JNU के प्रोफ़ेसर आरक्षण नहीं चाहते, वामपंथियों के पाखण्ड का एक और उदाहरण… … Reservation in JNU, JNU and Communists, Caste system and Communist

JNU की एकेडेमिक काउंसिल के 30 प्रोफ़ेसरों ने कुलपति बीबी भट्टाचार्य से लिखित में शिकायत की है कि विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर और असोसियेट प्रोफ़ेसरों के लिये 149 पदों के लिये आरक्षण नहीं होना चाहिये। यह सुनकर उन लोगों को झटका लग सकता है, जो वामपंथियों को प्रगतिशील मानते हों, जबकि हकीकत कुछ और ही है। अपने बयान में प्रोफ़ेसर बिपिनचन्द्र कहते हैं, “असिस्टेंट प्रोफ़ेसर से ऊपर के पद के लिये आरक्षण लागू करने से इस विश्वविद्यालय की शिक्षा का स्तर गिरेगा… और यह संस्थान थर्ड-क्लास संस्थान बन जायेगा…” (अर्थात प्रोफ़ेसर साहब कहना चाहते हैं कि आरक्षण की वजह से स्तर गिरता है, और जिन संस्थानों में आरक्षण लागू है वह तीसरे दर्जे के संस्थान बन चुके हैं)… एक और प्रोफ़ेसर साहब वायके अलघ फ़रमाते हैं, “जेएनयू का स्टैण्डर्ड बनाये रखने के लिये आरक्षण सम्बन्धी कुछ मानक तय करने ही होंगे, ताकि यह यूनिवर्सिटी विश्वस्तरीय बनी रह सके…” (हा हा हा हा, कृपया हँसिये नहीं, राजनीतिक अखाड़ा बनी हुई, भाई-भतीजावाद से ग्रस्त और भारतीय इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने वाली नकली थीसिसों की यूनिवर्सिटी पता नहीं कब से विश्वस्तरीय हो गई…)। अब दो मिनट के लिये कल्पना कीजिये, कि यदि यही बयान भाजपा-संघ के किसी नेता ने दिया होता तो मीडिया को कैसा “बवासीर” हो जाता। (खबर यहाँ पढ़ें… http://www.outlookindia.com/article.aspx?263782 )

जब भाजपा के नये अध्यक्ष गडकरी ने कार्यभार संभाला और नई टीम बनाई तो अखबारों, मीडिया और चैनलों पर इस बात को लेकर लम्बी-चौड़ी बहसें चलाई गईं कि भाजपा ब्राह्मणवादी पार्टी है और इसमें बड़े-बड़े पदों पर उच्च वर्ग के नेताओं का कब्जा है तथा अजा-जजा वर्ग को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिलता। आईये जरा एक निगाह डाल लेते हैं वामपंथी नेतृत्व के खासमखास त्रिमूर्ति पर – प्रकाश करात (नायर क्षत्रिय), सीताराम येचुरी (ब्राह्मण), बुद्धदेब भट्टाचार्य (ब्राह्मण), अब बतायें कि क्या यह जातिवादी-ब्राह्मणवादी मानसिकता नहीं है? वामपंथियों के ढोंग और पाखण्ड का सबसे अच्छा उदाहरण केरल में देखा जा सकता है, जहाँ OBC (एझावा जाति) हमेशा से वामपंथियों का पक्का वोट बैंक और पार्टी की रीढ़ रही है, लेकिन जब-जब भी वहाँ पार्टी को बहुमत मिला है, तब-तब इन्हें पीछे धकेलकर किसी उच्च वर्ग के व्यक्ति को मुख्यमंत्री की कुर्सी दी गई है। केरल में कम्युनिस्ट आंदोलन की प्रमुख नेत्री केआर गौरी (जो सबसे अधिक समय विधानसभा सदस्या रहीं) मुख्यमंत्री पद के लिये कई बार उपयुक्त पाये जाने के बावजूद न सिर्फ़ पीछे कर दी गईं बल्कि उन्हें “पार्टी विरोधी गतिविधियों” के नाम पर पार्टी से भी निकाला गया। इसी प्रकार वर्तमान मुख्यमंत्री अच्युतानन्दन भी पिछड़ा वर्ग से (50 साल के कम्युनिस्ट शासन के पहले पिछड़ा वर्ग मुख्यमंत्री) हैं, लेकिन जिस दिन से उन्होंने पद संभाला है उस दिन से ही किसी बाहरी व्यक्ति नहीं, बल्कि पार्टी के सदस्यों ने ही उनकी लगातार आलोचना और नाक में दम किया गया है और उन्हें अपमानजनक तरीके से पोलित ब्यूरो से भी निकाला गया है, लेकिन फ़िर भी अकेली भाजपा ही ब्राह्मणवादी पार्टी है? मजे की बात तो यह है कि “धर्म को अफ़ीम” कहने वाले नास्तिक ढोंगियों (अर्थात वामपंथियों) की पोल इस मुद्दे पर भी कई बार खुल चुकी है, जब इनकी पार्टी के दिग्गज कोलकाता के पूजा पाण्डालों या अय्यप्पा स्वामी के मन्दिर में देखे गये हैं, फ़िर भी आलोचना भाजपा की ही करेंगे।

