डॉक्टर की फ़ीस सिर्फ़ 2 रुपये!!! कभी सुना है? ऐसे लोग हैं, "समाज की अगरबत्तियाँ…" Dedicated Doctor Koelhe at Gadhchiroli Tribal Area

जी हाँ, कोई गलती नहीं, कोई मिसप्रिंट नहीं, आपने शीर्षक में एकदम सही पढ़ा है, महाराष्ट्र के आदिवासी इलाके मेलघाट में पिछले 24 साल से काम कर रहे, डॉ रवीन्द्र कोल्हे की फ़ीस सिर्फ़ 2 रुपये है (पहली बार) और दूसरी बार में 1 रुपया, और निम्न पंक्ति किसी घटिया नेता की झूठी बात नहीं, बल्कि महात्मा गाँधी और विनोबा भावे के “सच्चे अनुयायी” डॉ रवीन्द्र कोल्हे की हैं, जो सभी से रस्किन बांड का यह वाक्य कहते हैं, कि “यदि आप मानव की सच्ची सेवा करना चाहते हैं तो जाईये और सबसे गरीब और सबसे उपेक्षित लोगों के बीच जाकर काम कीजिये…”।

जब रवीन्द्र कोल्हे नामक नौजवान ने एमबीबीएस की पढ़ाई के बाद मेलघाट के अति-पिछड़े इलाके में नौकरी की तब उन्हें अहसास हुआ कि इन आदिवासियों की गहन पीड़ा और आवश्यकताएं अलग हैं, तब उन्होंने वापस जाकर एमडी की डिग्री हासिल की, और पुनः मेलघाट आकर कोरकू आदिवासियों के बीच काम करने लगे। इन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से एमबीबीएस किया, वे शुरु से ही विनोबा भावे के कार्यों और विचारों से बेहद प्रभावित थे। उन्होंने मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात के कई जिलों का दौरा किया और पाया कि महाराष्ट्र का गढ़चिरौली इलाका नक्सलवाद, गरीबी और बीमारी से जूझ रहा है तब उन्होंने मेलघाट को ही अपना स्थाई ठिकाना बनाने का फ़ैसला किया। उनकी माँ ने नक्सलवाद के खतरे को देखते हुए उन्हें मनाने की बहुत कोशिश की लेकिन रवीन्द्र कोल्हे ठान चुके थे कि उन्हें आदिवासियों के बीच ही काम करना है। उनका पहनावा और हुलिया देखकर कोई भी नहीं कह सकता कि यह एक MD डॉक्टर हैं। 

अपने पुराने दिनों को याद करते हुए डॉ रवीन्द्र कोल्हे कहते हैं, “उन दिनों इस पूरे इलाके में सिर्फ़ 2 स्वास्थ्य केन्द्र थे, मुझे अपनी क्लिनिक तक पहुँचने के लिये धारणी से बैरागढ़ तक रोजाना 40 किमी पैदल चलना पड़ता था, मुझे इन जंगलों में रोजाना कम से कम एक शेर जरूर दिखाई दे जाता था, हालांकि पिछले 4 साल से मैने यहाँ कोई शेर नहीं देखा…”।

मेलघाट का मतलब होता है, वह जगह जहाँ दो घाटों का मिलन होता है। यह गाँव महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश की सीमा पर बसा हुआ है, और पहाड़ियों की गहरी हरियाली को सिर्फ़ एक ही बात भेदती है वह है यहाँ के स्थानीय निवासी कोरकू आदिवासियों का रंगीन पहनावा। विकास के नाम पर इस पूरे इलाके में कुछ भी नहीं है, मीलों तक सड़कें नहीं हैं और गाँव के गाँव आज भी बिजली के बिना अपना गुज़ारा कर रहे हैं। टाइगर रिज़र्व इलाका होने की वजह से यहाँ किसी प्रकार का “इंफ़्रास्ट्रक्चर” बनाया ही नहीं गया है, ये और बात है कि पिछले कई साल से यहाँ एक भी टाइगर नहीं देखा गया है, अलबत्ता केन्द्र और राज्य से बाघ संरक्षण के नाम पर पैसा खूब आ रहा है। जंगलों के अन्दर आदिवासियों के गाँव तक पहुँचने के लिये सिर्फ़ जीप का ही सहारा है, जो ऊबड़-खाबड़ ज़मीन पर चल जाती है। यहाँ के आदिवासी सिर्फ़ पहाड़ी झरनों और छोटी नदियों के सहारे ही छोटी-मोटी खेती करके अपना पेट पालते हैं, क्योंकि न तो यहाँ सिंचाई व्यवस्था है, न ही पम्प, क्योंकि बिजली भी नहीं है। ऐसी जगह पर डॉ रवीन्द्र कोल्हे पिछले 24 साल से अपना काम एक निष्काम कर्मयोगी की तरह कर रहे हैं।

पहली बार जब भी कोई रोगी आता है तब वे उससे सिर्फ़ दो रुपये फ़ीस लेते हैं और अगली बार जब भी वह दोबारा चेक-अप के लिये आता है तब एक रुपया। अपने खुद के खर्चों से उन्होंने एक छोटा क्लिनिक खोल रखा है, और वे वहीं रहते भी हैं जहाँ कोई भी 24 घण्टे उनकी सलाह ले सकता है।

