>रामदेव Vs अण्णा = “भगवा” Vs “गाँधीटोपी सेकुलरिज़्म”?? (भाग-2) … Anna Hazare, Jan-Lokpal Bill, Secularism in India (Part-2)

>(भाग-1 से जारी…http://blog.sureshchiplunkar.com/2011/04/jan-lokpal-bill-national-advisory.html) पेश है दूसरा और अन्तिम भाग…

यह कहना मुश्किल है कि “झोलाछाप” सेकुलर NGO इंडस्ट्री के इस खेल में अण्णा हजारे खुद सीधे तौर पर शामिल हैं या नहीं, परन्तु यह बात पक्की है कि उनके कंधे पर बन्दूक रखकर उनकी “छवि” का “उपयोग” अवश्य किया गया है… चूंकि अण्णा सीधे-सादे हैं, इसलिये वह इस खेल से अंजान रहे और अनशन समाप्त होते ही उन्होंने नरेन्द्र मोदी और नीतीश कुमार की तारीफ़ कर डाली… बस फ़िर क्या था? अण्णा की “भजन मंडली” (मल्लिका साराभाई, संदीप पाण्डे, अरुणा रॉय और हर्ष मंदर जैसे स्वघोषित सेकुलरों) में से अधिकांश को मिर्गी के दौरे पड़ने लगे… उन्हें अपना खेल बिगड़ता नज़र आने लगा, तो फ़िर लीपापोती करके जैसे-तैसे मामले को रफ़ा-दफ़ा किया गया। यह बात तय जानिये, कि यह NGO इंडस्ट्री वाला शक्तिशाली गुट, समय आने पर एवं उसका “मिशन” पूरा होने पर, अण्णा हजारे को दूध में गिरी मक्खी के समान बाहर निकाल फ़ेंकेगा…। फ़िलहाल तो अण्णा हजारे का “उपयोग” करके NGOवादियों ने अपने “धुरंधरों” की केन्द्रीय मंच पर जोरदार उपस्थिति सुनिश्चित कर ली है, ताकि भविष्य में हल्का-पतला, या जैसा भी लोकपाल बिल बने तो चयन समिति में “अण्णा आंदोलन” के चमकते सितारों(?) को भरा जा सके।

जन-लोकपाल बिल तो जब पास होगा तब होगा, लेकिन भूषण साहब ने इसमें जो प्रावधान रखे हैं उससे तो लगता है कि जन-लोकपाल एक “सर्वशक्तिमान” सुपर-पावर किस्म का सत्ता-केन्द्र होगा, क्योंकि यह न्यायिक और पुलिस अधिकारों से लैस होगा, सीबीआई इसके अधीन होगी, यह समन भी जारी कर सकेगा, गिरफ़्तार भी कर सकेगा, केस भी चला सकेगा, मक्कार सरकारी मशीनरी और न्यायालयों की सुस्त गति के बावजूद सिर्फ़ दो साल में आरोपित व्यक्ति को सजा भी दिलवा सकेगा… ऐसा जबरदस्त ताकत वाला संस्थान कैसे बनेगा और कौन सा राजनैतिक दल बनने देगा, यही सबसे बड़ा पेंच है। देखते हैं यमुना में पानी का बहाव अगले दो महीने में कैसा रहता है…

जन-लोकपाल बिल पर होने वाले मंथन (बल्कि खींचतान कहिये) में संसदीय परम्परा का प्रमुख अंग यानी “प्रतिपक्ष” कहीं है ही नहीं। कुल जमा दस लोग (पाँच-पाँच प्रतिनिधि) ही देश के 120 करोड़ लोगों का प्रतिनिधित्व करेंगे… इसमें से भी विपक्ष गायब है यानी लगभग 50 करोड़ जनता की रायशुमारी तो अपने-आप बाहर हो गई… पाँच सत्ताधारी सदस्य हैं यानी बचे हुए 70 करोड़ में से हम इन्हें 35 करोड़ का प्रतिनिधि मान लेते हैं… अब बचे 35 करोड़, जिनका प्रतिनिधित्व पाँच सदस्यों वाली “सिविल सोसायटी” करेगी (लगभग एक सदस्य के हिस्से आई 7 करोड़ जनता, उसमें भी भूषण परिवार के दो सदस्य हैं यानी हुए 14 करोड़ जनता)। अब बताईये भला, इतने जबरदस्त “सभ्य समाज” (सिविल सोसायटी) के होते हुए, हम जैसे नालायक तो “असभ्य समाज” (अन-सिविल सोसायटी) ही माने जाएंगे ना? हम जैसे, अर्थात जो लोग नरेन्द्र मोदी, सुब्रह्मण्यम स्वामी, बाबा रामदेव, गोविन्दाचार्य, टीएन शेषन इत्यादि को ड्राफ़्टिंग समिति में शामिल करने की माँग करते हैं वे “अन-सिविल” हैं…

जन-लोकपाल की नियुक्ति करने वाली समिति बनाने का प्रस्ताव भी मजेदार है-

1) लोकसभा के दोनों सदनों के अध्यक्ष रहेंगे (इनकी नियुक्ति सोनिया गाँधी ने की है)

2) सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठ जज होंगे (बालाकृष्णन और दिनाकरण नामक “ईसाई” जजों के उदाहरण हमारे सामने हैं, इनकी नियुक्ति भी कांग्रेस, यानी प्रकारान्तर से सोनिया ने ही की थी)

3) हाईकोर्ट के दो वरिष्ठतम जज भी होंगे… (–Ditto–)

4) मानव-अधिकार आयोग के अध्यक्ष होंगे (यानी सोनिया गाँधी का ही आदमी)

5) भारतीय मूल के दो नोबल पुरस्कार विजेता (अव्वल तो हैं ही कितने? और भारत में निवास तो करते नहीं, फ़िर यहाँ की नीतियाँ तय करने वाले ये कौन होते हैं?)

6) अन्तिम दो मैगसेसे पुरस्कार विजेता… (अन्तिम दो??)

7) भारत के महालेखाकार एवं नियंत्रक (CAG)

8) मुख्य चुनाव आयुक्त (यह भी मैडम की मेहरबानी से ही मिलने वाला पद है)

9) भारत रत्न से नवाज़े गये व्यक्ति (इनकी भी कोई गारण्टी नहीं कि यह सत्तापक्ष के प्रति झुकाव न रखते हों)

इसलिये जो महानुभाव यह सोचते हों, कि संसद है, मंत्रिमण्डल है, प्रधानमंत्री है, NAC है… वह वाकई बहुत भोले हैं… ये लोग कुछ भी नहीं हैं, इनकी कोई औकात नहीं है…। अन्तिम इच्छा सिर्फ़ और सिर्फ़ सोनिया गाँधी की चलती है और चलेगी…। 2004 की UPA की नियुक्तियों पर ही एक निगाह डाल लीजिये –

1) सोनिया गाँधी ने ही नवीन चावला को चुनाव आयुक्त बनाया

2) सोनिया गाँधी ने ही महालेखाकार की नियुक्ति की

3) सोनिया गाँधी की मर्जी से ही बालाकृष्णन सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बने थे

4) सोनिया गाँधी ने ही सीबीआई प्रमुख की नियुक्ति की…

5) सोनिया गाँधी की वजह से ही सीवीसी थॉमस नियुक्त भी हुए और सुप्रीम कोर्ट की लताड़े के बावजूद इतने दिनों अड़े रहे…

6) कौन नहीं जानता कि मनमोहन सिंह, और प्रतिभा पाटिल की “नियुक्ति” (जी हाँ, नियुक्ति) भी सोनिया गाँधी की “पसन्द” से ही हुई…

अब सोचिये, जन-लोकपाल की नियुक्ति समिति के “10 माननीयों” में से यदि 6 लोग सोनिया के “खासुलखास” हों, तो जन-लोकपाल का क्या मतलब रह जाएगा? नोबल पुरस्कार विजेता और मेगसेसे पुरस्कार विजेताओं की शर्त का तो कोई औचित्य ही नहीं बनता? ये कहाँ लिखा है कि इन पुरस्कारों से लैस व्यक्ति “ईमानदार” ही होता है? इस बात की क्या गारण्टी है कि ऐसे “बाहरी” तत्व अपने-अपने NGOs को मिलने वाले विदेशी चन्दे और विदेशी आकाओं को खुश करने के लिये भारत की नीतियों में “खामख्वाह का हस्तक्षेप” नहीं करेंगे? सब जानते हैं कि इन पुरस्कारों मे परदे के पीछे चलने वाली “लॉबीइंग” और चयन किये जाने वाले व्यक्ति की प्रक्रिया के पीछे गहरे राजनैतिक निहितार्थ होते हैं।

