क्या राष्ट्रीय मीडिया में "देशद्रोही" भरे पड़े हैं? सन्दर्भ – कश्मीर की स्वायत्तता… Kashmir Autonomy Proposal, Indian Media and Secularism

प्रधानमंत्री जी ने कश्मीर मुद्दे पर सभी दलों की जो बैठक बुलाई थी, उसमें उन्होंने एक बड़ी गम्भीर और व्यापक बहस छेड़ने वाली बात कह दी कि “यदि सभी दल चाहें तो कश्मीर को स्वायत्तता दी जा सकती है…”, लेकिन आश्चर्य की बात है कि भाजपा को छोड़कर किसी भी दल ने इस बयान पर आपत्ति दर्ज करना तो दूर स्पष्टीकरण माँगना भी उचित नहीं समझा। प्रधानमंत्री द्वारा ऑफ़र की गई “स्वायत्तता” का क्या मतलब है? क्या प्रधानमंत्री या कांग्रेस खुद भी इस बारे में स्पष्ट है? या ऐसे ही हवा में कुछ बयान उछाल दिया? कांग्रेस वाले स्वायत्तता किसे देंगे? उन लोगों को जो बरसों से भारतीय टुकड़ों पर पल रहे हैं फ़िर भी अमरनाथ में यात्रियों की सुविधा के लिये अस्थाई रुप से ज़मीन का एक टुकड़ा देने में उन्हें खतरा नज़र आने लगता है और विरोध में सड़कों पर आ जाते हैं… या स्वायत्तता उन्हें देंगे जो सरेआम भारत का तिरंगा जला रहे हैं, 15 अगस्त को “काला दिवस” मना रहे हैं? किस स्वायत्तता की बात हो रही है मनमोहन जी, थोड़ा हमें भी तो बतायें।

इतने गम्भीर मुद्दे पर राष्ट्रीय मीडिया, अखबारों और चैनलों की ठण्डी प्रतिक्रिया और शून्य कवरेज भी आश्चर्य पैदा करने वाला है। प्रधानमंत्री के इस बयान के बावजूद, मीडिया क्या दिखा रहा है? 1) शाहरुख खान ने KKR के लिये पाकिस्तानी खिलाड़ी को खरीदा और पाकिस्तान के खिलाड़ियों का समर्थन किया… 2) राहुल गाँधी की लोकप्रियता में भारी उछाल…, 3) पीपली लाइव की लॉंचिंग… आदि-आदि-आदि। आप कहेंगे कि मीडिया तो बार-बार कश्मीर की हिंसा की खबरें दिखा रहा है… जी हाँ ज़रूर दिखा रहा है, लेकिन हेडलाइन, बाइलाइन, टिकर और स्क्रीन में नीचे चलने वाले स्क्रोल में अधिकतर आपको “कश्मीर में गुस्सा…”, “कश्मीर का युवा आक्रोशित…”, “कश्मीर में सुरक्षा बलों पर आक्रोशित युवाओं की पत्थरबाजी…” जैसी खबरें दिखाई देंगी। सवाल उठता है कि क्या मीडिया और चैनलों में राष्ट्रबोध नाम की चीज़ एकदम खत्म हो गई है? या ये किसी के इशारे पर इस प्रकार की हेडलाइनें दिखाते हैं?

कश्मीर में गुस्सा, आक्रोश? किस बात पर आक्रोश? और किस पर गुस्सा? भारत की सरकार पर? लेकिन भारत सरकार (यानी प्रकारान्तर से करोड़ों टैक्स भरने वाले) तो इन कश्मीरियों को 60 साल से पाल-पोस रहे हैं, फ़िर किस बात का आक्रोश? भारत की सरकार के कई कानून वहाँ चलते नहीं, कुछ को वे मानते नहीं, उनका झण्डा अलग है, उनका संविधान अलग है, भारत का नागरिक वहाँ ज़मीन खरीद नहीं सकता, धारा 370 के तहत विशेषाधिकार मिला हुआ है, हिन्दुओं (कश्मीरी पण्डितों) को बाकायदा “धार्मिक सफ़ाये” के तहत कश्मीर से बाहर किया जा चुका है… फ़िर किस बात का गुस्सा है भई? कहीं यह हरामखोरी की चर्बी तो नहीं? लगता तो यही है। वरना क्या कारण है कि 14-15 साल के लड़के से लेकर यासीन मलिक, गिलानी और अब्दुल गनी लोन जैसे बुज़ुर्ग भी भारत सरकार से, जब देखो तब खफ़ा रहते हैं।

जबकि दूसरी तरफ़ देखें तो भारत के नागरिक, हिन्दू संगठन, तमाम टैक्स देने वाले और भारत को अखण्ड देखने की चाह रखने वाले देशप्रेमी… जिनको असल में गुस्सा आना चाहिये, आक्रोशित होना चाहिये, नाराज़ी जताना चाहिये… वे नपुंसक की तरह चुपचाप बैठे हैं और “स्वायत्तता” का राग सुन रहे हैं? कोई भी उठकर ये सवाल नहीं करता कि कश्मीर के पत्थरबाजों को पालने, यासीन मलिक जैसे देशद्रोहियों को दिल्ली लाकर पाँच सितारा होटलों में रुकवाने और भाषण करवाने के लिये हम टैक्स क्यों दें? किसी राजदीप या बुरका दत्त ने कभी किसी कश्मीरी पण्डित का इंटरव्यू लिया कि उसमें कितना आक्रोश है? लाखों हिन्दू लूटे गये, बलात्कार किये गये, उनके मन्दिर तोड़े गये, क्योंकि गिलानी के पाकिस्तानी आका ऐसा चाहते थे, तो जिन्हें गुस्सा आया होगा कभी उन्हें किसी चैनल पर दिखाया? नहीं दिखाया, क्यों? क्या आक्रोशित होने और गुस्सा होने का हक सिर्फ़ कश्मीर के हुल्लड़बाजों को ही है, राष्ट्रवादियों को नहीं?

