोका होता तो मंदिर और गिरजाघर जिनमें अल्लाह का ही नाम लिया जाता है नष्ट कर दिये गये होते।'' (कुरान-22:40)। यह उदाहरण स्पष्ट करता है कि कुरान मंदिर और गिरजाघर सबको आदर देता है। इसलिए मंदिरों को मुसलमानों द्वारा ढहाने की इजाजत नहीं देता है। इस्लाम के बारे में प्रचार किया जाता है कि वह यह शिक्षा देता है कि जो इस्लाम का बंदा नहीं उसको कत्ल कर दो, किन्तु यह भी झूठ है। कुरान कहता है किसी पर ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है जो चाहे वैसा धर्म अपनाये। कुरान कहता है ''हर कौम के लिए एक मसीहा है न्याय उसी के द्वारा निपटाया जाता है।'' (कुरान-10-47) कुरान हर धर्म पैगम्बर अवतार को बराबर मानता है.इस प्रकार कुरान की शिक्षाएं किसी धर्म या किसी धर्म के अवतार के विरुद्ध नहीं हैं.हिन्दू कहते हैं कि मुसलमान उन्हें काफिर कहते हैं. एक किस्सा आता है कि हजरत मौहम्मद ने बहरीन और ओमान के लोगों से संधि की थी और उन्हें स्वीकार किया था. इस प्रकार हजरत मौहम्मद साहब जब दूसरों से मिलने की बात करते हैं तो हिन्दुओं के साथ क्यों नहीं मिल सकते थे.

  16. September 29, 2009 at 12:50 pm

    रहा सवाल दंगे के सिर्फ कोंग्रेस के सर ठीकरा फोड़ने कि तो इस बाबत अख्तर आलम साहब की टिपण्णी में ही सारा जवाब है.

  17. September 29, 2009 at 1:25 pm

    सुरेश जी मै एक बात कहना चाहता हु "हर साख पे उल्लू बैठा है अंजामे गुलिस्ता क्या होगा ?"एक भी पार्टी हिंदुस्तान की तर्र्क्की के लिए नहीं बल्कि अपनी तर्र्क्की के लिए सोच रही है. चीन हमसे तीन गुना ताकतवर है पर हम तो अपने घर के झगडे में ही उलझे हुए है.अगर चीन हमला कर दे तो क्या होगा?

  18. September 29, 2009 at 1:34 pm

    मोहनदास करमचंद गाँधी की हत्या (नाथूराम गोडसे द्वारा गोली मारने) के बाद "मिरज" में ही कांग्रेसियों ने निर्दोष सैकडों ब्राम्हणों को मौत के घाट उतारा था और उनके घरों को आग के हवाले कर दिया था.

  19. September 29, 2009 at 1:47 pm

    सुरेश जी,टिप्पणियाँ वे ही शोभा देती हैं जिनका लेख के विषयवस्तु से सम्बन्ध हो। यहाँ पर तो आपके विचार कि "कांग्रेस खत्म हो जाये, तो हिन्दू-मुस्लिम दंगे नहीं होंगे…" के पक्ष या विरोध वाली कुछ टिप्पणियों को छोड़ कर शेष सभी टिप्पणियाँ पूरी तरह से असम्बद्ध और बकवास हैं।दुख तो इस बात का है कि कोई भी आपको आपके ही पोस्ट में "आपके हाल पर छोड़ देने", "आप सुधरने वाले नहीं", "आप हीन भावन के शिकार हैं" कह जाता है और आपको बुरा भी नहीं लगता।(जिस टिप्पणी की बात मैं कर रहा हूँ उसमें 'आप' के स्थान पर 'इन्हें' लिखा है पर इन्हें का मतलब तो लेखक से ही लगाया जा सकता है न?)राजनैतिक पार्टियों और सेक्युलरिज्म से सम्बन्धित इस लेख की टिप्पणियों में मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर, कुरान, इस्लाम का धार्मिक दृष्टिकोण, अल्लाह की मर्जी, बाबर और गज़नी को कोसना, आदि जिनका कि लेख के विषयवस्तु से किंचितमात्र भी सम्बन्ध नहीं है, कहाँ से घुस आते हैं?क्या आपको इन टिप्पणियों का उद्देश्य समझ में नहीं आता? क्या आपको नहीं लगता कि आपके ब्लॉग को परोक्ष और अपरोक्ष रूप से प्रचार का माध्यम बनाया जा रहा है? क्या आपको यह भी नहीं लगता कि टिप्पणियों के साथ जानबूझ कर असम्बद्ध (सही अर्थों में इस्लाम से सम्बन्धित) लिंक दिए जा रहे हैं?मैं समझता हूँ कि आप मेरी इस टिप्पणी को अन्यथा नहीं लेंगे और इस पर गौर करेंगे।

