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यह ताजिराते-हिन्द है.
करोड़ों फूँककर चुनाव जीतने वाला
और फिर अपनी सात पुश्तों के लिए
खरबों जोड़ने वाला ‘नेता’ यहाँ देशद्रोही नहीं होता.
सोने की चैन तथा गोरी मेम पर बिक जाने वाला
और देश की सुरक्षा को खतरे में डाल देने वाला
‘टॉप मिलिटरी ब्रास’ यहाँ देशद्रोही नहीं होता.
स्कूटर पर भैंसों की ढुलाई कर
सरकारी खजाने को लूटने वाला
‘सरकारी अमला’ यहाँ देशद्रोही नहीं होता.
राष्ट्रचिन्ह धारण करके
स्कूली छात्रा की इज्जत से खेलने वाला
‘रक्षक’ यहाँ देशद्रोही नहीं होता.
पचास वर्षों के बजाय पचास घण्टों में
ढह जाने वाले पुल का ‘निर्माता’
यहाँ देशद्रोही नहीं होता.
चालीस हजार रूपये लेकर
देश के राष्ट्रपति के ही नाम
गिरफ्तारी का वारण्ट जारी कर देने वाला
‘न्यायपाल’ यहाँ देशद्रोही नहीं होता.
‘मिक’ गैस से हजारों की जान लेने वाले
और ‘बोफोर्स’ में दलाली खाने वाले को तो खैर,
देशद्रोही ठहराया ही नहीं जा सकता,
क्योंकि इनकी ‘चमड़ी गोरी’ है
और हमारी सरकारों की ‘रीढ़ में हड्डी’ नहीं है.
(इन्हें हिन्दुस्तानी जेलों से बाइज्जत निकालकर
हवाई अड्डा पहुँचाने में खुद कानून मदद करता है.)
यह सब छोड़िये,
संसद पर हमला करने वाला ‘आतंकवादी’
और उन्हें मदद पहुँचाने वाला ‘सफेदपोश शहरी’ तक
यहाँ देशद्रोही नहीं होता.
…
यहाँ अगर कोई देशद्रोही है
अगर कोई वतन का गद्दार है,
तो वह है-
गरीबों-शोषितों के हक की बात करने वाला.
…
एक अमीर किसान के पास छह सौ एकड़ जमीन है,
तो छह सौ सीमान्त किसानों के पास कुल मिलाकर एक एकड़.
दस प्रतिशत अमीर घरानों की मुट्ठी में नब्बे प्रतिशत पूँजी है,
तो नब्बे प्रतिशत जनता के पास कुल मिलाकर दस प्रतिशत.
किसी की आय पाँच रूपये प्रतिदिन है,
तो किसी की पाँच हजार प्रतिदिन.
फिर भी,
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की नजर में यह सब जायज है.
इसे नाजायज ठहराने वाला बेशक देशद्रोही है.
यह ताजिराते-हिन्द है
उर्फ, यह अन्धा कानून है.
***
(सन्दर्भ: डॉ. विनायक सेन को छत्तीसगढ़ की एक जिला अदालत द्वारा ‘देशद्रोही’ ठहराये जाने पर.)
पी.सी.गोदियाल "परचेत" said,
January 7, 2011 at 4:39 am
>उच्च नायालय ने नहीं जिला अदालत ने सजा सुनायी है, सन्दर्भ को ठीक कर ले !
arganikbhagyoday said,
January 7, 2011 at 5:36 am
>lokatantr jindabad !
Asha said,
January 7, 2011 at 8:35 am
>दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र कि सच्चाई बखानती अच्छी प्रस्तुति |आशा
शंकर फुलारा said,
January 8, 2011 at 11:39 am
>जैसा अंग्रेज सिखा गए थे वैसा ही हो रहा है इसके लिए किसी जिला या उच्च न्यायलय को गरियाने के साथ ही 1947 में इस व्यवस्था को मानने ( अंग्रेजों की शर्तें) वाले नेताओं की असलियत जानकर उस व्यवस्था के विरुद्ध लड़ने की जरुरत है जैसे आजादी का आन्दोलन हुआ था | और ऐसी लडाई शुरू हो चुकी है; अगर आप नहीं जानते तो बड़ा आश्चर्य होता है |