लेकिन जैसे ही “राष्ट्रवाद” की बात की जाती है, मीडिया को हुड़हुड़ी का बुखार आ जाता है, राष्ट्रवाद की बात करना, हिन्दू हितों की बात करना तो मानो वर्जित ही है… किसी टीवी एंकर की औकात नहीं है कि वह कश्मीरी पण्डितों की दुर्गति और नारकीय परिस्थितियों पर कोई कार्यक्रम बनाये और उसे हेडलाइन बनाकर जोर-शोर से प्रचारित कर सके, कोई चैनल देश को यह नहीं बताता कि आज तक कश्मीर के लिये भारत सरकार ने कितना-कुछ किया है, क्योंकि उनके मालिकों को “पोलिटिकली करेक्ट” रहना है, उन्हें कांग्रेस को नाराज़ नहीं करना है… स्वाभाविक सी बात है कि तब जनता पूछेगी कि इतना पैसा खर्च करने के बावजूद कश्मीर में बेरोज़गारी क्यों है? पिछले 60 साल से कश्मीर में किसकी हुकूमत चल रही थी? दिल्ली में बैठे सूरमा, खरबों रुपये खर्च करने बावजूद कश्मीर में शान्ति क्यों नहीं ला सके? ऐसे असुविधाजनक सवालों से “सेकुलरिज़्म” बचना चाहता है, इसलिये हमें समझाया जा रहा है कि “कश्मीरी युवाओं में आक्रोश और गुस्सा” है।

इधर अपने देश में गद्दार किस्म का मीडिया है, प्रस्तुत चित्र में देखिये “नवभारत टाइम्स अखबार” फ़ोटो के कैप्शन में लिखता है “कश्मीरी मुसलमान महिला” और “भारतीय पुलिसवाला”, क्या मतलब है इसका? क्या नवभारत टाइम्स इशारा करना चाहता है कि कश्मीर भारत से अलग हो चुका है और भारतीय पुलिस(?) कश्मीरी मुस्लिमों पर अत्याचार कर रही है? यही तो पाकिस्तानी और अलगाववादी कश्मीरी भी कहते हैं… मजे की बात तो यह कि यही मीडिया संस्थान “अमन की आशा” टाइप के आलतू-फ़ालतू कार्यक्रम भी आयोजित कर लेते हैं। जबकि उधर पाकिस्तान में उच्च स्तर पर सभी के सभी लोग कश्मीर को भारत से अलग करने में जी-जान से जुटे हैं, इसका सबूत यह है कि हाल ही में जब संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान किं मून ने कश्मीर के सन्दर्भ में अपना विवादास्पद बयान पढ़ा था (बाद में उन्होंने कहा कि यह उनका मूल बयान नहीं है)… असल में बान के बयान का मजमून बदलने वाला व्यक्ति संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान का प्रवक्ता फ़रहान हक है, जिसने मूल बयान में हेराफ़ेरी करके उसमें “कश्मीर” जोड़ दिया। फ़रहान हक ने तो अपने देश के प्रति देशभक्ति दिखाई, लेकिन भारत के तथाकथित सेकुलरिज़्म के पैरोकार क्यों अपना मुँह सिले बैठे रहते हैं? जमाने भर में दाऊद इब्राहीम का पता लेकर घूमते रहते हैं… दाऊद यहाँ है, दाऊद वहाँ है, दाऊद ने आज खाना खाया, दाऊद ने आज पानी पिया… अरे भाई, देश की जनता को इससे क्या मतलब? देश की जनता तो तब खुश होगी, जब सरकार “रॉ” जैसी संस्था के आदमियों की मदद से दाऊद को पाकिस्तान में घुसकर निपटा दें… और फ़िर मीडिया भारत की सरकार का अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर गुणगान करे… यह तो मीडिया और सरकार से बनेगा नहीं… इसलिये “अमन की आशा” का राग अलापते हैं…।

दिल्ली और विभिन्न राज्यों में एक “अल्पसंख्यक आयोग” और “मानवाधिकार आयोग” नाम के दो “बिजूके” बैठे हैं, लेकिन इनकी निगाह में कश्मीरी हिन्दुओं का कोई मानवाधिकार नहीं है, गलियों से आकर पत्थर मारने वाले, गोलियाँ चलाने वालों से सहानुभूति है, लेकिन अपने घर-परिवार से दूर रहकर 24 घण्टे अपनी ड्यूटी निभाने वाले सैनिक के लिये कोई मानवाधिकार नहीं? मार-मारकर भगाये गये कश्मीरी पण्डित इनकी निगाह में “अल्पसंख्यक” नहीं हैं, क्योंकि “अल्पसंख्यक” की परिभाषा भी तो इन्हीं कांग्रेसियों द्वारा गढ़ी गई है। मनमोहन सिंह जी को यह कहना तो याद रहता है कि “देश के संसाधनों पर पहला हक मुस्लिमों का है…”, लेकिन कश्मीरी पंडितों के दर्द और लाखों अमरनाथ यात्रियों के वाजिब हक के मुद्दे पर उनके मुँह में दही जम जाता है। वाकई में गाँधीवादियों, सेकुलरों और मीडिया ने मिलकर एकदम “बधियाकरण” ही कर डाला है देश का… देशहित से जुड़े किसी मुद्दे पर कोई सार्थक बहस नहीं, भारत के हितों से जुड़े मुद्दों पर देश का पक्ष लेने की बजाय, या तो विदेशी ताकतों का गुणगान या फ़िर देशविरोधी ताकतों के प्रति सहानुभूति पैदा करना… आखिर कितना गिरेगा हमारा मीडिया?

अब जबकि खरबों रुपये खर्च करने के बावजूद कश्मीर की स्थिति 20 साल पहले जैसी ही है, तो समय आ गया है कि हमें गिलानी-यासीन जैसों से दो-टूक बात करनी चाहिये कि आखिर किस प्रकार की आज़ादी चाहते हैं वे? कैसी स्वायत्तता चाहिये उन्हें? क्या स्वायत्तता का मतलब यही है कि भारत उन लोगों को अपने आर्थिक संसाधनों से पाले-पोसे, वहाँ बिजली परियोजनाएं लगाये, बाँध बनाये… यहाँ तक कि डल झील की सफ़ाई भी केन्द्र सरकार करवाये? उनसे पूछना चाहिये कि 60 साल में भारत सरकार ने जो खरबों रुपया दिया, उसका क्या हुआ? उसके बदले में पत्थरबाजों और उनके आकाओं ने भारत को एक पैसा भी लौटाया? क्या वे सिर्फ़ फ़ोकट का खाना ही जानते हैं, चुकाना नहीं?

गलती पूरी तरह से उनकी भी नहीं है, नेहरु ने अपनी गलतियों से जिस कश्मीर को हमारी छाती पर बोझ बना दिया था, उसे ढोने में सभी सरकारें लगी हुई हैं… जो वर्ग विशेष को खुश करने के चक्कर में कश्मीरियों की परवाह करती रहती हैं। ये जो बार-बार मीडियाई भाण्ड, कश्मीरियों का गुस्सा, युवाओं का आक्रोश जैसी बात कर रहे हैं, यह आक्रोश और गुस्सा सिर्फ़ “पाकिस्तानी” भावना रखने वालों के दिल में ही है, बाकियों के दिल में नहीं, और यह लोग मशीनगनों से गोलियों की बौछार खाने की औकात ही रखते हैं जो कि उन्हें दिखाई भी जानी चाहिये…, उलटे यहाँ तो सेना पूरी तरह से हटाने की बात हो रही है। अलगाववादियों से सहानुभूति रखने वाला देशभक्त हो ही नहीं सकता, उन्हें जो भी सहानुभूति मिलेगी वह विदेश से…। चीन ने जैसे थ्येन-आनमन चौक में विद्रोह को कुचलकर रख दिया था… अब तो वैसा ही करना पड़ेगा। कश्मीर को 5 साल के लिये पूरी तरह सेना के हवाले करो, अलगाववादी नेताओं को गिरफ़्तार करके जेल में सड़ाओ या उड़ाओ, धारा 370 खत्म करके जम्मू से हिन्दुओं को कश्मीर में बसाना शुरु करो और उधर का जनसंख्या सन्तुलन बदलो…विभिन्न प्रचार माध्यमों से मूर्ख कश्मीरी उग्रवादी नेताओं और “भटके हुए नौजवानों”(?) को समझाओ कि भारत के बिना उनकी औकात दो कौड़ी की भी नहीं है… क्योंकि यदि वे पाकिस्तान में जा मिले तो नर्क मिलेगा और उनकी बदकिस्मती से “आज़ाद कश्मीर”(?) बन भी गया तो अमेरिका वहाँ किसी न किसी बहाने कदम जमायेगा…, अन्तर्राष्ट्रीय बिरादरी की परवाह मत करो… पाकिस्तान जब भी कश्मीर राग अलापे, पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर का मुद्दा जोरशोर से उठाओ…ऐसे कई-कई कदम हैं, जो तभी उठ पायेंगे, जब मीडिया सरकार का साथ दे और “अमन की आशा” जैसी नॉस्टैल्जिक उलटबाँसियां न करे…। 