  20. September 29, 2009 at 1:50 pm

    सुरेश जी आपके लेख पर आपके प्रशंसकों की टिप्पणियाँ देखकर आनन्द आता है। विशेषकर उन्हें देखकर जिन्हें आपसे कुछ अधिक ही स्नेह है।

  21. September 29, 2009 at 1:57 pm

    यह कहना भूल गया था कि असम्बद्ध टिप्पणी करने वालों के ब्लॉग में जाकर उन्हें कोई पढ़ता नहीं है इसीलिए वे आपके ब्लॉग की लोकप्रियता का फायदा उठा कर अपनी बातों को पढ़वाना चाहते हैं।

  22. September 29, 2009 at 2:10 pm

    अवधियाजी से पूर्ण सहमत। इन टिप्पणियों को हटा देना ही श्रेयस्कर है।

  23. September 29, 2009 at 2:23 pm

    चश्मेबद्दूर !आपको भी वे अपने ब्लॉग की तरह मोडरेशन की सलाह दे गए. अब देखना है कि आप परोक्ष, अपरोक्ष, किंचित मात्र, यदि आदि पर अमल करते हैं या नहीं. वैसे मैंने मोडरेशन की एक परिभाषा बनाई है हो सकता है आपको पसंद आये (पसंद आये तो चटका लगाईयेगा!!!) मिसाल के तौर पे;मोहल्ले की गली में कई लोग एक आदमी से लड़तें है और अपना सारा ज़ोर उस एक आदमीं पे लगा देते हैं लेकिन फिर भी उसे हरा नहीं पाते हैं और जब कुछ नहीं बन पड़ता है तो भाग कर अपने घरों में घुस जाते हैं और अन्दर से दरवाज़ा बंद कर लेतें हैं. और सुनिए ! वे बाहर तो उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाए अन्दर पहुँच कर उस अकेले को अन्दर से ही बुरा भला बकतें हैं… अब आप तो समझ ही गए होंगे मोडरेशन की परिभाषा!

  24. September 29, 2009 at 2:54 pm

    @ सलीम, आपकी परिभाषा में एक नुक्स है… मोहल्ले के लोग एक "इंसान" से लड़ सकते हैं एक "पागल" से नहीं, और जब वह पागल कचरा फ़ेंकने लगे तब सांकल लगाने में ही भलाई है, क्योंकि उस पागल को कचरा फ़ेंकने से कैसे रोका जा सकता है? तो बात जोर लगाने की नहीं है, जोर "कैसे आदमी" पर लगाना चाहिये यह समझ आनी चाहिये, बस उन लोगों में आ गई। मुझमें अभी तक नहीं आई है, इसलिये प्रचार लिंक की सड़ांध को फ़िलहाल झेल रहा हूं… जब सब्र खत्म हो जायेगा तब मैं भी "कचरे" को देखकर सांकल लगा लूंगा… 🙂

  25. September 29, 2009 at 3:20 pm

    aapke lekh se bilkul sahmat hoon….. 100%……. BJP ke raaj mein musalmaanon ke saath kuch bhi nahi hua…… sarkari naukri mein musalmanon ka %age BJP ke tym mein hi badha….. 3 saal lagataar IAS topper BJP ke hi raaj mein musalmaan huye….. railways mein selection sabse zyada BJP ke hi tym mein huye….. aur bhi aise bahut saare aankde mere paas hain BJP ko support karne ke kiye….. par yeh baaki parties ne musalmaanon ke man mein daar baithaya hai BJP ke khilaaf….APJ ko BJP ne hi laaya….. bahut saare saboot hain iske to….. haan ! kuch negatives bhi huye hain to wo …… sab ke tym mein huye hain….. sabne apni apni roti senki hai….. aur main isko galat nahi maanta…. agar hamein kisi ko dabaa ke satta mil sakti hai to hamein usey dabana chahiye….. politics mein yeh jaayaz hai….. agar kisi ko nuksaan pahuncha ke hamara faayada ho raha hai to usey karna jaayaz hai….. aur sab log yahi karte hain ……. chahe wo hindu ho ya musalmaan…… poltics mein sirf raajsatta hi dharm hota hai…… na ki Religion……. agar musalmaan BJP ko support karne lag jayen….. to sabse zyada faayada unhi ka hoga…… yeh hence proved bhi hai……. jab Gandhi ji ne kaha tha ki ab Congress ka purpose khatm ho gaya ….desh ko azaadi mil gayi…… ab Congress ko bhang kar dena chahiye…… to yahi Jawahar lal nehru ne kaha tha……. ki ab aap apna moonh band rakho…… boodhe ho gaye ho…… Congress bhang nahi hogi…..