ज़रा सोचिये, एक माह पहले क्या स्थिति थी? बाबा रामदेव देश भर में घूम-घूमकर कांग्रेस, सोनिया और भ्रष्टाचार के खिलाफ़ माहौल तैयार कर रहे थे, सभाएं ले रहे थे, भारत स्वाभिमान नामक “संगठन” बनाकर, मजबूती से राजनैतिक अखाड़े में संविधान के तहत चुनाव लड़ने के लिये कमर कस रहे थे, मीडिया लगातार 2G और कलमाडी की खबरें दिखा रहा था, देश में कांग्रेस के खिलाफ़ जोरदार माहौल तैयार हो रहा था, जिसका नेतृत्व एक भगवा वस्त्रधारी कर रहा था, आगे चलकर इस अभियान में नरेन्द्र मोदी और संघ का भी जुड़ना अवश्यंभावी था…। और अब पिछले 15-20 दिनों में माहौल ने कैसी पलटी खाई है… नेतृत्व और मीडिया कवरेज अचानक एक गाँधी टोपीधारी व्यक्ति के पास चला गया है, उसे घेरे हुए जो “टोली” काम कर रही है, वह धुर “हिन्दुत्व विरोधी” एवं “नरेन्द्र मोदी से घृणा करने वालों” से भरी हुई है… इनके पास न तो कोई संगठन है और न ही राजनैतिक बदलाव ला सकने की क्षमता… कांग्रेस तथा सोनिया को और क्या चाहिये?? इससे मुफ़ीद स्थिति और क्या होगी कि सारा फ़ोकस कांग्रेस-सोनिया-भ्रष्टाचार से हटकर जन-लोकपाल पर केन्द्रित हो गया? तथा नेतृत्व ऐसे व्यक्ति के हाथ चला गया, जो “सत्ता एवं सत्ता की राजनीति में” कोई बड़ा बदलाव करने की स्थिति में है ही नहीं।

मुख्य बात तो यह है कि जनता को क्या चाहिये- 1) एक “फ़र्जी” और “कठपुतली” टाइप का जन-लोकपाल देश के अधिक हित में है, जिसके लिये अण्णा मण्डली काम कर रही है… अथवा 2) कांग्रेस जैसी पार्टी को कम से कम 10-15 साल के लिये सत्ता से बेदखल कर देना, जिसके लिये नरेन्द्र मोदी, रामदेव, सुब्रह्मण्यम स्वामी, गोविन्दाचार्य जैसे लोग काम कर रहे हैं? कम से कम मैं तो दूसरा विकल्प चुनना ही पसन्द करूंगा…

अब अण्णा के आंदोलन के बाद क्या स्थिति बन गई है… प्रचार की मुख्यधारा में “सेकुलरों”(?) का बोलबाला हो गया है, एक से बढ़कर एक “हिन्दुत्व विरोधी” और “नरेन्द्र मोदी गरियाओ अभियान” के अगुआ लोग छाए हुए हैं, यही लोग जन-लोकपाल भी बनवाएंगे और नीतियों को भी प्रभावित करेंगे। बाकी सभी को “अनसिविलाइज़्ड” साबित करके चुनिंदा लोग ही स्वयंभू “सिविल” बन बैठे हैं… यह नहीं चलेगा…। जब उस “गैंग” के लोगों को नरेन्द्र मोदी की तारीफ़ तक से परेशानी है, तो हमें भी “उस NGOवादी गैंग” पर विश्वास क्यों करना चाहिए? जब “वे लोग” नरेन्द्र मोदी के प्रशासन और विकास की अनदेखी करके… रामदेव बाबा के प्रयासों पर पानी फ़ेरकर… रातोंरात मीडिया के चहेते और नीति निर्धारण में सर्वेसर्वा बन बैठे हैं, तो हम भी इतने “गये-बीते” तो नहीं हैं, कि हमें इसके पीछे चलने वाली साजिश नज़र न आये…।

मजे की बात तो यह है कि अण्णा हजारे को घेरे बैठी “सेकुलर चौकड़ी” कुछ दिन भी इंतज़ार न कर सकी… “सेकुलरिज़्म की गंदी बदबू” फ़ैलाने की दिशा में पहला कदम भी ताबड़तोड़ उठा लिया। हर्ष मन्दर और मल्लिका साराभाई सहित दिग्गी राजा ने अण्णा के मंच पर “भारत माता” के चित्र को संघ का आईकॉन बता दिया था, तो JNU छाप मोमबत्ती ब्रिगेड ने अब यह तय किया है कि अण्णा के मंच पर भारत माता का नहीं बल्कि तिरंगे का चित्र होगा, क्योंकि भारत माता का चित्र “साम्प्रदायिक” है। शक तो पहले दिन से ही हो रहा था कि कुनैन की गोली खाये हुए जैसा मुँह बनाकर अग्निवेश, “भारत माता की जय” और वन्देमातरम के नारे कैसे लगा रहे हैं। परन्तु वह सिर्फ़ “तात्कालिक नौटंकी” थी, भारत माता का चित्र हटाने का फ़ैसला लेकर इस सेकुलर जमात ने “भविष्य में आने वाले जन-लोकपाल बिल का रंग” पहले ही दिखा दिये हैं। “सेकुलर चौकड़ी” ने यह फ़ैसला अण्णा को “बहला-फ़ुसला” कर लिया है या बाले-बाले ही लिया है, यह तो वे ही जानें, लेकिन भारत माता का चित्र भी साम्प्रदायिक हो सकता है, इसे सुनकर बंकिमचन्द्र जहाँ भी होंगे उनकी आत्मा निश्चित ही दुखेगी…

उल्लेखनीय है कि आंदोलन के शुरुआत में मंच पर भारत माता का जो चित्र लगाया जाने वाला था, वह भगवा ध्वज थामे, “अखण्ड भारत” के चित्र के साथ, शेर की सवारी करती हुई भारत माता का था (यह चित्र राष्ट्रवादी एवं संघ कार्यकर्ता अपने कार्यक्रमों में उपयोग करते हैं)। “सेकुलर दिखने के लालच” के चलते, इस चित्र में फ़ेरबदल करके अण्णा हजारे ने भारत माता के हाथों में तिरंगा थमाया और शेर भी हटा दिया, तथा अखण्ड भारत की जगह वर्तमान भारत का चित्र लगा दिया…। चलो यहाँ तक भी ठीक था, क्योंकि भ्रष्टाचार से लड़ाई के नाम पर, “मॉडर्न गाँधी” के नाम पर, और सबसे बड़ी बात कि जन-लोकपाल बिल के नाम पर “सेकुलरिज़्म” का यह प्रहार सहा भी जा सकता था। परन्तु भारत माता का यह चित्र भी “सेकुलरिज़्म के गंदे कीड़ों” को अच्छा नहीं लग रहा था, सो उसे भी साम्प्रदायिक बताकर हटा दिया गया और अब भविष्य में अण्णा के सभी कार्यक्रमों में मंच पर बैकग्राउण्ड में सिर्फ़ तिरंगा ही दिखाई देगा, भारत माता को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है (शायद “सिविल सोसायटी”, देशभक्ति जैसे “आउटडेटेड अनसिविलाइज़्ड सिम्बॉल” को बर्दाश्त नहीं कर पाई होगी…)।

दरअसल हमारा देश एक विशिष्ट प्रकार के एड्स से ग्रसित है, भारतीय संस्कृति, हिन्दुत्व एवं सनातन धर्म से जुड़े किसी भी चिन्ह, किसी भी कृति से कांग्रेस-पोषित एवं मिशनरी द्वारा ब्रेन-वॉश किये जा चुके “सेकुलर”(?) परेशान हो जाते हैं। इसी “सेकुलर गैंग” द्वारा पाठ्यपुस्तकों में “ग” से गणेश की जगह “ग” से “गधा” करवाया गया, दूरदर्शन के लोगो से “सत्यम शिवम सुन्दरम” हटवाया गया, केन्द्रीय विद्यालय के प्रतीक चिन्ह से “कमल” हटवाया गया, वन्देमातरम को जमकर गरियाया जाता है, स्कूलों में सरस्वती वन्दना भी उन्हें “साम्प्रदायिक” लगती है… इत्यादि। ऐसे ही “सेकुलर एड्सग्रसित” मानसिक विक्षिप्तों ने अब अण्णा को फ़ुसलाकर, भारत माता के चित्र को भी हटवा दिया है… और फ़िर भी ये चाहते हैं कि हम बाबा रामदेव और नरेन्द्र मोदी की बात क्यों करते हैं, भ्रष्टाचार को हटाने के “विशाल लक्ष्य”(?) में उनका साथ दें…।

