>क्या हम “राष्ट्रीय स्वाभिमान” भूल चुके हैं? – चार देशों के मामलों की तुलना… National Pride, Rahat Fateh Ali, TriValley University, Raymond Davis

>हाल ही में एक और पाकिस्तानी “सोफ़िस्टिकेटेड भिखमंगे” राहत फ़तेह अली खान को भारतीय कस्टम अधिकारियों ने गैरकानूनी रूप से सवा लाख डालर की राशि अपने साथ दुबई ले जाते हुए पकड़ा। स्पष्ट तौर पर यह सारा पैसा उसका अकेले का नहीं था, और न ही कानूनी रुप से उसने यहाँ कमाया। निश्चित रुप से यह पैसा, भारतीय फ़िल्म उद्योग में “ऊँचे-ऊँचे आदर्श बघारने” और “आये दिन सेकुलर नसीहतें” वाले कुछ फ़िल्मकारों एवं संगीतकारों का है जो कि हवाला रैकेट के जरिये पाकिस्तान होते हुए दुबई पहुँचता रहा है। (Rahat Fateh Ali Khan and Hawala Racket

खैर “हवाला कनेक्शन” एक अलग मामला है और जब इतनी बड़ी राशि के स्रोतों की जाँच होगी तो कुछ चौंकाने वाले भारतीय नाम भी सामने आ सकते हैं… परन्तु इस लेख में मैं पाठकों के सामने इस मुद्दे से जुड़े “राष्ट्रवाद” के पहलू पर चार विभिन्न उदाहरण देकर ध्यान आकर्षित करवाना चाहता हूँ…

केस क्रमांक 1) – इंग्लैण्ड में पाकिस्तान के तीन क्रिकेट खिलाड़ी (फ़िर पाकिस्तानी) मोहम्मद आसिफ़, आमेर और सलमान बट को “स्पॉट फ़िक्सिंग” (Spot Fixing and Pakistan)  के मामले में दोषी पाया गया। एक जुआरी (बुकी) ने कैमरे पर इन तीनों का नाम भी लिया और एक वीडियो में ये तीनों खिलाड़ी उस सट्टेबाज से “कोट” की अदला-बदली करते दिखाई दिये (ज़ाहिर है कि कोट में इन खिलाड़ियों को मिलने वाला पैसा ठुंसा हुआ था)। इस मामले में ब्रिटेन “अपने देश के कानूनों” के मुताबिक इन तीनों खिलाड़ियों के खिलाफ़ केस दर्ज किया, मामले की जाँच की, उन्हें दोषी भी पाया और इस लिखित शर्त पर, कि जब भी इस केस में सुनवाई और सजा के लिये इनकी जरुरत पड़ेगी तभी उन्हें पाकिस्तान जाने की इजाजत दी गई…

केस क्रमांक 2) – अमेरिका के “ट्राईवैली” (Tri-Valley University Fraud)  नामक फ़र्जी विश्वविद्यालय ने भारत के कुछ छात्रों को धोखाधड़ी से “एडमिशन” का झाँसा देकर पैसा वसूल कर लिया। भारत के ये छात्र उस समय अमेरिका में पकड़े गये, जब जाँच में पाया गया कि वह यूनिवर्सिटी फ़र्जी है और इसलिये ये छात्र बिना वैध अनुमति के अमेरिका में “घुसपैठ” के दोषी माने गये। इन छात्रों को “अमेरिका के कानूनों और नियमों” के मुताबिक इनके पैरों में बेड़ीनुमा इलेक्ट्रानिक उपकरण लगाकर रखने को कहा गया, जिससे यह छात्र किस जगह पर हैं यह पुलिस को पता चलता रहे…

केस क्रमांक 3) – पाकिस्तान में एक अमेरिकी रेमंड डेविस (Raymond Davis in Pakistan)  अपनी कार से जा रहा था, जिसे बीच रास्ते में दो लोगों ने मोटरसाइकल अड़ाकर रोका। तब उस अमेरिकी डेविस ने कार में से ही उन दोनों लोगों को गोली से उड़ा दिया, और अमेरिकी दूतावास से तत्काल मदद भी माँग ली। मदद के लिये आने वाली गाड़ी ने भी एक पाकिस्तानी को सड़क पर ठोक दिया और वह भी मारा गया, उसके गम में उसकी विधवा ने भी आत्महत्या कर ली। अब पाकिस्तान ने डेविस को पकड़ रखा है और “अपने देश के कानूनों” के अनुसार सजा देने की बात कर रहा है… पाकिस्तान में आक्रोश की लहर है।

केस क्रमांक 4)- जी हाँ, यही राहत फ़तेह अली खान (Pakistan Thanks Chidambaram)  वाला, जिसके बारे में विस्तार से सभी को पता ही है…

अब जैसा कि सभी जानते हैं, जैसे ही राहत फ़तेह अली खान को अवैध धनराशि के साथ पकड़ा गया उसी समय तत्काल पाकिस्तान ने आसमान सिर पर उठाना शुरु कर दिया। पाकिस्तान के गृहमंत्री और विदेश सचिवों ने भारत सरकार के सामने कपड़े फ़ाड़-फ़ाड़कर अपना रोना शुरु कर दिया… हमारे सेकुलर चैनलों ने मोटे तौर पर राहत के “अपराध” को हल्का-पतला बनाने और बताने की पुरज़ोर कोशिश की और पाकिस्तान द्वारा “भारत-पाकिस्तान के सम्बन्धों में दरार” जैसी गीदड़ भभकी के सुर में सुर मिलाते हुए हुँआ-हुँआ करना शुरु कर दिया… इन सभी के साथ जुगलबन्दी करने में महेश भट्ट (Mahesh Bhatt son with Hadley connection)  तो सदा की तरह “सेकुलर चैम्पियन” बनने की कोशिश कर ही रहे थे।