  26. September 29, 2009 at 3:27 pm

    कांग्रेस का मन्त्र ही है फुट डालो और राज करो ! अब संघ और भाजपा के ससक्त होने से मुस्लिम वोट एकत्रित करने मैं आसानी हो रही है |

  27. 'अदा' said,

    September 29, 2009 at 4:45 pm

    जब भी इस तरह की कोई भी चर्चा होती है तो आक्षेपों की बौछार ही देखने को मिलती है और हम जैसे लोग हिस्सा लेने की जगह बच कर निकल जाते हैं. कभी न तो अपनी बात कह पाते हैं न ही सुन-समझ पाते हैं. यही लगता है की 'गोबर में धेला कौन फेंके' बहुत ही अफ़सोस की बात है यह.कभी तो कोई ढंग की बात किया करे..एक ही राग सुन-सुन कर कान भी बहरे होने लगे हैं अब. क्या यह संभव है कि एक आम हिन्दुस्तानी की तरह, धर्म को परे रख कर, ठंडे दीमाग से सच्चाई को सही मायने में सोच कर, दिल पर हाथ रख कर, इमानदारी से सब अपनी बात कहें…..???मैं महफूज़ जी और राकेश जी की बातों का तहे दिल से समर्थन करती हूँ….

  28. RAJENDRA said,

    September 29, 2009 at 5:27 pm

    comment likhate samay hindi men na likh pana acha nahin lagta parantu ap ko yeh likhna jaroori hai ki is tarah ke lekh se jagrookta to badhati he hai isliye likhte rahiye – sankal na lagana

  29. janakisharan said,

    September 29, 2009 at 5:31 pm

    esi baat nahi hai ki dange sirf congress ki karvati hai, BJP ki kuch kamjor neetiya evam ati-rashtravaad ki mansikta bhi congress ko help karati hai. aur congress har baar iska phayada le jati hai ki dange BJP ne karvaye aur media mei apni secular image bana leti hai.

  30. September 29, 2009 at 5:54 pm

    सुरेश जी आप की बात से सहमत हुं,हमारे दोस्तो मे मुस्लिम भी बडी मात्रा मै है, लेकिन हम सब मिल कर रहते है, एक दुसरे के त्योहार मै भी हिस्सा लेते है(मुस्लिम दोस्तो मे पाकिस्तानी भी है) ओर एक दुसरे के दुख मै दखी ओर सुख मे मै हिस्सा लेते है, कोई भी कर्म करे सब मिल कर करते है, ईद मै हम मुस्लिम भाईओ के संग तो दिपावली मे वो हमारे संग, ऎसा इस लिये कि हम अपनी राज नीति से दुर है, ओर यहां सब अपने दिमाग से सोचते है , काग्रेस या अन्य नेताओ के कहने से भेड बकरियो की तरह से नही चलते, एक दुसरे को छोटा नही दिखाते.. भारत ओर पाकिस्तान मै भी ऎसे लोग है जो यह सब समझते है ओर इन नेताओ को घास नही डालते, अगर यह काग्रेस मुस्लिम भाईयो की इतनी ही मदद गार है तो मुस्लिम आज भी क्यो गरीबी रेखा के नीचे है??? यह भाई समझते नही कि इन्हे सिर्फ़ शतरंज की गोटी की तरह से चलाया जाता है, जब बाजी खत्म तो इन्हे समेट कर एक तरफ़ रख दिया, ओर जो यह टिपण्णी देने ओर लेख से अलग बाते कर रहे है यह ही उस शतरंज की गोटे है जो अपनी कॊम को आगे आने से रोके है….. है अल्लहा इन्हे अकल दे…अगर आगे जाना है त मिल कर ही आगे जा सकते है