लेकिन अमेरिका क्या कहेगा, पाकिस्तान क्या सोचेगा, संयुक्त राष्ट्र क्या करेगा, चीन से सम्बन्ध खराब तो नहीं होंगे जैसी “मूर्खतापूर्ण और डरपोक सोचों” की वजह से ही हमने इस देश और कश्मीर का ये हाल कर रखा है… कांग्रेस आज कश्मीर को स्वायत्तता देगी, कल असम को, परसों पश्चिम बंगाल को, फ़िर मणिपुर और केरल को…? इज़राइल तो बहुत दूर है… हमारे पड़ोस में श्रीलंका जैसे छोटे से देश ने तमिल आंदोलन को कुचलकर दिखा दिया कि यदि नेताओं में “रीढ़ की हड्डी” मजबूत हो, जनता में देशभक्ति का जज़्बा हो और मीडिया सकारात्मक रुप से देशहित में सोचे तो बहुत कुछ किया जा सकता है…

क्लिक करके कश्मीर से सम्बन्धित लेखक निम्न लेख अवश्य पढ़ें…

http://blog.sureshchiplunkar.com/2010/03/umar-abdullah-kashmir-stone-pelters.html

http://blog.sureshchiplunkar.com/2009/09/compensation-to-criminal-and-pension-to.html

http://blog.sureshchiplunkar.com/2008/07/kashmir-drastic-liability-on-india.html

http://blog.sureshchiplunkar.com/2008/07/kashmir-issue-india-pakistan-secularism.html

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39 Comments

  1. August 16, 2010 at 8:07 am

    इसमें आश्चर्य की क्या बात है. जितने भी मीडिया समूह हैं उनमें सबसे अधिक पूँजी निवेश विदेशियों की है. वे अपनी आकाओं की मानेंगे या हमारी आपकी?

  2. August 16, 2010 at 8:36 am

    "कश्मीरी मुसलमान महिला" और "भारतीय पुलिसवाला" यह कैप्शन लिखने वाले से क्या कोई जवाब मांगने वाला नहीं है?कश्मीर को 5 साल के लिये पूरी तरह सेना के हवाले करो, अलगाववादी नेताओं को गिरफ़्तार करके जेल में सड़ाओ या उड़ाओ, धारा 370 खत्म करके जम्मू से हिन्दुओं को कश्मीर में बसाना शुरु करो और उधर का जनसंख्या सन्तुलन बदलो…अब तो इसी तरीके से इस समस्या का हल है जी। लेकिन क्या हमारी संसद में है कोई मजबूत रीढ का नेता?प्रणाम स्वीकार करें

  3. August 16, 2010 at 8:40 am

    हेराम ! हमारे देश के देशभक्त सेक्युलर मीडिया पर ऐसे आक्षेप ? एक और मजेदार बात बताऊ , मैं यदा कदा टाइम्स आफ इंडिया की वेब साईट पर लेखो पर प्रतिक्रियाये देता था, उसके सेक्युलर मोडरेटर ने मेरा ईमेल आईडी ही ब्लैकलिस्ट कर दिया,मैं तो तब कुछ पल को यही सोचता रह गया कि कमबख्त ये सच लोगो को इतना कडुवा क्यों लगता है ? हा-हा-हा… ऐसे जागरूक देशभक्त मीडिया के बारे में गलत बयानी , चु-चु

  4. August 16, 2010 at 9:15 am

    अपना शौर्य तेज भुला यह देश हुआ क्षत-क्षत है। यह धरा आज अपने ही मानस -पुत्रों से आहत है। अब मात्र उबलता लहू समय का मूल्य चुका सकता है। तब एक अकेला भारत जग का शीश झुका सकता है। एक किरण ही खाती सारे अंधकार के दल को। एक सिंह कर देता निर्बल पशुओं के सब बल को। एक शून्य जुड़कर संख्या को लाख बना देता है। अंगार एक ही सारे वन को राख बना देता है।मै आया हूँ गीत सुनाने नही राष्ट्र-पीड़ा के। मै केवल वह आग लहू में आज नापने आया मै राष्ट्र-यज्य के लिए तुम्हारा शीश मांगने आया । नही महकती गंध केशरी कश्मीरी उपवन में। बारूदों की गंध फैलती जाती है आँगन में। मलयाचल की वायु में है गंध विषैली तिरती। सम्पूर्ण राष्ट्र के परिवेश पर लेख विषैले लिखती।स्वेत बर्फ की चादर गिरी के तन पर आग बनी है। आज धरा की हरियाली की पीड़ा हुई घनी है।पर सत्ता के मद में अंधे धरती के घावों से। अंजान बने फिरते है बढ़ते ज्वाला के लावों से। शक्ति के नव बीज खोंजता इसीलिए ही अब मैं। मै महाकाल का मन्त्र फूंकता तुम्हे साधने आया मै राष्ट्र यज्य के लिए ……………………….

  5. August 16, 2010 at 9:28 am

    अंधेर नगरी चौपट राजा , लोकतंत्र अब लोभ्तंत्र है , शाषन अब शोषण करता है ! लुटेरो को गद्दी दे दी है अब ऐश करो !