इस सारी “बुक्का-फ़ाड़ कवायद” का नतीजा यह निकला कि राहत फ़तेह अली खान को हिरासत में लेना तो दूर, भारतीय एजेंसियों ने 48 घण्टे तक यही तय नहीं किया कि FIR कैसी बनाई जाये और रिपोर्ट किन धाराओं में दर्ज की जाये, ताकि कहीं “सेकुलरिज़्म” को धक्का न पहुँच जाये और “अमन की आशा” (Aman ki Aasha)  का बलात्कार न हो जाये।

इन चारों मामलों की आपस में तुलना करने पर साफ़ नज़र आता है कि भारत चाहे खुद ही अपने “महाशक्ति” होने का ढोंग रचता रहे, “दुनिया में अपने कथित असर” का ढोल पीटता रहे, अपनी ही पीठ थपथपाता रहे… हकीकत यही है कि भारत के नेताओं और जनता के एक बड़े हिस्से में “राष्ट्रीय स्वाभिमान” और “राष्ट्रवाद” की भावना बिलकुल भी नहीं है। कड़वा सच कहा जाये तो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की “इज्जत” दो कौड़ी की भी नहीं है, “दबदबा” तो क्या खाक होगा। ये हाल तब है जब भारत की जनता का बहुमत प्रतिशत जवानों का है परन्तु दुर्भाग्य से इस “जवान देश” पर ऐसे नेता राज कर रहे हैं और कब्जा जमाए बैठे हैं जो कभी भी कब्र में टपक सकते हैं।

ऊपर की चारों घटनाओं का संक्षिप्त विश्लेषण करें तो हम पाते हैं कि पहली घटना में इंग्लैण्ड ने पाकिस्तान को दो टूक शब्दों में कह दिया कि खिलाड़ियों पर अपराध सिद्ध हुआ है, वीडियो में पकड़े गये हैं, केस चलेगा और सजा भी अदालत ब्रिटिश कानूनों के मुताबिक देगी… शुरुआत में पाकिस्तान ने थोड़ी सी चूं-चपड़ की और हमेशा की तरह “पाकिस्तानियों की छवि (हा हा हा हा हा हा हा) को खराब करने की साजिश” बताया, लेकिन ब्रिटेन ने उसे कड़े शब्दों में समझा दिया कि जो भी होगा कानून के मुताबिक होगा… जल्दी ही पाकिस्तान को समझ में आ गया और उसकी आवाज़ बन्द हो गई।

दूसरे मामले में भारत के छात्रों को फ़र्जी यूनिवर्सिटी की गलती की वजह से विपरीत परिस्थितियों से गुज़रना पड़ा, लेकिन अमेरिका ने “अपने आव्रजन एवं घुसपैठ के नियमों” का हवाला देते हुए उन्हें एक कैदी की तरह पैरों में इलेक्ट्रोनिक बेड़ियाँ (Tri-Valley Radio Tagging)  लगाकर घूमने का निर्देश दिया…। भारत वाले चिल्लाते रहे, ओबामा तक ने ध्यान नहीं दिया… हमारी दो टके की औकात बताते हुए साफ़ कर दिया कि “जो भी होगा कानून के तहत होगा…”।

तीसरा मामला मजेदार है, इसमें पहली बार पाकिस्तान को अमेरिका की बाँह मरोड़ने का मौका मिला है और वह फ़िलहाल वह अब तक इसमें कामयाब भी रहा है। अमेरिका ने डेविस को छोड़ने के लिये पाकिस्तान पर दबाव और धमकियों का अस्त्र चलाया, डॉलर की भारी-भरकम मदद बन्द करने की धमकी दी… अमेरिका-पाकिस्तान के रिश्तों में दरार आ जायेगी, ऐसा भी हड़काया… लेकिन पाकिस्तान ने डेविस को छोड़ने से “फ़िलहाल” इंकार कर दिया है और कहा है कि “पाकिस्तान के कानूनों के मुताबिक जो भी सजा डेविस को मिलेगी, न्यायालय जो निर्णय करेगा वही माना जायेगा…”। “फ़िलहाल” शब्द का उपयोग इसलिये किया क्योंकि डेविस को लेकर पाकिस्तान अपनी “सदाबहार घटिया सौदेबाजी” करने पर उतरने ही वाला है… और पाकिस्तान ने अमेरिका को “ऑफ़र” किया है कि वह डेविस के बदले में पाकिस्तान के एक खूंखार आतंकवादी (यानी हाफ़िज़ सईद जैसा “मासूम”) को छोड़ दे। अभी उच्च स्तर पर विचार-विमर्श जारी है कि डेविस के बदले डॉलर लिये जायें या “मासूम”।

