मोमबत्तियाँ खरीद लीं कि नहीं? “स्यापा सेलिब्रेशन महोत्सव” शुरु हो चुका है…

भाईयों-बहनों, मोमबत्तियों का स्टॉक बढ़ा लीजिये, किसी मोमबत्ती कम्पनी की शेयर हों तो रखे रहिये भाव बढ़ने वाले हैं, डिम्पल कपाड़िया के फ़ैन हों या न हों, उनकी दुकान से डिजाइनर मोमबत्तियाँ खरीद लीजिये… आपको तो पता ही होगा 26/11 की बरसी नज़दीक आ गई है…। कई प्रकार के “वार्षिक स्यापा महोत्सवों” में से एक यानी कि 26/11 की पहली बरसी आ रही है… चूंकि मामला नया-नया है इसलिये “इनफ़ इज़ इनफ़” कहकर डकार लेने वाली 5 सितारा पीढ़ी भी जोश में है और 26/11 सेलिब्रेट करने के लिये कटिबद्ध भी… क्योंकि उन्हें भी पता है कि पहला ही साल होने के कारण इस बार “सेलिब्रेशन” कुछ ज्यादा ही जोरदार रहेगा। इसी 5 सितारा पीढ़ी का खयाल रखते हुए दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने मनु शर्मा को अपनी सिफ़ारिश से पेरोल दिलवाया था, ताकि देश की इस “अघाई हुई” पीढ़ी के प्रतिनिधि के रूप में मनु 26/11 को सेलिब्रेट करें… अब इसमें शीला दीक्षित की क्या गलती, कि मनु शर्मा 26/11 आने से पहले ही बारों-पबों-रेस्टोरेण्टों में जाकर दारु में गर्क हो गया।

विभिन्न चैनलों पर मातमी धुनें बजने लगी हैं, पुराने ग्राफ़िक्स निकाल-निकालकर हमें याद करवाया जा रहा है कि, देखो ऐ निकम्मों हमने उस वक्त कितना काम किया था, लगातार 3 दिनों तक लाइव प्रसारण किया था तुम्हारे लिये, और तुम हो कि एक मोमबत्ती भी नहीं खरीद सकते? कुछ चैनलों पर उनकी स्थाई “रुदालियाँ” दिखाई देंगी, जो लोकतन्त्र पर हमले की दुहाई वगैरह देंगी। कोई 3 दिन का “ताज पैकेज” लाया है, तो कोई 5 दिन का “आतंकवाद रोको” पैकेज लाया है, ताकि आपका दिल लगा रहे और मनोरंजन होता रहे।

मेक-अप, ब्यूटी पार्लर वगैरह चाक-चौबन्द हैं, ताकि टीवी पर दुख सेलिब्रेट करते उच्च वर्ग का चेहरा-मोहरा अच्छा दिखाई दे। देश में एक प्रधानमंत्री भी हैं, जो इस मौके को नये अन्दाज़ में सेलिब्रेट करेंगे… जी हाँ, वे इस “फ़ड़तूस” से अवसर पर देश में रहकर क्या करते, सो बराक ओबामा के साथ जाम से जाम टकराकर सेलिब्रेट करेंगे, और ऐसा भी नहीं कि वे कुछ काम नहीं कर रहे, जाने से पहले कई बार चेता चुके हैं कि नया हमला होने वाला है, अब इससे ज्यादा और क्या करें वे बेचारे? जैसे कि शरद पवार भी हमें चेता चुके हैं कि मार्च तक कीमतें कम होने वाली नहीं हैं, जो उखाड़ना हो उखाड़ लो, मतलब ये कि सभी मंत्री बराबर काम कर रहे हैं। सरकारें भी ठीक काम कर रही हैं, क्योंकि करकरे का बुलेटप्रूफ़ जैकेट गायब हो चुका है, जबकि मुम्बई भेजे गये पुलिस के विशेष जवानों को नारकीय परिस्थितियों में रहना पड़ रहा है।