  6. August 16, 2010 at 11:36 am

    सन 63 का चीन लिखूं या आज 63 वाँ हिन्दुस्तान लिखूंसन सैतालिस से धोखा खाते कितने पाकिस्तान लिखूंहिंदी चीनी भाई भाई कह कर पीठ में छुरा घोपाअरुणाचल पर अतिक्रमण, कश्मीर में कब्रिस्तान लिखूं ||जहाँ राष्ट्रबोध नहीं उस देश के टुकड़े टुकड़े होने हैं.मीडिया अपना धर्म निभाओ – वरना ढूंढ़ते रहना "विविधताओं में एकता"

  7. August 16, 2010 at 11:43 am

    खून खौल रहा है मेरा.पाकिस्तानी झंडे फहराने वालो और तिरंगा को जलाने वालो को तुरंत गोली से उड़ा देना चाहिये.मुझे ये नही समझ मे आता कि ऐसे लोग अभी तक जिंदा कैसे है?क्या पाकिस्तान मे कोई पाकिस्तानी झंडा जला कर तिरंगा फहरा सकता है?और अगर किसी ने ऐसा कर भी दिया तो उसके साथ वहाँ क्या सलूक होगा ये बताने की जरुरत नही है.तो फिर हिँदुस्तानी क्यो हिँजड़े बने हुये है.क्यो नही तिरंगा को जलाने पर और पाक का झंडा फहराने पर पूरे भारत मे जोरदार हिसंक विरोध होता है?क्या ये मुद्धा नही है.लानत है साला थू.

  8. August 16, 2010 at 11:43 am

    आपसे सहमत नहीं.पुलिस व वामपंथियों (यहाँ सेक्युलर पढ़ा जाय) की धर्मनिरपेक्षता का उत्तम उदाहरण देता हूँ. केरल में मदनी नामक विस्फोटों के आरोपी को वहाँ की पुलिस सप्ताह भर से गिरफ्तार नहीं कर पा रही है. मामला जब अल्पसंख्यक का हो तो अदालत के आदेश वाला तर्क भी ताक पर रखा जा सकता है. साँप को पाला है, अब काटने के भय से पसीने छूट रहे है. यह हाल है "अल्पसंख्यक है तब. अब आप चाहते हो जहाँ बहुसंख्यक है वहाँ अक्कल ठीकाने लगाने की तो भाई अपने दीमाग का इलाज करवाओ. अब तो जब सुनता हूँ कि यह देश है वीर जवानों का…. तो शर्म सी आती है.

  9. August 16, 2010 at 12:38 pm

    उफ़! मेरा तो खून खौल रहा है……..

  10. August 16, 2010 at 1:37 pm

    प्रमुख रूप से मीडियाई नाजायजों एवं गौण रूप से पाखंडी धर्मनिरपेक्षता के ध्वजवाहक, वोटबैंक के लिये किसी हद तक गिरने वाले, लंपट, धूर्त, वेश्यापुत्रतुल्य नेताओं की कलई उजागर करने वाले इस आलेख के लेखक को नमन.आलेखक एवं पाठकों को इन तिरसठ वर्षों में मात्र औपचारिक रह गये स्वतंत्रता दिवस की (विलंबित) शुभकामनाएँ….अंत में, मीडियाई अवैध संततियों एवं नेताओं को उनके भूत-वर्तमान-भविष्यकालिक (कु)कृत्यों हेतु ढेर सारी @$&^^%*&(**(&*%%$$!@#~^%%^*&^***%^%$#%#%$%$%$ ……………….

  11. inder said,

    August 16, 2010 at 2:06 pm

    this is the first independence day in my life when i am hopeless about future of this country.no enthusiasm for nationalist on this national festival

  12. Anonymous said,

    August 16, 2010 at 2:19 pm

    Personally i believe we need a youth leader or daring man with firm mind who can withstand against all bullshit and F****** politics.These about to die leader does not have blood in there veins.Jai Hind…

  13. man said,

    August 16, 2010 at 3:43 pm

    सादर वन्दे सर ,("यदि सभी दल चाहें तो कश्मीर को स्वायत्तता दी जा सकती है…)दिमाग को फाड़ देने के लिए काफी हे हे ये लेख ,की केसे ""इकोनोमिक कार्टून""को आगे कर के रास्ट्र विभाजन का षड़यंत्र रचा जा रहा हे देशी विदेशी ताकतों दुवारा ?और केसे ये ""भांड उर्फ़ रास्ट्रीय मंगते"" इस खेल के खामोश गवाह बन रहे हे ?यदि ये ही बात कोई भारतीय जनता पार्टी का सद्श्य या नरेन्द्र मोदी देते तो उनका ""युरेनल सिस्टम "" मूह के जरिये तुरंत एक्टिव हो जाता |हमेशा इन भांडों के छदम सेकुलरवाद का डोरा बंधा होता हे जो की टाइम टाइम रास्ट्रवाद और हिन्दुत्व के खिलाफ खोला जाता हे |अच्छा आइना दिखाते हे आप इन शादी ब्या के मोकेपर"" दोने पतल"" चाटने वाले ""रास्ट्रीय मंगतो ""को ?आप कह रहे हो की कश्मीर मुख्य धारा में नहीं ,मेरा तो ये कहना हे की सब से पहले इन "'रास्ट्रीय मंगतो ""को मुख्य धारा में लो ,सालो के पेट नहीं भर रहे हे ,साले पेट के चकर में ये उलूल जुलूल हो गए हे ,काम हे लोगो को तमाशा दिखाना .लेकिन ये अब bichhane भी लग गए हे ?जेसे की जब तक कोई कठोर दिल शाशक और रास्ट्रीय व्यक्ति नहीं नहीं बेठेगा जब तक ये चलती रहेगी ,इंतजार, कोई हे जो आएगा |

  14. August 16, 2010 at 4:21 pm

    Bismil ne 1927 men kaha tha ki desh men krantikari paristhitiyan abhi nahi bani, pahle logon ko shikshit karo,hua kya shikshit log gharon men aur andar dubak gaye..aise shikshiton se vo akshit hi achche the jo virodh to karte the…Sadhuvaad…

  15. August 16, 2010 at 7:08 pm

    सुरेश जी सिर्फ कश्मीर को सेना के हवाले करना अब हल नही रह गया है, आप देखिये संसद मे कैसे कैसे cartoon राष्ट्र घाती सर्प बैठे हुए हैं अब तो देश ही सेना के हवाले चाहिये।

  16. August 17, 2010 at 3:05 am

    Mr.Winston Churchill was a soldier who fought wars for his country. He was a man of letters, a diplomat, a man of high integrity, and Prime Minister of Great Britain. While debate on granting freedom to India, he requested Mr. Atlee, the then PM of Great Britain, to defer freedom as he did not find a single person who could handle the difficult situation arising out of newly granted independence.Mr. Winston Churchill said in the House of Lords; "Liberty is man's birth right. However to give the reins of Government to Congress at the juncture, is to hand over the destiny of hungry millions into the hands of rascals, rogues and free booters. Not a bottle of water or a loaf of bread shall escape taxation; only the air will be free and the blood of these hungry millions will be on the head of Mr.Atlee. India will be lost in political squabbles…It will take a thousand years for them to enter periphery of philosophy or politics. Today, we hand over the reins of Government to men of straw of whom no trace will be found after a few years."