जब मैं यहाँ आया था, उस समय शिशु मृत्यु दर, प्रति 1000 बच्चों में 200 की थी, लेकिन अब यह घटते-घटते 60 पर आ चुकी है, जबकि केरल में यह सिर्फ़ 8 है और भारत के अन्य ग्रामीण इलाकों में शिशु मृत्यु दर 10-12 है…” वे कहते हैं। इस इलाके में स्वास्थ्य केन्द्रों की बढ़ोतरी और स्वास्थ्य सेवाओं की तरफ़ ध्यान आकर्षित करने के लिये डॉ कोल्हे ने मुम्बई हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की, लेकिन सरकार ने उसका महीनों तक कोई जवाब नहीं दिया (शायद गरीबों का कोई जनहित नहीं होता होगा)। डॉ कोल्हे कहते हैं कि यदि सरकार हमसे बात ही नहीं करना चाहती तब हम क्या कर सकते हैं? हमें तो अपनी समस्याओं का हल खुद ही निकालना है। इलाके के स्वास्थ्य केन्द्रों पर डॉक्टरों की तैनाती ही नहीं होती, ऐसे में शिशु मृत्यु दर अधिक होना स्वाभाविक है। यहाँ पर वर्षा की कमी की वजह से साल के लगभग 8 महीने खेती सम्बन्धी कोई काम नहीं होता, पशुओं की मृत्यु दर भी डॉक्टर न होने की वजह से अधिक है इसलिये दूध की भी कमी रहती है। 1978 से पहले आदिवासी लोग खरगोश, छोटे हिरन आदि का शिकार करके अपना पेट भर लेते थे, लेकिन जब से इसे टाइगर रिज़र्व घोषित किया है, तब से शिकार पर भी प्रतिबन्ध लग गया है। मेलघाट एक बार राष्ट्रीय सुर्खियों में आया था जब यहाँ पर बच्चों की मौत “कुपोषण” से हुई थी, डॉ कोल्हे इसे नकारते हुए कहते हैं कि यह कुपोषण से नहीं बल्कि भूख से हुई मौतें थीं।

जिस “नरेगा” का मीडिया में सबसे अधिक ढोल पीटा जाता है, यहाँ शुरु होकर बन्द भी हो गई। स्थानीय आदिवासी बताते हैं कि धारणी और चिकलधारा तहसील में यह योजना चलाई गई, लेकिन मजदूरों की मेहनत के 3 करोड़ रुपये अभी भी नहीं मिले हैं। सरकार ने एक ही अच्छा काम किया है कि पूरे क्षेत्र में 300 से अधिक सरकारी स्कूल खोले हैं, जिसके कारण इन गरीबों को पढ़ने का मौका मिला है, इसी के साथ बहुत संघर्ष करने के बाद कोरकू भाषा में प्राथमिक स्कूलों में बच्चों की पुस्तकें भी वितरित करवाई हैं जिससे बच्चे जल्दी सीख जाते हैं। डॉ कोल्हे क्लिनिक में आदिवासी युवाओं को सरकार की विभिन्न योजनाओं के बारे में जानकारी भी देते जाते हैं। “मैंने उन्हें अपने हक के लिये लड़ना सिखाया है और कभी भी रिश्वत नहीं लेने-देने की कसम दी है…”। वे ग्रामीणों को सलाह देते हैं कि अब उन्हें सरकारी ग्रामीण स्वास्थ्य केन्द्रों पर जाना चाहिये ताकि सरकारी गतिविधियाँ और बढ़ें, इसी के साथ स्वास्थ्य केन्द्र पर काम करने वाले जूनियर डॉक्टरों और कम्पाउंडरों को उन्होंने कह रखा है कि वे जब चाहें निःसंकोच उनकी डॉक्टरी सलाह ले सकते हैं। धीरे-धीरे इन आदिवासियों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ी है और जब डॉ कोल्हे उनके आसपास ही हैं तब वे आश्वस्त भी रहते हैं। आज इतने साल बाद, जबकि इलाके में थोड़ी बहुत तरक्की हुई है, डॉ कोल्हे की फ़ीस 2 रुपये ही है।

हाल ही में AIMS के डॉक्टरों को तनख्वाह बढ़ाने के लिये मांगें करते, कई राज्यों में चारों तरफ़ डॉक्टरों को हड़ताल करते और निजी डॉक्टरों, नर्सिंग होम्स और 5 सितारा अस्पतालों को मरीजों का खून चूसते देखकर, डॉ कोल्हे का यह समर्पण एक असम्भव सपने सी बात लगती है। लेकिन आज के गंदगी भरे समाज, पैसे के भूखे भ्रष्टाचारी भेड़ियों, महानगर की चकाचौंध में कुत्ते के बिस्किट पर महीने के हजारों रुपये खर्चने वाले और हर साल कार तथा हर महीने मोबाइल बदलने वाले घृणित धनपिपासुओं की चारों ओर फ़ैली सड़ांध के बीच ऐसे लोग ही एक “सुमधुर अगरबत्ती” की तरह जलते हैं और मन में आशा और विश्वास का संचार करते हैं कि “मानवता अभी जिन्दा है…” और हमें संबल मिलता है कि बुराईयाँ कितनी भी हों हमें उनसे अविरत लड़ना है…

दीपावली के अवसर पर डॉ कोल्हे के त्याग और समर्पण के जरिये, सभी स्नेही पाठकों का अभिवादन और दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं… दिल में उम्मीदों के दीप जलायें…

डॉ रवीन्द्र कोल्हे से बैरागढ़ में (07226) 202002, धारणी में (07226) 202829 और उनके मोबाइल पर 0-94231-46181 पर सम्पर्क किया जा सकता है।
(सभी सन्दर्भ – रेडिफ़.कॉम)

“समाज की अगरबत्तियाँ” टाइप का इसी से मिलता-जुलता एक लेख यहाँ भी पढ़ें…
http://sureshchiplunkar.blogspot.com/2008/12/iit-engineer-farmer-indias-food-crisis.html