मनमोहन सिंह लोकसभा में तो चुने नहीं गये हैं, जो कि संसद का शीतकालीन सत्र चलते रहने के बावजूद 26/11 के दिन यहाँ मौजूद रहें… उन्हें तो इटली की महारानी ने चुना है, भला महारानी को 26/11 से क्या लेना-देना और मनमोहन को लोकसभा से क्या मतलब? गन्ने के किसानों द्वारा हार की चोट दिये जाने के बाद मनमोहन को गम गलत करना भी जरूरी था, सो वे सेलिब्रेट करने अमेरिका जा पहुँचे हैं। इस सारे तमाशे को देखकर एक देशी शब्द याद आता है “चूतियापा”, जी नहीं गाली नहीं है ये, बल्कि बिहारी शब्द “बुड़बक” का पर्यायवाची है… इसी चूतियापे को देखने के लिये कसाब और अफ़ज़ल गुरु को टीवी-अखबार दिया गया है ताकि उन्हें पता चले कि हम कितने “बुड़बक” हैं। अन्त में, मुझे उस व्यक्ति पर सबसे अधिक दया आती है, जो कहता है कि “भले ही कांग्रेस पैसा खाती हो, काम तो करती है…” यह संस्कार और मान्यता जिस देश की जनता में गहरे तक पड़ चुके हों, वह कभी आत्मसम्मान से नहीं जी सकता।

अब आप इस बारे में ज्यादा न सोचिये, मोमबत्तियाँ खरीदने निकल पड़िये… और मन में एक संकल्प लीजिये (ना ना ना ना आतंकवाद से लड़ने, भ्रष्टाचार खत्म करने आदि का संकल्प न लीजिये, उसके लिये तो सरकार कटिबद्ध, प्रतिबद्ध और भी न जाने क्या-क्या है), आप तो बस लगातार कांग्रेस को वोट देने का संकल्प लीजिये, राहुल बाबा की होने वाली “ताजपोशी” का इन्तज़ार कीजिये, भाजपा का अध्यक्ष कौन बनेगा इस चिन्ता में दुबले होईये, कमजोर विपक्ष की खुशियाँ मनाईये और मौज कीजिये। वैसे भी अपनी जिम्मेदारी सिर्फ़ वोट देने तक ही सीमित है, है ना?

38 Comments

  1. November 23, 2009 at 8:40 am

    आप बरसी मनाने की बात कर रहें है, मगर सेक्युलर कौम अपराधियो से सहानुभूति पैदा करने के अभियान में लग गई है. ये मासूम बेचारे गरीब, अनपढ़, बेच दिये गए थे. भारत में कट्टरपंथियों ने इनकी कौम पर अत्याचार किया तो इनका गुस्से होना जायज था. साहबजी सवाल उठना चाहिए कि बुलेट प्रुफ जैकेट खराब क्यों थे? किसने बनाए, किसने खरीदे. क्या वे भी देशद्रोही नहीं है? छोड़ो यह सब. मोमबत्ती खरीदने जाता हूँ.

  2. November 23, 2009 at 8:45 am

    सही बात उठाई आपने!! ये समय मातमपुर्सी का ही है, बाकी ३६४ दिन तो संसद पर हमले करने वाले अफजल, मुंबई हमले में लिप्त कसाब जैसे सरकारी दामादों की मिजाजपुर्सी का दिन होता है।

  3. eSwami said,

    November 23, 2009 at 8:52 am

    जो निरपराध निश्चेतन हो गए उनकी स्मृति में एक मौन शिखा तो उद्दीप्त की ही जा सकती है.क्यों ना चुन लें क्रोध व कोप के बाकी दिन तथा शोक का वो एक दिन.

  4. November 23, 2009 at 8:56 am

    @ ई-स्वामी – "…क्यों ना चुन लें क्रोध व कोप के बाकी दिन तथा शोक का वो एक दिन.…" बिलकुल सही कहा, लेकिन यह मौन शिखा दिल में होनी चाहिये देशप्रेम के रूप में…। न कि मोमबत्ती छाप नौटंकी करके तुरन्त बीयर बार मे घुसने की मनोवृत्ति से…