  17. August 17, 2010 at 3:41 am

    पूरे देश में जगह-जगह पाकिस्तानी पॉकेट बनते जा रहे है कश्मीर में ६००००हिन्दु मारे जा चुके पाच लाख भगा दिए गए भारत में सभी प्रान्तों से अधिक बज़ट कश्मीर को दिया जाता है वास्तव में कश्मीरियों को कांग्रेश दामाद मानकर पाल रही है यदि उन्हें भारतीय मानती तो समस्या नहीं होती कश्मीर क़ा तो एक ही इलाज है वहा क़ा बज़ात काट देना और सीमा पर शासत्र पूर्ब सैनिको को बसाना खैर ये सब मनमोहन क़े बस क़ा नहीं है क्यों की ये भारतीय लोकतंत्र को कलंकित कर रहे है ये नेता नहीं ये तो नौकर है नौकर वह भी बिदेशी की ,alahabad हाइकोर्ट ने यह फैसला दे रखा है की मुसलमान अल्पसंख्यक नहीं है लेकिन यह सरकार को तो कुछ दिखाई नहीं देता मिडिया में तो बिदेसी लगनी होने क़े करण सारे पत्रकार तो बीके हुए है उन्हें देश भक्ति से कोई मतलब नहीं है ,——–एक ही रास्ता की हिन्दुओ क़ा जागरण हो —–

  18. August 17, 2010 at 4:12 am

    जब तक कांग्रेस नाम की खतरनाक बीमारी इस देश में रहेगी तब तक कुछ भी नहीं हो सकता और कांग्रेस का मोह जनता से जाने का नाम नहीं लेता. ऐसा महान मीडिया, कम्युनिस्ट, सेकुलर आदि सभी नाली की गन्दे कीड़े सब इसी कांग्रेस के पाले-पोसे हुए हैं, कांग्रेस ने और इसके बनाये पूरे तन्त्र ने देश की जनता को बहुत छला है और वास्तव में इस पूरे तन्त्र ने मिलकर एकदम "बधियाकरण" ही कर डाला है देश का… कांग्रेस अपने जन्म से ही विदेशियों की थी और अब भी है यह जनता को समझना पड़ेगा.

  19. August 17, 2010 at 4:45 am

    आदरणीय सुरेश जी,आपके तथ्य परक लेख गहन अनुसन्धान का निष्कर्ष होते हैं |जिस किसी में १% भी मात्रिभूमि या मादर-ए-वतन से पूरी ईमानदारी से प्रेम की भावना होगी उसे आपके लेख अवश्य विचलित करेंगे और यह सोचने पर मजबूर करेंगे कि हम क्या कर रहें हैं और कहाँ जा रहें हैं ?आपके लेख सोये हुए लोगों को जगाने का काम कर रहें हैं – जागते रहिये – वर्ना अपने विदेशी आकाओं के हुक्म से ये मीडिया वाले तो २४ घंटे ३६५ दिन – भारत के जागते हुए मूर्खों को अफीम दे कर सुलाने का काम बखूबी कर रहें है |हमारे देश को दुश्मनों के थोड़े से स्लीपर सेलों से ज्यादा खतरा अपने खुद के ८० करोड़ स्लीपर सेलों से है |किसी गंभीर मुद्दे पर सोच विचार करना – जिनके ज्ञान चक्षु खुले हैं – ऐसे जागृत एवं जागरूक लोगों का काम है |जिनके चर्म चक्षु खुले हैं परन्तु ज्ञान चक्षु बंद ही नहीं अपितु अनुवांशिक रूप से फूटे हुए हैं अथवा कुसंगति के कारण फोड़ दिए गए हैं – उन ८० करोड़ स्लीपर सेल रूपी भारतियों से इस देश को सबसे बड़ा खतरा है – बल्कि यह कहना उचित होगा कि वे इस देश के दुश्मन हैं |यदि हम अपने शत्रु के बारे में अल्पग्य हैं तो हमारी पराजय सुनिश्चित है – अवश्यम्भावी है |जब साधारण समझा जाने वाला बुखार अधिक दिन रहता है तो डाक्टर लिख देता है कि इस की जड़ का पता लगाने के लिए बीमार के थूक ख़ून टट्टी पेशाब सभी टेस्ट कारा के रिपोर्ट लाओ |हमारा देश भारत तो पिछले २००० वर्षों से बीमार है – आज भी बीमार है – इसकी बीमारी का कारण जानने के लिए पूरे मेडिकल चेकअप की जरुरत है कि नहीं ? आपके माध्यम से मैं समस्त भारत प्रेमी पाठकों से निवेदन करता हूँ कि भारत की वर्तमान स्तिथि की भयंकरता को समझने के लिए कम से कम इन दो विषय / लेख को गंभीरतापूर्वक पढ़ें एवं प्रचारित करें |पहला विषय हमारे हुक्मरानों की विक्षिप्त मानसिकता के विश्लेषण मैं सहायक होगा एवं दूसरा शत्रु के षड्यंत्रों को ठीक ठीक समझने में सहायक होगा |#१ : स्टोकहोम सिंड्रोम (Stockholm syndrome)#२ : आर्ट ऑफ वार – सुन झू (Art of War by SunTzu)

  20. rajeshwari said,

    August 17, 2010 at 5:40 am

    आपसे सौ प्रतिशत सहमत! कश्मीर के लिए सरकार ने कितना पैसा खर्च किया, क्या इसके लिए कोई आर टी आई नहीं दायर की जा सकती.आखिर हमें सच को स्वीकार करने में इतनी कायरता क्यों दिखानी चाहिए वो भी तब जब ये हमारा अपना देश है जिसकी आजादी की कहानियां हम बड़ी दिलचस्पी से सुनते हैं लेकिन क्या सचमुच हम गर्व से कह सकते हैं हम भारत के लोग……..

  21. August 17, 2010 at 7:13 am

    आदरणीय सुरेश जी,आपके समस्त सुग्य पाठक गणों से एक प्रश्न पूछने की अनुमति का इच्छुक हूँ :यदि कोई रुग्ण व्यक्ति अपनी रुग्णता का समुचित निदान करने के स्थान पर मक्खी – मच्छर – पिस्सू – जोंक – खटमल इत्यादि रोगवाही जन्तुवों को अपने शरीर अथवा गृह से समूल नष्ट करने स्थान पर उन्हें केवल कोसता ही रहे एवं अपनी रुग्णावस्था को स्थायित्व प्रदान करते हुए कष्ट पाता रहे – तो क्या ऐसे व्यक्ति को मानसिक रूप से विक्षिप्त नहीं कहेंगे ?हम लोग आत्मनिरीक्षण करना कब सीखेंगे ?हमारी दुर्दशा का मूल कारण हमारी विक्षिप्त मानसिकता है – हमारा अविवेक है – ना कि मक्खी – मच्छर – पिस्सू – जोंक – खटमल इत्यादि रोगवाही जंतु |रोगवाही जंतु तो समस्त विश्व को रुग्ण बना कर अपना धर्म निभा रहें हैं – परन्तु क्या हम लोग अपना धर्म निभा रहें हैं ?