  31. September 29, 2009 at 7:48 pm

    …सुरेश जी,"यदि कांग्रेस खत्म हो जाये तो हिन्दू मुस्लिम दंगे नहीं होंगे…."ऐसा हुआ तो नहीं गुजरात में…अब दंगों से वाकई किसी पार्टी विशेष को फायदा नहीं होता, न ही होना चाहिये…आज वोटर क्षेत्रीय और साम्प्रदायिक लफ्फाजी से हटकर भी कुछ मांगता है जैसे विकास, रोजी-रोटी और यथास्थितिवाद का पतन…क्या यह सब उनके पास है जिनके आप शुभेच्छु हैं ?एक बात और आपकी इस पूरी पोस्ट से मात्र चंद शब्द हटा दिये जायें तो बी जे पी या शिव सेना का कोई भी प्रत्याशी इसे मंच से बोल सकता है भाषण की तरह…स्पीच राइटिंग का एक बेहतरीन नमूना कहूंगा इसे…

  32. September 29, 2009 at 8:03 pm

    ये जो पब्लिक है सब जानती है।

  33. September 29, 2009 at 8:05 pm

    असहमति का कोई प्रश्न ही नहीं उठता…लेकिन एक बात कहना चाहूंगी कि आजकल तो किसी भी राजनितिक दल का नेता क्यों न हो शायद ही कोई जनता की भलाई की सोचता है…लगभग सभी का मंत्र तो फ़ुट डालो शासन करो ही रह गया है,बस एक से दस बीस नंबर पर उन्हें सजा कर बैठा देने वाली बात है…अनर्गल बकवास वाले टिप्पणियों से किंचित भी आहत न हों…. उनपर दृष्टि डालने का भी श्रम न करें……

  34. रंजन said,

    September 30, 2009 at 4:14 am

    कांग्रेस को गाली देने से ही भला होता हो तो एक गाली मेरी भी…

  35. September 30, 2009 at 5:47 am

    सलीम नाम के इस सिरफिरे के बारे मे आपकी टिप्पणी बिल्कुल सही है…मेरे किए गये अनेक कॉमेंट्स तो इसने आज तक प्रकाशित नही होने दिए या अपने ब्लॉग से डेलीट कर दिए …. फिर जनता ये कैसे पता लगाएगी की ये खुद कितना बड़ा दोगला है……जो आपको सलाह दे रहा है……एक पागल के लिए इस ब्लॉग पे कोई जगह नही होनी चाहिए….जब मोहल्ला जैसे सेक्युलर ब्लॉग से इसे लतिया के बाहर किया गया तो आप अभी तक इसे क्यों झेल रहे हैं….

  36. September 30, 2009 at 6:30 am

    समीउद्दीन नीलू said… ''यदि अल्लाह की मर्जी होती तो तुम सबको एक ही जन समुदाय बनाता परंतु वह उसी में तुम्हारी परीक्षा ले सकता है जो तुम्हें उसने दिया है।'' (कुरान- 5:48)''हमने हर जाति समूह के लिए धर्माचरण के नियम निश्चित कर दिये हैं जिसका वे पालन करते हैं इसमें ऐसा कुछ नहीं किया जिस बात को लेकर वे तुझसे झगडं।'' (कुरान-22-67) ''हर समुदाय के लिए हमने कुछ धार्मिक किया कर्म तय कर दिये हैं जिनका पालन करते हुए वे परवर दिगार का नाम पढ़ सकते हैं।'' (कुरान 22:34)। are samiuddin ji yahi baat agar apne bhandoon ko samjhate to kitna accha hota…….mehfooz, aDaDi aur Suresh ji ki baat se sehmat !!Vande Mataram !!

  37. September 30, 2009 at 6:52 am

    नमस्कार सुरेश जी. आपके आलेख से २००% सहमत.ये सलीम, कैरानवी इत्यादि मूलतः मनुष्य के आवरण में निरा वैशाखनंदन हैं, जिन्हें ना तो आलेख का मर्म पता होता है, और ना ही किसी भी तार्किकता का. इसीलिए तो चाहे आप किसी भी मुद्दे पर अपनी लेखनी चलाएं, ये तो वही चिपियाएंगे, जो इन्होंने सैकड़ों बार इतस्ततः पूर्व में चिपिया रखा होता है. ना विश्चास हो तो जाकर सलीम के कबाड़खाने में देख लीजिए- "९/११ वर्ल्ड ट्रेड सेंटर" पर एक ही आलेख को दो महीनों में बिना कोई संशोधन के दो बार चिपिया रखा है.