(विषयांतर – कई ब्लॉगरों द्वारा लगातार अनुरोध किया जा रहा है कि हिन्दी ब्लॉग जगत में छाई सड़ांध को दूर करें और धार्मिक विषयों पर तथा साम्प्रदायिक लेखन न किया जाये… दीप पर्व के पावन अवसर पर माहौल बदलने के लिये यह पोस्ट लिख रहा हूं… मैं भी चाहता हूं कि ऐसी कई पोस्ट लिखूं, लिखी जायें। फ़िर भी इस बात से मैं असहमत हूं और रहूंगा कि गुमराह करने वाली, उन्मादी धार्मिक प्रचार वाली बातों का जवाब ही न दिया जाये… इग्नोर भी एक हद तक ही किया जा सकता है, जब कोई आपके धर्म को, आपके धर्मग्रंथों को, आपके वेदों-पुराणों को दूसरों के मुकाबले श्रेष्ठ बताने लगे, उसके बारे में दुष्प्रचार करे, कुतर्क करे… तब निश्चित रूप से उसका जवाब दिया जाना चाहिये, तरीका अलग-अलग हो सकता है, लेकिन पीछे हटना या भागना शोभा नहीं देता…फ़िलहाल दीपावली के शुभ अवसर पर सभी को अग्रिम बधाईयाँ…और कटुतापूर्ण माहौल को शांत और सुगंधित करने के लिये इसी प्रकार की “अगरबत्ती” वाली पोस्टें लिखें…)

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66 Comments

  1. October 9, 2009 at 11:13 am

    पहले तो आपको बधाई, सुन्दर पोस्ट के लिए.फिर डॉक्टर साहब को बहुत बहुअ शुभकामनाएं. और अंत में, हम वही लिखेंगे जो समय की माँग होगी.

  2. October 9, 2009 at 11:15 am

    आज जो बकवास हिन्दुस्तान की आवाज जो वास्तव में दोजख की आवाज है ने लिखी है, देखते है कितने लोग शांत रह पाते है. :।

  3. October 9, 2009 at 11:24 am

    इस प्रेरणादायी आलेख के लिए कोटिशः आभार सुरेश भाई…..ऐसे लोग धरती पर हैं तभी तो धरती टिकी हुई है….हमारे जमशेदपुर में भी ऐसे ही एक महान आत्मा डाक्टर कवि थे….कुछ ही महीने पूर्व लगभग सौ वर्ष की अवस्था में उनका निधन हुआ है…जीवन भर वे भी ऐसे ही गरीबों की सेवा करते रहे…उनके यहाँ एक दानपेटी थी,जिसमे यदि कोई समर्थ हुआ तो फीस के तौर पर दो रुपये डाल दिया करता था…इलाज के क्रम में बमुश्किल दस पंद्रह रुपये से अधिक की दवा वे कभी नहीं लिखते थे और यदि मरीज असमर्थ हुआ तो दवा भी अपने ही पैसे से दे दिया करते थे…..उनके मृत्यु पर पूरा जमशेदपुर शोक विह्वल हो गया था…

  4. October 9, 2009 at 11:48 am

    प्रेरक पोस्ट लिखी है।सच मे आज की बात नही लगती यह।इस सुन्दर पोस्ट के लिए धन्यवाद।

  5. October 9, 2009 at 12:01 pm

    रविन्द्रजी तो प्रेरणास्रोत हैं. उनके जीवन से सीखने को मिलता है. धन्यवाद इस पोस्ट के लिए.

  6. October 9, 2009 at 12:01 pm

    रविन्द्रजी तो प्रेरणास्रोत हैं. उनके जीवन से सीखने को मिलता है. धन्यवाद इस पोस्ट के लिए.

  7. October 9, 2009 at 12:53 pm

    बहुत सुंदर जानकारी दी आप ने, सच मै यही लोग है जिन के सर पर आज सच टिका हुआ है, वरना डा० बननए से पहले जो कसम खाते है डिग्री हाथ मे आते ही वो सब से पहले उस क्सम को तोडते है.धन्यवाद

  8. कुश said,

    October 9, 2009 at 1:05 pm

    वही मैं सोच रहा था.. ये दुनिया अब तक सलामत क्यों है ? डॉ रवीन्द्र जैसे लोगो ने इसे बचा रखा है..संजय जी सहमतआज जो बकवास हिन्दुस्तान की आवाज जो वास्तव में दोजख की आवाज है ने लिखी है, देखते है कितने लोग शांत रह पाते है. :।

  9. October 9, 2009 at 1:09 pm

    मगर सवाल यह है आज के इस युग में कितने लोग रविन्द्रजी से प्रेरणा लेंगे ?

  10. avin said,

    October 9, 2009 at 1:22 pm

    SURESH BHAIYA ! MUJHE APNI GIRL FRIEND(50% RUSSIAN + 50% FINLANDIAN CITIZEN)SE JYADA PYAAR AAPKE AAJ KE LEKH SE HAI !SO, 50% SHUBHKAAMNA AAPKO AUR 50% SHUBHKAAMNA APNE PRIYA DOCTOR SAAHEB KO DENAA CHAAHUNGA !AAP DONO KO MERI BAAKI KI UMRA BHI LAG JAAYE !AAP AISE HI LIKHTE RRAHIYE !

  11. October 9, 2009 at 1:25 pm

    रवीन्द्र कोल्हे जैसे महान व्यक्तित्व के बारे में इतना विस्तार से बताने हेतु आपको बहुशः धन्यवाद. तमसाच्छादक प्रकाशपर्व दीपावली हेतु आपको और अन्य पाठकों को अग्रिम शुभकामना… ऋद्धि की देवी माँ लक्ष्मी और सिद्धि के उपास्य विनायक आप सभी के जीवन-पथ को सदा निष्कंटक और आलोकित रखें.

