प्यार-मोहब्बत की किताबी बातें हाँकने वालों से सिर्फ़ एक सवाल… यह मोहब्बत(?) वन-वे-ट्रैफ़िक क्यों है?…… Love Jihad, Hindu-Muslim Love Relations, Conversion

मेरी पिछली पोस्ट “क्या लव जेहादी अधिक सक्रिय हो गये हैं…” के जवाब में मुझे कई टिप्पणियाँ प्राप्त हुईं और उससे भी अधिक ई-मेल प्राप्त हुए। जहाँ एक ओर बेनामियों (फ़र्जी नामधारियों) ने मुझे मानसिक चिकित्सक से मिलने की सलाह दे डाली, वहीं दूसरी ओर मेरी कुछ महिला पाठकों ने ई-मेल पर कहा कि मुस्लिम लड़के और हिन्दू लड़की के बारे में मेरी इस तरह की सोच “Radical” (कट्टर) और Communal (साम्प्रदायिक) है। ज़ाहिर है कि इस प्रकार की टिप्पणियाँ और ई-मेल प्राप्त होना एक सामान्य बात है। फ़िर भी मैंने “लव-जेहाद की अवधारणा” तथा “प्रेमी जोड़ों” द्वारा धर्म से ऊपर उठने, अमन-शान्ति की बातें करने आदि की तथाकथित हवाई और किताबी बातों का विश्लेषण करने और इतिहास में झाँकने की कोशिश की, तो ऐसे कई उदाहरण मिले जिसमें मेरी इस सोच को और बल मिला कि भले ही “लव जेहाद” नामक कोई अवधारणा स्पष्ट रूप से परिभाषित न हो, लेकिन हिन्दू-मुस्लिम के बीच प्यार-मुहब्बत के इस “खेल” में अक्सर मामला या तो इस्लाम की तरफ़ “वन-वे-ट्रैफ़िक” जैसा होता है, अथवा कोई “लम्पट” हिन्दू व्यक्ति अपनी यौन-पिपासा शान्त करने अथवा किसी लड़की को कैसे भी हो, पाने के लिये इस्लाम का सहारा लेते हैं। वन-वे ट्रैफ़िक का मतलब, यदि लड़का मुस्लिम है और लड़की हिन्दू है तो लड़की इस्लाम स्वीकार करेगी (चाहे नवाब पटौदी और शर्मिला टैगोर उर्फ़ आयेशा सुल्ताना हों अथवा फ़िरोज़ घांदी और इन्दिरा उर्फ़ मैमूना बेगम हों), लेकिन यदि लड़की मुस्लिम है और लड़का हिन्दू है, तो लड़के को ही इस्लाम स्वीकार करना पड़ेगा (चाहे वह कम्युनिस्ट इन्द्रजीत गुप्त हों या गायक सुमन चट्टोपाध्याय)…

ऊपर मैंने कुछ प्रसिद्ध लोगों के नाम लिये हैं जिनका समाज में उच्च स्थान “माना जाता है”, और ऐसे सेलेब्रिटी लोगों से ही युवा प्रेरणा लेते हैं, आईये देखें “लव जेहाद” के कुछ अन्य पुराने प्रकरण (आपके दुर्भाग्य से यह मेरी कल्पना पर आधारित नहीं हैं…सच्ची घटनाएं हैं)-

(1) जेमिमा मार्सेल गोल्डस्मिथ और इमरान खान – ब्रिटेन के अरबपति सर जेम्स गोल्डस्मिथ की पुत्री (21), पाकिस्तानी क्रिकेटर इमरान खान (42) के प्रेमजाल में फ़ँसी, उससे 1995 में शादी की, इस्लाम अपनाया (नाम हाइका खान), उर्दू सीखी, पाकिस्तान गई, वहाँ की तहज़ीब के अनुसार ढलने की कोशिश की, दो बच्चे (सुलेमान और कासिम) पैदा किये… नतीजा क्या रहा… तलाक-तलाक-तलाक। अब अपने दो बच्चों के साथ वापस ब्रिटेन। फ़िर वही सवाल – क्या इमरान खान कम पढ़े-लिखे थे? या आधुनिक(?) नहीं थे? जब जेमिमा ने इतना “एडजस्ट” करने की कोशिश की तो क्या इमरान खान थोड़ा “एडजस्ट” नहीं कर सकते थे? (लेकिन “एडजस्ट” करने के लिये संस्कारों की भी आवश्यकता होती है)…

