इसीलिये रतन टाटा वन्दनीय और "सरकारी व्यवस्था" निन्दनीय हैं… Ratan Tata, 26/11 Terrorist Attack, Taj Hotel

कोई भी कर्मचारी अपनी जान पर खेलकर अपने मालिक के लिये वफ़ादारी और समर्पण से काम क्यों करता है? इसका जवाब है कि उसे यह विश्वास होता है कि उसका मालिक उसके हर सुख-दुख में काम आयेगा तथा उसके परिवार का पूरा ख्याल रखेगा, और संकट की घड़ी में यदि कम्पनी या फ़ैक्ट्री का मालिक उस कर्मचारी से अपने परिवार के एक सदस्य की भाँति पेश आता है तब वह उसका भक्त बन जाता है। फ़िर वह मालिक, मीडिया वालों, राजनीतिबाजों, कार्पोरेट कल्चर वालों की निगाह में कुछ भी हो, उस संस्थान में काम करने वाले कर्मचारी के लिये एक हीरो ही होता है। भूमिका से ही आप समझ गये होंगे कि बात हो रही है रतन टाटा  की।

26/11 को ताज होटल पर हमला हुआ। तीन दिनों तक घमासान युद्ध हुआ, जिसमें बाहर हमारे NSG और पुलिस के जवानों ने बहादुरी दिखाई, जबकि भीतर होटल के कर्मचारियों ने असाधारण धैर्य और बहादुरी का प्रदर्शन किया। 30 नवम्बर को ताज होटल तात्कालिक रूप से अस्थाई बन्द किया गया। इसके बाद रतन टाटा ने क्या-क्या किया, पहले यह देख लें –

1) उस दिन ताज होटल में जितने भी कर्मचारी काम पर थे, चाहे उन्हें काम करते हुए एक दिन ही क्यों न हुआ हो, अस्थाई ठेका कर्मचारी हों या स्थायी कर्मचारी, सभी को रतन टाटा ने “ऑन-ड्यूटी” मानते हुए उसी स्केल के अनुसार वेतन दिया।

2) होटल में जितने भी कर्मचारी मारे गये या घायल हुए, सभी का पूरा इलाज टाटा ने करवाया।

3) होटल के आसपास पाव-भाजी, सब्जी, मछली आदि का ठेला लगाने वाले सभी ठेलाचालकों (जो कि सुरक्षा बलों और आतंकवादियों की गोलाबारी में घायल हुए, अथवा उनके ठेले नष्ट हो गये) को प्रति ठेला 60,000 रुपये का भुगतान रतन टाटा की तरफ़ से किया गया। एक ठेले वाले की छोटी बच्ची भी “क्रास-फ़ायर” में फ़ँसने के दौरान उसे चार गोलियाँ लगीं जिसमें से एक गोली सरकारी अस्पताल में निकाल दी गई, बाकी की नहीं निकलने पर टाटा ने अपने अस्पताल में विशेषज्ञों से ऑपरेशन करके निकलवाईं, जिसका कुल खर्च 4 लाख रुपये आया और यह पैसा उस ठेले वाले से लेने का तो सवाल ही नहीं उठता था।

4) जब तक होटल बन्द रहा, सभी कर्मचारियों का वेतन मनीऑर्डर से उनसे घर पहुँचाने की व्यवस्था की गई।

5) टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंस की तरफ़ से एक मनोचिकित्सक ने सभी घायलों के परिवारों से सतत सम्पर्क बनाये रखा और उनका मनोबल बनाये रखा।

6) प्रत्येक घायल कर्मचारी की देखरेख के लिये हरेक को एक-एक उच्च अधिकारी का फ़ोन नम्बर और उपलब्धता दी गई थी, जो कि उसकी किसी भी मदद के लिये किसी भी समय तैयार रहता था।

7) 80 से अधिक मृत अथवा गम्भीर रूप से घायल कर्मचारियों के यहाँ खुद रतन टाटा ने अपनी व्यक्तिगत उपस्थिति दर्ज करवाई, जिसे देखकर परिवार वाले भी भौंचक थे।

8) घायल कर्मचारियों के सभी प्रमुख रिश्तेदारों को बाहर से लाने की व्यवस्था की गई और सभी को होटल प्रेसिडेण्ट में तब तक ठहराया गया, जब तक कि सम्बन्धित कर्मचारी खतरे से बाहर नहीं हो गया।

9) सिर्फ़ 20 दिनों के भीतर सारी कानूनी खानापूर्तियों को निपटाते हुए रतन टाटा ने सभी घायलों के लिये एक ट्रस्ट का निर्माण किया जो आने वाले समय में उनकी आर्थिक देखभाल करेगा।

10) सबसे प्रमुख बात यह कि जिनका टाटा या उनके संस्थान से कोई सम्बन्ध नहीं है, ऐसे रेल्वे कर्मचारियों, पुलिस स्टाफ़, तथा अन्य घायलों को भी रतन टाटा की ओर से 6 माह तक 10,000 रुपये की सहायता दी गई।

11) सभी 46 मृत कर्मचारियों के बच्चों को टाटा के संस्थानों में आजीवन मुफ़्त शिक्षा की जिम्मेदारी भी उठाई है।