  22. DEEPAK BABA said,

    August 17, 2010 at 3:20 pm

    दादा, आपके लेख मेरे जैसे तक की आँखे खोल देते हैं …. तो फिर मीडिया वाले तो समझदार हैं "बुद्धिजीवी" है. उनको क्या ये सब दिखाई नहीं देता. पता है आज देश पर जो भी राज कर रहे हैं – उनकी सिथित उस कबूतर वाली हो गई है – जो बिल्ली को सामने देख कर आँखे मूँद लेता है. ये तथा कथित शर्म निरपेक्ष और धर्म निरपेक्ष शाशक आज आँख बंद करके बैठे हैं. बस एक ही बात : "एक उल्लू ही काफी है बर्बादे गुलिस्तान को – हर शाख पर उल्लू बैठ हो तो अंजाम खुदा जाने.जय राम जी की

  23. August 17, 2010 at 3:39 pm

    …आदरणीय सुरेश जी,आपसे पूरी तरह सहमत…देश की अखंडता हर हाल में नॉन नेगोशियेबल होनी चाहिये… जब आप ऐसा निश्चय कर लेते हैं तो कुछ जान-माल का नुकसान लाजिमी है…पर इस नुकसान के डर से मुल्क धार्मिक आतंक-अलगाव के आगे घुटने नहीं टेकते…समय मिले तो देखियेगा यह भी… कश्मीर भारत के लिये समस्या नहीं बल्कि इम्तहान है… यह चुनौती भी है और अवसर भी…हल एकदम सीधा सादा व आसान है।

  24. man said,

    August 17, 2010 at 4:38 pm

    केरल की विधानसभा ने 16 मार्च 2006 को सर्वसम्‍मति से एक प्रस्‍ताव पारित किया जिसके तहत मदनी को ‘मानवीय’ आधार पर रिहा करने की बात की गई। मुस्लिम मतदाताओं को एकजुट करने के मकसद से वर्ष 2009 के लोकसभा चुनावों के दौरान मदनी की पीडीपी माकपा की अगुवाई वाले गठबंधन लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट में शामिल हुई थी। हालांकि इस गठबंधन को कुछ खास फायदा नहीं हुआ और वह 20 में से चार सीटें तक ही सिमट गई।

  25. sunil patel said,

    August 17, 2010 at 5:01 pm

    धन्यवाद सुरेश जी.सरकार ने कभी भी काश्मीर समस्या को गम्भीरता से नही लिया बल्कि हमेशा राजनॆतिक फ़ायदे के लिये उपयोग किया. काश्मीर का साजिश पूरी दुनिया जानती है.स्वायत्त्यात्ता हास्यापद प्रश्न है. हर राज्य अलग रास्ट्र की मांग करेगा.सामान्य नियम है – कुते का बच्चा भोकता है, बिल्ली क बच्चा म्याउ बोलता है, मेरा बच्चा हिन्दी बोलता है, अन्य बच्चे वही भाषा बोलेगे जो उनके माता पिता बोलेगे क्योकि वे जन्म से यही देखते सुनते आ रहे है. अगर प्रथक काश्मीर की मांग होती है तो कोइ अचरज नही है क्योंकी सरकार ने खुद हालात बनाए है. अगर राजनेतिक इच्छाशक्ति हो तो कुछ भी असम्भव नही. हमें पजाब आतन्कवाद नही भूलना चाहिय जिसे पूर्ण समाप्त कर दिया गया है. वोह भी कुछ समय में. जरूरत है ठोस कदम उठाने की.जरूरत है पकिस्तान से पूरी तरह से सम्बन्ध समाप्त करने कि क्योंकी पाकिस्तान ही समस्या की जड है. क्यो हम पुराने प्रेमी की तरह उससे मिलने की आस लगा कर अपना घर बर्बाद कर रहे है.रही बात हमारी सरकार की तो दोषी तो खुद हम है क्योंकि सरकार तो हम खुद चुनते है. आज सरकार कैसे चल रही है, कौन चला रहा है, लगाम किसकी है, नकेल कौन कास रहा है किसी से छिपा नहीं है. भगवान् सरकार और नेताओं को सध्बुधि दे.जय हिंद.

  26. August 18, 2010 at 7:07 am

    मीडिया याने खरीदे हुए भांडों का संकलन ये तो वेश्यावृत्ति कर रहे हैं….पैसे के लिए देश को बेच रहे हैं

  27. man said,

    August 18, 2010 at 4:02 pm

    कोयम्‍बटूर में 14 फरवरी 1998 को हुए सीरियल ब्‍लास्‍ट में 58 लोगों की मौत हो गई तथा 200 से अधिक घायल हो गए थे। इस हमले में भारतीय जनता पार्टी के वरिष्‍ठ नेता लाल कृष्‍ण आडवाणी निशाने पर थे। कोयम्‍बटूर बम धमाकों के मामले में मदनी को गिरफ्तार किया गया। उसके खिलाफ सांप्रदायिक नफरत फैलाने, आपराधिक साजिश रचने और देशद्रोह के आरोप लगे। उसे इस मामले में आठ वर्षों की जेल भी हुई लेकिन बाद में वह इन सभी आरोपों से बरी हो गया।25 जुलाई 2008 को बेंगलुरू में हुए सीरियल बम धमाके में एक महिला की मौत हो गई और 20 घायल हो गए थे। इस मामले में मदनी सहित 32 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दायर की गई है। मामले की सुनवाई कर रही फास्‍ट ट्रैक कोर्ट ने गत नौ जुलाई को मदनी को किसी तरह की राहत देने से इंकार करते हुए उसे गिरफ्तार करने के आदेश जारी किए। इसके बाद मदनी ने कर्नाटक हाईकोर्ट की शरण ली लेकिन वहां भी मदनी को कोई राहत नहीं मिली।मदनी ने समाज में किसी तरह की नफरत फैलाने की गतिविधियों में शामिल होने से कई बार सार्वजनिक तौर पर इंकार किया है। वह खुद को धर्मनिरपेक्ष बताता है। हालांकि वह अपनी पिछली गलतियों के लिए माफी भी मांगता है। उसका दावा delete

  28. man said,

    August 18, 2010 at 4:03 pm

    कोयम्‍बटूर और बेंगलुरू में हुए सीरियल बम ब्‍लास्‍ट के आरोपी अब्‍दुल नासिर मदनी ने 1992 में अयोध्‍या में विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद केरल की राजनीति की में कदम रखा। मदनी ने ‘मुस्लिम-दलित-पिछड़ा’ वर्ग को केंद्र में रखते हुए पीपुल्‍स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) नाम की एक पार्टी बनाई।मौलवी से राजनेता बने मदनी पर लश्‍कर-ए-तैयबा जैसे आतंकवादी संगठनों से संबंध रखने के आरोप हैं। मदनी ने इस्‍लामिक सेवक संघ नाम से एक संगठन बनाया था जिसे 1993 में प्रतिबंधित कर दिया गया। मदनी पर भड़काऊ भाषण देने के आरोप हैं और इस सिलसिले में पुलिस ने मामला भी दर्ज किया है। मदनी के खिलाफ एक ऐसा ही मामला 1992 में कोझीकोड में भी दर्ज है।केरल के सस्‍टमकोट्टा में 1965 में जन्‍मे मदनी पर 1992 में कथित तौर पर आरएसएस कार्यकताओं ने जानलेवा हमला किया था। इस हमले में मदनी ने अपना दाहिना पैर खो दिया।