इसी प्रकार बंगाल के तथाकथित “भद्रलोक” कम्युनिस्टों को ही देख लीजिये, वहाँ कितने पिछड़ा वर्ग के मुख्यमंत्री हुए हैं? उच्च वर्ग हो या अजा-जजा वर्ग के बंगाली हों, बांग्लादेशी मुसलमानों द्वारा कम से कम 9 जिलों में लगातार उत्पीड़ित किये जा रहे हैं, लेकिन दूसरों को जातिवादी बताने वाले पाखण्डी वामपंथियों की कानों पर जूँ भी नहीं रेंगती। सन् 2008 में कम्युनिस्ट कैडर द्वारा पत्नी और बच्चों के सामने एक दलित युवक के गले में टायर डालकर उसे जला दिया गया था जिसकी कोई खबर किसी न्यूज़ चैनल या अखबार में प्रमुखता से नहीं दिखाई दी।

पिछले कुछ दिनों से मोहल्ला सहित 2-4 ब्लॉग्स पर वर्धा के हिन्दी विवि के प्रोफ़ेसर अनिल चमड़िया (जो कि बेहतरीन लिखते हैं, विचारधारा कुछ भी हो) को निकाले जाने को लेकर बुद्धिजीवियों(?) में घमासान मचा हुआ है… जिनमें से कुछ “नेतानुमा प्रोफ़ेसर” हैं, कुछ “पत्रकारनुमा नेता” हैं और कुछ “परजीवीनुमा बुद्धिजीवी” हैं… और हाँ कुछ वामपंथी है तो कुछ दलितों के कथित मसीहा भी… कुल मिलाकर ये कि उधर जमकर “भचर-भचर” हो रही है…(अच्छा हुआ कि मैं बुद्धिजीवी नहीं हूं), लेकिन जेएनयू (JNU) के प्रोफ़ेसर अपने संस्थान में आरक्षण नहीं चाहते… इस महत्वपूर्ण बात पर कोई बहस नहीं, कोई मीडिया चर्चा नहीं, किसी चैनल पर कोई इंटरव्यू नहीं… ऐसे होते हैं दोमुंहे और “कब्जाऊ-हथियाऊ” किस्म के वामपंथी…। सच बात तो यह है कि बरसों से जुगाड़, चमचागिरी और सेकुलरिज़्म के तलवे चाट-चाटकर जो प्रोफ़ेसर जेएनयू में कब्जा जमाये बैठे हैं उन्हीं को आरक्षण नहीं चाहिये। यदि यह बात किसी हिन्दू संगठन या भाजपा ने कही होती तो अब तक इन्ही सेकुलरों का पाला हुआ मीडिया “दलित विमर्श” को लेकर पता नहीं कितने सेमिनार करवा चुका होता… लेकिन मामला JNU का है जो कि झूठों का गढ़ है तो अब क्या करें…।
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एक अनुरोध – जब तक मीडिया का हिन्दुत्व विरोधी रवैया जारी रहेगा, जब तक मीडिया में हिन्दू हित की खबरों को पर्याप्त स्थान नहीं मिलता, ऐसी खबरों, कटिंग्स, ब्लॉग्स, लेखों आदि को अपने मित्रों को अधिकतम संख्या में फ़ेसबुक, ऑरकुट, ट्विटर आदि पर “सर्कुलेट” करके नकली सेकुलरिज़्म और वामपंथियों का “पोलखोल जनजागरण” अभियान सतत चलायें…

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25 Comments

  1. February 10, 2010 at 9:53 am

    और इनका ताजा पाखण्ड है पश्चिम बंगाल में वोट बैंक के लिए १०% आरक्षण का प्रावधान !