  5. satyendra... said,

    November 23, 2009 at 9:08 am

    मोमबत्ती जलाने की नौटंकी तो होगी ही। तमाम बेशर्म तो ऐसे भी हैं जो सब कुछ छोड़कर अपने ही देश के लोगों को पीटने, गरियाने में लगे हैं। सचिन को ही दोषी साबित करने में वक्त जाया कर रहे हैं। साथ ही मराठी में बीएसई की वेबसाइट न लाने वालों को धमकी देने में लगे हैं। उन्हें तिलक का इतिहास याद नहीं। यह भी याद नहीं कि किस तरह से एक मराठी- बाबूराव विष्णु पराड़कर ने हिंदी की नींव रखी। उत्तर प्रदेश और बिहार वाले अपनी भोजपुरी और अवधी छोड़कर लगे हिंदी पढ़ने और चूतिया बन गए। अंग्रेजी पढ़ा होता तो हो सकता था हिंदुस्तान पर राज करते। अब अगरबत्ती और मोमबत्ती ब्रिगेड़ को कोसने से क्या होगा, वो तो बेचारे अपनी बुद्धि के मुताबिक कुछ कर ही रहे हैं।

  6. rohit said,

    November 23, 2009 at 9:22 am

    भाऊ बात तो सही कही है आपने लेकिन मैं यह भी जानना चाहता हूँ की जब२६/११ हो रहा था तब हमारे महारष्ट्रा के तथाकथित शेर कहाँ थे. कहाँ थे हमारे पिंजरे के शेर बाला साहेब ठाकरे ,राज साहेब ठाकरे और उनके शिव सैनिक या सही कहा जाए तो गुंडे. कहाँ थे जब हमारे एन एस जी के जवान अपनी जान दाव पर लगा कर मुंबई को बचा रहे थे उन सैनिको मे से बहुत से दूसरे प्रांतो के थे तब शिव सेना या राज ठाकरे के गुंडे क्यों नही आए उन सैनिको को बताने की यह महाराष्ट्र ये मुंबई उनकी है वे ही इसे बचाएँगे उन्हे इतर प्रांत के लोगो की कोई ज़रूरत नही है तब तो ये सभी अपने दरवे मे छुपे बैठे थे. कहाँ थे ये मराठा महा पुरुष.

  7. November 23, 2009 at 9:29 am

    मैं तो टाटा स्काई का रिचार्ज कूपन खरीद लाया। मोमबत्ती दीवाली में हॉस्टल की तरफ से दिया गया था,ज्यों ता त्यों पड़ा हुआ है। वैसे किसी चैनल को भी मोमबत्तियां बांटनी चाहिए।..

  8. November 23, 2009 at 9:30 am

    चलो आपने भी खूब नमक मिर्च छिड़क दिया ! हम लोग मोमबत्ती जलाने के सिवा और कुछ कर भी नहीं सकते !

  9. November 23, 2009 at 9:33 am

    इस देश को ढंग का एक नेता चाहिए. एक ही काफी है. अभी 1000 नेता है पर लीडर कोई नही है. पूरा सिस्टम सड़ चुका है. जब नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका ही हमारी नही सुनते तो चीन कैसे सुनेगा? क्यों पाकिस्तान सुनेगा… कैसे आतंकवाद रूकेगा. मैने कॉस्मेटिक कल्चर के बारे में लिखा था, यह वही है. मोमबत्तियाँ जलाकर आधुनिक हो जाएंगे, फालतु की बकवास कर लेंगे, सरकार को गालियाँ पिला देंगे, बस हो गया. लेकिन देखो तो सही… सरकार वही है, गृहमंत्री भी वही है, और नारा भी वही है – जय हो! यह कथाकथित मराठा हृदय सम्राट और हिन्दू हृदय महासम्राट भी कागजी शेर हैं…सब "धंधा" है यहाँ. सरकार, पक्ष, विपक्ष, एनजीओ सब जगह धंधा चल रहा है.

  10. November 23, 2009 at 9:42 am

    "कसाब और अफ़ज़ल गुरु को टीवी-अखबार दिया गया है"उन्हें मोमबत्ती भी दी जायेगी कि नहीं?