12) मरने वाले कर्मचारी को उसके ओहदे के मुताबिक नौकरी-काल के अनुमान से 36 से 85 लाख रुपये तक का भुगतान तुरन्त किया गया। इसके अलावा जिन्हें यह पैसा एकमुश्त नहीं चाहिये था, उन परिवारों और आश्रितों को आजीवन पेंशन दी जायेगी। इसी प्रकार पूरे परिवार का मेडिकल बीमा और खर्च टाटा की तरफ़ से दिया जायेगा। यदि मृत परिवार ने टाटा की कम्पनी से कोई लोन वगैरह लिया था उसे तुरन्त प्रभाव से खत्म माना गया।

हाल ही में ताज होटल समूह के प्रेसिडेंट एचएन श्रीनिवास ने एक इंटरव्यू दिया है, जिसमें उन्होंने उस हमले, हमले के दौरान ताज के कर्मचारियों तथा हमले के बाद ताज होटल तथा रतन टाटा के बारे में विचार व्यक्त किये हैं। इसी इंटरव्यू के मुख्य अंश आपने अभी पढ़े कि रतन टाटा ने क्या-क्या किया, लेकिन संकट के क्षणों में होटल के उन कर्मचारियों ने “अपने होटल” (जी हाँ अपने होटल) के लिये क्या किया इसकी भी एक झलक देखिये –

1) आतंकवादियों ने अगले और पिछले दोनों गेट से प्रवेश किया, और मुख्य द्वार के आसपास RDX बिखेर दिया ताकि जगह आग लग जाये और पर्यटक-सैलानी और होटल की पार्टियों में शामिल लोग भगदड़ करें और उन्हें निशाना बनाया जा सके, इन RDX के टुकड़ों को ताज के कुछ सुरक्षाकर्मियों ने अपनी जान पर खेलकर हटाया अथवा दूर फ़ेंका।

2) उस दिन होटल में कुछ शादियाँ, और मीटिंग्स इत्यादि चल रही थीं, जिसमें से एक बड़े बोहरा परिवार की शादी ग्राउंड फ़्लोर पर चल रही थी। कई बड़ी कम्पनियों के CEO तथा बोर्ड सदस्य विभिन्न बैठकों में शामिल होने आये थे।

3) रात 8.30 बजे जैसे ही आतंकवादियों सम्बन्धी हलचल हुई, होटल के स्टाफ़ ने अपनी त्वरित बुद्धि और कार्यक्षमता से कई हॉल और कान्फ़्रेंस रूम्स के दरवाजे बन्द कर दिये ताकि लोग भागें नहीं तथा बाद में उन्हें चुपके से पिछले दरवाजे से बाहर निकाल दिया, जबकि खुद वहीं डटे रहे।

4) जिस हॉल में हिन्दुस्तान लीवर लिमिटेड की एक महत्वपूर्ण बैठक चल रही थी वहाँ की एक युवा होटल मैनेजमेंट ट्रेनी लड़की ने बिना घबराये दरवाजे मजबूती से बन्द कर दिये तथा इसके बावजूद वह कम से कम तीन बार पानी-जूस-व्हिस्की आदि लेने बाहर गई। वह आसानी से गोलियों की रेंज में आ सकती थी, लेकिन न वह खुद घबराई न ही उसने लोगों में घबराहट फ़ैलने दी। चुपके से एकाध-दो को आतंकवादी हमले के बारे में बताया और मात्र 3 मिनट में सबको किचन के रास्ते पिछले दरवाजे से बाहर निकाल दिया।

5) थॉमस जॉर्ज नामक एक फ़्लोर कैप्टन ने ऊपरी मंजिल से 54 लोगों को फ़ायर-एस्केप से बाहर निकाला, आखिरी व्यक्ति को बाहर निकालते समय गोली लगने से उसकी मौत हो गई।

6) विभिन्न वीडियो फ़ुटेज से ही जाहिर होता है कि कर्मचारियों ने होटल छोड़कर भागने की बजाय सुरक्षाकर्मियों को होटल का नक्शा समझाया, आतंकवादियों के छिपे होने की सम्भावित जगह बताई, बिना डरे सुरक्षाकर्मियों के साथ-साथ रहे।

ऐसे कई-कई असली बहादुरों ने अपनी जान पर खेलकर कई मेहमानों की जान बचाई। इसमें एक बात यह भी महत्वपूर्ण है कि ताज होटल का स्टाफ़ इसे अपनी ड्यूटी समझकर तथा “टाटा” की इज्जत रखने के लिये कर रहा था। 26 नवम्बर को यह घटना हुई और 21 दिसम्बर को सुबह अर्थात एक महीने से भी कम समय में होटल का पूरा स्टाफ़ (मृत और घायलों को छोड़कर) मेहमानों के समक्ष अपनी ड्यूटी पर तत्परता से मुस्तैद था।