  2. February 10, 2010 at 9:56 am

    एक कहावत है, "आप (खूद) बाबाजी बैंगन खाए, दुसरों को दे (न खाने का) उपदेश"तो यह तो सदा से ही ज्ञात है कि दोमूँह वाले धूर्त का उदाहरण देना हो तो वामपंथियों जैसा उदाहरण खोजे नहीं मिलेगा. हर देशविरोधी काम में इनका सक्रिय योगदान मिलेगा. चीन के आक्रमण के समय इनका रवैया हो या बंगलादेशियों को पनाह देने का. लाल-आतंक फैलाना हो या जैहादियों को पुचकारना. मगर जब बात खूद पर आती है…."चोलबे ना…"

  3. सुमो said,

    February 10, 2010 at 11:42 am

    एसा कैसे हो सकता है! कोई इतना पाखंडी और ढोंगी भी हो सकता है!

  4. Harish Bist said,

    February 10, 2010 at 12:29 pm

    बंगाल की साम्यवादी सरकार धर्म के आधार पर मुसलमानो को आरक्षण देना चाहती हॆ। लगता हॆ वामपंथी भारत का समाजिक तानाबाना छिन्न-भिन्न कर देना चाहते हॆं।धर्म के आधार पर विभाजन भारत पहले भी झेल चुका हॆ। ऒर जाने कितने विभाजन यह महान भूमी धर्म के आधार अपने सीने पर खायेगी। अगर बंगाल मे यह विघटनकारि साजिस सफ़ल हो जाती हॆ तो इसके परिणाम बहुत खतरनाक होगे। भारत मे तो कई राजनेतिक दल हॆ। जिनका एकमात्र राजनॆतिक दर्शन ही मुसलिम तुष्टीकरण रहा हॆ। वह तो सच्चर कमेटी का रोना रोकर मुसलमानो को आरक्षण खॆरात की तरह बाटेगे। इसलिए हर राष्ट्र्वादी भारतिय का धर्म हॆ कि इसआत्मघाती सोच व कोशिस का विरुध करे।

  5. Harish Bist said,

    February 10, 2010 at 12:29 pm

    बंगाल की साम्यवादी सरकार धर्म के आधार पर मुसलमानो को आरक्षण देना चाहती हॆ। लगता हॆ वामपंथी भारत का समाजिक तानाबाना छिन्न-भिन्न कर देना चाहते हॆं।धर्म के आधार पर विभाजन भारत पहले भी झेल चुका हॆ। ऒर जाने कितने विभाजन यह महान भूमी धर्म के आधार अपने सीने पर खायेगी। अगर बंगाल मे यह विघटनकारि साजिस सफ़ल हो जाती हॆ तो इसके परिणाम बहुत खतरनाक होगे। भारत मे तो कई राजनेतिक दल हॆ। जिनका एकमात्र राजनॆतिक दर्शन ही मुसलिम तुष्टीकरण रहा हॆ। वह तो सच्चर कमेटी का रोना रोकर मुसलमानो को आरक्षण खॆरात की तरह बाटेगे। इसलिए हर राष्ट्र्वादी भारतिय का धर्म हॆ कि इसआत्मघाती सोच व कोशिस का विरुध करे।

  6. Harish Bist said,

    February 10, 2010 at 12:29 pm

    बंगाल की साम्यवादी सरकार धर्म के आधार पर मुसलमानो को आरक्षण देना चाहती हॆ। लगता हॆ वामपंथी भारत का समाजिक तानाबाना छिन्न-भिन्न कर देना चाहते हॆं।धर्म के आधार पर विभाजन भारत पहले भी झेल चुका हॆ। ऒर जाने कितने विभाजन यह महान भूमी धर्म के आधार अपने सीने पर खायेगी। अगर बंगाल मे यह विघटनकारि साजिस सफ़ल हो जाती हॆ तो इसके परिणाम बहुत खतरनाक होगे। भारत मे तो कई राजनेतिक दल हॆ। जिनका एकमात्र राजनॆतिक दर्शन ही मुसलिम तुष्टीकरण रहा हॆ। वह तो सच्चर कमेटी का रोना रोकर मुसलमानो को आरक्षण खॆरात की तरह बाटेगे। इसलिए हर राष्ट्र्वादी भारतिय का धर्म हॆ कि इसआत्मघाती सोच व कोशिस का विरुध करे।

  7. February 10, 2010 at 12:49 pm

    क्या बोला जाए इन धूर्तों के बारे में ….