भूषण पिता-पुत्र पर जो जमीन-पैसा इत्यादि के आरोप लग रहे हैं, थोड़ी देर के लिये उसे यदि दरकिनार भी कर दिया जाए (कि बड़ा वकील है तो भ्रष्ट तो होगा ही), तब भी ये हकीकत बदलने वाली नहीं है, कि बड़े भूषण ने कश्मीर पर अरुंधती के बयान का पुरज़ोर समर्थन किया था… साथ ही 13 फ़रवरी 2009 को छोटे भूषण तथा संदीप पाण्डे ने NIA द्वारा सघन जाँच किये जा रहे पापुलर फ़्रण्ट ऑफ़ इंडिया (PFI) नामक आतंकवादी संगठन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में भी भाग लिया था, ज़ाहिर है कि अण्णा के चारों ओर “मानवाधिकार और सेकुलरिज़्म के चैम्पियनों”(?) की भीड़ लगी हुई है। इसीलिये प्रेस वार्ता के दौरान अन्ना के कान में केजरीवाल फ़ुसफ़ुसाते हैं और अण्णा बयान जारी करते हैं कि “गुजरात के दंगों के लिये मोदी को माफ़ नहीं किया जा सकता…”, परन्तु अण्णा से यह कौन पूछेगा, कि दिल्ली में 3000 सिखों को मारने वाली कांग्रेस के प्रति आपका क्या रुख है? असल में “सेकुलरिज़्म” हमेशा चुनिंदा ही होता है, और अण्णा तो वैसे भी “दूसरों” के कहे पर चल रहे हैं, वरना लोकपाल बिल की जगह अण्णा, 2G घोटाले की तेजी से जाँच, स्विस बैंकों से पैसा वापस लाने, कलमाडी को जेल भेजने जैसी माँगों को लेकर अनशन पर बैठते?

“उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे” की तर्ज पर, कांग्रेस और मीडिया की मिलीभगत द्वारा भ्रम फ़ैलाने का एक और प्रयास यह भी है कि अण्णा हजारे, संघ और भाजपा के करीबी हैं। अण्णा हजारे का तो पता नहीं, लेकिन उन्हें जो लोग “घेरे” हुए हैं उनके बारे में तो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि वे संघ-भाजपा के लोग नहीं हैं। अण्णा द्वारा मोदी की तारीफ़ पर भड़कीं मल्लिका साराभाई हों या अण्णा के मंच पर स्थापित “भारत माता के चित्र” पर आपत्ति जताने वाले हर्ष मंदर हों, अरुंधती रॉय के कश्मीर बयान की तारीफ़ करने वाले “बड़े” भूषण हों या माओवादियों के दलाल स्वामी अग्निवेश हों… (महेश भट्ट, तीस्ता जावेद सीतलवाड और शबाना आज़मी भी पीछे-पीछे आते ही होंगे…)। जरा सोचिये, ऐसे विचारों वाले लोग खुद को “सिविल सोसायटी” कह रहे हैं…।

फ़िलहाल सिर्फ़ इतना ही…… क्योंकि कहा जा रहा है, कि जन-लोकपाल बिल बनाने में “अड़ंगे” मत लगाईये, अण्णा की टाँग मत खींचिये, उन्हें कमजोर मत कीजिये… चलिये मान लेते हैं। अब इस सम्बन्ध में विस्तार से 15 अगस्त के बाद ही कुछ लिखेंगे… तब तक आप तेल देखिये और तेल की धार देखिये… आये दिन बदलते-बिगड़ते बयानों को देखिये, अण्णा हजारे द्वारा प्रस्तावित जन-लोकपाल बिल संसद नामक गुफ़ाओं-कंदराओं से बाहर निकलकर “किस रूप” में सामने आता है, सब देखते जाईये…

दिल को खुश करने के लिये मान लेते हैं, कि जैसा बिल “जनता चाहती है”(?) वैसा बन भी गया, तो यह देखना दिलचस्प होगा कि लोकपाल नियुक्ति हेतु चयन समिति में बैठने वाले लोग कौन-कौन होंगे? असली “राजनैतिक कांग्रेसी खेल” तो उसके बाद ही होगा… और देखियेगा, कि उस समय सब के सब मुँह टापते रह जाएंगे, कि “अरे… यह लोकपाल बाबू भी सोनिया गाँधी के ही चमचे निकले…!!!” तब तक चिड़िया खेत चुग चुकी होगी…।

इसलिये हे अण्णा हजारे, जन-लोकपाल बिल हेतु हमारी ओर से आपको अनंत शुभकामनाएं, परन्तु जिस प्रकार आपकी “सेकुलर मण्डली” का “सो कॉल्ड” बड़ा लक्ष्य, सिर्फ़ जन-लोकपाल बिल है, उसी तरह हम जैसे “अनसिविलाइज़्ड आम आदमी की सोसायटी” का भी एक लक्ष्य है, देश में सनातन धर्म की विजय पताका पुनः फ़हराना, सेकुलर कीट-पतंगों एवं भारतीय संस्कृति के विरोधियों को परास्त करना… रामदेव बाबा- नरेन्द्र मोदी सरीखे लोगों को उच्चतम स्तर पर ले जाना, और इन से भी अधिक महत्वपूर्ण लक्ष्य है, कांग्रेस जैसी पार्टी को नेस्तनाबूद करना…। अण्णा जी, भले ही आप “बुरी सेकुलर संगत” में पड़कर राह भटक गये हों, हम नहीं भटके हैं… और न भटकेंगे…

(समाप्त)

61 Comments

  1. April 22, 2011 at 8:16 am

    >Anna Hazare should read this article. You've raised some compelling points.

  2. April 22, 2011 at 8:20 am

    >धन्यवाद पाक हिन्दुस्तानी जी… यह पूरा लेख अण्णा को पढ़वाने की कोई जुगाड़ लगाईये… (अकेले में) 🙂

  3. ROHIT said,

    April 22, 2011 at 8:44 am

    >बाबा रामदेव भी हार मानने वालो मे से नही है. उन्होने ऐलान किया है कि 4 जून से वो एक लाख समर्थको के साथ अनशन पर बैठेँगे.देखना दिलचस्प होगा कि ये ईसाई सरकार रामदेव के अनशन पर कैसा रिस्पांस देती है.और ये भांड मीडिया वाले कैसा रिस्पांस देते है?

  4. April 22, 2011 at 8:47 am

    >शांति भूषण की सीडी असली है,,,,हर शाक पे उल्लू बैठा है अंजामे गुलिस्ता क्या होगा… बाबा रामदेव जी ने पहले दिन ही बाप-बेटे (शांति और प्रशांत) पर सवाल उठाये थे.

  5. April 22, 2011 at 9:13 am

    >बाबा रामदेव के द्वारा घोषित ४ जून के अनशन को कोई मीडिया फोकस नहीं देना चाहेंगी, प्रधानमंत्री जी ख़बरदार कर देंगे मीडिया को |

  6. ROHIT said,

    April 22, 2011 at 9:20 am

    >देश मे सनातन धर्म का विजय पताका फहराने के रास्ता बहुत काँटोभरा है.हिन्दुत्व इस समय बहुत ज्यादा कठिनाई मे है.एक तरफ जहाँ इस्लामिक हिँदु विरोधी जमात से लड़ना हैवही दूसरी तरफ ईसाई मिशनरी द्धारा बहुत जोरो से किया जा रहा धर्मान्तरण भी हिन्दुत्व को खोखला कर रहा है.ऐसे मे अगर अब कि चुनाव मे बाबा रामदेव और बीजेपी को सत्ता की चाबी नही मिली.तो ये एक बहुत बड़ा झटका होगा हिँदुओ के लिये.और इसके जिम्मेदार वो हिँदु होँगे जो इस ईसाई सरकार कांग्रेस को वोट देते है.और जो इतनी बर्बादी होने के बाद भी अब तक जागे नहीऔर कांग्रेस के तलवे चाट रहे है.और ऐसे हिँदुओ को आने वाली पीढ़िया कभी माफ नही करेँगी. और उन पर थूकेँगी.

  7. April 22, 2011 at 9:36 am

    >रामदेव जी की इतनी बड़ी रैली को मीडिया घोटकर पी गयी..विश्वबन्धु गुप्ता जी के खुलासे पर एक भी मीडिया वाले की हिम्मत ये नहीं हुई कि उस नेता से सवाल पूछते या उसकी पार्टी के नेताओं से सवाल पूछ पाते ना ही हमारे महान बुधजीवी इन से कुछ पूछने की हिम्मत जुटा पाये, जिनके पेट में बाबा रामदेव के ट्रस्ट की खुली किताब के कारण मरोड़ उठती रहती है.जब पूत कपूत हो जाये तो क्या कीजे. यह वही भारत माता हैं जिसके लिये बटुकेश्वर दत्त, भगत सिंह, सुभाष, रानी लक्ष्मी बाई, सुखदेव, बिस्मिल, अशफाक, लाला लाजपत राय ने अपने शीश चढ़ा दिये. वीर शिवाजी, राणा प्रताप, गुरु गोविन्द सिंह जी ने ये तो नहीं सोचा होगा कि उनकी औलादें ऐसी निकलेंगी.रामदेव जी के हौसले को ये तोड़ नहीं सकते और अगर जनता जान-पहचान और धर्म-जाति से ऊपर उठकर बाबा के साथ चल पड़ी तो इन सब को समझ में आ जायेगा.लोकपाल सीधे क्यों नहीं चुना जा सकता, जनमत संग्रह के द्वारा एक दिन में शत-प्रतिशत अनिवार्य वोटिंग कराकर. पांच साल में एक दिन सेना को भी मैदान में उतारा जा सकता है इस कार्य के लिये….