  11. November 23, 2009 at 9:43 am

    "भले ही कांग्रेस पैसा खाती हो, काम तो करती है…" यह बात मैंने देश के अलग अलग हिस्सों में अलग अलग पृष्टभूमि के लोगों से सुनी है. पंजाब, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, तमिलनाडु, कर्णाटक, सरकारी अधिकारीयों, प्राइवेट कर्मचारियों से ले कर असंगठित क्षेत्र के लोगों के मुह से यह सुना है. पर भाजपा भी तो उसी लाइन पर है, दिग्विजय के शासनकाल में दस साल विपक्ष में बैठी भाजपा ने कितना माल उडाया हिसाब लगाने की ज़रूरत नहीं है. कांग्रेस में रिलायंस ने मुरली देवड़ा फिट किया तो भाजपा में प्रमोद महाजन अम्बानी का एजेंट था. अब भाजपा में भी वंशवाद आ चुका है, उम्मीद तो अब भाजपा से भी नहीं है, यह कांग्रेस का निकृष्ट संस्करण रह गई है.————पीले रंग से हाईलाईट किये अंश ग्लेयर के कारण आँखों में चुभ रहे है और पढने में असुविधा उत्पन्न कर रहे हैं, कृपया इन्हें किसी कम चमक वाले रंग (नीले, हरे, ग्रे, ओलिव) से बदल दें.

  12. November 23, 2009 at 9:54 am

    सुरेशजी, कल परसों की बात है की सरकार ने मीडिया को निर्देश जारी किये हैं कि २६/११ की बरसी पर कुछ भी ज्यादा न दिखाएं. शायद सरकार को डर है कि सेकुलरिज्म की अफीम देकर जिस जनता को सुलाया गया है कहीं जाग न जाए. आज दोपहर में सरकार ने लिब्रहान आयोग का नया शिफूगा छोड़ दिया है. ताकि मुम्बई हादसे से लोगों का ध्यान हटाया जाए. दूसरी बात, इन मोमबत्ती छाप युवराज भक्त और पिंक चड्डी के गुलामो की बदौलत ही तो आतंकियों के ससुरे वापस सत्ता में आ जाते हैं.

  13. November 23, 2009 at 10:08 am

    26/11 को मोमबत्ती नही गिरेबान में झाकना चाहिये। गजब लिखा है

  14. November 23, 2009 at 10:37 am

    जिनकी आत्मा अभी तक जिंदा है उस पर सन सनाते हंटर की तरह चोट करती है आपकी ये पोस्ट…ग़ज़ब लिखा है…बखिया उधेड़ दी आपने तो होने वाले स्यापा कार्यक्रम की…वाह सुरेश जी वाह…आपके बागी तेवरों को सलाम…नीरज

  15. November 23, 2009 at 10:52 am

    मोमबत्ती करनी किसके है सा‘री हर १५ अगस्त को बाघा बार्डर पर मोमबत्ती जलाने वालो के बारे मे भी सोचिये

  16. November 23, 2009 at 11:13 am

    कुछ मतभेदों के बावजूद – एक बढ़िया आलेख !

  17. November 23, 2009 at 11:23 am

    विचारोत्तेजक बात।

  18. November 23, 2009 at 11:35 am

    अगले सप्ताह भर के दृश्य और वातावरण का सटीक चित्र खींचा है आपने। ये सेकुलरवादी देश को डुबोने का पिशाचयज्ञ कर रहे हैं तो भाजपा और शिवसेना के मक्कार और अन्धे राजनेता भी इसमें घी ही डाल रहे हैं। अजीब विडम्बना की हालत है।सच्चे राष्ट्रवादी तो इतने अल्पसंख्यक हो गये हैं कि इनकी आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज से भी कमजोर साबित हो रही है।

  19. RAJENDRA said,

    November 23, 2009 at 12:01 pm

    bhai sureshji apke lekh dhyan se padhta hun par nirasha hoti hai ke tippani ke liye roman likhni pad rahia hai – kya iska devnagri men parivartan nahin ho sakta – kripya batayen

  20. November 23, 2009 at 1:11 pm

    @ राहुल – उन मूर्ख चाचा-भतीजों के बारे में बात करना ही बेकार है… @ Ab inconvenienti – सहमत कि भाजपा से अब कोई उम्मीद नहीं बची, इसीलिये अन्य विकल्प तलाशना होंगे, लेकिन "पैसा खाकर काम करती है, इसलिये कांग्रेस सबसे अच्छी…" इस निर्लज्ज और पराजित मानसिकता से भी बाहर निकलना होगा… @ सिद्धार्थ जी – सच्चे राष्ट्रवादी कितने भी अल्पसंख्यक हो गये हों, अभी भी नीच लोगों की हिम्मत उनसे आँखे मिलाने की नहीं होती… @ राजेन्द्र जी – कृपया अपने कम्प्यूटर में यूनिकोड स्थापित करवा लें, अथवा गूगल ट्रांसलिटरेटर का उपयोग करके टिप्पणी कर सकते हैं, वैसे महत्व टिप्पणी का है न कि भाषा का, आपकी भावनाएं पहुँच रही हैं, इसका धन्यवाद्…

