>क्रूरता आकर करूणा के, पाठ पढा रही है।

>

(श्रीमान महक जी नें इस कविता को ब्लोग-संसद पर प्रकाशित करने का अनुरोध किया था, पर मैं भूल गया। अब इस कविता को यहां पुनः प्रकाशित कर रहा हूं)

सौ सौ चुहे खा के बिल्ली, हज़ को जा रही है।

क्रूरता आकर करूणा के, पाठ पढा रही है।
गुड की ढेली पाकर चुहा, बन बैठा पंसारी।
पंसारिन नमक पे गुड का, पानी चढा रही है।
कपि के हाथ लगा है अबतो, शांत पडा वो पत्थर।
शांति भी विचलित अपना, कोप बढा रही है।
हिंसा ने ओढा है जब से, शांति का चोला।
अहिंसा मन ही मन अबतो, बडबडा रही है।
सियारिन जान गई जब करूणा की कीमत।
मासूम हिरनी पर हिंसक आरोप चढा रही है।
सौ सौ चुहे खा के बिल्ली, हज़ को जा रही है।
क्रूरता आकर करूणा के, पाठ पढा रही है।

16 Comments

  1. October 12, 2010 at 1:54 pm

    >बहुत बढ़िया रचना ….

  2. October 12, 2010 at 2:05 pm

    >सार्थक और सराहनीय प्रस्तुती…

  3. October 12, 2010 at 2:13 pm

    >सौ सौ चुहे खा के बिल्ली, हज़ को जा रही है।क्रूरता आकर करूणा के, पाठ पढा रही है।..बहुत ख़ूबसूरत…ख़ासतौर पर आख़िरी की पंक्तियाँ….मेरा ब्लॉग पर आने और हौसलाअफज़ाई के लिए शुक़्रिया..

  4. Mahak said,

    October 12, 2010 at 4:19 pm

    >आदरणीय एवं प्रिय सुज्ञ जी ,अनुरोध को स्वीकार करने के लिए बहुत-२ धन्यवाद आपकावैसे आप अब भूल गए हैं तब नहीं भूले थे ,आपने इसे ब्लॉग-संसद पर पहले भी डाला था यहाँ पर 🙂 :)http://blog-parliament.blogspot.com/2010/08/blog-post_27.html

  5. Mahak said,

    October 12, 2010 at 4:20 pm

    >अपना पुराना कमेन्ट फिर से यहाँ पब्लिश कर रहा हूँ हिंसा ने ओढा है जब से, शांति का चोला।अहिंसा मन ही मन अबतो, बडबडा रही है।सियारिन जान गई जब करूणा की कीमत।मासूम हिरनी पर हिंसक आरोप चढा रही है।सौ सौ चुहे खा के बिल्ली, हज़ को जा रही है।क्रूरता आकर करूणा के, पाठ पढा रही है।आपने तो पूरी की पूरी हकीकत बयान कर दी अपनी इस एक रचना के ज़रिये, सच में आईना दिखाने की काबिलियत है आपकी इस कविता मेंमेरी तरफ से आपको ढेरों बधाईमहक

  6. M VERMA said,

    October 13, 2010 at 12:53 am

    >हिंसा ने ओढा है जब से, शांति का चोला।अहिंसा मन ही मन अबतो, बडबडा रही है।बहुत सुन्दर .. स्थिति तो यही है

  7. October 13, 2010 at 2:40 am

    >सही स्थिति बयान कर रही है यह रचना ! शुभकामनाएं !

  8. October 13, 2010 at 5:52 am

    >बहुत अच्छा सुज्ञ जी,,सच में बहुत कह दिया आपने…सियारिन जान गई जब करूणा की कीमत।मासूम हिरनी पर हिंसक आरोप चढा रही है।उधेड़ कर रख दिया आपने,,, आपको बहुत बहुत बधाई…

  9. October 13, 2010 at 7:10 am

    >महक जी,बहूत धन्यवाद,देखा, भूल जाता हूं, सराहना के लिये आभार।

  10. October 13, 2010 at 9:31 am

    >आपने तो पूरी की पूरी हकीकतबयान कर दीअपनी इस एक रचना के ज़रियेसियारिन जान गई जब करूणा की कीमत। मेरी तरफ बधाई |

  11. October 13, 2010 at 11:05 am

    >बहुत सुन्दर रचना।

  12. October 13, 2010 at 12:59 pm

    >एक सुन्दर सी जीवट भरी रचना यहां पढीhttp://mkldh6.blogspot.com/2010/10/blog-post_13.htmlतुम्हारी रूचि लगन निष्ठा सतत गतिशील है, लेकिनहमारा धैर्य बडा जीवट, उसे कब तक आजमाओगे !!

  13. October 13, 2010 at 1:50 pm

    >बहुत ही अच्छी रचना .

  14. October 13, 2010 at 3:18 pm

    >आपने तो पूरी तरह से हकीकत का आईना दिखा दिया….लाजवाब!

  15. October 14, 2010 at 12:19 pm

    >हिंसा ने ओढा है जब से, शांति का चोला।अहिंसा मन ही मन अबतो, बडबडा रही है …लाजवाब … बहुत सच बयानी है इस कविता में ….

  16. October 14, 2010 at 3:09 pm

    >सभी करूणा वत्सल पाठकों का ह्रदय से आभार


Leave a reply to महेन्द्र मिश्र Cancel reply