  12. Shiv Ratan said,

    October 9, 2009 at 1:34 pm

    lqjs’k th] bruh lqUnj vkSj izsj.kknk;h iksLV ds fy, lk/kqoknA vkidks o jfoUnz th dks ueu djrk g¡w] oanu djrk g¡wA

  13. October 9, 2009 at 1:47 pm

    ऐसे ही लोगों के कारण दुनिया टिकी हुई है। वैसे होम्योपैथी में निष्णात बहुत से लोग हैं जो चुप-चाप लगे हुए हैं दीन-हीन लोगों के कष्ट दूर करने।

  14. October 9, 2009 at 1:55 pm

    शिक्षा और चिकित्सा प्रदान करने को हमारे देश में सदा से ही सेवाकार्य माना जाता रहा है किन्तु आज ये व्यवसाय बन गए हैं। ऐसे समय में डॉ रवीन्द्र कोल्हे का यह सेवाकार्य महान है!"फ़िर भी इस बात से मैं असहमत हूं और रहूंगा कि गुमराह करने वाली, उन्मादी धार्मिक प्रचार वाली बातों का जवाब ही न दिया जाये… इग्नोर भी एक हद तक ही किया जा सकता है, जब कोई आपके धर्म को, आपके धर्मग्रंथों को, आपके वेदों-पुराणों को दूसरों के मुकाबले श्रेष्ठ बताने लगे, उसके बारे में दुष्प्रचार करे, कुतर्क करे… तब निश्चित रूप से उसका जवाब दिया जाना चाहिये, तरीका अलग-अलग हो सकता है, लेकिन पीछे हटना या भागना शोभा नहीं देता…"आपसे पूर्णतः सहमत। शायद मैं कुछ समय के लिए भटक गया था और बहिष्कार वाली बातें करने लगा था।हमें रामचरितमानस में निहित नीति "जिन मोहि मारा ते मैं मारे" और श्रीकृष्ण के उपदेश "तो तुझे मारे उसे तू मार" को कदापि नहीं भूलना है।

  15. SACCHAI said,

    October 9, 2009 at 1:57 pm

    " behtarin post ..badhai ..sabse pahle us aadarniy doctor ko …aur fir aapko ."—– eksacchai { AAWAZ }http://eksacchai.blogspot.comhttp://hindimasti4u.blogspot.com

  16. October 9, 2009 at 2:00 pm

    ऐसा होने के लिए बहुत बड़ा जिगर चाहिए ….ऐसे बहुत से लोग है …उनमे से एक से गुजरात में मिल चूका हूं …आज से कई साल पहले जब गुजरात के एक हिस्से में साइक्लोन आया था …उनकी प्रतिबद्ता ओर जज्बे को मैंने ५ दिन लगातार देखा था ..ये बात ओर है के ऐसे लोगो के परिवार अक्सर मुश्किल में दिन गुजारते है ….बाबा आमटे ने अपना सारा जीवन समर्पण में गुजारा …उनके पुत्र ओर पुत्र वधु भी यही कर रहे है …नमन !!!

  17. October 9, 2009 at 2:21 pm

    @ GodiyalMagar iska jabab to suresh ji ne apni profile mei hi de diya hai, "Gandagi me kandad uchalane se gandaji door to nahi hogi, magar ek lahar paida hogi jo dhire dhire gandagi baha le jayegi….awesome post…….thank you very much

  18. October 9, 2009 at 2:24 pm

    इस पोस्ट को पढ्ना एक सुखद अनुभव

  19. October 9, 2009 at 2:49 pm

    सुरेश जी, इस प्रेरणास्पद लेख के लिए आपको कोटि-कोटि धन्यवाद। इस प्रकार के लेख समाज में सेवा कार्यों में लगे लोगों के लिये संजीवनी का कार्य करते हैं। यदि समाज के दबे कुचले, पिछडे व उपेक्षित लोगों की सुध हमेशा से ली जाती रहती तो आज आपको वो लेख लिखने की आवश्यकता ही नहीं पडती जिनके लिये आप जाने जाते है तथा आपकी उर्जा इस प्रकार के प्रेरणादायक लेख लिखने के ही काम आती। हमने, हमारे पूर्वजों ने सदैव दबों को और दबाया है पिछडों को पिछाडा है। उन्ही मुख्यधारा से कटे हुए लोगों को मिशनरियों द्वारा दुलार कर लोभ-लालच देकर हमारा शत्रु बनाया जाता है। मुझे भारतीय संस्कृति पर सबसे बडा कलंक छुआछूत का लगता है। डा रविन्द्र कोल्हे जैसे त्यागी तपस्वी लोगों की वजह से ही भारत में आज भी नर को नारायण मानने की परम्परा जीवित है। स्वामी विवेकानंद जी कहते थे की भगवान की खोजना है तो गरीब की कुटिया में पाओगे। मै भी चिकित्सा कार्य से जुडा हूँ। हाइटेक सिटी के नाम से विख्यात नोएडा शहर में सफल होम्योपैथिक चिकित्सक के रूप में कार्य कर रहा हूं। मेरी नोएडा में दो जगह अपनी क्लिनिक हैं। किन्तु सेवा कार्य करने से कितना आत्म संतोष मिलता है मैं जनता हूँ। मैने नोएडा में 3 धर्मार्थ चिकित्सालय चला रखे हैं जिनमे से एक तो वृद्धाश्रम में संचालित है। अपनों के द्वारा ठुकराए व उपेक्षित बुजुर्गों की बिना किसी लोभलालच के चिकित्सा के माध्यम से सेवा करने के बाद उनके चेहरे पर बिखरती मुस्कान जो आत्मसुख व संतोष देती है वह संसार की किसी भी सम्पदा से नहीं मिल सकती। कोई भी सेवा कार्य की शुरुआत ही कठिन है। जिसके लिये दृढ इच्छा शक्ती की आवश्यकता होती है जो डा रविन्द्र जैसे पूज्यनीय व्यक्तियों की प्रेरणा से और बलवती होती है। (अपने बारे में बताने का मेरा उद्देश्य अपनी आत्म स्तूती करना नहीं है, आपका मार्मिक लेख पढकर कुच्छ अनुभव बांटने का मन हुआ) मुझे क्षमा करेंगे।

  20. October 9, 2009 at 2:57 pm

    सच तो यह देश ऐसे निष्काम योगियों की वजह से चल रहा है.दीपक भारतदीप

  21. mahashakti said,

    October 9, 2009 at 3:14 pm

    समाज में ऐसे लोगो की कमी नही है, किन्‍तु ऐसे लोग श्रेय नही लेते बल्कि काम करते है।

  22. Common Hindu said,

    October 9, 2009 at 3:40 pm

    Hello Blogger Friend,Your excellent post has been back-linked inhttp://hinduonline.blogspot.com/– a blog for Daily Posts, News, Views Compilation by a Common Hindu- Hindu Online.