  21. November 23, 2009 at 2:17 pm

    अजी स्यापा महोत्सव में शामिल होने हम भी पहुँचेंगे…. हाय जम्हूरियत..हाय छक्कई

  22. November 23, 2009 at 2:35 pm

    …"आदरणीय सुरेश जी,मोमबत्तियाँ खरीद लीं या नहीं? स्यापा सेलीब्रेशन महोत्सव शुरू हो चुका है।"आलेख से सहमत हूँ, बेहतर होता कि पहली बरसी के दिन सरकारें यह बताती कि दोबारा ऐसा होने से रोकने के लिये क्या किया गया अब तक… क्या हमारी पुलिस और कमान्डो टीमों को बेहतर हथियार, इक्विपमेंट, प्रशिक्षण, तैयारी और इंटैलिजेंस प्रदान करने के ईंतजाम किये गये इस एक साल में… क्या हम देश के दुश्मनों के नेटवर्क में सेंध लगा पाये… ९/११ के बाद से आज तक अमेरिका की जमीन पर कोई आतंकवादी हमला नहीं होने दिया वहां की सरकार ने… क्या हमारी सरकारें भी वैसा ही दॄढ़ निश्चय और इच्छा शक्ति दिखा रही हैं… कांग्रेस के प्रति आपकी VISCERAL HATRED का कारण तो आप ही जानें पर आज की तारीख में विकल्प दूर-दूर तक दिखाई नहीं देता।

  23. November 23, 2009 at 2:48 pm

    २६/११ के करता आज खुले घूम रहे है पता नहीं और कितने मोमबत्ती लगाने वाले दिनों का इजाफा होने वाला है ! रा ने कांग्रेस राज में चुडिया पहन रक्खी है ! पता नहीं कबतक भारत बेचारा बना रहेगा ! इस देश का कुछ भला नहीं हो सकता बॉस "ओनली डिवाइड एंड रूल" !!!

  24. November 23, 2009 at 3:09 pm

    @ प्रवीण शाह – कांग्रेस के प्रति जो व्यक्ति Visceral Hatred नहीं रखता उसकी मानसिकता पर मुझे आश्चर्य और दुख होता है… रही विकल्प की बात – वह क्यों नहीं उभर पाया, इसका जवाब भी इसी मानसिकता में छिपा है… वरना ऐसा नहीं कि भाजपा सरकारों ने काम नहीं किये हों… लेकिन शायद आपको फ़िल्म चाइना टाउन का संवाद याद होगा जिसमें विलेन कहता है, "स्वभाव में सब कुछ ले आओगे लेकिन जगीरा जैसा कमीनापन कहाँ से लाओगे…" यही बात कांग्रेस पर लागू होती है, भाजपा कांग्रेस की तरह भ्रष्टाचार कर लेगी, कांग्रेस की तरह साम्प्रदायिक कार्ड खेल लेगी, थोड़ा-बहुत विकास भी कर लेगी, लेकिन जो खास किस्म का "कमीनापन" होता है जो उसे अंग्रेजों से विरासत में मिला है, वह कहाँ से लायेगी? इसीलिये विकल्प बनना मुश्किल है, और यह देश का दुर्भाग्य है, सो भुगतना ही है, भुगत रहे हैं… कौन क्या बिगाड़ लेगा कांग्रेस का… जब महारानी-युवराज के लाखों भक्त मौजूद हैं…

  25. L.R.Gandhi said,

    November 23, 2009 at 3:28 pm

    jannat mein inam milega kasab se yahi kaha gaya jo kuran mein likha hai-musalmano ko chahiye ki kafir murti poojak ko jaha kahin dekho maar dalo-islam ke liye marne par jannat mein hooron ka anand bhogoge.madarson mein yahi paath padahne ke liye bharat sarkar ne madarson ka anudan 3 crore se badha kar 6.5 crore kar diya hai aur ab to madarso ke talibaan sarkari naukri ke bhi patr hain.