(2) 24 परगना (पश्चिम बंगाल) के निवासी नागेश्वर दास की पुत्री सरस्वती (21) ने 1997 में अपने से उम्र में काफ़ी बड़े मोहम्मद मेराजुद्दीन से निकाह किया, इस्लाम अपनाया (नाम साबरा बेगम)। सिर्फ़ 6 साल का वैवाहिक जीवन और चार बच्चों के बाद मेराजुद्दीन ने उसे मौखिक तलाक दे दिया और अगले ही दिन कोलकाता हाइकोर्ट के तलाकनामे (No. 786/475/2003 दिनांक 2.12.03) को तलाक भी हो गया। अब पाठक खुद ही अन्दाज़ा लगा सकते हैं कि चार बच्चों के साथ घर से निकाली गई सरस्वती उर्फ़ साबरा बेगम का क्या हुआ होगा, न तो वह अपने पिता के घर जा सकती थी, न ही आत्महत्या कर सकती थी…

अक्सर हिन्दुओं और बाकी विश्व को मूर्ख बनाने के लिये मुस्लिम और सेकुलर विद्वान(?) यह प्रचार करते हैं कि कम पढ़े-लिखे तबके में ही इस प्रकार की तलाक की घटनाएं होती हैं, जबकि हकीकत कुछ और ही है। क्या इमरान खान या नवाब पटौदी कम पढ़े-लिखे हैं? तो फ़िर नवाब पटौदी, रविन्द्रनाथ टैगोर के परिवार से रिश्ता रखने वाली शर्मिला से शादी करने के लिये इस्लाम छोड़कर, बंगाली क्यों नहीं बन गये? यदि उनके “सुपुत्र”(?) सैफ़ अली खान को अमृता सिंह से इतना ही प्यार था तो सैफ़, पंजाबी क्यों नहीं बन गया? अब इस उम्र में अमृता सिंह को बच्चों सहित बेसहारा छोड़कर करीना कपूर से इश्क की पींगें बढ़ा रहा है, और उसे भी इस्लाम अपनाने पर मजबूर करेगा, लेकिन खुद पंजाबी नहीं बनेगा (यही है असली मानसिकता…)।

शेख अब्दुल्ला और उनके बेटे फ़ारुख अब्दुल्ला दोनों ने अंग्रेज लड़कियों से शादी की, ज़ाहिर है कि उन्हें इस्लाम में परिवर्तित करने के बाद, यदि वाकई ये लोग सेकुलर होते तो खुद ईसाई धर्म अपना लेते और अंग्रेज बन जाते…? और तो और आधुनिक जमाने में पैदा हुए इनके पोते यानी कि जम्मू-कश्मीर के वर्तमान मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी एक हिन्दू लड़की “पायल” से शादी की, लेकिन खुद हिन्दू नहीं बने, उसे मुसलमान बनाया, तात्पर्य यह कि “सेकुलरिज़्म” और “इस्लाम” का दूर-दूर तक आपस में कोई सम्बन्ध नहीं है और जो हमें दिखाया जाता है वह सिर्फ़ ढोंग-ढकोसला है। जैसे कि गाँधीजी की पुत्री का विवाह एक मुस्लिम से हुआ, सुब्रह्मण्यम स्वामी की पुत्री का निकाह विदेश सचिव सलमान हैदर के पुत्र से हुआ है, प्रख्यात बंगाली कवि नज़रुल इस्लाम, हुमायूं कबीर (पूर्व केन्द्रीय मंत्री) ने भी हिन्दू लड़कियों से शादी की, क्या इनमें से कोई भी हिन्दू बना? अज़हरुद्दीन भी अपनी मुस्लिम बीबी नौरीन को चार बच्चे पैदा करके छोड़ चुके और अब संगीता बिजलानी से निकाह कर लिया, उन्हें कोई अफ़सोस नहीं, कोई शिकन नहीं। ऊपर दिये गये उदाहरणों में अपनी बीवियों और बच्चों को छोड़कर दूसरी शादियाँ करने वालों में से कितने लोग अनपढ़ या कम पढ़े-लिखे हैं? तब इसमें शिक्षा-दीक्षा का कोई रोल कहाँ रहा? यह तो विशुद्ध लव-जेहाद है।