और अन्त में चौथा मामला देखिये, राहत फ़तेह अली खान को लेकर उधर पाकिस्तान के मीडिया ने कपड़े फ़ाड़ना शुरु किया, इधर हमारे “सेकुलर मीडिया” ने भी उसके सुर में सुर मिलाना शुरु किया, महेश भट्ट-अरुंधती जैसे “टट्टू” भी भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों की दुहाईयाँ देने लगे…। सरकार ने क्या किया… पहले तो सिर्फ़ पूछताछ करके छोड़ दिया, फ़िर पासपोर्ट जब्त किया… और थोड़ा हल्ला मचा, तो दोबारा गिरफ़्तारी की नौटंकी करवा दी… लेकिन 48 घण्टे तक न तो आधिकारिक FIR दर्ज हुई और न ही धाराएं तय हुईं…। सोचिये, जब एक भिखमंगा देश (जो दान के अमेरिकी डॉलरों पर गुज़र-बसर कर रहा है) तक अपने अन्नदाता अमेरिका को आँख दिखा देता है, और एक हम हैं जो खुद को “दुनिया के सबसे बड़े उभरते बाज़ार” को लेकर मगरूर हैं, लेकिन “स्वाभिमान” के नाम पर जीरो…

हमारे देश के नेता हमेशा इतना गैर-स्वाभिमानी तरीके से क्यों पेश आते हैं? राहत खान की सफाई ये है कि उन्हें सवा लाख डॉलर एक प्रोग्राम के एवज में मिले हैं। जबकि कानून के अनुसार अगर कोई व्यक्ति भारत में पैसा कमाता है तो उसे भारतीय करेंसी में ही पेमेंट हो सकता है। राहत फतेह अली खान के साथ ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। पिछले साल दिसंबर महीने में भी राहत को तय सीमा से ज्यादा नकद ले जाने की कोशिश करते हुए पकड़ा गया था। सूत्रों का कहना है कि उस वक्त उनके पास ज्यादा कैश नहीं था इसलिए उन्हें सिर्फ चेतावनी देकर छोड़ दिया गया था। सूत्रों का यह भी कहना है कि उन्होंने अपने 7 बड़े कार्यक्रमों की कमाई का 5.4 करोड़ रुपया दुबई के रास्ते लाहौर हवाला के जरिए ही पहुंचवाया (और हम निकम्मों की तरह “सेकुलरिज़्म” की चादर ओढ़े सोये रहे)। यह आदमी ऐसा कैसा “सूफ़ी गायक” है? क्या यही सूफ़ी परम्परा की नौटंकी है, कि “हिन्दी फ़िल्म में मुफ़्त में गाता हूँ…” कहकर चुपके से करोड़ों रुपया अंटी करता रहता है? (Rahat got money for programmes) इससे पहले भी एक और पाकिस्तानी गायक अदनान सामी (Adnan Sami Purchased Property in India) ने मुम्बई में 20 करोड़ रुपये की सम्पत्ति खरीद ली… भ्रष्टाचार में गले-गले तक सने हुए हमारे देश के अधिकारियों ने आँखें मूंदे रखीं, जबकि कोई पाकिस्तानी व्यक्ति भारत में स्थायी सम्पत्ति खरीद ही नहीं सकता… और “सेकुलरिज़्म” का हाल ये है कि भारत का कोई व्यक्ति पाकिस्तान तो छोड़िये, कश्मीर में ही ज़मीन नहीं खरीद सकता…।

राहत फ़तेह या अदनान सामी के मामले तो हुए तुलनात्मक रूप से “छोटे मामले” यानी आर्थिक अपराध, टैक्स चोरी और हवाला… लेकिन हम तो इतने नाकारा किस्म के लोग हैं कि देश की राजधानी में सरकार की नाक के नीचे यानी संसद पर हमले के दोषी को दस साल से खिला-पिला रहे हैं, आर्थिक राजधानी मुम्बई पर हमला करने वाला मजे मार रहा है और उसकी सुरक्षा में करोड़ों रुपया फ़ूँक चुके हैं… और ऐसा नहीं है कि ये पिछले 10-15 साल में आई हुई कोई “धातुगत कमजोरी” है, हकीकत तो यह है कि आज़ादी के बाद से ही हमारे नेताओं ने देश के स्वाभिमान के साथ खिलवाड़ किया है, न तो खुद कभी रीढ़ की हड्डी वाले बने और न ही जनता को ऐसा बनने दिया। पुरुलिया हथियार काण्ड (Purulia Arms Drop Case) के बारे में सभी लोग जानते हैं, एक विदेशी व्यक्ति हवाई जहाज लेकर आता है, भारत में हथियार गिराता है, हम उसे गिरफ़्तार करते हैं और रूस, लातविया और डेनमार्क द्वारा सिर्फ़ एक बार “डपट” दिये जाने पर दुम दबाकर उसे छोड़ देते हैं…। भोपाल में गैस लीक (Bhopal Gas Tragedy and Anderson) होती है, 15000 से अधिक इंसान मारे जाते हैं… और हम “”घिघियाए हुए कुत्ते” की तरह वॉरेन एण्डरसन की आवभगत भी करते हैं और उसे आराम से घर जाने देते हैं। देश की सबसे बड़ी (उस समय के अनुसार) पहली “लूट” यानी बोफ़ोर्स के आरोपी को हम उसके घर जाकर “क्लीन चिट” दे आते हैं… देश के भ्रष्ट और निकम्मे लोगों में कोई हलचल, कोई क्रान्ति नहीं होती।

1) पाकिस्तानी फ़िल्म “सरगम” में अदनान सामी की बीवी ज़ेबा के लिये आशा भोंसले ने “प्लेबैक” दिया था… पाक अधिकारियों ने फ़िल्म को तब तक प्रदर्शित नहीं होने दिया… जब तक अदनान सामी ने आशा भोंसले के गाने हटाकर हदिया कियानी की आवाज़ में गाने दोबारा रिकॉर्ड नहीं करवा लिये…

2) (वैसे ऐसा कभी होगा नहीं फ़िर भी) कल्पना कीजिये कि लाहौर हवाई अड्डे पर सोनू निगम सवा लाख डालर के साथ पकड़ा जाये और उस पैसे का हिसाब न दे तो उसके साथ क्या होगा?