  26. November 23, 2009 at 4:03 pm

    सुरेश भाईआपकी इस पोस्ट समेत सारी ही पोस्टों का इकलौता लक्ष्य कांग्रेस की इसलिये आलोचना करना है ताकि उसकी सगी बहिन भाजपा का व्याह सत्ता से हो जाये। यह काम आप अनजाने में नहीं कर रहे हैं अपितु एक वकील की तरह अपने मुवक्किल के पक्ष में दलीलें गड़ते हैं और कुछ अपने सहयोगियों की मदद से ऐसा झाग उठाते हैं कि कुछ भावुक सरल लोग आपके जाल में फंस कर साम्प्रदायिकता से भर उठते हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि आप उन तथाकथित समर्थकों के प्रति यही विचार रखते होंगे कि इसे अच्छा मूर्ख बनाया। जाहिर है कि आप इस बात को सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं कर सकते।आज देश में कांग्रेस जैसी कोई पार्टी नहीं है और जो कुछ भी कांग्रेस के नाम से चल रहा है वह सत्ता के सहारे धन और ताकत पाने की गिरोहबाज़ी है। भाजपा भी उसकी भोंड़ी नकल है जो मुखौटा कुछ और लगाती है जिससे उसके दुहरेपन के कारण वह और अधिक घृणास्पद हो जाती है। इस देश में दो ही राजनीतिक संगठन हैं जिसमें से एक का नाम आर एस एस है और दूसरी का नाम सीपीएम है। किंतु आर एस एस भी वही मुखौटों का खेल खेलती है क्योंकि वह स्वयं अपने चहरे से नफरत करती है। क्षमा करें बाल ठाकरे और राज ठाकरे भले ही गुंडॆ हैं किंतु वे उसका खतरा भी मोल लेते हैं और संघ परवारियों की तरह मुँह छुपा कर अपराध नहीं करते। यदि सरकार ही इतनी नाकारा है जो गुन्डों का कुछ नहीं बिगाड़ पाती तो अलग बात है पर वे तो आपरेशन ब्ल्यू स्टार के लिये तैयार हैं पर कोई इन्दिरा गान्धी तो हो। शब्द सीमा है इसलिये पोस्ट पर टिप्पणी अलग से………….

  27. isibahane said,

    November 23, 2009 at 4:21 pm

    बेचारी मोमबत्तियों की लौ कमज़ोर हो चली है। अब ज़रूरत अपने अंदर लौ नहीं आग जलाने की है। हम भूल बहुत जल्दी जाते हैं इसलिए शायद हर बार मार खाते हैं। अब देखिए न, कोई दो महीने पहले तक 26/11 की बात तक नहीं कर रहा था। हमें एक अदद कैलेण्डर चाहिए होता है, अपने ज़ख़्मों की याद दिलाने को। 26/11 पर ही आज एक पोस्ट लिखी है, अपने ब्लॉग पर।