  38. ek aam aadmi said,

    September 30, 2009 at 6:55 am

    प्रवीन शाह जैसे लोगों के बाप-दादाओं के कारण ही यह देश गुलाम रहा. जय हो प्रवीन शाह तुम्हारी. तुम क्या जानो शहादत की कीमत. हमसे पूछो जिनके पुरखों ने जनेऊ नहीं कटने दिये सर कटा दिये और अंग्रेजों के कारिन्दों को मार कर गिरा दिया. जय हो सिक-उलर प्रवीन शाह. तुम अभी धर्मनिरपेक्ष ही बने रहो. एक दिन फिर तुम्हारे जैसे लोगों के कारण पूरा देश गुलाम बनेगा.

  39. ek aam aadmi said,

    September 30, 2009 at 7:16 am

    हिन्दुओं की आंखें न खुली हैं न खुलेंगी. कितने मुसलमान ब्लोगर दीपावली की बधाई देते हैं, गिन लेना. कितनों ने मिरज दंगों की निन्दा की है गिन लेना. जहां मुसलमान होता है वहां कुछ भी गलत नहीं होता, रोना इस बात का है इन्हें समर्थन देने वाले भी हिन्दू हैं.अगर ऐसे लोगों की संख्या गुलामी के दौरान अधिक रही होती तो आज भी उनका थूका हुआ चाट रहे होते. जय हो उन महा साम्प्रदायिक लोगों की. अभिनन्दन है उनका. धिक्कार है हम पर जो इसे सहेजे न रह सके. कहते हैं कि नंगे को जूते मिले तो उसने कांटों में चलकर देखा. बात सही है.

  40. September 30, 2009 at 7:54 am

    Suresh ji ko dashara ki mubarakbad.

  41. ek aam aadmi said,

    September 30, 2009 at 9:29 am

    महफ़ूज अली जी की टिप्पणी अपने आप में सच बयान करती है, यह अपने आप में सिद्ध करती है कि एक संयत मस्तिष्क के सुलझे हुये व्यक्ति और मजहबी उन्माद में उलझे हुये व्यक्ति में कितना अन्तर होता है. सुरेश जी दरवाजा बन्द करने की बिल्कुल आवश्यकता नहीं है.

  42. pankaj vyas said,

    September 30, 2009 at 9:32 am

    suresh ji aapka andaj nirala hai…aapki bat se sahamat hooa ja sakata hai…

  43. September 30, 2009 at 10:02 am

    @ek aaam aadmi : वह इसलिए क्योंकि श्री महफूज अली सही मायने में इस देश के एक सुशिक्षित युवा है !यह होता है एक अच्छे स्कूली शिक्षा का फर्क और माता पिता के अच्छे संस्कार का नतीजा !