  8. JanMit said,

    April 22, 2011 at 10:53 am

    >सुरेश जी आपने अन्ना जी के आन्दोलन में परदे के पीछे चल रही कारगुजारियो का जिस तरह खाका खिंचा है वाकई आपकी दूरदृष्टि का परिचायक है ! आन्दोलन के शुरू होने के बाद मीडिया ने जिस तरह कवरेज करना शरू किया, वह शक तो पैदा कर ही रहा था पर इतने दूर की सोचकर योजना बनी है ऐसा अंदाज नहीं था ! रामदेव बाबा के प्रयासों का पूरा फायदा उठाकर;एक आन्दोलन खड़ा कर रातो रातो अन्य चल रहे ज्वलंत मुद्दे, जिनसे सरकार की फजीहत हो रही थी, से सबका ध्यान भटका देना, वाकई राजनीती में एक से बढकर एक शातिर खिलाड़ी है ! खैर भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता में जागृती तो आई है ! कुछ ऐसा प्रयास हो कि इस आग के ठंडी होने के पहले आग बुझवाने का प्रयत्न करने वालो का चेहरा जनता के समक्ष उजागर हो जाए ! आप इसी तरह जागरण का कार्य करते रहे व सभी पक्षों का असली चेहरा उजागर करने में कामयाब हो यही कामना है !

  9. April 22, 2011 at 12:08 pm

    >लगता है आधुनिक खण्डित भारत के शिखर पुरूषों को किसी भी स्थिति में सत्ता सुख ( प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्य) प्राप्त करने का रोग बुरी तरह लग गया हैं । इसका प्रारम्भ गांधी जी ने राजनीति में साम्प्रदायिक तुष्टिकरण के बीज बोकर किया था जिसका परिणाम निकला भारत विभाजन । आज भी सोनिया गांधी की पारिवारिक सम्पत्ति कांग्रेस सरकार और हमारे छद्म धर्मनिरपेक्ष राजनेता और समाज सेवक यही कर रहे हैं । कौन नहीं जानता कि अधिकतर एन.जी.ओ. सरकारी टुकडों पर पलते हैं और विदेशों से उन्हें जो आर्थिक सहायता मिलती हैं वह उनके सामाजिक कार्यो से अधिक राष्ट्र को बदनाम करने से मिलती हैं तीस्ता जावेद सीतलवाड इसका एक आदर्श उदाहरण हैं । कभी हिन्दी का प्रचार करने वाले गांधी जी साम्प्रदायिक तुष्टिकरण करके सर्व समाज का नेता बनने के लिए हिन्दी का विरोध करके हिन्दुस्तानी ( उर्दू लिपि में हिन्दी-अरबी का विकृत रूप ) भाषा की वकालत करने लगे जिसका परिणाम देश के सामने हैं । उसी प्रकार धर्मनिरपेक्षों ! द्वारा अन्ना हजारे के मंच पर कब्जा करके भारत माता का चित्र हटा दिया गया है और अन्ना द्वारा उनके इस देशद्रोही कृत्य का प्रतिकार न किया जाना शक पैदा करता हैं ! मैं भ्रष्टाचार मुक्त भारत का तो समर्थक हूँ लेकिन किसी व्यक्ति विशेष का अंध समर्थन बनना मुझे स्वीकार नहीं हैं । देवबंद में स्वामी रामदेव की उपस्थिति में वन्दे मातरम् के विरूद्ध फतवा ( इस्लाम का मजहबी कानून ) पास किया गया था और हमारे राष्ट्रभक्त स्वामी जी उस सम्मेलन में इस फतवे के विरूद्ध एक शब्द भी न बोलना शक पैदा करता हैं ! भाजपा तो कांग्रेस की फोटो कापी बनती ही जा रही है क्योंकि जब तक आडवाणी जैसे महान ? नेता उसमें हैं तब तक उससे सच्चे देशहित की आशा करना व्यर्थ हैं । लगता है टिप्पणी लम्बी हो जायेगी अतः संक्षेप में बोलता हू कि यदि भारत को भ्रष्टाचार मुक्त करना चाहते हो तो ड्राफ्टिंग समिति से छद्म समाज सेवियों को हटाकर सुबह्मण्यम स्वामी , किरण बेदी , डॉ. अब्दुल कलाम , गोविंदाचार्य और कर्णसिंह जैसे सच्चे समाज सेवियों को लो । http://www.vishwajeetsingh1008.blogspot.com

  10. April 22, 2011 at 12:49 pm

    >कुछ लोगो को हिन्दुस्थान के हिन्दुओ की तरक्की पच नहीं रही है, अब हिन्दू हिन्दुस्थान में ही रहेता है नेपाल, मलेशिया, इण्डोन एशिया तो कब के लिए जा चुके है. असल में इस देश का जो भी बचाखुचा लोकतंत्र है उसको यह एन जी ओ इसी टुच्चे आन्दोलन के जरिए हथियाना चाहते है और हम १२० करोड़ लोगो पर अपना रोब गाठना चाहते है.Tyagiwww.parhsuram27.blogspot.com

  11. April 22, 2011 at 2:01 pm

    >क्या सुरेश जी, आप भी ना…बस… … जन-लोकपाल बिल बनाने में “अड़ंगे” ही लगाये जा रहे हैं, अण्णा की टाँग ही खींचे जा रहे हैं, उन्हें कमजोर मत कीजिये..कम से कम 15 अगस्त तक धीरज तो रखिए..तब तक आप तेल देखिये और तेल की धार देखिये… आये दिन बदलते-बिगड़ते बयानों को देखिये.. अब तो सोनिया जी भी इसके समर्थन में मैदाने-जंग में कूद पड़ी हैं… उनको स्वागत करिए… अब तो यह बिल पास हो के ही रहेगा… किसकी मजाल जो इनके विरुद्ध चला जाए…चलिए, अब चुपचाप सब तमाशा देखते जाईये…

  12. ROHIT said,

    April 22, 2011 at 2:10 pm

    >विश्वजीत सिँह जीदेववंद के मंच मे ही बाबा रामदेव ने कहा था" कि जिस तरह मै कुरान की आयते पढ़कर मुसलमान नही बन जाउंगा वैसे ही मुसलमान भी वंदेमातरम गा कर हिँदु नही बन जायेँगे.

  13. April 22, 2011 at 2:15 pm

    >आँखे खोलने वाला लेख। तथाकथित बुद्धजीवियों और धर्मनिरपेक्षों ने तो पुछिये मत। दिमाग खराब है।

  14. April 22, 2011 at 3:00 pm

    >लेख पूरी तरह ग़लत है। तथ्य की भारी अनदेखी की गई है। करना कुछ नहीं था। बस इतना कर लिया होता माई-बाप कि जनलोकपाल विधेयक का वह संस्करण पढ़ लिया होता जो अन्ना की टीम के सदस्यों ने सरकार को सौंपा है। जनलोकपाल विधेयक संस्करण 2.2 पर दृष्टिपात करें। सेक्शन 6 कहती है- “लोकपाल में कम से कम चार सदस्य लीगल बैकग्राउंड के होंगे। इनमें से चेयरमैन समेत कम से कम दो पूर्व सिविल सर्वेंट (सरकारी नौकर) होने चाहिए।” 6. Appointment of the Chairperson and members: धारा 6 की उपधारा 3 a. भारत संघ का प्रधानमंत्री (सोनिया की नियुक्ति संभव) b. लोकसभा में नेता-प्रतिपक्ष (सोनिया की नियुक्ति?) c. सुप्रीम कोर्ट के दो नवीनतम जज (सोनिया की नियुक्ति?)d. नियंत्रक व महालेखापरीक्षक(CAG) (सोनिया की नियुक्ति?)(2G घोटाला कौन लाया?)e. मुख्य चुनाव आयुक्त (सोनिया की नियुक्ति संभव) f. अगले लोकपाल-सदस्यों का चयन कार्यकाल खत्म कर चुके लोकपाल सदस्य करेंगे। (पहला कार्यकाल खत्म होने के बाद) (सोनिया की नियुक्ति ?) आइए, अब देखते हैं कुल कितने सदस्य हुए- 1. प्रधानमंत्री 2. नेता प्रतिपक्ष (लोकसभा)3-4. सुप्रीम कोर्ट के दो कनिष्ठ जज 5-6. हाई कोर्ट के दो कनिष्ठ चीफ़ जस्टिस 7. महालेखाकार 8. मुख्य चुनाव आयुक्त सेलेक्शन कमेटी में कुल 8 सदस्य होंगे जो लोकपाल और उसके सदस्यों का चुनाव करेगे। किंतु इसी प्रस्तावित अधिनियम की धारा 5 कहती है कि,“सेलेक्शन कमेटी के पास लोकपाल और उसके सदस्यों के लिए जो नाम आएंगे उनका चयन करने के लिए एक चयन समिति जो सदस्यों वाली होगी; बनाई जाएगी।” मित्रों, आगे धारा 8,9 और 10 में विस्तार से प्रस्तावित किया गया है कि चयन समिति किस तरह सदस्यों के नाम पर विचार करेगी और बाद में सभी नामों को सबसे बड़ी सेलेक्शन कमेटी (जिसका ज़िक्र ऊपर किया गया है) के सामने प्रस्तावित कर देगी। जो नाम आएंगे- उन्हीं में से लोकपाल और इसके सदस्यों का चयन किया जाएगा। यह व्यापक-पारदर्शी प्रक्रिया है। बावजूद इसके कुछ खामियां हो सकती हैं। इस पर विचार करें और अपने सुझाव यहां भेज दें। लोकपाल का समर्थन आप करते हैं। अन्ना या स्वामी जी का करें ना करें, यह आपका विवेकाधिकार है। मैं यह भी मानता हूं कि लोकपाल जादू की छड़ी नहीं है जो देश में आमूल-चूल परिवर्तन कर देगा। किंतु इतना अवश्य है कि सिस्टम बदलने की दिशा में एक प्रयास अवश्य है।