  28. November 23, 2009 at 4:33 pm

    ….. चैनलों के अपने अलग से धंधे हैं जो गन्दे हैं और उन्हें अपने धन्धे के अलवा किसी भी चीज में आस्था नहीं है। वे कब क्या करेंगे यह एक अलग विषय है किंतु आप अपने लक्षय को पाने के लिये खतरनाक मिक्सिंग करते हैं। आतंककवाद के आरोप में गिरफ्तार लोगों को मार देने के चक्कर में केवल भावुक साम्प्रदायिकता प्रभावित ही नहीं होते अपितु उनके आका भी होते है। कल्पना करो कि अगर कसाब आज ज़िन्दा नहीं होता तो पाकिस्तान को घेरे में नहीं लिया जा सकता था। इसलिये ऐसे महत्वपूर्ण सबूत को सुरक्षित रखना कितना ज़रूरी है। दूसरी ओर आप इसको साम्प्रदायिक? आधार पर बता कर अपने पिछ्लग्गुओं को मूर्ख बना रहे हैं और उन्हें यह नहीं बता रहे हैं कि मालेगावं आदि के साधु साध्वी भेषधारियों को भी अपेक्षा कृत अधिक सुविधायें मिल रहीं हैं। दरसल प्रश्न आतंकवाद और साम्प्रदायिकता के रंग का नहीं है वे चाहे भगवा हों चाहे हरी हों और चाहे जिसकी हों वे खतरनाक और बुरी हैं।मुझे मोमबत्ती वाला पाखंड दूसरे वैसे ही पाखंडों जैसा लगता है जैसा कि आडवाणी ने पूरे देश में अस्थिकलश निकाल कर किया था। किंतु क्या आप यह नहीं चाहते कि करकरे जैसे देशभक्त पुलिस अधिकारी को याद किया जाये क्योंकि वह हिन्दुत्व के नाम से आतंकी हत्यारों का राज जान चुका था और संघ परिवारी उसके खिलाफ हो गये थे। एक साध्वी भेष में रह कर जनता को ठगने वाली ने कहा था कि इतने कम लोग क्यों मरे।आतंकी चाहे माओवादी हों उल्फा के हों तालिबान हों हुर्रियत के हों या साधु साध्वी भेषधारी हों वे कायर हैं और अपने शत्रु से सीधे चुनौती मोल लेने का खतरा नहीं लेते। भगत सिंह ने कहा था कि में बह्रों को सुनाने के लिये विष्फोट कर रहा हूं और उसे स्वीकार कर के अपने मुकदमे के माध्यम से देश को सन्देश दिया था किंतु ये हिन्दू मुस्लिम के नाम से लोगों को बहकाने वाले टुच्चे अपराधियों से अधिक कुछ भी नहीं हैं।

  29. November 23, 2009 at 4:54 pm

    विनीत की बात पर ध्‍यान दें.. इस तरह की बरसियों जैसी मीडिया ईवेंट्स के मामले में चैनलों को कास्‍ट शेयरिंग मॉडल अपनाना चाहिए कम से कम मोमबत्‍ती की कीमत तो वे भुगतेंगे… आखिर कमाई भी तो उनकी ही हो रही हे न।

  30. November 23, 2009 at 5:23 pm

    " करकरे जैसे देशभक्त पुलिस अधिकारी को याद किया जाये क्योंकि वह हिन्दुत्व के नाम से आतंकी हत्यारों का राज जान चुका था और संघ परिवारी उसके खिलाफ हो गये थे। एक साध्वी भेष में रह कर जनता को ठगने वाली ने कहा था कि इतने कम लोग क्यों मरे।" @ वीरेन्द्रजी, आपकी सेकुलर सरकार की मेहरबानी और सौभाग्य से मुम्बई हमले की जांच अभी भी चल रही है. आप ने जो कहा उसके सबूत हो तो एक साक्षी बन सकते हैं. वैसे नारायण राने तो अपने कहे से मुकर गए हैं. लेकिन आप कुछ योगदान दे सके तो जांच को सही दिशा मिलेगी!!