3) “सेकुलरिज़्म की गन्दगी” का उदाहरण भी देखिये कि, जब देश के एक राज्य के सबसे सफ़ल मुख्यमंत्री को अमेरिका वीज़ा नहीं देता (Narendra Modi Denied Visa to US) तो यह मीडिया द्वारा यह “देश का अपमान” नहीं कहलाता, लेकिन जब एक “नचैये-भाण्ड” (Shahrukh Khan Detained at US Airport) को एयरपोर्ट पर नंगा करके तलाशी ली जाती है (वहाँ के कानूनों के मुताबिक) तो भूचाल आ जाता है और समूची “शर्मनिरपेक्षता” खतरे में आ जाती है…

उधर चीन अपनी हवाई सीमा में घुस आये अमेरिका के लड़ाकू विमानों को रोक लेता है और जब तक अमेरिका की नाक मोरी में नहीं रगड़ लेता, तब तक नहीं छोड़ता… जबकि इधर हमारी कृपा से ही आज़ाद हुआ बांग्लादेश सीमा सुरक्षा बल के जवानों की हत्या करके जानवरों की तरह उनकी लाशें टाँगकर भेजता है और हम सिर्फ़ “चेतावनी”, “बातचीत”, “कूटनीतिक प्रयास” इत्यादि में ही लगे रहते हैं…। प्रखर “राष्ट्रवाद” की भावना देशवासियों के दिल में इतनी नीचे क्यों चली गई है? दुनिया की तीसरी (या चौथी) सबसे बड़ी सेना, हर साल खरबों रुपये की हथियार खरीद, परमाणु अस्त्र-शस्त्र, मिसाइलें-टैंक… यह सब क्या “पिछवाड़े” में रखने के लिये हैं?

इस सवाल का जवाब ढूंढना बेहद आवश्यक है कि “राष्ट्र स्वाभिमान”, “गौरव” और “प्रखर राष्ट्रवाद” इतना क्यों गिर गया है, कि कोई भी ऐरा-गैरा देश हमें पिलपिलाये हुए चूहे की तरह क्यों लतिया जाता है और हम हर बार सिर्फ़ हें-हें-हें-हें-हें-हें करते रह जाते हैं? विदेशों में सरेआम हमारे देश का और देशवासियों का अपमान होता रहता है और इधर कोई प्रदर्शन तक नहीं होता, क्या इस पराजित मनोवृत्ति का कारण –

1) “नेहरुवादी सेकुलरिज़्म” है?

2) या “मैकाले की गुलाम बनाने वाली शिक्षा” है?

3) या “गाँधीवादी अहिंसा” का नपुंसक बनाने वाला इंजेक्शन है?

4) या अंग्रेजों और मुगलों की गुलामी का असर अब तक नहीं गया है?

5) या कुछ और है?  

या सभी कारण एक साथ हैं? आपको क्या लगता है…? एक मजबूत, स्वाभिमानी, अपने कानूनों का निष्पक्षता से पालन करवाने वाले देश के रूप में क्या कभी हम “तनकर खड़े” हों पायेंगे या इतनी युवा आबादी के बावजूद ऐसे ही “घिसटते” रहेंगे…? आखिर इसका निदान कैसे हो…? आप बतायें…

40 Comments

  1. February 19, 2011 at 8:17 am

    >बाई दी वे ; ये राष्ट्रीय स्वाभीमान होता क्या है भाई ? … हम तो मजबूर है अपने प्रधानमंत्री के तरह !

  2. February 19, 2011 at 8:18 am

    >और बिन पैंदे के लोटे है आडवाणी की तरह, कहीं भी लुडक सकते है !

  3. February 19, 2011 at 8:58 am

    >एक समय था जब हम गर्व से स्वयं को भारतीय कहते थे, किन्तु अब वह स्वाभिमान कहाँ गया? अब शर्म क्यों आने लगी है? क्या हो गया ७० करोड़ की युवा आबादी को?सुरेश भाई आपके द्वारा उठाए गए सवाल विचार करने योग्य हैं| स्वाभिमान जगाना जरूरी है| युवाओं को आगे आना होगा| किन्तु वह युवा राहुल गांधी हो यह भी अस्वीकार करना होगा| देखा जाए तो आज के युवा राहुल गांधी ही हैं| किसी को कुछ नहीं पड़ी है देश की| जो युवा कुछ करना चाहते हैं उन्हें मौका ही नहीं मिलता| ऐसा भी मैंने बहुत बार देखा है| कृपया इसे पढ़ें http://pndiwasgaur.blogspot.com/2011/02/blog-post.htmlबाकी तो आप भी सब जानते ही हैं| महेश भट्ट हो या अरुंधती राय, इन भाड़े के टट्टुओं से उम्मीद लगाना बेकार है|वैसे तो आपके लेख हमें पसंद आते ही हैं किन्तु आज तो लेख ने सोचने पर मजबूर कर दिया है क़ि अब कब तक यह भौंडापन चलता रहेगा? विचार करना जरूरी है किन्तु केवल विचार या वार्तालाप से भू कुछ नहीं होगा, सख्त कदम उठाने की प्रबल आवश्यकता है|

  4. Rajeev Kumar said,

    February 19, 2011 at 9:03 am

    >hamara khun pani ho gaya hai bhai.