जमशेदजी टाटा  ने होटल व्यवसाय में उस समय कदम रखा था जब किसी अंग्रेज ने उनका एक होटल में अपमान कर दिया था और उन्हें बाहर करवा दिया था। उन्होंने भारत में कई संस्थानों की नींव रखी, पनपाया और वटवृक्ष बनाया।  उन्हीं की समृद्ध विरासत को रतन टाटा आगे बढ़ा रहे हैं, जब 26/11 हमले के प्रभावितों को इतनी मदद दी जा रही थी तब एक मीटिंग में HR मैनेजरों ने इस बाबत झिझकते हुए सवाल भी किया था लेकिन रतन टाटा का जवाब था, “क्या हम अपने इन कर्मचारियों के लिये ज्यादा कर रहे हैं?, अरे जब हम ताज होटल को दोबारा बनाने-सजाने-संवारने में करोड़ों रुपये लगा रहे हैं तो हमें उन कर्मचारियों को भी बराबरी और सम्मान से उनका हिस्सा देना चाहिये, जिन्होंने या तो अपनी जान दे दी या “ताज” के मेहमानों और ग्राहकों को सर्वोपरि माना। हो सकता है कि कुछ लोग कहें कि इसमें टाटा ने कौन सा बड़ा काम कर दिया, ये तो उनका फ़र्ज़ था? लेकिन क्या किसी अन्य उद्योगपति ने अरबों-खरबों कमाने के बावजूद इतनी सारी दुर्घटनाओं के बाद भी कभी अपने स्टाफ़ और आम आदमी का इतना खयाल रखा है? इसमें मैनेजमेण्ट गुरुओं के लिये भी सबक छिपा है कि आखिर क्यों किसी संस्थान की “इज्जत” कैसे बढ़ती है, उसके कर्मचारी कम तनख्वाह के बावजूद टाटा को छोड़कर क्यों नहीं जाते? टाटा समूह में काम करना व्यक्तिगत फ़ख्र की बात क्यों समझी जाती है? ऐसे में जब रतन टाटा कहते हैं “We Never Compromise on Ethics” तब सहज ही विश्वास करने को जी चाहता है। एक घटिया विचार करते हुए यदि इस इंटरव्यू को टाटा का “प्रचार अभियान” मान भी लिया जाये, तो अगर इसमें बताई गई बातों का “आधा” भी टाटा ने किया हो तब भी वह वन्दनीय ही है।

अब दूसरा दृश्य देखिये –

26/11 के हमले को एक वर्ष बीत चुका है, मोमबत्ती ब्रिगेड भी एक “रुदाली पर्व” की भाँति अपने-अपने घरों से निकलकर मोमबत्ती जलाकर वापस घर जा चुकी, “मीडियाई गिद्धों” ने 26/11 वाले दिन भी सीधा प्रसारण करके जमकर माल कमाया था, एक साल बाद पुनः “देश के साथ हुए इस बलात्कार” के फ़ुटेज दिखा-दिखाकर दोबारा माल कूट लिया है। इस सारे तमाशे, गंदी राजनीति और “सदा की तरह अकर्मण्य और सुस्त भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था” के बीच एक साल गुज़र गया। महाराष्ट्र सरकार और केन्द्र अपने आधिकारिक जवाब में यह मान चुके हैं कि 475 प्रभावित लोगों में से सिर्फ़ अभी तक सिर्फ़ 118 प्रभावितों को मुआवज़ा मिला है, रेल्वे के कई कर्मचारियों को आज भी प्रशस्ति-पत्र, नकद इनाम, और अनुकम्पा नियुक्ति के लिये भटकना पड़ रहा है। महाराष्ट्र चुनाव में “लोकतन्त्र की जीत”(?) के बाद 15 दिनों तक पूरी बेशर्मी से मलाईदार विभागों को लेकर खींचतान चलती रही, शिवराज पाटिल किसी राज्य में राज्यपाल बनने का इंतज़ार कर रहे हैं, आरआर पाटिल नामक एक अन्य निकम्मा फ़िर से गृहमंत्री बन गया, रेल्वे मंत्रालय कब्जे में लेकर बैठी ममता बैनर्जी के एक सहयोगी का 5 सितारा होटल का बिल लाखों रुपये चुकाया गया है, कसाब नामक “बीमारी” पर अभी तक 32 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं, आगे भी पता नहीं कितने साल तक होते रहेंगे (इतने रुपयों में तो सभी घायलों को मुआवज़ा मिल गया होता), केन्द्र के मंत्री चार दिन की “खर्च कटौती नौटंकी” दिखाकर फ़िर से विदेश यात्राओं में मगन हो गये हैं, उधर राहुल बाबा हमारे ही टैक्स के पैसों से पूरे देश भर में यात्राएं कर रहे हैं तथा “नया भारत” बनाने का सपना दिखा रहे हैं… तात्पर्य यह कि सब कुछ हो रहा है, यदि कुछ नहीं हो पाया तो वह ये कि एक साल बीतने के बावजूद मृतकों-घायलों को उचित मुआवज़ा नहीं मिला, ऐसी भ्रष्ट “व्यवस्था” पर लानत भेजने या थूकने के अलावा कोई और विकल्प हो तो बतायें।

जनता का वोट लेकर भी कांग्रेस आम आदमी के प्रति सहानुभूतिपूर्ण नहीं है, जबकि व्यवसायी होते हुए भी टाटा एक सच्चे उद्योगपति हैं “बिजनेसमैन” नहीं। तो क्या यह माना जाये कि रतन टाटा की व्यवस्था केन्द्र सरकार से अधिक चुस्त-दुरुस्त है? यदि हाँ, तो फ़िर इस प्रकार के घटिया लोकतन्त्र और हरामखोर लालफ़ीताशाही को हम क्यों ढो रहे हैं और कब तक ढोते रहेंगे?
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विषयान्तर – संयोग से पिछले वर्ष मेरे भतीजे का चयन कैम्पस इंटरव्यू में एक साथ दो कम्पनियों मारुति सुजुकी और टाटा मोटर्स में हुआ, मुझसे सलाह लेने पर मैंने उस समय निःस्संकोच उसे टाटा मोटर्स में जाने की सलाह दी थी, तब न तो 26/11 का हमला हुआ था, न ही यह इंटरव्यू मैंने पढ़ा था… आज सोचता हूँ तो लगता है कि मेरी सलाह उचित थी, टाटा अवश्य ही उसका खयाल रखेंगे…