  29. August 18, 2010 at 6:02 pm

    इस देश में देशद्रोही भरे पड़े हैं । अब तो कोई तानाशह ही इस देश को बच सकता है । दूसरे देशो से नकल किए गए संविधान को कबाड़ में फेंकने की जरूरत है । और एक नया संविधान , नई शिक्षा प्रणाली और नई कानून प्रणाली की जरूरत है । अगर ऐसा नहीं हुआ तो अपनी कब्र खोदने के हम खुद ही ज़िम्मेवार होंगे । जब तक हम दूसरे के नज़रिये से खुद को देखेंगे तो कभी आगे नहीं बढ़ पाएंगे । इस्राइल से कुछ सीखना होगा । विश्व में मीडिया कुछ भी कहे , इस्राइल वही करता है जो देश के लिए सही है । चारों तरफ से इस्लामिक देशो से घिरे इस्राइल के लोग अगर हमारे देश के सेकुलरों की तरह सोचने लगे तो उनका अस्तित्व दो दिन मे मिट जाएगा ।

  30. nitin tyagi said,

    August 19, 2010 at 3:21 am

    congress should be banned

  31. August 20, 2010 at 9:08 am

    आपके लेख में लिखे प्रश्न हमेशा ही सोचने पर मजबूर कर देते है. समस्या का समाधान क्या हो और इसका अमल कैसे हो ये तो ढूंढा जा सकता है, यक्ष प्रश्न तो ये है कि इसे करे कौन. आप सोचते है कोई भी राजनितिक पार्टी फिर चाहे वो कांग्रेस हो, भाजपा हो, सपा हो या बसपा सब सत्ता में आते ही ऐसे बौखला जाते है कि देश को दोनों हाथो से लूटने में लग जाते है. कुर्सी पर बैठे इन डाकुओ से उम्मींद करना बेकार है.

  32. anshu said,

    August 20, 2010 at 1:41 pm

    बहुत खूब सुरेश जी … बहुत ही निष्पक्ष रूप से आपने कश्मीर की वर्तमान स्थिति का विश्लेषण किया है …परन्तु किया भी क्या जा सकता है जब अपने ही आँखों पर सेकुलरिजम की पट्टी बांधकर वस्तुस्थिति से अनजान बने रहना चाहते हों, तथाकथित प्रगतिशील मीडिया तथा मानवाधिकार-संगठन और कार्यकर्ता जिनके लिए मानवाधिकार के अर्थ बस एक वर्ग-विशेष तक सीमित हैं .. ऊपर से तुष्टीकरण में लिप्त हमारा राजनैतिक नेतृत्व जो स्पष्ट त्वरित तथा कठोर निर्णय लेने में पूरी तरह अक्षम सिद्ध हुआ है ..मैं कश्मीर के सन्दर्भ में शठे शाठ्यम समाचरेत की आपकी नीति का मैं पूर्णतयः अनुमोदन करता हूँ …. आशीष

  33. yash said,

    August 21, 2010 at 1:46 pm

    mai kya kahu mujhe itna gussa aa raha hai, maine http://photogallery.navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/6220037.cmsyaha vala link ke bare me iske akhbar ko likh diya hai, aur kadi aapatti jatai hai. dhanyavad mai ise apni vebsaait par dalungakrupaya mera sandesh hindi me chaap de, aur mafi mangta hun angreji me likhne ke liye,

  34. August 21, 2010 at 3:07 pm

    ये मदनी हें ना आतंकवादी, इसकी तो आर एस एस ने दी तंग तोड़ी है, ये लंगड़ा है , अभी ये वापस केरला नहीं जा पायेगा, ये कर्नाटक के क्षेत्र में जो है, जहा बी जे पि की सर्कार है, येदुरुप्पा ने कहा है की एक बार उसे हमारी सीमा के अन्दर आने दो फिर देखेंगे, ऐसे ही सब आतंकवादियों और गद्दारों का हल होना चाहिए, भले वो किसी भी धर्म का हो चाहे इसी, मुस्लिम हो या फिर हिन्दुओ को लड़ाने वाला लालू, मुलायम, माया रंडी वती, या ठाकरे हो

  35. Anonymous said,

    September 29, 2010 at 3:46 am

    >Dear Suresh Ji,Thanks for the excellent article. Congress has NEVER done anything good for the country. Its a ONE Familiy party and it has no need to worry about the country. This is Anti-Hindu party and that can be noticed on each and every day's incident. If Indira Gandhi can stop terrorism in Punjab, why it can't be stopped in Kashmir? Becasue if congress kills Kashmiri Muslims like they Kill Sikhs in Punjab, Congress Political SHOP will be shut down which is running over muslim votes. As far as Human Rights is concern, they have nothing to do with any rights of any Human other then Muslims. Because if they talk about Muslim people and media will notice their noice and thats the only thing they want. I don't remember a single news which says Human Rights protested for Kashmiri Pandits or they visited a Soldier's family who died in Kargil War. It is a shame for us if we let the Kashmir go from India. Only we Indians can stop this, Because Government has already saperated Kashmir from India by saying they can free Kashmir if all Political Parties are agree !!.

  36. January 21, 2011 at 1:14 pm

    >सुरेश जी, कश्मीर की स्वायतता तथा मीडिया पर आपके इतने सारगर्भित लेख व इतने मित्रों की टिप्पणी के बाद कुछ कहने को शेष नहीं रह जाता ! मीडिया के बारे 10 वर्ष से जो मैं कह रहा था नीरा रडिय कांड ने तथा इस लेख में आपके उद्धरण मीडिया और चैनलों में राष्ट्रबोध नाम की चीज़ ने उसे प्रमाणित कर दिया ! अब धर्मनिरपेक्षता के शर्मनिरपेक्ष खेल को अग.10 से एक कविता के माध्यम प्रस्तुत कर रहा हूँ कृ. PN Subramanian, अन्तर सोहिल, पी.सी.गोदियाल, नवीन त्यागी, उम्दा सोच, सुलभ § Sulabh, दिवाकर मणि, man, देशी विचारक, Ravindra Nath, दीर्घतमा, सौरभ आत्रेय, आनंद जी.शर्मा, DEEPAK BABA, sunil patel, मिहिरभोज, Bhavesh (भावेश ), anshu, yash, —– श्रेष्ठ भारत —–, आप सब इसे पढ़ कर अपनी टिप्पणी देने और अच्छा लगे तो अपने ब्लाग में प्रकाशित करने का कष्ट करें, अग्रिम धन्यवाद सहित, शर्मनिरपेक्ष नेताओं को समर्पित शर्मनिरपेक्षता तिलक राज रेलन, 5 पारा की रचना उन शर्म-निर्पेक्षों को निरुत्तर कर सकती है? तिलक संपादक युग दर्पण yugdarpan.blogspot.com