  5. nitin tyagi said,

    February 19, 2011 at 9:16 am

    >eye opener article

  6. February 19, 2011 at 10:01 am

    >जब चेन्नई एयरपोर्ट से डालर भरा हवाई जहाज चुपचाप देश के बाहर उड़ सकता है (बकौल सुब्रामनियन स्वामी) तो राहत फतह अली जैसे किस्से तो छोटी बात हैं, किसी सिरफिरे राष्टवादी अफसर की करतूत!जिंदगी भर इसे प्रमोशन नहीं मिलेगा। गोदियाल जी ने आडवानी की भली कही, अब आडवानी पर कार्यवाही होनी चाहिये बिना तथ्य गाधीं परिवार पर आरोप लगाने के लिये।

  7. dileep kumar said,

    February 19, 2011 at 10:06 am

    >nice thoughts sirwith warm regards,Dileep KumarPh.D (Pursuing)Pharm.Chem.Res.LabDeptt.of PharmaceuticsInstitute of TechnologyBanaras Hindu UniversityVaranasi-221005INDIA

  8. February 19, 2011 at 11:01 am

    >स्वाभिमान!!!!! यह किस चिड़िया का नाम है ???? ये असल कमीने छिपे शफ्फाफ पोशाको मेंनित नित लूट माल भरते निज तोशाखाने मेंबदनाम करें खुद करतूतों से पंथ विशेष कोकी फांसी दी तो विशेष नष्ट करदेंगे देश कोअमित आस बस नेक्स्ट जेन के भरोसे हैवरना गठबंधन के लाचारी मन मसोसे हैगठबंधन की लाचारी या मन ही भ्रष्ठाचारी हैप्यादे को करके आगे खा रही विदेशी नारी हैक्या कभी हम “तनकर खड़े” हों पायेंगे या इतनी युवा आबादी के बावजूद ऐसे ही “घिसटते” रहेंगे…?कौन सी युवा आबादी की बात कर रहें है आप ?????युवा आबादी तो कुछ इन्ही में सिमट कर रह गयी है ————- भंड भांड बहुत फिरे पी वारूणी मतवारेहरी कीर्तन भूले, गावें मुन्नी गान सारे जोबन युवान को सारो गर्त में ही चल्यो जात हैदेश,संस्कृति को छोड़, शीला की चिंता खात हैमोहल्ला में कौन मर्यो बस्यो कछु खबर नहींपर आर्कुट,फेसबुक पर सिगरो जगत बतरात हैअरे यह काहे को जोबन और कैसी जबानी हैखाली फूंकनी सी नसान में बहयो जात पानी है

  9. February 19, 2011 at 11:27 am

    >We need CHANGE now… we were in need, we tried, but 'AKELA CHANA BHAAD NAHI FOD SAKTA'…. and the blogpost of Er. Diwas Gaur, "YE KAISA JANAADESH' also shows that we couldn't get our government due to the 'REAL POLITICS'.. But this will not happen again and again. This is the time of Revolution.. and we will get much much better then Arab countries..:)

  10. Kamal said,

    February 19, 2011 at 11:32 am

    >सुरेश भाई अब तो कभी कभी खुद पे शर्म आने लगी है जब छोटे छोटे बच्चे वर्तमान हालातों पर प्रश्न पूछते हैं हमसे जवाब देते नहीं बन पड़ता चाहे वो मनमोहन का मज़बूरी वाला बयान हो या फिर अडवानी का माफ़ी मांगने वाला बयान! इन लोगों की रीढ़ भी होती है या ……………………..?

  11. Rajesh said,

    February 19, 2011 at 12:08 pm

    >bahut acha likha suresh ji.

  12. Rajesh said,

    February 19, 2011 at 12:13 pm

    >Bahut acha likha suresh ji. Ye hindu jab tak ek nahi honge, ese hi pit te rahenge.

  13. February 19, 2011 at 12:47 pm

    >राहत की जगह पाक में भारत का हिन्दु गायक पकड़ा जाता तो जेल में होता और बाहर निकलता तो मुस्लिम हो कर ही. लगा लो शर्त.

  14. Chalk-Duster said,

    February 19, 2011 at 1:33 pm

    >मुफ्त में गाता है तो लाखों डॉलर कहाँ से आये? केवल शो कर के? जवाब दीजिए, यदि आप पांचवीं पास से तेज हैं!

  15. February 19, 2011 at 3:07 pm

    >जिन देशों के उदाहरण दे रहे हैं, वे साम्प्रदायिक देश हैं… वहां राज्य का धर्म है… इस्लाम और ईसाई.. हम धर्मनिरपेक्ष हैं… इसलिये हमारी नीतियों पर उंगली नहीं उठाना चाहिये… आखिर यह महत्वपूर्ण स्तम्भ हैं देश का./.

  16. Anonymous said,

    February 19, 2011 at 4:00 pm

    >Sir , your articles and comments are very inspiring . What do you think of getting hold of some honest officers , teachers , institutions , individual's effort and give them recognition through your blog so that we understand national philsophy , secularism , brotherhood and human values..Hindustan RAMBHAROSE CHAL RAHA HAI , kyon na hum un RAMO KO DHUNDE aur self audit se khud desh ke sartak nirman me hissa le ….