Thanks Givind Day, Turkeys Killing, Bakrid, Goat Salughter, Muslims and Jews, Hindu Rituals and Cruelty, Nepal Government and Hinduism, New York Times, रतन टाटा, ताज होटल, मुम्बई हमला, 26/11 का आतंक, घायलों को मुआवज़ा, महाराष्ट्र और केन्द्र की कांग्रेस सरकारें, लालफ़ीताशाही, अफ़सरशाही, , Blogging, Hindi Blogging, Hindi Blog and Hindi Typing, Hindi Blog History, Help for Hindi Blogging, Hindi Typing on Computers, Hindi Blog and Unicode

47 Comments

  1. December 7, 2009 at 7:31 am

    लानत भेजने या थूकने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है……… अच्छी लगी आपकी यह पोस्ट……….आपको एक ब्रेकिंग न्यूज़ देनी है…….. ब्लॉग जगत के http://umdasoch.blogspot.com/ (सौरभ) और सलीम खान के बीच लखनऊ में जूतम पैजार हुई ….. वो भी सलीम खान के उल्टा सीधा लिखने पर….. अगर मैं नहीं होता तो मोटे ताज़े http://umdasoch.blogspot.com/ (सौरभ) शायद कुछ कर देते …वो तो कहिये….. कि मुझे खबर लग गई…….. और मैं पहुँच गया…….. पूरी डिटेल के लिए मेरी पोस्ट का इंतज़ार करिए…….. शाम तक………पर इन दोनों कि वजह से मेरी बड़ी फजीहत हुई…..

  2. December 7, 2009 at 7:36 am

    मैं व्यवसायिक समाज से हूँ, अतः ज्यादा भलीभाँती समझ सकता हूँ कि टाटा होने का क्या अर्थ है. चर्चा के अंतरगत जब रिलायस के विकास की चर्चा होती है मैं हमेशा कहता हूँ, मुझे टाटा का मार्ग पसन्द है.

  3. December 7, 2009 at 7:42 am

    अच्छा ,सार्थक लेख । स्पष्ट है कि रतन टाटा जी अपने समूह के मालिक नही अभिभावक की तरह हैं। मैं उनको प्रणाम करता हूं ।

  4. December 7, 2009 at 7:48 am

    लेख पढ़ते ही दो टिप्‍पणी आई, वकाई आपके लेखन का यह असर है। आज का लेख बहुत ही उम्दा और व्‍यवस्‍था पर प्रश्‍नचिन्‍ह लगाता हुआ है। रतन टाटा ने इस समय देश के लिये जो कुछ भी किया उसकी खबर आज आपके माध्‍यम से मिली। मोमबत्ती वाले स्‍टन्‍ट बंद होने चाहिये, कुछ कृत्‍य ऐसे होने चाहिये जैसे टाटा परिवार ने देश के समक्ष प्रस्‍तुत किया है। सरकार पर जितनी लानत भेजी जाये कम होगी।

  5. December 7, 2009 at 7:51 am

    मैं पहले टाटा समूह में सेवा दे चुका हूँ और मुझे इस बात का पूरा अनुभव है, वे अपने सहयोगियों को अपने परिवार का सम्मान देते हैं और उनका मैनेजमेन्ट भी।काश सभी व्यापारिक घराने टाटा के पद चिह्नों पर चलें।सरकार को गाली देने से कुछ नहीं होगा, इनको तो हमें ही कुछ करके जड़ से उखाड़ना होगा। क्योंकि हम जैसे लोगों ने ही इन्हें वहाँ बैठाया है।

  6. Kusum Thakur said,

    December 7, 2009 at 7:54 am

    टाटा समूह की एक खासियत है ,वे समाज सेवा में भी कभी पीछेनहीं रहते, साथ ही अपने कर्मचारियोंका भी ख्याल रखते है ।

  7. December 7, 2009 at 8:26 am

    आपका लेख पढ़कर बहुत अच्छा लगा. धन्यवाद

  8. December 7, 2009 at 8:26 am

    ये सता की गलियों में बैठे व्यभिचारी क्या रतन टाटा की बराबरी करेंगे ?

  9. कुश said,

    December 7, 2009 at 9:09 am

    इस बार तो आपने सेंटी कर दिया..