  15. April 22, 2011 at 3:04 pm

    >अभी-अभी एक शुभचिंतक एवं मित्र का फ़ोन आया है जिसमें उन्होंने कहा है कि लेख में प्रस्तुत तथ्य गलत हैं… मैंने जहाँ पढ़ा था वह लिंक यह है http://www.annahazare.org/…/Jan%20lokpal%20bill%20by%20Expert%20(Eng).pdf असल में मैं लिंक देना भूल गया था, यदि तथ्यों में कुछ गलत हो तो टिप्पणी देकर उसमें सुधार अवश्य करें… अपनी गलती मान लेने में मुझे कोई शर्म नहीं है… जो भाई अपना नाम नहीं देना चाहते वे अपनी सारगर्भित टि्प्पणी बेनामी रहकर भी दे सकते हैं… परन्तु तथ्यात्मक गलती में सुधार अवश्य करें…============मेरे प्रिय मित्र ने यह भी कहा कि इस तरह ब्लॉग लिखने की बजाय आप सीधे सिविल सोसायटी को अपने सुझाव क्यों नहीं भेजते… बात काफ़ी हद तक सही है… अतः मेरा पहला (और शायद आखिरी) सुझाव ये है कि ड्राफ़्टिंग कमेटी एवं सिविल सोसायटी में से "सेकुलर" सदस्यों को बाहर किया जाए…।देखते हैं कि इस सुझाव पर सिविल सोसायटी अमल करती है या नहीं… 🙂

  16. April 22, 2011 at 3:11 pm

    >आपके लेख में भारत रत्न, मानवाधिकार आयोग, मैगसैसे अवार्डी वगैरह का ज़िक्र किया गया है। वस्तुतः ये पूरी तरह तथ्यहीन है। मैंने एक संशोधन भेजा है। प्रस्तावित विधेयक में क्यों ना ऐसा किया जाए कि कम से कम लोकपाल के प्रमुख पद पर जो आसीन हो -उसकी नियुक्ति पर सभी आठ सदस्यों की सहमति होनी चाहिए। यहां से प्रस्तावित जनलोकपाल डाउनलोड करें http://www.indiaagainstcorruption.org/docs/Jan%20lokpal%20bill%202.2.doc

  17. April 22, 2011 at 3:21 pm

    >धन्यवाद नीरज भाई, असल में अण्णा की वेबसाइट पर http://www.annahazare.org/pdf/Jan%20lokpal%20bill%20by%20Expert%20(Eng).pdf कुछ और दिया है… खैर… आपके संशोधन बढ़िया हैं…==========="सेकुलर" सदस्यों को हटाने संबंधी मेरा सुझाव वहाँ ऊपर तक अवश्य पहुँचा दीजियेगा…। 60 साल हो गये सेकुलरों को झेलते-झेलते, अब किसी भी प्रमुख नीति निर्णायक समिति में सेकुलरों को झेलना बड़ा मु्श्किल होता जा रहा है, इस पर अब ये एक और…

  18. April 22, 2011 at 4:55 pm

    >पहले मु्र्गी आयी की पहले अंडा….समझना पड़ेगा। क्योंकि ये सवाल अब बदल गया है। मसलन, पहले अमर आए की सीडी,पहले सोनिया है कि कांग्रेस,कांग्रेस का "आदर्श" है या पूरी कांग्रेस "आदर्श" है। ऐसे कुछ "राजनीतिक सुडोकू" के सवाल अभी सुलझाना बाकी है।अन्ना छाप अनशन से साबित हो गया कि भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए नेता "जयचंदावतार" लेते रहेंगे। रही बात सेकुलरों की तो उनकी "कार्यक्षमता" पर सवाल उठाना ठीक नहीं होगा।

  19. April 22, 2011 at 5:32 pm

    >बाबा रामदेव भी हार मानने वालो मे से नही है. उन्होने ऐलान किया है कि 4 जून से वो एक लाख समर्थको के साथ अनशन पर बैठेँगे.देखना दिलचस्प होगा कि ये ईसाई सरकार रामदेव के अनशन पर कैसा रिस्पांस देती है.और ये भांड मीडिया वाले कैसा रिस्पांस देते है?————रोहितजी की इस टिपण्णी को मेरे भी विचार माने जाये……

  20. K M Mishra said,

    April 22, 2011 at 6:21 pm

    >मुझे एक खुशफहमी है की सोनिया गाँधी ज्यादा दिन तक भारत पर राज नहीं कर पाएंगी फिर इनके प्यादे कहाँ से आएंगे.हाँ इनके बारे में आपकी मुहीम जरूर रंग लाएगी और इसमें हम साथ हैं.

  21. Anonymous said,

    April 22, 2011 at 7:24 pm

    >Kiran Bedi’s service record was actually far from distinguished; she was professionally unreliable and untrustworthy; deserted her post more than once; and expected favouritism because she was a woman officer. She excels at public and media relations and, over the years, picked up a Magsaysay award and awards from the American Federation of Muslims of Indian Origin, the Don Bosco Shrine, the Mother Teresa Memorial National Award for Social Justice, and other such assorted goodies. The Hindu (Delhi) on its front page on 6/4/11 had a picture of Bedi carefully situating right next to the fasting-unto-death Anna Hazare a placard that announced “bhrashtachar ko khatm karo – http://www.jnss.in”. JNSS is the Jagruk Nagrik Suraksha Sangathan (National President: Mr Denson Joseph). It proclaims itself nationalist and anti-terrorist and “salutes and supports the efforts of all agencies working hand in hand to secure the nation”. These agencies are the Home Ministry, the Delhi Police, BSF, NSS, CISF, and the United Nations! It solicits donations – but nowhere on its website does it give its accounts. Prominent with Hazare when he began his fast were “Arvind Kejriwal along with Mallika Sarabhai and Magsaysay award winner Sandeep Pandey”, and “famous former top cop Kiran Bedi said all the activists present there would be on a day-long hunger strike, but Hazare would continue his fast till the Government agrees to our demands.”

  22. Anonymous said,

    April 22, 2011 at 7:25 pm

    >Accused of cheating by dancers who filed a complaint against her, Mallika Sarabhai declared “neither the country nor its people for whom I have spent 25 years working deserve me”. Indians and India don’t deserve Sarabhai, but does Sarabhai deserve India? How much in those 25 years was not motivated by her desire for profit or for her own greater glory? I can personally testify to the desperation with which the dancing-Sarabhais sought government sponsorship and recognition. There are thousands upon thousands of jawans who are far greater patriots than her – and don’t boast about it. They are prepared to die for the country that Sarabhai wanted to flee because her fellow-dancers accused her of cheating them. Why did her most vocal defenders not include any of her dancer peers? Was this because, within the dancer sorority, they were aware there was more to the Sarabhai publicly-cultivated image than met the eye? Was she not, through this particular contract that was challenged by the dancers, peddling to them her saleability? Was she not touting her own brand image to introduce them – on payment by them to her or her organization – to foreign audiences that they could not have managed on their own? If (according to The Pioneer, Nov 2, 2003) 13 dancers complained about her, had she not netted from them a cool Rs. 2.60 lakhs for not taking them abroad!? And, if they felt cheated because she took their money – but not them – and she claimed she acted according to the terms of the contract, why should they not challenge those terms? “…there is hardly any doubt that daal mein kuchh kala hai, that something fishy has been happening over sending dance troupes to the US by Ms Sarabhai’s academy”, wrote Chandan Mitra. As it is kala in the daal of Mapin Publishing (co-founded by her and her ex-husband and with which apparently she still is associated) that welshes on its word and its payments (cases known personally to the writer).