इसीलिये कई बार मुझे लगता है कि सानिया मिर्ज़ा के शोएब के साथ पाकिस्तान जाने पर हायतौबा करने की जरूरत नहीं है, मुझे विश्वास है कि 2-4 बच्चे पैदा करने के बाद “रंगीला रसिया” शोएब मलिक उसे “छोड़” देगा और दुरदुराई हुई सानिया मिर्ज़ा अन्ततः वापस भारत में ही पनाह लेगी, और उस वक्त भी उससे सहानुभूति जताने में नारीवादी और सेकुलर संगठन ही सबसे आगे होंगे।

वहीदा रहमान ने कमलजीत से शादी की, वह मुस्लिम बने, अरुण गोविल के भाई ने तबस्सुम से शादी की, मुस्लिम बने, डॉ ज़ाकिर हुसैन (पूर्व राष्ट्रपति) की लड़की ने एक हिन्दू से शादी की, वह भी मुस्लिम बना, एक अल्पख्यात अभिनेत्री किरण वैराले ने दिलीपकुमार के एक रिश्तेदार से शादी की और गायब हो गई।

प्रख्यात (या कुख्यात) गाँधी-नेहरु परिवार के मुस्लिम इतिहास के बारे में तो सभी जानते हैं। ओपी मथाई की पुस्तक के अनुसार राजीव के जन्म के तुरन्त बाद इन्दिरा और फ़िरोज़ की अनबन हो गई थी और वह दोनों अलग-अलग रहने लगे थे। पुस्तक में इस बात का ज़िक्र है कि संजय (असली नाम संजीव) गाँधी, फ़िरोज़ की सन्तान नहीं थे। मथाई ने इशारों-इशारों में लिखा है कि मेनका-संजय की शादी तत्कालीन सांसद और वरिष्ठ कांग्रेस नेता मोहम्मद यूनुस के घर सम्पन्न हुई, तथा संजय गाँधी की मौत के बाद सबसे अधिक फ़ूट-फ़ूटकर रोने वाले मोहम्मद यूनुस ही थे। यहाँ तक कि मोहम्मद यूनुस ने खुद अपनी पुस्तक “Persons, Passions & Politics” में इस बात का जिक्र किया है कि संजय गाँधी का इस्लामिक रिवाजों के मुताबिक खतना किया गया था।

इस कड़ी में सबसे आश्चर्यजनक नाम है भाकपा के वरिष्ठ नेता इन्द्रजीत गुप्त का। मेदिनीपुर से 37 वर्षों तक सांसद रहने वाले कम्युनिस्ट (जो धर्म को अफ़ीम मानते हैं), जिनकी शिक्षा-दीक्षा सेंट स्टीफ़ेंस कॉलेज दिल्ली तथा किंग्स कॉलेज केम्ब्रिज में हुई, 62 वर्ष की आयु में एक मुस्लिम महिला सुरैया से शादी करने के लिये मुसलमान (इफ़्तियार गनी) बन गये। सुरैया से इन्द्रजीत गुप्त काफ़ी लम्बे समय से प्रेम करते थे, और उन्होंने उसके पति अहमद अली (सामाजिक कार्यकर्ता नफ़ीसा अली के पिता) से उसके तलाक होने तक उसका इन्तज़ार किया। लेकिन इस समर्पणयुक्त प्यार का नतीजा वही रहा जो हमेशा होता है, जी हाँ, “वन-वे-ट्रेफ़िक”। सुरैया तो हिन्दू नहीं बनीं, उलटे धर्म को सतत कोसने वाले एक कम्युनिस्ट इन्द्रजीत गुप्त “इफ़्तियार गनी” जरूर बन गये।

