प्रेमगीत
बदल-बदल के लिबास पहनो,
जो दिल बदल दो तो वाह कर लूँ !!
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न तुम चुराओ नज़र कभी भी,
न कनखियों से निहारो मुझको !
मैं चाहता हूँ प्रिया सहज हो
जहाँ भी चाहो पुकारो मुझको !!
ये इश्क गरचे गुनाह है तो, है दिल की चाहत गुनाह कर लूँ…?
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कहो कि तुमको है इश्क़ हमसे
तो पहली बारिश में जा मैं भीगूँ,!
अगरचे तुम ने कहा नहीं कुछ
तो मैं ज़हर के पियाले पीलूँ !!
ज़हर को पीना गुनाह है तो,है दिल की चाहत गुनाह कर लूँ…?
प्रेमगीत
June 11, 2008 at 5:15 am (इश्क, कनखियाँ, प्रेमगीत, लिबास)