  10. December 7, 2009 at 9:11 am

    कर्तव्य और अधिकार एक दूसरे के पूरक हैं। हमारे देश में काम करवाने वाले काम करने वाले से कर्तव्य की अपेक्षा रखते हैं किन्तु उनके अधिकार से उन्हें वंचित रखना चाहते हैं। इसी प्रकार से अधिकतर काम करने वाले अपने कर्तव्य को तो भुला देते हैं किन्तु अपने अधिकार अपनी बपौती समझते हैं।जमशेद जी टाटा ने भी लोगों को उनका अधिकार देकर अपना कर्तव्य निभाया है।यदि हमारे देश में सभी लोग अपने कर्तव्य और अधिकार को समझें तो हमारे देश को समृद्ध बनने से कोई नहीं रोक सकता।

  11. रचना said,

    December 7, 2009 at 9:27 am

    us samay ki gm ki patni aur bacchey bhi issii hadsay mae nahin rahey par gm ne apni nahin hotel ki fikr kii thee

  12. SHASHI SINGH said,

    December 7, 2009 at 9:42 am

    टाटा स्टील की ऊर्जा की जरुरतों को पूरा करने के लिए कंपनी झारखंड में कुछ कोयला खादान भी चलाती है। मेरी कई नजदीकी रिश्तेदार वहां अपनी सेवा दे रहे हैं और कई अब रिटायर हो चुके हैं या स्वैच्छिक सेवानिवृति ले चुके हैं। स्वैच्छिक सेवानिवृति का जिक्र मैं इसलिये कर रहा हूं क्योंकि 90 के दशक में टाटा स्टील को उदारीकरण के दौर की चुनौतिओं का सामना करने के लिए कंपनी का आधुनिकीकरण रहा था। आधुनिकीकरण योजना पर पुराने दौर का मानव संसाधन भारी पड़ रहा था पर कंपनी ने कभी उन्हें बोझ नहीं समझा। उस अतिरिक्त मानव संसाधन के आत्मसम्मान और अतीत में उनकी सेवाओं का सम्मान करते हुये जो स्वैच्छिक सेवानिवृति प्रस्ताव पेश किये वे एक मिसाल हैं। जिस दौर में कोयला खादानों में काम करना युद्ध के मौर्चे पर काम करने से भी ज्यादा मुश्किल माना जाता था उस समय भी टाटा अपने मजदूरों के हितों के प्रति सजग था। शायद आपकों जानकार हैरानी हो कि आठ घंटे की शिफ्ट का ईजाद टाटा ने ही किया था जिसे बाद में भारत सरकार ने भी अपनाया। फेहरिस्त लंबी हो जायेगी… मूल बात यही है कि हमें उस भारतीय पर नाज़ है जो एक तरफ दुनिया की सबसे सस्ती यानी लखटकिया कार मुहैया कराने का देश से अपना वादा पूरा करता है वहीं दूसरी तरफ दुनिया की सबसे मंहगी कारों में से एक लैंड रोबर्स खरीदने का जिगरा दिखाता है।

  13. December 7, 2009 at 11:44 am

    …आदरणीय सुरेश जी,टाटा समूह और श्री रतन टाटा जी के बारे में जो आपने लिखा है उससे पूरी तरह सहमत… पर यहाँ पर यह भी कहूँगा कि ऐसे उद्योग समूह और उद्योगपति आज के भारत में अपवाद ही हैं।… बाकी के लिये तो… हमें अपना मुनाफा चाहिये… कर्मचारी और मुल्क जाये भाड़ में…

  14. vikas mehta said,

    December 7, 2009 at 12:09 pm

    bhut sunder lek uttm ati uttm kai din me likh kar bhi achha likha

  15. Dipti said,

    December 7, 2009 at 1:46 pm

    आपकी ये पोस्ट सच में बहुत ही अच्छी है। अगर इसे ना पढ़ती तो मुझे ये मालूम ही नहीं चलता कि टाटा ने क्या किया है। उस कंपनी ने जो कुछ भी किया वो वाकई काबिलें तारीफ है।

  16. RAJENDRA said,

    December 7, 2009 at 1:51 pm

    bahut achha laga main is baat se puri tarh sahmat hun – tata ka mukabala nahin sarkari vyavastha ek din is desh ke liye sabse badi trasdi sabit hogi

  17. December 7, 2009 at 2:20 pm

    रोचक! साम्यवादी, सेकुलरहे चौंचियाना बन्द कर चुके हैं शायद! पढ़ें – टाटा डकैत तो नहीं है!

  18. December 7, 2009 at 3:11 pm

    टाटा पर तो देश को गर्व है ।

  19. December 7, 2009 at 3:36 pm

    बढ़िया पोस्ट… टाटा का इस देश की उन्नति में बहुत बड़ा योगदान है। न केवल आर्थिक मोर्चे पर, बल्कि देश के गौरव और आत्मसम्मान के मोर्चे पर भी।

  20. December 7, 2009 at 4:37 pm

    हमेशा की तरह एक और सार्थक आलेख | टाटा और अन्य उद्योगपतियों में एक मूल अंतर यही है की जहाँ अन्य उद्योगपति शुद्ध लाभ से मतलब रखते हैं वहीँ टाटा समूह आम तौर पे लाभ के साथ साथ अपने सामाजिक दायित्व और मानवीय संवेदनाओं का ख्याल रखते हैं | जमशेदपुर के आस पास भी कई कल्याणकारी योजनायें टाटा द्वारा चलाई जा रही है |

  21. December 7, 2009 at 4:40 pm

    जहाँ तक जनता के पैसे लुटने की बात है तो हमारे नेता इसमें सबसे आगे हैं | राहुल बाबा भी नेता ही हैं…. और वो जनता के पैसे पे अपनी नेतागिरी ही चमका रहे हैं | राहुल को देश का नेता बतानेवाले मीडिया पे हंसी आती है …. | इन नेताओं को टाटा समूह से कुछ सीखना चाहिए …. पर अपने नेता ऐसा करेंगे नहीं |

  22. December 7, 2009 at 4:52 pm

    टाटा खानदान के बारे में बहुत कुछ सुन रखा है, ये भी उसी कड़ी में है. इसमें कुछ अंश भी प्रचार के लिए नहीं है. ये हमारे देश के सत्ताधारियों को दीखता ही कहाँ है, वे तो बस स्यापा करने में माहिर हैं या फिर चुनाओं में इन्हीं उद्योगपतियों से चन्दा मांगने में आगे हैं…………….