  37. January 21, 2011 at 1:17 pm

    >शर्मनिरपेक्ष नेताओं को समर्पित शर्मनिरपेक्षता तिलक राज रेलनकारनामे घृणित हों कितने भी,शर्म फिर भी मुझे नहीं आती !मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष, शर्म मुझको तभी नहीं आती !!जो तिरंगा है देश का मेरे, जिसको हमने स्वयं बनाया था;हिन्दू हित की कटौती करने को, 3 रंगों से वो सजाया था;जिसकी रक्षा को प्राणों से बड़ा मान, सेना दे देती बलिदान;उस झण्डे को जलाते जो, और करते हों उसका अपमान;शर्मनिरपेक्ष बने वोटों के कारण, साथ ऐसों का दिया करते हैं;मानवता का दम भरते हैं, क्यों फिर भी शर्म नहीं आती?मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष….कारनामे घृणित हों कितने भी,शर्म फिर भी मुझे नहीं आती !मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष, शर्म मुझको तभी नहीं आती !!वो देश को आग लगाते हैं, हम उनपे खज़ाना लुटाते हैं;वो खून की नदियाँ बहाते हैं, हम उन्हें बचाने आते हैं;वो सेना पर गुर्राते हैं, हम सेना को अपराधी बताते हैं;वो स्वर्ग को नरक बनाते हैं, हम उनका स्वर्ग बसाते हैं;उनके अपराधों की सजा को,रोक क़े हम दिखलाते हैं;अपने इस देश द्रोह पर भी, हमको है शर्म नहीं आती!मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष…कारनामे घृणित हों कितने भी,शर्म फिर भी मुझे नहीं आती !मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष, शर्म मुझको तभी नहीं आती !!इन आतंकी व जिहादों पर हम गाँधी के बन्दर बन जाते;कोई इन पर आँच नहीं आए, हम खून का रंग हैं बतलाते;(सबके खून का रंग लाल है इनको मत मारो)अपराधी इन्हें बताने पर, अपराधी का कोई धर्म नहीं होता;रंग यदि आतंक का है, भगवा रंग बताने में हमको संकोच नहीं होता;अपराधी को मासूम बताके, राष्ट्र भक्तों को अपराधी;अपने ऐसे दुष्कर्मों पर, क्यों शर्म नहीं मुझको आती;मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष….कारनामे घृणित हों कितने भी, शर्म फिर भी मुझे नहीं आती !मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष, शर्म मुझको तभी नहीं आती !!47 में उसने जो माँगा वह देकर भी, अब क्या देना बाकि है?देश के सब संसाधन पर उनका अधिकार, अब भी बाकि है;टेक्स हमसे लेकर हज उनको करवाते, धर्म यात्रा टेक्स अब भी बाकि है;पूरे देश के खून से पाला जिस कश्मीर को 60 वर्ष;थाली में सजा कर उनको अर्पित करना अब भी बाकि है;फिर भी मैं देश भक्त हूँ, यह कहते शर्म मुझको मगर नहीं आती!मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष…कारनामे घृणित हों कितने भी,शर्म फिर भी मुझे नहीं आती !मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष, शर्म मुझको तभी नहीं आती !!यह तो काले कारनामों का,एक बिंदु ही है दिखलाया;शर्मनिरपेक्षता के नाम पर कैसे है देश को भरमाया?यह बतलाना अभी शेष है, अभी हमने कहाँ है बतलाया?हमारा राष्ट्र वाद और वसुधैव कुटुम्बकम एक ही थे;फिर ये सेकुलरवाद का मुखौटा क्यों है बनवाया?क्या है चालबाजी, यह अब भी तुमको समझ नहीं आती ?मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष…कारनामे घृणित हों कितने भी,शर्म फिर भी मुझे नहीं आती !मैं हूँ एक शर्मनिरपेक्ष, शर्म मुझको तभी नहीं आती !! शर्म मुझको तभी नहीं आती !!पत्रकारिता व्यवसाय नहीं एक मिशन है-युगदर्पण

  38. January 21, 2011 at 1:56 pm

    >उम्र भर यही भूल करते रहे, धूल थी चेहरे पे, और आइना साफ़ करते रह,–YogeshRajpurohit {Bala ji ka Beta}–दोष कांग्रेस का था भाजपा को देते रहे हैं हम, इस तरह देश की मुसीबतें दूर करने चले और बढ़ाते रहे हैं हम! मैदाने जंग में लड़ने का ये अंदाज़ हमारा देखो, हम परछाई पे वार करते रहे, और हम पर वार पे वार होते रहे! जागना फिर भी न चाहा ऐसे हम सोते रहे!!तिलक संपादक युग दर्पण

  39. January 22, 2011 at 12:15 pm

    >माँ के अंग तिरंगा चढ़ता हम ले चले भेंट मुस्कातेघर-घर से अनुराग उमड़ता, दानव छल के जाल बिछातेलो छब्बीस जनवरी आती!माँ की ममता खड़ी बुलाती!!दाती कड़ी परीक्षा लेतीतीनों ऋण से मुक्ति देतीकुंकुम-रोली का क्या करना?खप्पर गर्म लहू से भरना!खोपे नहीं, खोपड़े अर्पित!चण्डी मुण्डमाल से अर्चित!!देखें कौन तिरंगा लाते? भारत माँ के लाल कहाते!दुनिया देखे प्रेम घुमड़ता, पहुँचो जय-जयकार लगाते!माँ के अंग तिरंगा चढ़ता… चल-चल ओ, कश्मीरी पण्डित!माँ की प्रतिमा होती खण्डित!दण्डित पड़ा टेंट में क्यूँ है?कश्यप का वंशज तो तू है!!तेरे गाँव लुटेरे लूटेंतुझ पर देश निकाले टूटेंउठ चल अब तू नहीं अकेलाआयी दुष्ट-दलन की वेला चल सुन पर्णकोट की बातें, प्यारे नाडीमर्ग बुलातेतेरा भारत मिलकर भिड़ता, जुड़ते जन्मभूमि से नाते माँ के अंग तिरंगा चढ़ता… प्रकटा कौल किये तैयारी!चला डोगरा चढ़ा अटारी!भारी गोलीबारी हारी!युक्ति बकरवाल की सारी!!चाहे गोले वहीं फटे हैं !गुज्जर, लामा वहीं डटे हैं !!घिरते "अल्ला-हू" के घेरेहँसते भारत माँ के चेरेप्रण को दे-दे प्राण पुगाते, देखो, कटे शीश मुस्काते!सबके बीच तिरंगा गडता, दानव 'डल' में कूद लगाते!!माँ के अंग तिरंगा चढ़ता…पूरी कविता यहाँ पढ़ें-http://mangalkavita.blogspot.com/2011/01/blog-post_19.html


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