  17. February 19, 2011 at 4:52 pm

    >ये राहत फते अली, अदनान जैशे नचनिया पदानिया भारत में आतेही क्यूँ है? क्यों के भारत में महेश भट्ट, दिलीप, सबाना, सलमान जैशे पकिश्तानी भडवे को सह देते हैं, लेकिन कोई भारतीय नचनिया पदानिया पकिश्तन जाकर धन कमाकर भारत क्यूँ नहीं लाता, क्योँ के वहा हमारे देश जैशे देश द्रोही भडवे नहीं मिलते होंगे, ये टीवी वाले अब अपना ज़मीर इश कदर बेंच चुके हैं कि, बिग्बोश, सारेगामा, कोमेडी, डांश, जैशे प्रोग्राम में इन पकिश्तानियों को आमंत्रित करते है, क्या इन्हें भारतीय युवा युवतियों में कोई टेलेंट नज़र ही नहीं आता, अब किन किन लोगों कि बात करे, राजनेता (माइनो प्रेमी) मिडिया (विदेशी राशी से चलने वाला कथित सेकुलर) और अब ये नाचने गाने वाले भांडों के पैरोकार सब बिक चुके हैं, अब हिन्दुओं को अपने बच्चों को मजूरी ही करवानी पड़ेगी…..

  18. February 19, 2011 at 6:03 pm

    >बहुत सही लिखा सब से पहले तो इस काग्रेस नाम के केंसर का इलाज हमे चाण्क्या नीति से करना चाहिये, ताकि यह दोबारा भारत मे ना पनप सके, ओर इस के दल बदलू नेताओ को किसी वीरान टापू पर छोडा आये जिस के चारो को मगर मच्छ छोडे जाये, या इन्हे पाकिस्तान, अफ़गानिस्ता्न मे फ़ेंक दिया जाये, जहां इन के बाप बेठे इन्हे हुकम देते हे

  19. February 19, 2011 at 7:00 pm

    >aap ka kahna sahi hai ….aaj hum unhi logo ka aadar satkar karte hain jo hame loot rahe hain aur ye aaj se nahi hai ye angrejon k samay se chala aa raha hai us waqt congress gulami karta tha aur ab hum in congress netaon ki gulami kar rahe hain….kaun kahta hai k hamne aazadi payi hai ye to hame bheekh me mili hai….. aaj begunah saza pa rahe hain aur gunahgaar azad ghoom rahe hain..aaj k neta apne hi desh ko loot kar videshi khton me jama kar rahe hain……..main sirf ye kahna chahunga k aaj desh k liye koi kuch nahi karta bas sirf dukh mana rahe hain k hum bahut pichde hue hain, agar sahi neta desh ka karya bhar sambhalega tabhi desh ka kuch hoga.nivedan hai k apne vote ka sahi istemaal karen aur dekh ko age badhayen..main achha lekhak nahi hun par main apne vichar aapke samne rakh raha hundhanyawaad

  20. February 20, 2011 at 3:53 am

    >झाड़ू का एक तिनका अकेला होता है तो कचरा कहलाता है ओर कचरापेटी में फेंक दिया जाता है |परन्तु यदि झाड़ू के ५०-६० तिनके भी एकजुट हो जाएँ तो वे झाड़ू बन जाते है – गंदगी साफ करने के लिए |भारत के युवा वर्ग को सोचना है कि उसे कचरापेटी में जाना है अथवा एकजुट होकर भारत की गंदगी साफ करनी है |

  21. February 20, 2011 at 5:22 am

    >हम लोग …याने हम भारतीय लोगों का स्वाभिमान… वैसे भी मरा हुआ है..जहाँ जबरन अंग्रेजी बोली जाती हो… उस देश का स्वाभिमान क्या होगा…. एक मजेदार इनसिडेंट बताता हूँ … अभी हाल का ही है… लखनऊ के के.ऍफ़.सी. में गया था… काउन्टर के उस पार खड़े लड़के से मैंने मेन्यू देख कर कुछ आर्डर किया… वो कुछ अंग्रेजी में बताने लगा… भीड़ की वजह से मेरी कुछ समझ में नहीं आया… दूसरा उसकी अंग्रेजी बिलकुल अंग्रेजी के आठ की तरह… टेढ़ी-मेढ़ी …मेरी समझ में ही नहीं आया… मैंने उससे पूछा दोबारा …वो साला फिर अंग्रेजी में शुरू हो गया… शोर की वजह से उसकी बातें समझ में ही नह आ रही थी… मैंने उससे कहा की भई हिंदी बोल ले… क्या सुबह – सुबह कोई अँगरेज़ घर पर आया था? तभी बगल में एक सुन्दर सी खडी लड़की ने मुझे समझाया… अब लड़की समझाए और समझ में ना आये … ऐसा हो सकता है क्या…? तभी वो काउन्टर के पीछे खड़ा लड़का कहता है…. कि At least he should know English… मैंने कहा … कि भई अगर मैं इतना ही अंग्रेजी जानता तो तेरी तरह सेल्समैन नहीं होता…यहाँ पर? ….. लेक्चरार क्यूँ बनता… ? तो यहाँ स्वाभिमान का नाम ही मत लीजये… हमें यहाँ पाकिस्तान जैसा टटपूंजिया … टेकन फॉर ग्रैनटेड…. ले लेता है… और हमारे स्वाभिमान को कई बार रौंद देता है… और हमारा स्वाभिमान है कि जगता ही नहीं… हम सिर्फ कॉंग्रेसी सेक्यूलरिज्म .. ही करते रह जाते हैं… और के.ऍफ़.सी. जैसी विदेशी कंपनी अपने एम्प्लोयीज़ की सैलारी हिंदी बोलने पर काट लेती है… और हम चुप रह जाते हैं… दरअसल बात कुछ नहीं है….इतने साल गुलाम रह कर हम जेनेटिकली खराब हो चुके हैं… और अब अपने जींस सुधारना नहीं चाहते हैं…