  44. September 30, 2009 at 10:52 am

    आपकी हर बात निराली है।-Zakir Ali ‘Rajnish’ { Secretary-TSALIIM & SBAI }

  45. September 30, 2009 at 1:27 pm

    इसलाम और सहिष्णुता ?? मियां मजाक अच्छा कर लेते हो….. कितना सहिष्णु है इसलाम कि तसलीमा नसरीन, सलमान रश्दी दर – बदर की ठोकरें खाते फिर रहे हैं, मिरज की तस्वीरें और घटना तो आपने पढ़ ही ली है, पाकिस्तान और बांग्लादेश और साथ ही कश्मीर में गैर मुसलमानों के साथ होने वाला सुलूक शायद आपको पता नहीं होगा……………..सलीम और कैरानवी तो नित नए अवतार धारण कर रहे हैं आज शायद पुरातत्वविद और इतिहासकार के अवतार में हैं. मुसलमान तो मासूम बकरिया थीं जिन्हें सावरकर और अन्य लोगों ने जिन्नाह के पीछे – पीछे पाकिस्तान हांक दिया था.हिन्दू समाज सामंती मनोवृति से ग्रस्त है. बिलकुल ठीक जनाब, और इसी सामंती मनोवृति ने आपको धर्म आधारित विभाजन के बाद भी यहाँ बर्दाश्त कर लिया. मुसलामानों को ना सिर्फ इस सरजमीं ने पाला -पोसा बल्कि तुम्हारे सपनो के मुल्क (ना)पाकिस्तान से ज्यादा आजादी और लाख गुना बेहतर जिंदगी मुहैया कराई. तो हिन्दू धर्म असहिष्णु तो है ही कि उसने कश्मीर से मुसलमानों द्वारा लाखों हिन्दुओं को खदेड़ दिए जाने, हत्या, बलात्कार और अत्याचार के बावजूद १८ करोड़ मुसलमानों को भारत में रहने दिया. हिन्दू धर्म इसलिए भी असहिष्णु है कि ना सिर्फ पाकिस्तान, बांग्लादेश में बल्कि स्वयं कश्मीर में हजारों मंदिरों को ढहा देने (इस्लामी सहिष्णुता का शानदार नमूना) के बावजूद भी यहाँ के हर गली कूचे में मस्जिदों को जैसे का तैसा छोड़ दिया. बिलकुल सही कहा जनाब, हिन्दू धर्म असहिष्णु तो है ही.और मुस्लिम सहिष्णुता का नमूना- १. अफगानिस्तान में हिन्दुओं सिखों से जबरन धन वसूली (मेहनत का खाने की तो आदत ही नहीं रही कभी)- इस्लामी सहिष्णुता के क्या कहने.२. पाकिस्तान में हिन्दुओं की आबादी २५% से २.५% पर आ गई. और अभी भी अत्याचारों के कारण पलायन जारी है. कमोबेश यही हाल बांग्लादेश में भी है.3. अरब देशों में रमजान के महीने में दिन में नलों में पानी नहीं आता. (गैर मुस्लिमों को रोजा रखने को बाध्य करने का अनूठा तरीका).४. फ्रांस में (जो कि इनका मूल देश कभी नहीं रहा, अर्थात वहां फ्रांसीसियों कि सदाशयता की वजह से वहां रह रहें है) साल भर तक इस्लामी कानूनों की मांग को लेकर इन्होने जिस तरह से दंगा किया और अराजकता मचाई वह भी इस्लामी सहिष्णुता का ही नमूना है.लिस्ट बहुत लम्बी है, टिप्पणी पोस्ट से ज्यादा लम्बी हो जायेगी इसलिए मियां अवतारों पर विचार करने से पहले तथ्यों पर विचार करो और एक बार अपने गिरेबान में झांक कर देखो. वैसे तुम्हे यह सब बातें "मीडिया की क्रिएशन" नजर आएँगी क्योंकि तुम्हें सिर्फ एक मकसद के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है और वह है मानवता की हत्या और तुम बकरियों की तरह मिमियाते उसी राह पर चले जा रहे हो. फिर भी ईश्वर तुम्हें सदबुद्धि दे.

  46. naveentyagi said,

    September 30, 2009 at 1:48 pm

    nishachar ji mai aapki baat se poorn sahmat hoon,tatha divaakar ji ki baat se bhi.

  47. October 1, 2009 at 2:40 pm

    सुरेश जी, चाहे वो कांग्रेस हो या भाजपा…सब एक जैसे है किसी में कोई फ़र्क नही है बस कभी कोई ज़्यादा है कभी कोई ज़्यादा है…..सबको सिर्फ़ गद्दी से मोहब्बत है और किसी चीज़ से नही है….मैं जब भी वोट देता हूं तो सिर्फ़ उस शख्स को देता जो मुझे लगता है की वो काम करेगा मैने कभी पार्टी को देख कर वोट नही किया……और अगर वो शख्स काम नही करता है तो मैं उससे जवाब भी मांगता हूं….भाजपा 19 सीटॊं से 189 सीटों तक जिस वजह से पहुंची उसका मौका उसे कांग्रेस ने ही उन्हे दिया था…. बाबरी शहीद होने के 17 साल बाद भी वो आज तक ये साबित नही कर सके की वहां कोई राम मंदिर था….अब जब अपनी गर्दन सख्ती से फ़ंसती दिखती है तो सब अपना हाथ झाडते है…….सबसे बेहतर ये है की हम अपने दिमाग से सोचें…हमें इस बात को समझना होगा और अपने दिल में गुन्जाईश पैदा करनी होगी, हम लोग चाहे जो कर लें एक-दुसरे से अलग नही हो सकते है, ना ही एक-दुसरे के बगैर जी सकते हैं और ना एक-दुसरे के बगैर हमारी रोज़ी-रोटी चल सकती है। हमलोग कब तक राजनीतिक चश्में से एक दुसरे को देखते रहेंगे??? क्या हमारा कोई नज़रिया नही हैं?? क्या हमारी कोई सोच नही है??? हमें अगर सुख और खुशी के साथ रहना है तो सबको साथ लेकर चलना होगा….