  23. आनंद said,

    October 9, 2009 at 3:53 pm

    इस संशय और अविश्‍वास भरे माहौल में डॉक्‍टर साहब जैसी पवित्र आत्‍माओं की कहानियाँ जीवन के प्रति फिर से आस्‍था जगाती हैं। आपको बहुत-बहुत बधाई। – आनंद

  24. October 9, 2009 at 4:02 pm

    बेहतरीन पोस्ट!

  25. October 9, 2009 at 4:24 pm

    डॉ रवीन्द्र कोल्हे और उनके जज्बे को मैं प्रणाम करता हूँ | इश्वर से प्रार्थना है की ऐसे सपूतों की रक्षा करें |सुरेश भाई इस बेहतरीन आलेख के लिए धन्यवाद ….

  26. October 9, 2009 at 4:24 pm

    मैंने तो अब तक डॉ रवीन्द्र कोल्हे या ऐसे लोगों को मीडिया मैं कोई स्थान पाते नहीं देखा है | अलबता राहुल बाबा की नौटंकी ही ज्यादा दिखी है | जब बच्चे रोज TV मैं राहुल बाबा की महानता का बखान सुनते हैं तो उनके मन मैं यही बात बैठती होगी की साल मैं २-४ दिन गरीबों के घर सोने को ही समाज सेवा कहते हैं | पुस्तकों मैं भी तो बस नेहरु-इंदिरा-राजीव-सोनिया-प्रियंका ही पढाया जाता है … आने वाली पीढी कैसे जानेगी सच्ची सेवा क्या होती है?अभी अभी ये भी देखा है | सर्म के मारे सर झुक जाता है – http://dhankedeshme.blogspot.com/2009/10/blog-post_09.html

  27. October 9, 2009 at 4:27 pm

    नमन।ऐसे ही हजार सूरजों से धरती पर ऊष्मा कायम है।ऐसे लोग ही हमें चेताते हैंप्रेरणा देते हैं कि'धनपशु' न बनो।मनुष्य बने रहो।आभार।

  28. Pratik Jain said,

    October 9, 2009 at 4:45 pm

    सुरेशजी इस पोस्‍ट के लि‍ये आपको बहुत-2 धन्‍यवाद।और ऐसे महान कर्मयोगी डाक्‍टर रवीन्‍द्रजी को मेरा प्रणाम।

  29. October 9, 2009 at 4:46 pm

    इतने शानदार ब्लाग के लिए आपको बधाई।डा रविद्र कोल्हें को उनके त्याग एवं समर्पण के लिए नमन।

  30. October 9, 2009 at 5:03 pm

    महान कर्मयोगी डाक्‍टर रवीन्‍द्रजी को मेरा प्रणाम

  31. October 9, 2009 at 5:07 pm

    मेरे एक बुजुर्ग आजकल के डॉक्‍टर्स को डेकॉइट्स कहते हैं पर इनके बारे में सुनकर उनके मुंह से भगवान शब्‍द ही निकलेगा…. ऐसे लोगों के बारे में सुनता हूं तो मुंह से शब्‍द नहीं निकल पाते, जब कभी ऐसे सुखद आश्‍चर्यों से सामना होता है बहुत अच्‍छा लगता है धन्‍यवाद

  32. October 9, 2009 at 5:22 pm

    में सोचता हूँ की जाबाब ज़रूर दिया जाना चाहिए पर एक सांप्रदायिकता के टीले पर खड़े होकर दूसरी साम्प्रदायिकता का अंत नहीं किया जा सकता अपितु उसे बढावा ही दिया जा सकता है . उसका ज़बाब तो सेकुलर मंच पर कड़े होकर ही दिया जा सकता है

  33. October 9, 2009 at 5:32 pm

    एक सुन्दर आलेख के लिये बधाई…. आपने सही कहा बिल्कुल समाज सेवा ये है वो नही जो राहुल कर रहे हैं लेकिन एक बात है भारत के इतिहास में राहुल अकेला ऐसा राजनेता जिसने ये काम करने की हिम्मत की है….अब देखना ये है की कब वो सोने के बजाय इन जैसे गरीबों की हालत सुधारने के लिये काम करते हैं।"हमारे आगरा में भी एक छोटी-सी संस्था है जो इस तरह के काम करती है….उन्होने शहर के पिछ्डे इलाकों में तीन दवाखाने में बना रखें है….. इन दवाखानों में पर्चा बनाने के 5 रुपये लिये जाते है और दवा मुफ़्त दी जाती है…..डाक्टर की फ़ीस वगैरह सब इसमें शामिल है…..इसके संचालक मेरे चचा जान है, हर रविवार को मैं वहां जाकर वहां का हिसाब और स्टाक वगैरह देखता हूं।एक बार फ़िर से बधाई और मैं दुआ करता हूं की हिन्दुस्तान के लोगों में गरीबों के लिये भावनायें जागें और वो इनके बारे में भी कुछ सोचें और कुछ करेंडां रविन्द्र जी को सलाम

  34. October 9, 2009 at 5:38 pm

    सुरेशजी इस पोस्‍ट के लि‍ये आपको बहुत-2 धन्‍यवाद।और ऐसे महान कर्मयोगी डाक्‍टर रवीन्‍द्रजी को मेरा प्रणाम|

  35. October 9, 2009 at 5:54 pm

    Ashcharya hai aaj ke samay mein aisa dedication!डॉ कोल्हे के त्याग और समर्पण ko shat shat naman aur shubhakamnayen.Ishwar unhen lambi aayu aur achchha swasthy de.Aise dedicated vyakti hi auron ke liye bhi prerna hain.