  23. December 7, 2009 at 5:04 pm

    ratan tata ko slaam .

  24. Common Hindu said,

    December 7, 2009 at 5:23 pm

    Hello Blogger Friend,Your excellent post has been back-linked inhttp://hinduonline.blogspot.com/– a blog for Daily Posts, News, Views Compilation by a Common Hindu- Hindu Online.

  25. December 7, 2009 at 7:11 pm

    ऐसे महान ब्यक्तित्व रतन जी को सल्यूट करता हूँ फिर क्यों ना लोग दुआ दे इन्हे…बहुत ही कारगर चर्चा..धन्यवाद

  26. RDS said,

    December 8, 2009 at 3:52 am

    टाटा की विचार भूमि और कर्म भूमि आदरणीय है । इसी प्रकार इस ब्लोग के आलेखों को बांचकर भी आश्वस्त हुआ जा सकता है कि यहां चिंताएं हैं तो चिंतक भी हैं । ब्लोगिंग समाजसेवा का एक महत्वपूर्ण माध्यम है और औछे मीडिया बिदूषकों को मुहतोड ज़वाब भी ।

  27. December 8, 2009 at 5:47 am

    बहुत दिनों बाद आपने बिना धर्म का सीधे छोंक लगाये उद्योगपति टाटा की प्रशंसा के पुल बांधे हैं मेरी दृष्टि में भी ये सब कुछ एक बेहतर प्रबन्धन का नमूना है। यदि कर्मचारी ही दूसरी जगह चले जाते तो होटल कैसे चालू होता! टाटा ने कैंसर अस्पताल बनवाया न कि बिड़ला की तरह मन्दिर बनवा कर अंध विश्वास को बढाया इसलिये भी वे प्रशसा के पात्र हैं। आप् थामस जार्ज की प्रशंसा करते समय उसका धर्म भूल गये इस बात के लिये आप भी प्रशंसा के पात्र हैं। आज सैकड़ों धर्म स्थलों के ट्रस्टों के पास अरबों का धन है जिन से हज़ारों हरामखोर ऐश कर रहे हैं किंतु वे पीड़ित शोषित के लिये कुछ नहीं करते। ऐसे अवसरों पर भी उनकी गांठ नहीं खुलती, उन्हें ऐसे अवसरों पर सहयोग के लिये विवश किया जाना चाहिये. जो लोग हत्यारे बापुओं और शंकराचार्यों के पक्ष में खड़े होते हैं उनकी भी निन्दा की जानी चाहिये. अंत में यही कह सकते हैं कि बिभिन्न पूंजी पतियों की तुलना में टाटा कुछ बेहतर हैं

  28. December 8, 2009 at 6:34 am

    @ वीरेन्द्र जैन, माफी चाहता हूं किंतु मुझे लगता है कि आप पूरी तरह से "सठियाए" आयु में प्रवेश कर गए हैं। इसीलिए बिना जाने-सुने-पढ़े कुछ भी बके जा रहे हैं। अगर आप अपने आपको बुद्धिजीवी (हालांकि आप जैसे लोग बुद्धि का प्रयोग कम और कलम घिसने का काम ज्यादा करते हैं) कहते हैं तो यहां अपनी गंदी मानसिकता का वमन करने से पहले जाकर कुछ अध्ययन कर लीजिए। और ऐसा नहीं हो सकता तो जाइए अब नाती-पोतों को खेलाइए। वीरेन्द्र जैन, शंकराचार्य या हिन्दू धर्मस्थलों के प्रति तुम्हारा घृणाभाव देखकर तुम्हे लानत-मलानत करने का जी चाहता है, लेकिन ऐसा नहीं करुंगा। तुमने कहा – "आज सैकड़ों धर्म स्थलों के ट्रस्टों के पास अरबों का धन है जिन से हज़ारों हरामखोर ऐश कर रहे हैं किंतु वे पीड़ित शोषित के लिये कुछ नहीं करते।"क्या कभी तुमने महावीर मंदिर, पटना के बारे में सुना है?? क्या उसके द्वारा स्थापित कैंसर अस्पताल के बारे में सुना है? महावीर ने ऐसे बहुत सारे सामाजिक सरोकार वाले प्रकल्प चला रखे हैं। जाके पहले देख लो। फिर अपना घटियापना दिखाना।और अगर ऐसा नहीं कर सकते तो थोड़ा सा इसे ही पढ़ लो-क) http://en.wikipedia.org/wiki/Mahavir_Mandir%5B%5BShri Mahavir Sthan Nyas SamitiMahavir Mandir Trusts is named as Shri Mahavir Sthan Nyas Samiti and monitors working & development of temple.The Trusts also runs number of human welfare organization like Mahavir Cancer Sansthan, patna[5] , Mahavir Vaatsalya Hospital and Mahavir Arogya Hospitaland several hospitals and orphanage in the Bihar. Trust has submitted its 2008-09 budget, which is of Rs 35.13 crore.]]ख) Mahavir Cancer Institute to Build Cancer Hospice in Hajipur –> http://www.patnadaily.com/news2008/aug/081608/cancer_hospice_in_hajipur.htmlग)Mahavir Mandir Trust to arrange marriages –> http://timesofindia.indiatimes.com/Cities/Patna/Mahavir-Mandir-Trust-to-arrange-marriages/articleshow/4536741.cmsघ) http://www.iradix.in/Details/Mahavir-Cancer-Sansthan-Patna.html8 December, 2009 11:31 AM