  48. October 1, 2009 at 8:09 pm

    वाह!सुरेशजी,आपने बहुत सही लिखा है,ऎसे ही लिखते रहिये,हम आपके साथ है!सीताराम प्रजापति,तिहावली

  49. naveentyagi said,

    October 3, 2009 at 4:42 am

    आप पूरे विश्व पर नजर डालिए,जहाँ भी मुसलमानों की आबादी लगभग १०% से कम होती है,तब ये वहां पर बड़ी शान्ति के साथ रहते है और लगातार अपनी आबादी बढ़ने पर जोर देते है। जहाँ इनकी आबादी १०%से २०%तक होती है उस देश में ये उलटी सीदी मांग करते है और आतंकवाद का सहारा लेते है। भारत इसका सबसे बड़ा उदहारण है।२५%से ४०% तक की आबादी होने परे उस देश में ग्रह युद्ध शुरू हो जाते है। सीरिया इसका सबसे बड़ा उदहारण है.सीरिया में पिछले २० वर्ष से लगातार मुसलमानों व ईसाईयों का गृहयुद्ध चल रहा है। दर्जनों अफ्रीकी देश और भी इस बात के उदहारण है। ४०% से ऊपर जब इनकी आबादी हो जाती है तो उस देश का या तो बटवारा होता है और या फ़िर शुरू होती है शरीय कानून की शुरुआत जहाँ मुसलमानों के अतिरिक्त किसी दूसरे धर्म के लोगो को जीने का कोई अधिकार नही होता।"इस्लाम समस्त विश्व को दो भागो में बांटता है। १–दारुल इस्लाम। २–दारुल हरब। वह देश जहाँ इस्लामिक राज्य होता है,वह दारुल इस्लाम तथा जहाँ इस्लाम का राज्य नही होता वह देश कुरान के अनुसार दारुल हरब(यानि शत्रु का देश) है। कुरान के अनुसार "दारुल हरब को दारुल इस्लाम में बदलना मुसलमानों का मजहबी कर्तव्य है.इस कार्य को करने के लिए किया गया युद्ध जेहाद कहलाता है।जेहाद——-अनवर शेख अपनी पुस्तक "इस्लाम-कामवासना और हिंसा" में लिखते है की,"गैर इमां वालों के विरुद्ध जिहाद एक अंतहीन युद्ध है । जिसमे हिंदू, बोद्ध, ———ईसाई, यहूदी समविष्ट है.इस सिद्धांत के अनुसार किसी भी व्यक्ति का सबसे बड़ा अपराध यह है की, वह अल्लाह पर इमां लाये जाने वाले और पूजे जाने के मोहम्मद के एकमात्र अधिकार को न माने.यह आश्चर्य पूर्ण सत्य है कि, (इस्लाम का) अल्लाह ,गैर मुस्लिमों पर आक्रमण,उनके वद्ध,उनकी लूटपाट,उनकी महिलाओं के शीलभंग और दास बनाने के कार्यों को ,जिन्हें साधारण मानव भी जघन्य अपराध मानता है,उनको सर्वाधिक पुनीत एवं पवित्र घोषित करके जिहाद के लिए मुसलमानों को घूस देता है।"suresh ji isme congresh kahan se aa gai.aap to saleem-valeem ke blog padhte rahte hai or dekhte hai bhi ki unhe islaam ke alava sabhi dharmo me buraai dikhai deti hai,or khaastor se hidu dharm mai.