  36. October 9, 2009 at 6:20 pm

    अजीब लगता है सारी प्रतिक्रियाओं को पढ़कर ! ऐसा कब होगा कि जब लोग ऐसी बातों पर आश्चर्यचकित न हों ! एक सामान्य सी बात लगे ! आज की आवाज

  37. October 9, 2009 at 6:32 pm

    अखिर ये दुनिया डा.काल्हे जैसे लोगों के कारण ही तो टिकी हुई है…..वर्ना तो न जाने कब की खत्म हो चुकी होती ।नमन है ऎसे कर्मयोगी को…जो कि सच्चे मायनों में "संत" कहलाने के हकदार हैं।

  38. October 9, 2009 at 7:45 pm

    सुरेश भाऊ मेळ्घाट मेरी पसंदीदा जगह है।मै अक्सर बरसात मे वंहा घूमने जाता हूं और इस साल भी गया था।ये मेरा दुर्भाग्य है कि मुझे वंहा जाकर भी डा रविंद्र के बारे मे पता नही चला।वाकई मेळ्घाट पिछ्डा इलाका है और वंहा दुर्गम ईलाके मे किसी को डाक्टरी का मेवा छोड कर सेवा करते देखना तपते मरूभूमी मे नखलिस्तान जैसा सुकून देने जैसी बात है।डा रविंद्र को शत-शत अभिनंदन।और हां लिखने के मामले मे तो हमने आपसे ही सीखा है कि जवाब कैसे दिया जाता है सो हम् भी संजय जी से सहमत है।

  39. October 10, 2009 at 12:34 am

    क्या ऐसे सेवाभावी लोग अभी भी इस धरती पर है …इतनी शानदार पोस्ट लिखने और इतने उच्च आदर्शों को जीने वाले श्री रविन्द्र कोहली जी का परिचय देने का बहुत आभार …दीपावली के पर्व पर अगरबत्ती की यह सुगंध दूर दूर तक फैले …बहुत शुभकामनायें ..!!

  40. October 10, 2009 at 3:53 am

    डॉ रवीन्द्र कोल्हे और उनके जज्बे को प्रणाम |अभी भी बहुत डा. है रविन्द्र जी जैसे जो गरीब मरीजो से फीस लेना तो दूर अपनी जेब से दवाई तक पैसे भी दे देते है |ऐसे एक डा. रामस्वरूप जाजू को मैंने देखा है जो गरीब मरीजो को अपनी जेब से दवाई खरीदने के पैसे तक दे दिया करते थे लेकिन नेताओं व सक्षम लोगो से अपनी फीस का एक पैसा भी नहीं छोड़ते थे बेशक वे उनका ट्रांसफर भी क्यों न करवा देते |

  41. रचना said,

    October 10, 2009 at 4:09 am

    bahishkaar karkae kuchh nahin hoga peth kyun deekhayaekrishan ne kehaa arjun sae naa pyaar deekha dushman sae yudh kar behtereen post aap hi likh sakto ho is uthal puthal mae bhi aur deewali haen phuljadii ko pataka mat samjhana kyuki agar Barack Hussein Obama ko nobel prize paasaktae haen to bhavishya kyaa haen om shanti ho sakaegi !!!!!

  42. October 10, 2009 at 4:10 am

    रवीन्द्र कोल्हे को शत शत नमन…और ऐसे जुझारु, समर्पित और प्रेरणादायी व्यक्तित्व से मिल्वाने के लिये आपको भी…

  43. RAJENDRA said,

    October 10, 2009 at 4:12 am

    dhanyavad – Dr. Kolhe ko naman

  44. October 10, 2009 at 5:29 am

    सुरेश भाई,मेरी समझ मैं तो कोई फ़ायदा नहीं है इसी पोस्ट लिखने का इस से क्या होगा ? हमें इन देवता तुल्य महा मानवों की जानकारी ही तो मिले गी, जिस की कामना कभी भी देवता नही करते, हम इसे लोगों की स्तुति करने के आलावा कर भी क्या सकते हैं? पोस्ट का लाभ तो तब होगा जब रक्त पिपासु पिस्सू समाज (डाक्टर वर्ग) का कोई भी जीव (इन को तो मानव कहना मानवता का भी अपमान होगा) आगे आ कर सार्विक्जनिक रूप से पूज्य डाक्टर साहब के पद चिन्हों चलने का प्राण लेगा. क्या वो दिन आये गा????????????????????????????

  45. safat alam said,

    October 10, 2009 at 5:47 am

    ऐसी चिंगाड़ी भी या रब तेरी खाकिस्तर में थीसुरेश साहिब! बहुत बहुत बधाई ऐसे सुन्दर पोस्ट के लिए। ऐसे लोग हमारे भारत के लिए आदर्श हैं।

  46. October 10, 2009 at 6:20 am

    डॉ रवीन्द्र कोल्हे ko salam………… is sunder post ke liye badhaai………

  47. October 10, 2009 at 6:38 am

    डा.रवीन्द्र कोल्हे से परिचय के लिए आभार. यही वे सच्चे सैनिक सपूत हैं जो इस देश को भारत बनाए हुए हैं..साधूवाद.