  22. Man said,

    February 20, 2011 at 11:27 am

    >वन्देमातरम सर ,शहतूत के कीड़ो के मानिंद सुविधा भोगी वर्तमानिक भारतीय समाज से अभी तो कोई ऐसी आशा रखना ही बेकार हे हाँ नवीन पीढ़ी तेजी से रास्ट्रीय सवाभिमान के विचारो को तेजी से ग्रहण कर रही हे लेकिन उन्हें जय प्रकाश वाला नेत्र्तव नहीं मिल रहा |भारतीय जनता पार्टी के मिलावटी लोहे के पुरष आडवानी c.b.i की सुप्रीम कोर्ट को दि याचिका पर केसे सोनिया के सामने "डोगी स्टाइल"' में आ गया |ये चरित्र हे इन "बीड" के लोह पुरषों का बाकि रास्ट्रीय एकता के नाम पर मूम्बती ब्रिगेड जरूर नोटंकी कर लेती हे कभी कभी |

  23. Yash said,

    February 20, 2011 at 4:25 pm

    >शाहरुख खान को तो तो खैर मार भी देते वहाँ तो अच्छी बात होती ! उस हारामी को तो कितनी गलियाँ दे कम है !

  24. Kajal Kumar said,

    February 20, 2011 at 4:42 pm

    >कड़े लोगों को चुन कर भेजने की ज़रूरत है

  25. February 20, 2011 at 4:42 pm

    >राहत फ़तेह अली खान ने कानूनी के विरुद्ध कुछ किया है तो उन्हें वही सजा मिलनी चाहिए जो किसी आम आदमी को उस अपराध के लिए मिलती.. और भारत को किसी दबाव के आगे नहीं झुकना चाहिए… पर राहत और शाहरुख के लिए 'सोफ़िस्टिकेटेड भिखमंगे' और 'नचैये-भाण्ड' जैसे शब्दों का प्रयोग (सिर्फ इसलिए कि वे मुसलमान हैं) मेरे हिसाब से उचित नहीं है… पैसे लेकर शो सभी कलाकार करते हैं और इसमें कुछ भी गलत नहीं है… कला के क्षेत्र में राहत और शाहरुख का अपना स्थान है और मैं इसके लिए उनका सम्मान करता हूँ… और हर बात में पाकिस्तान से तुमना क्यों… कि पाकिस्तान में भारतीय गायक नहीं गा सकते तो हम भी उन्हें न आने दें… फिर हममें और उनमें अंतर क्या रहेगा?

  26. Beqrar said,

    February 20, 2011 at 4:46 pm

    >सुरेश जी अंतर्मन को झकझोरते और स्वाभिमान को ललकारते इस ओजस्वी और तथ्य परक लेख के लिए साधुवाद

  27. P K Surya said,

    February 21, 2011 at 5:20 am

    >Bhaiya ko Pranam, hum kya bolen sari bat aap ne bol diya hen hum kya solution batayen samajh nahi ata mujhe kabhi kabhi khud par bhi Ghirna hoti he mai kyon nahi kuchh kar sakta parantu mughe lagta he ap se prerit ho kar ap jaise 100 log bhi ho jaen to tabhi desh ka bhala hoga maine to videsi cheez kharidni chhod dee he lekin kya karun etna nahi saha jata mai 29 yrs ka hun Delhi 8 saal pahle aya tha par aj tak achchha naukar nahi ban paya kyonki english se ghrina thi par ab sikhna majburi he nahi to yaha sala privat to dur sarkari naukri me b english chahiye, or jahan vichar he english ho wahan achar vayvahar bhi apne ap english hota he par ab maine nirnaya le liya he english sikhunga parantu uska paryog en haramkhor deshdrohiyon k liye karunga chahe jo b ho….. Jai Bharat

  28. Yogi said,

    February 21, 2011 at 6:01 am

    >अफज़ल गुरु और अजमल कसाब को फांसी देकर शहीद बनाने में अपना ही नुकसान है. इन्हें जीवन भर कालकोठरी में सड़ाना चाहिए.

  29. February 21, 2011 at 8:18 am

    >इतने प्रतिभावान गुनी लोगों के विषय में ये समाचार बहुत दुखी करने वाले हैं…खैर अपने देश का क्या कहा जाय…आपने जो कारन गिनाए, कोई एक दो नहीं चारों ही हैं…सेक्युलरिज्म का व्यवहारिक रूप घोर सांप्रदायिक है,जहाँ केवल और केवल तुष्टिकरण चलती है..

  30. February 21, 2011 at 10:13 am

    >HAR BHARTIYA KO YAH LEKH PADHNA CHAHIYE .. TAKI SABKI AANKHE KHULE…

  31. February 21, 2011 at 1:10 pm

    >जिस राष्ट्र के लोगों में अपने मूल्यों, अपनी विरासत आदि के प्रति कोई सकारात्मक भाव ही न हो, उसे "राष्ट्रीय स्वाभिमान" की परिभाषा कहां से मालूम होगी, जो वह प्रदर्शित कर सके ! @ सतीश, यह सही है कि सिर्फ़ मुसलमान होने के कारण किसी को परेशान नहीं किया जा सकता या भांड आदि विशेषण से नहीं नवाजना चाहिए, लेकिन यह भी सही है कि केवल मुसलमान होने के कारण ही उन्हें "देश के संसाधन पर पहला हक" भी नहीं दिया जा सकता, और "अफ़जल" को सिर्फ़ मुसलमान होने के कारण उसकी फांसी को लटका के नहीं रखा जा सकता।

  32. February 21, 2011 at 2:45 pm

    >एक बार रोम हो जाओ मेरे देश….