  8. February 10, 2010 at 1:03 pm

    आपके आलेख के हर बिंदु से सहमत किंतु यह कथन कि "भाई-भतीजावाद से ग्रस्त और भारतीय इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने वाली नकली थीसिसों की यूनिवर्सिटी पता नहीं कब से विश्वस्तरीय हो गई…" से थोड़ा-सा असहमत हूं. हालांकि आपका तात्पर्य भारतीय इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने वाली नकली थीसिसों की यूनिवर्सिटी से है, फिर भी यह अपने अंदर नकली थीसिसों की यूनिवर्सिटी को भी समाहित कर लेता है. JNU वाला हूं ना, इसीलिए बात में से थोड़ी बात निकाल ली… 🙂

  9. February 10, 2010 at 2:30 pm

    आरक्षण के मसले पर शिक्षक संगठन ओर वामपंथी निश्चित तौर पर दुमुँही बात करते हैं… अपने अनुभव से कह रहा हूँ। दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय में भी अभी तक प्रोफेसर तथा एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर आरक्षण लागू नहंी करवाया जा सका है।

  10. February 10, 2010 at 3:10 pm

    मुझे तो लगता है कि बहुत दुर्लभ सा दृश्य है जब वामपन्थी वर्ग से एक ऐसी बात निकली है जिसे भाजपा वाले भी सुनकर प्रसन्न हो रहे होंगे। आपने यह नहीं बताया कि आपके विचार से देश के उच्च संस्थानों जैसे IIT, AIIMS CDRI NBRI, CIMAP इत्यादि मे जातिगत आरक्षण होना चाहिए कि नहीं। अपने विरोधी को गाली देने के अलावा कुछ रचनात्मक बातें भी आती तो अच्छा होता। वामपन्थी ढोंग तो अब सर्वविदित हो गया है।

  11. February 10, 2010 at 4:24 pm

    आरक्षण या तो सभी जगह होना चाहिये या फिर बिल्कुल नहीं. एक्सीलेंस की आवश्यकता कहां नहीं होती? आरक्षण की व्यवस्था और आवश्यकता छुआछूत के कारण अभिशप्त जीवन बिता रहे लोगों के लिये थी, जिसका पूरा दुरुपयोग वोट बैंक बनाने के लिये की गयी.जो व्यक्ति ए अथवा बी ग्रुप में आ गया, उसके स्थान पर अन्य पात्र व्यक्ति को सुविधा मिलना चाहिये थी लेकिन यह नहीं हुई, जिन्हें मिली उन्होंने काकस बनाकर अपनी ही जाति के गरीबों को फिर से दलित बना दिया और खुद सवर्ण बन गये.जिस व्यक्ति के घर में पेट भरने के लिये बच्चों समेत सभी लोगों को मजदूरी करना पड़ती हो उसके लिये आरक्षण क्या कर लेगा जब तक कि उसके जीविकोपार्जन की समुचित व्यवस्था नहीं होती.आरक्षण का उद्देश्य अब सिर्फ वोट बैंक की रक्षा और बढोत्तरी मात्र रह गया है.

  12. February 10, 2010 at 4:27 pm

    आदरणीय त्रिपाठी जी, 1) मेरा व्यक्तिगत मत है कि या तो सभी संस्थानों में आरक्षण लागू होना चाहिये, या किसी में भी नहीं। क्या IIT, IIM अथवा AIMS में सुर्खाब के पर लगे हैं? जब JNU वालों को यह मुगालता है कि वे "विश्वस्तरीय" हैं, तो यह मुगालता पालने का हक औरों को भी है, लेकिन कानून सभी के लिये बराबर होना चाहिये। 2) लेख में मेरा मंतव्य तो मीडिया का दोगलापन उजागर करना भी रहा है, और यह अन्त में ब्रेकेट में लिखा भी है। "हिन्दुत्व" से सम्बन्धित खबरों को भी "दलित" समझा जाता है, जब तक मीडिया भाजपा-संघ के प्रति अपना यह नकारात्मक रुख नहीं बदलता, और कांग्रेस-वाम की चमचागिरी से बाज नहीं आता, हम ऐसे ही (अ)रचनात्मक, आलोचनात्मक, विध्वंसात्मक लिखते रहेंगे… चाहे किसी को पसन्द आये या न आये… 🙂 जिस दिन मीडिया, "खबरों में बैलेंस" बनाना सीख जायेगा, हम भी अपने-आप सुधर जायेंगे। – सादर आपका (अ)रचनात्मक सुरेश चिपलूनकर 🙂

  13. February 10, 2010 at 5:14 pm

    आरक्षण की आवश्यकता ही क्या है ?