  31. November 23, 2009 at 5:32 pm

    "आपकी इस पोस्ट समेत सारी ही पोस्टों का इकलौता लक्ष्य कांग्रेस की इसलिये आलोचना करना है ताकि उसकी सगी बहिन भाजपा का व्याह सत्ता से हो जाये।"@वीरेन्द्रजी, अब पता चला कि आप भाजपा को बदनाम और सीपीएम और कोंग्रेस का गुणगान क्यों करते हैं. शायद आपका मकसद यही है कि घोटालो, निकम्मेपन, जातिवाद, किसानो की आत्महत्या, भ्रष्टाचार और तुष्टिकरण के बावजूद कोंग्रेस और कम्युनिस्ट सत्ता से चिपके रहे. और आपके आरोप से लगता है कि आप ऐसी गहरी चाल में माहिर लगते हैं… इसलिए आप भी अनजाने ही तो कोंग्रेस, सीपीएम के वकील हीं बने हुए है. बस आप जैसे 'बुद्धीजीवी' अपनी वकालत (राग-दरबारी) को सेकुलर जैसा नाम दे देते हैं. ताकि वह ग्लेमर्सा लगे, कहीं कोइ शक नहीं करे और अपने मानवाधिकार, सेकुलरवाद, प्रगतीशीलता, जनवाद जैसी दुकाने भी चलती रहे. अगर सुरेशजी अपने लेखन के जारी राष्ट्रवाद या हिंदुत्व की पैरोकारी करते भी हैं, और इसके चलते राष्ट्रवाद -हिंदुत्व के शत्रु कम्युनिस्टो, कोंग्रेस से नफ़रत भी करते हो तो कहाँ उनको इनाम-इकराम मिल रहे हैं. ज़रा नजर दौडाओं तो पता चलेगा कि सुरेशजी जैसे सैकड़ो ब्लोगर अपनी गाँठ के गोपीचंद बनाकर राष्ट्रहित और जन-जागरण में जुटे हुए हैं. आपको तो पता ही है कि सुरेशजी जेएनयु में मोटी तनख्वाह की नौकरी नहीं करते. न ही वह किसी अकादमी, संस्थान या राजीव गांधी फ़ौंडेशन से पगार पाते हैं. सुरेशजी की बदकिस्मती ये है कि कम्युनिस्टो के खिलाफ होने के कारण उन्हें ना तो रूस की केजीबी या चीन से कोइ पगार-पानी मिलता है. आजादी के बाद ६० साल तक आप जैसे तथाकथित बुद्धीजिविओं ने सरकारी छत्रछाया में अपना बौद्धिक आतंक फैलाया, अब अगर कोई सुरेशजी जैसा अदना-सा आदमी नंगे को नंगा और चोर को चोर कह रहा है तो आपके पेट में क्यों मरोड़ आ रही है. इससे भी बड़ी शर्म की बात ये है कि सुरेशजी की धारदार कलम के कायल सुधी पाठको को आप सहयोगी, पिछलग्गू जैसे संबोधन देते हैं…मैं पहले भी आपको बता चुका हूँ कि ये जो समर्थक, सहयोगी पिछलग्गू हैं वह सुरेशजी के नहीं बल्कि उनकी कलम के फैन हैं. क्योंकि उनकी कलम भारत माँ और भारत की जनता के लिए चलती है. इटली की महारानी, युवराज या किसी नाम'चीन' भारत द्रोही के लिए नहीं. आप भी लिखो देश हित में, सच कहने की हिम्मत जुटाओ, वादा करता हूँ सुरेश जी से ज्यादा आपके फैन हो जायेंगे. रही बात संघ परिवार पर आपके आरोपों कि, तो यह आपकी अज्ञानता की सूचक है.

  32. November 23, 2009 at 6:34 pm

    मीडिया वाले क्या टेलिकास्ट करने वाले हैं ये आपने पहले ही उजागर कर दिया अब ये लोग क्या नया कर दिखाते हैं, देखते हैं। सो काल्ड मीडिया….

  33. November 24, 2009 at 3:25 am

    मोमबत्ती खरीद लाते हैं…ठाकरे परिवार के जो तेवर हैं…किसी के काम तो आ ही जायेंगी. या शोक मन जाये या शौक!

  34. November 24, 2009 at 5:43 am

    हटा ही दी न मेरी टिप्पणीहा…हा हा हा हा

  35. November 24, 2009 at 6:22 am

    Jhutha Asu Bhane Ka Koi Dawa Bhi Bata Dete

  36. November 24, 2009 at 6:35 am

    मोमबत्तियां एक दिन जूते बनकर रहेगी सुरेश भाऊ,कब तक़ रुदालियों को लोग बर्दाश्त करेंगे।मैं तो अभी से जूते खरीद रहा हूं।

  37. cmpershad said,

    November 24, 2009 at 8:55 am

    "इसी 5 सितारा पीढ़ी का खयाल रखते हुए दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने मनु शर्मा को अपनी सिफ़ारिश से पेरोल दिलवाया था, ताकि देश की इस “अघाई हुई” पीढ़ी के प्रतिनिधि के रूप में मनु 26/11 को सेलिब्रेट करें…"मनु शर्मा …मोमबत्ती….माइ फ़ुट…मशीनगन खरीदेगा… कितने जसिकालाल है रे मोमबत्ती लिए हुए 🙂

  38. November 24, 2009 at 11:46 pm

    महंगाई ने मोमबत्तियों के दाम भी बढवा दिए हैं | shopping mall वाले २६/११ पे मोमबत्तियों पे कोई ऑफर देने वाले हैं : "Buy one pack of candle and get another free, if you use it for 26/11 …" . ऑफर आते ही दो – दो पेकेट जलाउंगा २६/११ पे दीपावली की तरह ….


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