  33. February 21, 2011 at 3:01 pm

    >दिवाकर मणि जी … मानवाधिकार आयोग इसी लिए तो है:) जहां काम पड़े फिट कर दो…

  34. JAGDISH BALI said,

    February 21, 2011 at 4:47 pm

    >You are right on dot. धरा बेच देंगे, आसमा बेच देंगे, ये सियासतदां देश बेच देंगे !

  35. February 22, 2011 at 3:00 am

    >सुरेश भाई, जिस देश में जयचंद भरे पड़े हो, जहाँ छह दशक से लगातार नपुंसक, भ्रष्टाचारी, जाहिल लोग जिनकी असली औकात दो टके की भी नहीं है लेकिन वो केवल जातिगत गंदगी के कीचड़ में सने सूअर बन कर राज कर रहे हो वहाँ कैसी क्रांति कैसा स्वाभिमान !!! देश के लोगो का खून पानी हो चुका है. लोग इसी तरह मवेशी की जिंदगी जीने के आदि हो चुके है. रोज सेंसेक्स के ग्राफ की तरह हजारो करोड के घोटाले, नित नए अपराध को देश अपनी नियति मान बैठा है. अब देख लीजिए करीब ढाई साल तक केवल बयानबाजी करने के बाद भारत फिर से अपने उसी पडोसी देश से शांति वार्ता के लिए तैयार हो गया है जिसने हर साल देश को जख्म ही दिए है. महा(महिम) राष्ट्रपति ने कहाँ है कि भारत पाक से सब मुद्दों पर बातचीत को तैयार है बशर्ते पाकिस्तान अपनी जमीन से आतंकवादी गतिविधो को पनपने न दे. जैसे की यहाँ राष्ट्रपति ने कहाँ और पाकिस्तान ने कर दिया. अरे जो देश अपने को टुकड़े डालने वाले आका अमेरिका की नहीं सुनता वो भारत जैसे कमजोर देश को क्या भाव देगा. अन्तोगत्वा, फिर कोई दुर्घटना होगी, पडोसी फिर से कोई नया जख्म देगा, एक दो साल नौटंकी होगी और फिर शांति वार्ता बहाल कर दी जायेगी. सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-जहाँ हमारा फिर भी कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी !!

  36. February 22, 2011 at 6:34 am

    >@दिवाकर सर,बिलकुल सहमत हूँ सर आपसे… पर कभी कभी यह भी लगता है कि गलती तो हमारे स्वार्थी और नपुंसक नेताओं और उनकी नीतियों की है.. निश्चय ही मुसलामानों में गद्दार और देशद्रोही लोग भी हैं (जो कि हिंदुओं में भी हैं). पर इसका गुस्सा अच्छे और निर्दोष लोगों पर निकलना सही होगा क्या? अगर हमारे देश की नीतियां सख्त हों और 'माइनोरिटी अपीज्मेंट' की गंदी राजनीति छोड़ दी जाए तो स्थिति अपने आप सही हो जायेगी… ज्यादा दुलार देने पर उद्दंड और दुस्साहसी हो जाना स्वाभाविक ही है..

  37. jay said,

    February 22, 2011 at 7:26 am

    >वास्तव में कुछ सूझ नहीं रहा है कि इतने उचक्कों के रहते हुए हम किस तरह सर उठाकर दुनिया में खड़े रह पायेंगे. अंजामें गुलिश्तां क्या होगा हर शाख पे उल्लू बैठा है. ऐसा उल्लू जिसे केवल रात के अँधेरे में ही दिखाई देता है. ऐसा उल्लू जो कहीं भी 'लक्ष्मी'को देखते ही अपना पीठ, अपना पिछवाड़ा झुकाने को तैयार खडा होता है. लानत है देश की कमीनी शासन व्यवस्था पर..बहरहाल..अलख जगाते रहिये सुरेश जी. आवाज़ ज़रूर दूर तलाक पहुचेगी आज नहीं तो निश्चय कल…सादर/पंकज.

  38. February 22, 2011 at 8:58 am

    >BRAVO' …… AAP TO HO HI…….MAHFOOZ BHAI KE COMMENT …. JOR KA JHATKA DENE WALA HAI….PRANAM.

  39. March 6, 2011 at 7:17 am

    >suresh ji aap ke lekh kamaal ke hain.Main hatprabh hu ki itni jaankari aap kaise juta late hain.Kabhee kabhee to mujhe aisa lagta hai ki main koi blog nahi balki ek gyankosh padh raha hu.Itni sateek or aankhe khol dene wali jaankari ke liye dil se dhanyawaad deta hu.Par kabhee kabhee mujhe aap bhavavesh me aakar likhte lagte hain.Jaise ki upar satish ji ne likha bhee hai> Kripya ise meri aalochna naa samajhkar samalochna samjhein.Qki agar rashtrahit mein kuch galat hota hai to uske zimmeda hum log zyada hain banispat un kathit "bhando", "musalmano" or "isaiyon" ke. ye hamari kamzori hai ki hamare desh mein ye log itna kuch kar lete hain or hum kuch nahi karte ya kar pate.

  40. March 6, 2011 at 7:19 am

    >mere kathan par aapki tippani avashya chahunga.Dhanyavad.


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