  48. Ajit said,

    October 10, 2009 at 7:15 am

    Shrimaan Kaka Shri,Is tarah ko koi hasti aaj ke samay mein sochna bhi sambhav nahi lagta.Doctor Kolhe Saahab ko shat koti pranaam. Aap ka lekh bhi atyant sateek hai.Badhai …

  49. October 10, 2009 at 8:04 am

    सुरेश भाई एक सच्चे कमुनिस्ट से मिलाये .आपका धन्यवाद !

  50. October 10, 2009 at 8:51 am

    Dr ravindra ji is best for nobel prize

  51. October 10, 2009 at 8:56 am

    Aise hi logo ki karna duniya mai abhi thori imaandaari aur neki bachi hui hai…Doctor saab ko bahut sari best wishes…behtreen post…

  52. Subu said,

    October 10, 2009 at 9:04 am

    Suresh ji ,mai aaj kai dino se blogs padh raha hoon , but aaj tak mujhe aisa hi lagta raha ki ye sab bekar hai kyonki jo bhi yeha blog likh raha hai , unke pass koi saccha topic hi nahi, koi kisi ka majak bana raha hai to koi kisi ki kamiyan gina raha, kya sirf itna hi hai blogging?mujhe lagta hai humko aapne bichar ya fir koi is tarah ki byaktitwa ki baat karni cahiye jo yatharth me sambhaw ho, aapne Dr. kohle ke baare me likhkar ye batayan ki abhi bhi aise log hai jo nishwarth hokar manav ki seva bhi karte hai, many-2 thanks for the post.

  53. October 10, 2009 at 10:08 am

    ऐसे महामानव से परिचय करवाने का आभार…बड़े हिम्मत की बात है ये तो…

  54. October 10, 2009 at 10:40 am

    शानदार पोस्ट! हमेशा की तरह.आपने कहा कि;"फ़िर भी इस बात से मैं असहमत हूं और रहूंगा कि गुमराह करने वाली, उन्मादी धार्मिक प्रचार वाली बातों का जवाब ही न दिया जाये… इग्नोर भी एक हद तक ही किया जा सकता है, जब कोई आपके धर्म को, आपके धर्मग्रंथों को, आपके वेदों-पुराणों को दूसरों के मुकाबले श्रेष्ठ बताने लगे, उसके बारे में दुष्प्रचार करे, कुतर्क करे… तब निश्चित रूप से उसका जवाब दिया जाना चाहिये, तरीका अलग-अलग हो सकता है, लेकिन पीछे हटना या भागना शोभा नहीं देता…"आपका कहना बिलकुल सच है. यह नहीं भूलना चाहिए कि;अत्याचार सहन करने का कुफल यही होता है पौरुष का आतंक मनुज कोमल होकर खोता है

  55. October 10, 2009 at 11:16 am

    समाज की इन अगरबत्ती की सुगन्ध हम तक पहुंचाने के लिये आपका बहुत-बहुत धन्यवादपूज्यनीय रवीन्द्र कोल्हे जी को कोटि-कोटि प्रणाम

  56. October 10, 2009 at 11:59 am

    मानवता अभी जिन्दा है…रवीन्द्र कोल्हे जी का हार्दिक अभिनन्दन!

  57. October 10, 2009 at 12:24 pm

    अवधिया जी और मिश्रा जी से सहमत. समय आ गया है कि कोई एक कहे तो उसे सौ सुनाई जायें. महात्मा गांधी के आदर्श तभी तक औचित्य रखते हैं जब तक सामने वाला भी उन्हें माने. काशिफ जी के चचा जान की तरह हर शहर में पांच रुपये रोज वाले डाक्टर मिल जायेंगे. लेकिन एक एम०डी० जो आज की तारीख में करोड़ों में खेल सकता है, आदिवासियों की सेवा कर रहा है, उसके लिये हजारों नोबेल, गांधी, नेहरू, भारत रत्न कुर्बान. आपके धन्यवाद कि आपने इस महान शख्सियत से मिलवाया. कमाल है कि ऐसे भी डाक्टर हैं अन्यथा अब डाक्टर के नाम से ही लोग डर जाते हैं, यह पहले हिसाब लगाने लगते हैं कि इस बार कौन सी चीज बेचनी पड़ेगी. मैंने खुद देखा है कि मरने के बाद भी वेन्टीलेटर पर तीन दिन तक रखे रहे एक मृतक को एक निजी अस्पताल के प्रख्यात डाक्टर.

  58. पंकज said,

    October 10, 2009 at 4:58 pm

    कितनी विडम्बना है, बराक ओबामा बिना कुछ किये नोबिल पुरस्कार जीत जाते हैं और रवीन्द्र कोल्हे जी जैसे कर्मयोगी गुमनाम…