  23. Anonymous said,

    April 22, 2011 at 7:26 pm

    >Medha Patkar has the Right Livelihood Award, the Rev. M.A. Thomas National Human Rights Award, Amnesty International’s Human Rights Defender’s Award, and the BBC’s Green Ribbon Award for Best International Political Campaigner. Her Narmada Bachao Andolan is described as a “social movement”. Presumably this social movement handles money, if only for its own expenses. But the Supreme Court has noted the NBA is not a registered entity. So how does it bank its money? How does it account for its expenses? The NBA, which has international connections, does not seem to have its own website. Foreign sources funded its support groups. Accused of faking medical certificates, fined more than once for dodging court hearings, Patkar is now accused by the Supreme Court itself of filing a false affidavit before it. Magsaysay awardee Sandeep Pandey and his Asha for Education have a full chapter to themselves in the Vigil book that details their magic of making foreign money disappear after it reaches them, their allergy to professional accounting, and (in the book’s Appendix 12) his blatant lying to the Deccan Chronicle.

  24. anusoni said,

    April 22, 2011 at 7:27 pm

    >ऐसे ही “सेकुलर एड्सग्रसित” मानसिक विक्षिप्तों ने अब अण्णा को फ़ुसलाकर, भारत माता के चित्र को भी हटवा दिया है… और फ़िर भी ये चाहते हैं कि हम बाबा रामदेव और नरेन्द्र मोदी की बात क्यों करते हैं, भ्रष्टाचार को हटाने के “विशाल लक्ष्य”(?) में उनका साथ दें…।

  25. Anonymous said,

    April 22, 2011 at 7:27 pm

    >Now, India Against Corruption solicits donations. But it doesn’t solicit them in its own name. It solicits money in the name of the Public Cause Research Foundation (PCRF). In other words, the money you donate for IAC’s work actually goes into PCRF’s pocket. Guess who set up and runs PCRF? Arvind Kejriwal, Manish Sisodia and Abhinandan Sekhri, started with the Magsaysay money to Kejriwal. It is not clear from its website under what law it is registered, but it was filing a tax return in Form ITR 7 and claiming s.80G exemption. Let us look at Public Cause Research Foundation’s accounts: 1. For FY 2006-2007, PCRF reported Rs 51,434/- as utilized for charitable purposes – though actually all this was was entirely office/admn. expenses. It reported an opening corpus fund of Rs 13,01,000/- and a closing corpus fund of Rs 12, 49,566. In other words, it utilized its corpus fund solely for routine office/admn. expenses. 2. For FY 07-08, PCRF reported Rs.6,31,797/- utilized for charitable purposes – again, actually all this plus another Re. 0.90 was entirely office/admn. expenses (including salaries of Rs 3,26,600/- and legal exp. of Rs 91,209/-). It reported donations received of Rs 21,400/-, loans and advances of Rs 2,15,000/-, and a closing corpus fund of Rs 14,49,168.10/-. Its corpus fund statement as on 31/3/08 showed for “specific corpus fund” an opening balance on 1/4/07 of Rs 1,000/- only and an addition during the year of Rs 8,10,000/-. And as “nonspecific corpus fund”, an opening balance of Rs 12,48,566/-. The loan of Rs 2,15,000/- was “Kabir Loan 200,000.00” and “Loan to Parivartan (Mangal surat) 15,000/-”. 3. The Parivartan is presumably Kejriwal-Sisodia’s Parivartan. Kabir appears to be the registered society “spun off of Parivartan”. Founder-member Manish Sisodia is also its “Chief Functionary”; Kabir’s governing body includes Arvind Kejriwal. Though founded in 1999, Kabir’s website reports no financial details. 4. For the year ending 31/3/09, PCRF omits the ITR scans, the corpus fund is now Rs 31,51,416/-, the loans and advances are Rs 2,46,274/-, and the office and admn. expenses are Rs 8,10,078.10/-. No donations are reported, and there is no financial information for after 31/3/09. 5. Kejriwal’s Parivartan was analysed in the Vigil book. Manish Sisodia was Parivartan’s founder-member and treasurer. Kejriwal and Sisodia founded PCRF, Sisodia founded Kabir, and together they “govern” it. Note the incestuous connections between all these different agencies actively soliciting money from the public, and note the opacity of their publicly-declared accounts. Kejriwal was in the income-tax service. Surely he understands accounting. 6. Prima facie, your IAC money – which you gave because of Hazare? – is channeled into Kejriwal-Sisodia’s PCRF and from there into Kejriwal-Sisodia’s Kabir and possibly Kejriwal-Sisodia’s Parivartan.As was asked about Parivartan, “This is transparency? This is accountability? Something wrong with their maths? Or with their morals?”

  26. Anonymous said,

    April 22, 2011 at 7:28 pm

    >Of all the “civil society” activists featured here, Kejriwal has ensured he’s the only one into the joint drafting committee. Thus, Arvind Kejriwal, of dubious accounting fame, now represents at the national level our country’s “civil society”. Anna Hazare demanded “there should be no tainted ministers in the committee. Asked if there were five untainted ministers in the government, Hazare said `they should be least tainted’.” The public official must be “untainted” or, at any rate, “least tainted”. Fair enough. So, we assume the five ministers named to the joint drafting committee and accepted by Hazare are untainted or the least tainted, including Kapil Sibal who publicly castigated the country’s Comptroller & Auditor General and equally publicly absolved Spectrum Raja of any wrongdoing!

  27. Anonymous said,

    April 22, 2011 at 7:29 pm

    >Questions arise: 1. Baba Ramdev has been doing far more to raise popular awareness against corruption than this lot, yet neither the English-language mainstream media nor these so-called civil society activists extended to him the “civil society” support they extended to Hazare. Why not? 2. None of these so-called civil society activists has stood for popular election, whether State Assembly or Parliament, except Mallika Sarabhai (and she was roundly trounced by the electorate, losing her deposit). So, whom do they really represent? 3. Why does Anna Hazare promote that extra-Constitutional “civil society” bastion called the National Advisory Council headed by Sonia Gandhi? He “sought to project that Gandhi and he were on the same page on the issue of an effective Lokpal Bill”.Para 3b at http://www.hindustantimes.com/Full-text-of-Anna-Hazare-s-letter-to-PM-Manmohan-Singh/Article1-681961.aspx# must be juxtaposed with the widely-circulated “bhrast-achar” email – e.g., http://www.flickr.com/photos/13505613@N06/5539172796/. The connection is obvious, yet Agnivesh is “already singing paeans to the Government and Congress president Sonia Gandhi”. 4. Whatever the merit of the cause, is Anna Hazare wittingly or unwittingly a pawn in the unclean hands of these “civil society” activists? 5. Of IAC’s 19 others who “started the movement” with Anna Hazare, how many and which ones showed up to express solidarity when he started his “fast-unto-death”? Only four – Agnivesh, Bedi, Sarabhai and Kejriwal. Why didn’t the other founders join him? 6. Finally, there will be expenses, if only on the bandobast of this “fast-unto-death” mela. Who is providing the money? And who is keeping the accounts?

  28. AKS said,

    April 23, 2011 at 8:25 am

    >i know only this, that i want only that INDIA should be one of the leading country in the WORLD but this can be done only if we throw these congress persons out of power because they are making us foolish for last 80 yrs, by saying that they are the only NATION loving party which make INDIA free, yet these are the people who played a back door game with BRITISHERS to get the power transfer,not NATION loving from there they are playing a game of power. the real freedom fighter like SUBHASH CHANDRA, BHAGHAT SINGH, RAJGURU,CHANDER SHEKHAR ETC gave their life for the NATION.SO PLEASE NATION LOVING PEOPLE BE STAND AND UNITE FOR NATION IRRESPECTIVE OF CASTE,CREED AND RELIOGION AS PEOPLE STAND WITH THE ABOVE PERSON AND MAKE INDIA FREE FROM THESE CULPRITS.

  29. ajeet said,

    April 23, 2011 at 8:29 am

    >मित्रों सुरेश भाई की नई पोस्ट का सबको इंतज़ार रहता है, मेरे हिसाब से बहुत ही समसामयिक लेख, इसके लिए बधाई स्वीकार करें, लेकिन पूरे मन से नहीं पढ़ पाया कल से मन व्यथित है, मोदी जी पर जबरदस्त हमले शुरू हो गए है, चाहे तीस्ता हो चाहे साराभाई हो सबके सब बुरी तरह मोदी के पीछे पड़ गए हैं, और बीजेपी के लोग हाथ पर हाथ धर कर बैठे हैं.