  50. October 3, 2009 at 9:55 pm

    @ काशिफबाबरी शहीद होने के 17 साल बाद भी वो आज तक ये साबित नही कर सके की वहां कोई राम मंदिर था….काशिफ साहब ये कहकर आपने भी अपने दुसरे बंधुओं की लाईनों में एक और रटी-रटाई लाईन जोड़ दी है | शायद आपने इस कांड से रिलेटेड सभी दस्तावेजों, चलचित्रों, रिपोर्टों को ठीक से कभी से जानने की कोशिश नहीं की नहीं तो शायद ऐसा नहीं कहते |और ये तो जग जाहिर है की एक वही जगह क्या, मुस्लिम आक्रान्ताओं ने तो सम्पूर्ण भारत में जगह-जगह मंदिरों को तोडा है | इसमें क्या प्रमाण दें अब, ऐसे प्रमाण हैं की कोई आम आदमी भी समझ जाये | या तो आप मुर्ख हैं, या हम मुर्ख हैं जो आपको इतनी बार बताने के बाद भी कभी जवाब नहीं देते हो और सवालों का पिटारा लिए घूमते हो, आपको बुरा तो लगेगा लेकिन पकिस्तान भी अभी तक सबूत ही मांग रहा है मुंबई हमले के एक साल से | कुछ वैसा ही आप करते हो | आप आँख बंद कर के ना मानें तो अब मेरे पास टाइम मशीन तो नहीं है की आपको पीछे ले चलता इतिहास में | लेकिन हाल की एक बानगी बता सकता हूँ, और वो ये है की जो बामियान में हुआ वो तो अभी आपको शायद आसानी से रेकॉर्डेड विडियो में मिल सकता है | यु ट्यूब में सर्च मर लीजिये | एक तो में ही भेज देता हूँ |http://www.youtube.com/watch?v=zgZa1nW_JQk&feature=relatedअब एक विजिट जरा इस लिंक पर भी कर लेना, इसमें एक नहीं अनेकों ऐसी जगहों के बारे में फोटो सहित जानकारी देकर समझाया गया है की कहाँ क्या हुआ है |http://www.stephen-knapp.com/was_the_taj_mahal_a_vedic_temple.htmइस निचे दिए लिंक में पुरे विश्व में कभी रही वैदिक सभ्यता के फोटो सहित प्रमाण हैं |http://www.stephen-knapp.com/photographic_evidence_of_vedic_influence.htmलेकिन अगर कल आप ये सवाल करते मिलो, "भाई साहब ये साईट आपकी हो सकती है, और फोटो भी मोर्फिंग किये हो सकते हैं, क्या प्रमाण है इनकी सच्चाई का", तो तब तो फिर मेरे पास भी कोई जवाब नहीं है | क्योंकि ऐसे कई सवाल आप लोगों ने कई बार किये हैं |

  51. October 3, 2009 at 10:04 pm

    ऊपर मेरे कमेन्ट में दुसरे नंबर का लिंक गलत एंकर हो गया है, इसलिए उसकी सीधी कॉपी करके एड्रेस बार में पेस्ट करें |या फिर इस लिंक पर क्लिक करें |http://www.stephen-knapp.com/was_the_taj_mahal_a_vedic_temple.htm

  52. naveentyagi said,

    October 4, 2009 at 3:36 am

    योगेन्द्र जी इन सब बातों का पता तो पहले से था.किन्तु आपने चित्रों के लिंक देकर बहुत अच्छाकार्य किया है.

  53. Common Hindu said,

    October 4, 2009 at 11:33 am

    Hello Blogger Friend,Your excellent post has been back-linked inhttp://hinduonline.blogspot.com/– a blog for Daily Posts, News, Views Compilation by a Common Hindu- Hindu Online.

  54. Common Hindu said,

    October 4, 2009 at 11:37 am

    .kindly do comment moderation.

  55. October 9, 2009 at 3:06 pm

    दोस्त बात तो आप काँग्रेस की कर रहे थे पर टिप्पणियो मे बाते कहाँ से कहाँ तक उठ गयी एक आस्था दूसरे से श्रेश्ठ कैसे हो सक्ती है ?मुझे लगता है हम और हमारी आस्था का सम्बन्ध अन्तरंग और अतिव्यक्तिगत है…अप्ना धर्म छोडो और हमारे मे आओ कहने वाले मानो जैसे अपने आस्था की ब्लुफ़िल्म बाँट रहे हों !रास्ता तुम्हे मिल गया है तो खुद जाओ जन्न्त भाई दूसरों का जीवन जहन्नुम क्यो बना रहे हो?


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