  59. October 11, 2009 at 9:45 pm

    अच्छी जानकारी | वरना आजकल कौन ऐसे अनछुए पहलुओं पर लिखता है | ऐसे और भी कई लोग है जिनकी तरफ शायद ही कभी हमारे बिजी रहने वाले मीडिया का ध्यान जाता होगा |वैसे सर, हमारे यहाँ झुंझुनू में भी ऐसे ही एक डाक्टर हैं, जिनका नाम है डाक्टर जीवन चन्द जैन, जिनकी फीस पिछले 20 साल से केवल 10 रूपये है | पहली बार जाने पर फीस 10 रूपये और और उस पर्ची को दुबारा साथ लेकर जाने पर 5 रूपये है | लेकिन पर्ची का वलिडेशन एक साल तक ही होता है | दुबारा नयी साल होने पर 10 लगते हैं | उनका नियम है की वो, मरीज जिस क्रम में आते हैं, उसी क्रम में उन्हें देखते हैं, चाहे कितना ही जरूरी या महत्वपूर्ण व्यक्ति आ जाये वे अपने क्रम से ही देखते हैं | 20 साल पहले तक वे एक सरकारी अस्पताल में काम करते थे, एक दिन हमारे यहाँ के जाने-माने विधायक पहुँच गए, डाक्टर जैन ने पहले देखने से मना कर दिया और क्रम से ही आने को कहा | विधायक साहब को इतना टाइम कहा उनको तो पहले देखना जरूरी है, लेकिन डाक्टर जैन ने मना कर दिया और नहीं माने | तो फिर डाक्टर जैन को अस्पताल छोड़ना पड़ा क्योंकि विधायक से पंगा लेकर वो सरकारी नौकरी कैसे बचा सकते थे |बाद में उन्होंने अपना अस्पताल खोला और तब से जबरदस्त अस्पताल चलता है उनका, और वही नियम हैं उनके आज भी और फीस भी वही 20 साल से लगातार चली आ रही है, और क्रम से ही पहले आने वाले को पहले बाद में आने वाले को बाद में देखते हैं | वे काफी योग्य डाक्टर भी हैं, कई अन्य समकक्ष डाक्टरों को उनसे काफी दिक्कत रहती है, क्योंकि वे काफी सस्ते में मरीजों को देखते हैं |सिर्फ सस्ते में देखते ही नहीं, उनका प्रेस्क्रिप्सन सामान्यतः 100 के अन्दर तक हो जाता है | जबकि दुसरे डाक्टर सामान्यतः 300-500 से नीचे की दवाई नहीं लिखते और ये तो आप सबको पता ही है की आजकल दवाई भी डाक्टर के किसी भतीजे या साले की दुकान से ही मिलती है उस ब्रांड की दवाई और कहीं शहर में मिलती नहीं, लाचार आदमी को उस एक ही दूकान से खरीदना पड़ता है |

  60. October 11, 2009 at 9:51 pm

    @^ + 1डाक्टर जीवन चन्द जैन, अब काफी बूढा गए हैं, और जीवन की अंतिम संध्या के काफी नजदीक है | शहर के दुसरे कई डाक्टर गण तो उनकी मृत्यु की आस लगये हुए हैं की कब जीवन चन्द का जीवन समाप्त हो और कब उनकी आय का एक बड़ा स्रोत खुले |

  61. October 12, 2009 at 12:47 am

    डॉ रवीन्द्र कोल्हे जी को देश सेवा की अद्भुत मिसाल के लिए हार्दिक अभिनन्दन |सुरेश जी आपकी , अवधिया जी , मिश्र जी और भारतीय नागरिक जी की बातों को आगे बढाते हुए मैं भी कुछ शब्द कहना चाहूँगा | " यहाँ किसी को भी डरने की ज़रूरत नहीं है हम आपके साथ हैं | इन टामियों को अच्छी मार लगाने की ज़रूरत है |और मेरा एक निवेदन है उन सभी लोगों से जो हिंदी ब्लोगिंग को खतरे में बताकर टेसू बहाए जा रहे हैं , जब आप मुद्दों में उलझ नहीं सकते तो दूर रहिये नाहक ही अपनी राय देने की क्या आवश्यकता है ?सिर्फ इन्सान बन कर वहां सोचा जा सकता है जहाँ इंसानों का ही वास हो , शैतानो के साथ हैवानियत से ही निपटा जायेगा |अभिव्यक्ति अगर खतरे में पड़ जायेगी तो लोकतंत्र कैसे विकसित होगा चाहे मसला धर्म का हो या अधर्म का बहस ज़रूरी है ताकि मानवीयता विकसित की जा सके , अगर अब भी लगता है कि हिंदी ब्लोगिंग मात्र कविता , कहानियों और चापलूसियों के लिए है तो कम से कम अंग्रेजी और दूसरी भाषाओँ के ब्लोग्स पर भी घूम आइये | यदि तब भी ये सब गलत लगे तो रमे रहिये कविताओं , कार्टूनों और , प्रेरक प्रसंगों में लेकिन कभी जीवन में मत उतारियेगा | " || " सत्यमेव जयते " ||

  62. October 13, 2009 at 4:28 am

    भारतीय नागरिक जी,पहली बात मेरे चचा जान डाक्टर नही है… दुसरी बात इस दवाखाने में एक नही कई डाक्टर बैठते है और सब की स्पेश्लिटी अलग-अलग है…. सबके टाइम और दिन अलग है….जितने डाक्टर बैठते है उनमे से तीन एम.डी. और बाकी के एम.बी.बी.एस है… और उन डाक्टर्स को सैलरी हम अपने पास से देते है…

  63. October 16, 2009 at 6:05 pm

    suresh ji bahut hee prenaspad hai doctor sahab ka karya abhee hal me madhya pradesh me chanakya ke vanshaj tankhwh ke liye sarkar se gidgidate nazar aay. jab ki inhe rajdand ka prayog karke sarkar ko apne samne khade rahne ke liye vivash karna chahiye is vishy par koi post likhiye

  64. October 16, 2009 at 6:06 pm

    suresh ji bahut hee prenaspad hai doctor sahab ka karya abhee hal me madhya pradesh me chanakya ke vanshaj tankhwh ke liye sarkar se gidgidate nazar aay. jab ki inhe rajdand ka prayog karke sarkar ko apne samne khade rahne ke liye vivash karna chahiye is vishy par koi post likhiye

  65. October 22, 2009 at 5:06 pm

    suresh ji mai doctor sahab ke bare mai aapke is lekh ko apne samachar patr mai chhaapna chahta hoon.krapya aadesh dene ki krapa karen.

  66. March 19, 2010 at 5:01 am

    पहली बार आपके ब्लॉग को पढने का सुअवसर मिला .आपकी राष्ट्र के प्रति निष्ठा सराहनीय है .अंधविश्वासों के खिलाफ लड़ाई में मैं आपके साथ हूँ .कोई योग्य सेवा हो ,तो सदैव तत्पर हूँ .


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