  30. ajeet said,

    April 23, 2011 at 8:30 am

    >मित्रों सुरेश भाई की नई पोस्ट का सबको इंतज़ार रहता है, मेरे हिसाब से बहुत ही समसामयिक लेख, इसके लिए बधाई स्वीकार करें, लेकिन पूरे मन से नहीं पढ़ पाया कल से मन व्यथित है, मोदी जी पर जबरदस्त हमले शुरू हो गए है, चाहे तीस्ता हो चाहे साराभाई हो सबके सब बुरी तरह मोदी के पीछे पड़ गए हैं, और बीजेपी के लोग हाथ पर हाथ धर कर बैठे हैं.

  31. Alok Nandan said,

    April 23, 2011 at 8:58 am

    >अन्ना हजारे का इस्तेमाल सेफ्टी बल्व की तरह हो चुका है, जो कुछ अब दिख रहा है उससे यह लगता है कि साजिश कामयाब हुई, इसकी गारंटी है कि आगे नौटंकी जारी रहेगी।

  32. April 23, 2011 at 1:10 pm

    >सुरेश जी, वाकई आपकी लेखनी बहुत कुछ सोचने को मजबुर करती है, ऐसे ही लिखते रहो …….

  33. April 23, 2011 at 1:50 pm

    >its wonderful ishall start commenting in hindi once i get used to it. ramdev baba ke sath hum sab hain unka movement hi asali sabit hoga.mr subramnayam swami came to ujjain recently and gave all the details of sonias robert badra and chidambrams sons acct detail in foreign banks v shall fight this battle on all fronts and defeat them katyayan

  34. Man said,

    April 23, 2011 at 3:24 pm

    >वन्देमातरम सर ,अच्छी बघिया उधेडी आप ने लोकपाल बिल मंडली की ,इस मंडली में एक से बढ़ कर एक मायनो भक्त बेठे हे ,इस प्रकार यदि ये बिल बन भी गया तो होई वही सोनिया चाहा ,और सोनिया गाँधी चाहती भी यही हे लोक पाल बिल के पास होने का श्रेय भी वही ले जाये और और वो लूला लंगड़ा भी बना रहे ,जिस से रबड़ के थन की आदि भारतीय पब्लिक फिर उसे और एक महान नेता मान ले और झांसे में आती रहे जिस प्रकार उसके त्याग की मूर्ती बनने पर आयी थी |जय हो

  35. Kajal Kumar said,

    April 23, 2011 at 4:04 pm

    >सही लिखा है आपने, अण्णा जैसे सीधे आदमी को ये तथाकथित सिविल सोसायटी वाले वो शोहदे ले डूबेंगे जिन्हें हर चार दिन बाद किसी न किसी PR मेले में देखा जा सकता है…

  36. ajeet said,

    April 24, 2011 at 4:26 am

    >आज सुबह एक अच्छी खबर पढी समाचार पत्र में की गुजरात के D.G.P चतुर्वेदी जी ने, स्पष्ट किया है की भट्ट जिस बैठक का ज़िक्र कर रहे हैं उसमे वे मौजूद ही नहीं थे, चलो कोई तो है जो देश के बारें मैं सोचता है, जबकि अब तो ऐसा अहसास होने लगा है की देश का नियंत्रण अधिकतर देश-द्रोहियों के हाथो में चला गया है, हालांकि मोदी निर्विवाद रूप से एक बहुत ही दिलेर व्यक्ति हैं एक दिन इन देश द्रोहियों को सबक सिखा कर ही दम लेंगे, दरअसल कांग्रेस को अहमदाबाद नगर-पालिका के चुनाव जीतने से थोड़ी प्राणवायु मिल गयी है तो उसने यह मुगालता पाल लिया है की अब मोदी को नीचा दिखाने का वक़्त आ गया है पर यह खुशी थोड़े दिनों की है.

  37. Guru Brahma said,

    April 24, 2011 at 12:21 pm

    >suresh ji aapne to dil hi dahla diya….achhi khabar lee hai…jyada se jyada log isey padhein….bas itna dhyan rakhiye ki apne taraf se nishpaksh rahna desh hit me hai….

  38. April 24, 2011 at 7:13 pm

    >प्रिय सुरेशजी एवं एनी पाठक बंधू,सबसे पहले तो 'विजयवानी' में छपे श्री कृष्णन काक के एक बहुत उपयोगी और जानकारी-परक लेख को यहाँ पढ़े..http://www.vijayvaani.com/FrmPublicDisplayArticle.aspx?id=1721दूसरी बात, केजरीवाल थोड़े अक्लमंद लग रहे थे लेकिन 'अन्नादोलन' की सफलता के ठीक एक दिन बाद IBN ७ के एक सफ़ेद बाल वाले भांड द्वारा घुमा-फिराकर-उकसाकर पूछने पर वह शान से बताते हैं कि ''हम यह आन्दोलन किसी भी राजनैतिक दल को हाईजैक नहीं, करने देंगे, RSS को भी नहीं (मानो RSS कोइ कोंग्रेस जैसी पार्टी हो!). संघ के लोगो को हमने मंच से उतार दिया.'' यह इस आन्दोलन के नाम पे कमाने-खाने वाले लोगो के 'सेकुलर' विचार हैं. और 'भ्रष्टाचार मिटाऊ इन सेकुलर क्रुसेडारो' के यही विचार कभी भ्रष्ट कोंग्रेस, सपा, बसपा, पासवान या कम्यूनिस्टो के सात खून माफ़ कर दे तो कोइ आश्चर्य की बात नहीं!! दरअसल इस आन्दोलन की हालत 'प्रथम चुम्बने दन्त भग्न' जैसी हो गयी है. अमर, दिग्गी, सोनिया, कोंग्रेस, सिब्बल जैसे लोगो खुले आम अन्ना एंड कंपनी के खिलाफ जहर उगल रहे हैं, फिर भी अन्ना और मीडिया नरम हैं. वही अग्निवेश, अरुणा राय, संदीप पांडे जैसे लोग इस आन्दोलन की बंद बजायेंगे और अन्ना का इस्तेमाल करेंगे.इस देश में करप्शन के खिलाफ कोई लड़ सकता है तो योगी रामदेव, शेषण, सुब्रमण्यम स्वामी, नरेन्द्र मोदी और संघ जैसे संगठन ही लड़ सकते हैं.

  39. Anonymous said,

    April 24, 2011 at 7:17 pm

    >Prof Bhim Singh, chairman, Panthers Party, Said:''Shri Anna Hazare remained on fast at Jantar Mantar the whole day but his companions moved him to some secured place for the night. The visitors wondered about his disappearance in the nights. Many started inquiring whether Gandhiji used to stay away from his fasting venue in the night? The champions of Lok Ayukt enactment might have doubted the capability of Delhi’s security men to provide them protection.''

  40. Anonymous said,

    April 24, 2011 at 7:26 pm

    >कच्चा चिट्ठा: Mallika Sarabhai:http://en.wikipedia.org/wiki/Mallika_Sarabhaihttp://in.rediff.com/news/2003/oct/28guj.htmHumra Quraishi, "Not quite a friend in deed", The Hindu, Nov 7, 2003, p.FR-2Chandan Mitra, "Kabootar, ja, ja, ja…" , The Pioneer , Nov 9, 2003http://www.hindu.com/thehindu/holnus/002200903192177.htmhttp://www.dailypioneer.com/272980/An-enigmatic-Leela.html

  41. Anonymous said,

    April 24, 2011 at 7:29 pm

    >कच्चा चिट्ठा: General: NGOshttp://en.wikipedia.org/wiki/India_Against_Corruptionhttp://www.indiaagainstcorruption.org/http://www.dailypioneer.com/330169/Sharp-differences-in-movement-over-spoils.htmlhttp://www.dailypioneer.com/330171/Hazare-calls-for-jail-bharo-movement-after-Govt-snub.htmlhttp://realitycheck.wordpress.com/2011/04/06/jan-lok-pal-caveat-emptor/ – item 2 “The all important selection policy”. http://www.dailypioneer.com/330175/Former-justices-proposed-as-panel-heads.htmlhttp://www.dailypioneer.com/330133/Lack-of-commitment-towards-social-cause-at-Jantar-Mantar.htmlhttp://www.dailypioneer.com/330170/Panel-okay-not-Anna-as-chief-Govt.htmlhttp://www.dailypioneer.com/330424/Hazare-shows-who-is-boss.htmlhttp://timesofindia.indiatimes.com/india/Anna-Hazare-demands-co-chairman-for-committee-on-Lokpal-Bill/articleshow/7916376.cmshttp://in.news.yahoo.com/hegde-rules-himself-head-panel-lokpal-bill-20110408-051500-677.htmlhttp://www.vijayvaani.com/FrmPublicDisplayArticle.aspx?id=1716“NGOs, Activists and Foreign Funds: Anti-Nation Industry” (Chennai:Vigil, 2007), referred to in the text above as “the Vigil book” –http://www.vigilonline.com/index.php?option=com_content&task=view&id=843&Itemid=109 .