  29. December 8, 2009 at 6:42 am

    बाइ द वे वीरेन्द्र जैन, तुमने अब तक क्या किया है??? अपनी भीतर की गंदगी निकालने के अलावा??? होगे तुम कोई बड़े तीसमारखां….लेकिन अपनी हमारे पूजनीयों के बारे में तुम्हे अश्लील भाषा में बात करने का कोई हक नहीं है? अगर किसी एक व्यक्ति ने कुछ कर दिया तो तुम उसके आधार पर बहुवचनांत "बापुओं और शंकराचार्यों" शब्दों का प्रयोग करके सबको अपमानित नहीं कर सकते। और मियां वीरेन्द्र, तुम्हारा इशारा भी "किन बापुओं या शंकराचार्यों" की तरफ है, वह भी समझ में आ रहा है। हे दुष्ट, नराधम, पतित वीरेन्द्र !! जो बात तू कह रहा है, क्या उनके विरुद्ध तु ही अभियोग लगाएगा और तुरंत सजा भी सुनाएगा???है, तेरे में इतनी हिम्मत कि जामा मस्जिद के बुखारी, अबू आजमी जैसे पाकिस्तान के एजेंटों के खिलाफ कुछ कह सके??? \जा डूब मर, चुल्लु भर पानी में दुष्ट आदमी…………..

  30. December 8, 2009 at 6:46 am

    सुरेश जी और अन्य टिप्पणीकार बंधुओं से मैं माफी चाहता हूं कि आलेख के विषय पर टिप्पणी न देकर विषयांतर हो गया। हालांकि मेरा ऐसा स्वभाव नहीं है….लेकिन इस दुष्ट वीरेन्द्र जैन की बातों ने व्यथित कर दिया। इन जैसे गिरी हुई मानसिकता वाली का हमेशा एक ही ध्येय होता है, चाहे बात का संदर्भ कोई भी हो "खूंटा वही गड़ेगा" की तर्ज पर हिन्दुत्व को गरियाने का कोई अवसर नहीं छोड़ते।…….

  31. December 8, 2009 at 7:22 am

    shandaar… i'm proud to be a part of TATA family…

  32. SANJAY KUMAR said,

    December 8, 2009 at 8:02 am

    NOT ONLY THAT TATA WERE FORERUNNER IN IMPLEMENTING MANY WELFARE SCHEME AS PROVIDENT FUND, MEDICAL SCHEME, LEAVE ENCASHMENT, FREE HOUSING FOR EMPLOYEES, WELFARE SCHEME TO DEPENDENT OF EMPLOYEE DIED IN HARNESS AND MANY MORETHESE MEASURES WERE IMPLEMENTED IN EARLY 1900 UNDER BRITISH RULE .EXCEPT U.S.A AND FEW EUROPEAN COUNTRIES, THESE SCHEME NOT KNOWN TO EVEN MANY EUROPEAN CONTRIES INCLUDING ENGLAND.LATER, GUIDED BY ABOVE WELFARE MEASURES GOVT OF INDIA MADE SOME OF MEASURES STATUTORY FOR OTHER INDUSTRIES AND PSUs.

  33. December 8, 2009 at 10:51 am

    सुरेश जी नमस्ते,एक सुसंघठित जानकारी के साथ लेख पड़कर अच्छा लगा. इतने काबिल तो नहीं हैं पर रतन जी को बधाई देते हैं.सही कहा अपने हमे बिस्नेश्मन नहीं उद्योगपतियों की जरुरत है.और एक विनती है कि कोई ऐसा तरीका बताएं जिससे हिंदी में लम्बा लेख लिखा जा सके.

  34. Indra said,

    December 8, 2009 at 11:14 am

    TATA ही एक ऐसी निजी संस्था है जो ethics पर चल रही है. अगर TATA का इतिहास देखा जाये तो भारत सरकार कि शान भी फीकी हो जाएगी. Indian Airlines और United Insurence जैसी PSUs TATA की ही शुरू की हुई हैं. I.A.S. से ज्यादा T.A.S. के लोग efficient है. यही वज़ह है की कोई भी कर्मचारी होटल छोड़ कर नहीं भगा. Mumbai police में तो अभी तक आरोप प्रत्यारोप चल रहे हैं. TATA ने अगर धन कमाया है तो राष्ट्र और समाज को लौटाया भी है. TATA समूह कभी social रेस्पोंस्बिलिटी से नहीं भागा. जबकि और घरानों का तो उद्देश्य सिर्फ पैसा कमाना है और मंदी के नाम पर छटनी करना.