  14. February 10, 2010 at 6:21 pm

    एक बात और लिखना चाहूंगा- बाबा साहब का प्रस्ताव अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिये उनके अपने स्थानीय प्रशासन के जरिये सम्पूर्ण व्यवस्था करने का था जिसे स्वीकार नहीं किया गया और उसकी जगह आरक्षण की व्यवस्था लागू की गयी. जो प्रस्ताव बाबा साहब का था लगभग उसी तरह की व्यवस्था अमेरिका में काले लोगों के लिये विशेष विश्वविद्यालयों की स्थापना की गयी और कालान्तर में ये संस्थान विश्वस्तरीय साबित हुये और कई मामलों में गोरों से भी अधिक प्रतिभाशाली सिद्ध हुये. भारत में सिर्फ वोटों की चिन्ता की गई न कि उनकी जो वोट देते हैं.

  15. February 11, 2010 at 2:54 am

    दोगलापन का दूसरा रूप ही तो वामपंथ है !!

  16. sunil patel said,

    February 11, 2010 at 6:01 am

    Reservation on caste basis should completely stopped. It may be continue but on Merit and economic/financial basis only.Those who have sufficient to eat, live and to study, why they want reservation.Matter is very sensitive, it may hurt many people, communities, but it should be discussed at every stage, level, munch. Thanks to Suresh Ji.

  17. February 11, 2010 at 6:44 am

    वो चाहते हैं कि उन पदों पर भी भाई-भतीजावाद कायम रख सकें…

  18. February 11, 2010 at 7:00 am

    कम्यूनिष्ट याने जिन्होने कम्यूनिटी या कोम को नष्ट करने का बीङा उठाया हुआ है ….

  19. February 11, 2010 at 8:36 am

    आरक्षण लागू होने से अपने चमचों को उपकृत करने में बाधा आएगी सो विरोध तो होना ही है.कम्यूनिस्ट परंपरा में ब्राह्मणवाद के प्रति आग्रह तो वामपंथी इतिहासकारों के इतिहासलेखन में ही स्पष्ट हो जाता है. वर्ग भेद की समाप्ति की आड़ में ब्राह्मणवाद की बेल को जिन्दा और पुष्ट रखने का पुरजोर प्रयास यहाँ जारी है. आप कितने साहित्यकारों, इतिहासकारों, प्रोफेसरों को जानते हैं जो तथाकथित सवर्ण जातियों से न होते हुए भी इन प्रतिष्ठानों के महत्त्वपूर्ण या शीर्ष पदों को पा सके हों? मेधा क्या सवर्ण की बपौती है?? वामपंथी दोगलेपन का यह एक और शानदार नमूना है………….

  20. aarya said,

    February 11, 2010 at 3:53 pm

    सुरेश जीसादर वन्दे!अरे ये लोग उन पागलों की जमात हैं जो पूरी दुनिया को पागल कहते हैं लेकिन ये भूल जाते हैं की वह भी इसी दुनिया में रहते हैं. इन्हें अपने माँ बाप याद नहीं रहते लेकिन स्टालिन, मार्क्स आदि के फोटो व जानकारी खूब रहती है, ये क्या भारतीय इतिहास लिखेंगे ये खुद का इतिहास नहीं जानते , जानते हैं तो बस माओ, स्टालिन व मार्क्स को. और यर भारतीय नहीं थे.और राजनीति तो ये अपनी बपौती समझते हैं लेकिन ये नहीं जानते ये जिन लोगों को भड़काकर राजनीति कर रहे हैं जिस दिन इनके भ्रम की शिकार जनता जागेगी इन्हें जूतों से नहीं गोलियों (इनके द्वारा उपलब्ध करायी गयी) से मारेगी.

  21. Common Hindu said,

    February 11, 2010 at 5:34 pm

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  22. February 11, 2010 at 6:08 pm

    इन आभासी ताकतों का अन्त कैसा होगा ये खुद ही नही जानते…

  23. February 12, 2010 at 11:06 am

    बेचारे जेएनयूए सही कह रहे हैं…दलितों बगैहरा को बस नीचे ही बने रहना चाहिये…वर्ना उनके उपर आते ही समाज, देश, दुनिया, जहान..सबका नाश हो जाएगा…

  24. avenesh said,

    March 5, 2010 at 2:09 pm

    kamina ho jiska ist vahi communist

  25. Kuldeep@IIT said,

    September 20, 2011 at 11:35 pm


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