  42. April 24, 2011 at 7:31 pm

    >सुरेश जी आपका आलेख बहुत ही महत्वपूर्ण.. मुझे विश्वजीत सिंह की बात बड़ी अच्छी लगी…यदि भारत को भ्रष्टाचार मुक्त करना चाहते हो तो ड्राफ्टिंग समिति से छद्म समाज सेवियों को हटाकर सुबह्मण्यम स्वामी , किरण बेदी , डॉ. अब्दुल कलाम , गोविंदाचार्य और कर्णसिंह जैसे सच्चे समाज सेवियों को लो । … ऐसा हो जाये तो कुछ बात बने….और हाँ ये जानकर आक्रोश आया की मंच से भारत माता का चित्र हटाने के लिए अन्ना राजी हो गये.. क्योकि कुछ तथाकथित सेकुलर लोगों को इस पर आपत्ति थी… अन्ना उनकी बातों में बुरी तरह फंसे हुए हैं.. वे मोदी की तारीफ से भी पीछे हट गए… इस पर मैंने अपने ब्लॉग अपनापंचू पर एक लेख लिखा है..

  43. Anonymous said,

    April 24, 2011 at 7:43 pm

    >Anna Hazare’s Campaign – truly Gandhian, truly evil – I—————————–http://www.vigilonline.com/index.php?option=com_content&task=view&id=1511&Itemid=1

  44. Anonymous said,

    April 25, 2011 at 4:32 am

    >bahut achha lekh hai.

  45. P K Surya said,

    April 25, 2011 at 7:21 am

    >De ghuma ke chalo 15 august ka bhi intjar kr lete hain, jai ho

  46. vijender said,

    April 25, 2011 at 9:24 am

    >suresh ji ram-ramjan lokpal bill ki asaliyat dikhane ke liye hardik bhadaimanch se bharat mata ka chitar hatana,anna ke ass pass un giddo ka judna jinka jiwan yapan hindu virodhyo duwara dale gaye tukdo per hota he, insab se to ye hi pratike hota he ki in sab ki door kisi dusre ke haat me he jo parde ke piche se inko naccha raha he?

  47. vijay said,

    April 25, 2011 at 2:21 pm

    >सुरेश जी धन्यवाद, विचारोत्तेजक लेख के लिए ! जब मोदी के अच्छे कामों को भी ये सेकुलर लोग अच्छा मानने को तैयार नहीं तो हमलोग क्यों पगलायें हैं इन सेकुलरों के लोकपाल और भेडपाल के पीछे ! इन सेकुलरों को जब तक इन्ही के भाषा में जवाब नहीं देंगे तब ये सीधे नहीं होंगे !

  48. April 25, 2011 at 3:34 pm

    >सुरेशजी, यह किसी तरह लेख अन्ना हजारे को पढवाने का इंतज़ाम करे. क्योंकि यह न केवल देश हित में But खुद अन्ना के भी हित में रहेगा. ईमानदार अन्ना कोंग्रेस की नीति और नीयत को भांप नहीं पाए हैं और इस आन्दोलन की नकेल बरास्ते सेकुलर जेहादियों के कोंग्रेस के हाथ में आ गयी है. कही ऐसा ना हो कि हजारे, बेचारे बनकर रह जाए! अगर ऐसा हो तो समझो देश गर्त में चला जाएगा.

  49. ROHIT said,

    April 25, 2011 at 7:26 pm

    >हिन्दुत्व की रक्षा के लिये और देश मे हिन्दुओ के खिलाफ हो रहे भयंकर षडयंत्र को सामने लाने के लिये हिन्दुओ द्वारा बनाये गये साझा ब्लाग पर आप पधारे.और follower बन कर इस हवनकुण्ड मे अपनी आहुति डाले.जिसका पता है.vishvguru.blogspot.com

  50. April 26, 2011 at 1:11 am

    >suresh ji kasab aur pragya devi ki jail mein tulana karen eak ko mar mar ke paraplegia yani spinalcord ki injury dusare ko mutton kabab kya hum musalmano ke gulam hain

  51. Abhi said,

    April 26, 2011 at 4:38 am

    >अन्ना हजारे और हेगड़े में फूट पड़ी. अब वो लोग क्या कहेंगे जो अन्ना जहरे के अंध समर्थक है. क्यूँ अन्ना सुप्रीम कोर्ट के जजों को लोकपाल बिल के दायरे के बहार रखना चाहते है ?http://www.bhaskar.com/article/NAT-hazare-wants-judges-kept-out-hegde-questions-2053015.html?HT3=

  52. April 26, 2011 at 9:17 am

    >बेचारे सिविल सोसायटी के सदस्य, कहाँ चले थे भ्रष्टाचारी नेताओ और अधिकारियों के खिलाफ क़ानून बनाने……. कहाँ खुद ही सफाइ देते फिर रहे हैं… कुल मिलाकर नैतिकता के रथ पर सवार होकर हवा में उड़ रहे अन्ना हज़ारे इस लड़ाई को जीतकर भी हार गये लगते हैं… वहीं दूसरी तरफ सरकार हार कर भी जीत गयी है…।

  53. ajeet said,

    April 26, 2011 at 1:27 pm

    >अन्ना हजारे ने जब आन्दोलन शुरू किया था तब कम से कम उन्होंने नहीं सोचा होगा की उनकी ऐसी दुर्गती होने वाली है, कांग्रेस हार कर नहीं जीती है भैया पूरी पटकथा ही कांग्रेसियों ने लिखी थी, जिसका उन्हें आशानुरूप परीणाम मिला, दरअसल कांग्रेस बाबा राम देव से इतनी परेशान हो चुकी थी की किसी भी कीमत पर वह बाबा रामदेव के हमले रुकवाना चाहती थी चूंकि बाबा रामदेव किसी भी गलत बात में पकड़ में नहीं आ रहे थे तो उन्होंने यह अनोखा खेल खेल दिया और बाबा रामदेव एक अनोखे हमले से हतप्रभ हो गए हैं.

  54. ajeet said,

    April 26, 2011 at 1:55 pm

    >भैया रोहित सनातन धर्म पर विधर्मी हमले करें तो समझ में आती है, पर तकलीफ की बात तो यह है की कुछ स्वार्थी हिन्दुओं को धर्मनिरपेक्षता नाम का लाइलाज रोग हो गया हैं आज ही अखबार में सुबह चिदम्बरम ने दुःख प्रगट किया है की मुस्लिमों की शासकीय नौकरियों में केवल दो प्रतिशत की भागीदारी है, अब उनको कौन समझाए की शासकीय या अच्छी अशासकीय नौकरी केवल पढ़े लिखों को मिलती है, पहले उनको शिक्षा लेने के लिए प्रेरित तो करो वो बेचारे अभी इस बात से अनभिग्य है की विज्ञान क्या होता है, दरअसल कुछ मुल्ले,मौलवियों ने उनको इतना भ्रमित कर दिया है की इस्लाम तो आइन्स्टीन, न्यूटन, ग्राहम बेल वगेरा-वगेरा इनसे भी बड़े साइंसदान पहले ही पैदा कर चुका हैं और ये बेचारे भी मान गए, और रही बात ईसाइयो की तो वे बहुत चालाक हैं उन्होंने पहले ही मेडम को पटा रखा है भैय्ये अब तो अपन लोगों को ही कुछ करना पडेगा. वैसे इस्लाम का सही इलाज तो अमेरिका ने शुरू कर दिया है उसने बड़ी चालाकी से मुसलामानों के हाथो मुसलामानों को बड़ी बेदर्दी से और बहुत बड़ी संख्या में मरवाना शुरू कर दिया है ,यहाँ लोग केवल अखबार से मौत के आंकड़े जान पाते है जबकि में जो बात लिख रहा हूँ वह अपने दोस्त द्वारा दी हुई जानकारी के आधार पर लिख रहा हूँ जो बेन्गाज़ी में ही डोक्टर था अब बड़ी मुश्किल से बच कर आ पाया है, उसका तो कहना है की हिताची की बड़ी बड़ी मशीने हजारों लाशों को बड़े बेतरतीब ढंग से रोज़ दफनाती है, कुछ महीनों में इन इस्लामिक तेल उत्पादक देशो की हालत टी.बी के मरीज़ जैसी होने वाली है जो बस खटिया पर पड़े-पड़े दुनिया की तरफ देखता रहता है और दुनिया उस पर तरस खाने के बावजूद उसे मौत के मुह में जाने से नहीं रोक पाती,ये पांच छः ताकतवर इस्लामी देशों की आने वाली हकीकत है विशवास करिए यह काम ज्यादा से ज्यादा एक दो साल के अन्दर पूरी तरह हो जाएगा, और दुनिया आतंक से राहत की सांस भी लेगी.

  55. Anonymous said,

    July 7, 2011 at 8:26 am


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