  35. uthojago said,

    December 8, 2009 at 11:21 am

    Ratan Tata is great statesman, not only businessman

  36. cmpershad said,

    December 8, 2009 at 11:35 am

    राष्ट्रकरण और निजीकरण के अंतर का सुंदर उदाहरण प्रस्तुत किया है। बधाई॥

  37. December 8, 2009 at 11:37 am

    करीब अडतीस वर्षों के टाटा घराने में कार्यकाल के बाद मेरे पिताजी अवकाशप्राप्त कर चुके हैं और अठारह वर्ष पति ने इस घराने में कार्य किया….हमने देखा है कि इथिक्स को यह घराना कितना महत्त्व देता है… "वी डोंट कोम्प्रोमैज विथ इथिक्स" गलत नहीं कहा रतन टाटा ने….देशी विदेशी ओद्योगिक घरानों में आज विश्व में इन सा सिद्धांतवादी और समाजसेवी एक भी औद्योगिक घराना नहीं….लेकिन तथाकथित देश के रहनुमाओं को इनसे सीखने की क्या पडी है…पके चिकने घड़ों पर लाख कर भी मिटटी थोड़े न चढ़ाई जा सकती है…आपको इस सार्थक आलेख के लिए साधुवाद देती हूँ…..

  38. aarya said,

    December 8, 2009 at 11:52 am

    सुरेश जीसादर वन्देहार बार कि तरह बढ़िया लेख,रत्नेश त्रिपाठी

  39. anitakumar said,

    December 8, 2009 at 5:31 pm

    जब जे आर डी टाटा ने रतन टाटा को अपना उत्तराधिकारी घोषित करते हुए टाटा की बागडोर उन्हें सौंपी थी तो बहुत से लोगों को लगा था कि ये गलत निर्णय है लेकिन आज आप का लेख ही साबित कर रहा है कि जे आर डी टाटा सही थे। मेरी भी कई सहेलियों के पति टाटा पावर में काम करते हैं और टाटा के ऐसे किस्से जो आप ने बताये हैं हमने अक्सर सुने हैं। आज तक हमने किसी भी टाटा कर्मचारी को असंतुष्ट नहीं देखा। इस पोस्ट के लिए आभार

  40. December 8, 2009 at 7:43 pm

    @दिवाकर मणि जी आपने बिलकुल सटीक जवाब वीरेंदर जी को दिया है | दरअसल मैं वीरेंद्र जैन बहुत गन्दी और बेसर्म चीज है …. किसी बात का कोई असर नहीं होता इनपे ….. ये कांग्रेस और मैडम के पक्के चमचे भर हैं | पत्रकारिता का चादर ओढ़ सबों को चकमा देने का भरसक प्रयास रहता है इनका | एक बार टिप्पणी करने के बाद दम दबा के भाग जाते हैं …ये वीरेंद्र जैन वही सक्स है जिसने भाजपा के खिलाफ ३०० आलेख लिखे हैं और कांग्रेस की चमचागिरी मैं भी शायद ४००….. |

  41. ASHWANI JAIN said,

    December 11, 2009 at 2:55 pm

    @ वीरेन्द्र जैन, माफी चाहता हूं किंतु मुझे लगता है कि आप पूरी तरह से "सठियाए" आयु में प्रवेश कर गए हैं।

  42. December 13, 2009 at 1:15 am

    इस बेहद ज्ञानवर्धक आलेख को थोडा देर से पढा…पर पढ कर अच्छा लगा कि हमारे देश में हमारी संस्कृति के ध्वजवाहक कम से कम टाटा समूह तो है । इस आलेख पर टिप्पणियाँ और भी मज़ेदार हैं….. कॉंग्रेस के कुकुर कहीं भी टांग उठा देते हैं आदत से लाचार हैं..उन्हें उनकी पशुता के लिए क्षमा किया जाए । टाटा आदर्श व्यवसाय के प्रतीक हैं अन्य व्यापारियों को उन से सीख लेनी चाहिए ।

  43. December 15, 2009 at 9:45 pm

    गुजरात में नैनो के सयंत्र के लिए अपनी जमीन देने वाले एक किसान ने अंगरेजी डी एन ए अखबार को कहा था कि ''चौरानवे के अकाल में जब हमारी गाये मर रही थी तब जमशेदजी टाटा ने १००० रुपये देकर उनको नया जीवन दिया था. और उसी टाटा को जमीन देते हुए हम अपना कर्ज और फर्ज निभा रहे हैं. जो हमारे लिए गर्व की बात है. टाटा ने हमें जमीन के बदले भरपूर धन दिया है, लेकिन अगर वह मुफ्त में ले लेते तो भी हम उनको खुशी-खुशी दे देते.'' शायद यह बयान ही काफी है कि टाटा क्या है और लोगो के दिलो में इतने सम्मानित क्यों है.

  44. December 24, 2009 at 10:00 am

    मैं जितना जानता हूँ आज तक सिर्फ रतन टाटा जी ने ही मुझे प्रभावित किया है ..

  45. Narendra said,

    May 21, 2010 at 2:16 pm

    I am very much impressed the way RATAN ji has acted at the time of need , so he is not only "friend indeed" rather deserves BHARAT RATNNP Tewari Kuwait

  46. July 23, 2011 at 5:40 pm

  47. July 23, 2011 at 5:41 pm


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