इसी प्रकार अच्छे खासे पढ़े-लिखे अहमद खान (एडवोकेट) ने अपने निकाह के 50 साल बाद अपनी पत्नी “शाहबानो” को 62 वर्ष की उम्र में तलाक दिया, जो 5 बच्चों की माँ थी… यहाँ भी वजह थी उनसे आयु में काफ़ी छोटी 20 वर्षीय लड़की (शायद कम आयु की लड़कियाँ भी एक कमजोरी हैं?)। इस केस ने समूचे भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ पर अच्छी-खासी बहस छेड़ी थी। शाहबानो को गुज़ारा भत्ता देने के लिये सुप्रीम कोर्ट की शरण लेनी पड़ी, सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को राजीव गाँधी ने अपने असाधारण बहुमत के जरिये “वोटबैंक राजनीति” के चलते पलट दिया, मुल्लाओं को वरीयता तथा आरिफ़ मोहम्मद खान जैसे उदारवादी मुस्लिम को दरकिनार किया गया… तात्पर्य यही कि शिक्षा-दीक्षा या अधिक पढ़े-लिखे होने से भी कोई फ़र्क नहीं पड़ता, शरीयत और कुर-आन इनके लिये सर्वोपरि है, देश-समाज आदि सब बाद में…।

(यदि इतना ही प्यार है तो “हिन्दू” क्यों नहीं बन गये? मैं यह बात इसलिये दोहरा रहा हूं, कि आखिर मुस्लिम बनाने की जिद क्यों? इसके जवाब में तर्क दिया जा सकता है कि हिन्दू कई समाजों-जातियों-उपजातियों में बँटा हुआ है, यदि कोई मुस्लिम हिन्दू बनता है तो उसे किस वर्ण में रखेंगे? हालांकि यह एक बहाना है क्योंकि इस्लाम के कथित विद्वान ज़ाकिर नाइक खुद फ़रमा चुके हैं कि इस्लाम “वन-वे ट्रेफ़िक” है, कोई इसमें आ तो सकता है, लेकिन इसमें से जा नहीं सकता…(यहाँ देखें http://blog.sureshchiplunkar.com/2010/02/zakir-naik-islamic-propagandist-indian.html)। लेकिन चलो बहस के लिये मान भी लें, कि जाति-वर्ण के आधार पर आप हिन्दू नहीं बन सकते, लेकिन फ़िर सामने वाली लड़की या लड़के को मुस्लिम बनाने की जिद क्योंकर? क्या दोनो एक ही घर में अपने-अपने धर्म का पालन नहीं कर सकते? मुस्लिम बनना क्यों जरूरी है? और यही बात उनकी नीयत पर शक पैदा करती है)

एक बात और है कि धर्म परिवर्तन के लिये आसान निशाना हमेशा होते हैं “हिन्दू”, जबकि ईसाईयों के मामले में ऐसा नहीं होता, एक उदाहरण और देखिये –

पश्चिम बंगाल के एक गवर्नर थे ए एल डायस (अगस्त 1971 से नवम्बर 1979), उनकी लड़की लैला डायस, एक लव जेहादी ज़ाहिद अली के प्रेमपाश में फ़ँस गई, लैला डायस ने जाहिद से शादी करने की इच्छा जताई। गवर्नर साहब डायस ने लव जेहादी को राजभवन बुलाकर 16 मई 1974 को उसे इस्लाम छोड़कर ईसाई बनने को राजी कर लिया। यह सारी कार्रवाई तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर राय की देखरेख में हुई। ईसाई बनने के तीन सप्ताह बाद लैला डायस की शादी कोलकाता के मिडलटन स्थित सेंट थॉमस चर्च में ईसाई बन चुके जाहिद अली के साथ सम्पन्न हुई। इस उदाहरण का तात्पर्य यह है कि पश्चिमी माहौल में पढ़े-लिखे और उच्च वर्ग से सम्बन्ध रखने वाले डायस साहब भी, एक मुस्लिम लव जेहादी की “नीयत” समझकर उसे ईसाई बनाने पर तुल गये। लेकिन हिन्दू माँ-बाप अब भी “सहिष्णुता” और “सेकुलरिज़्म” का राग अलापते रहते हैं, और यदि कोई इस “नीयत” की पोल खोलना चाहता है तो उसे “साम्प्रदायिक” कहते हैं। यहाँ तक कि कई लड़कियाँ भी अपनी धोखा खाई हुई सहेलियों से सीखने को तैयार नहीं, हिन्दू लड़के की सौ कमियाँ निकाल लेंगी, लेकिन दो कौड़ी की औकात रखने वाले मुस्लिम जेहादी के बारे में पूछताछ करना उन्हें “साम्प्रदायिकता” लगती है…

इस मामले में एक “एंगल” और है, वह है “लम्पट” और बहुविवाह की लालसा रखने वाले हिन्दुओं का… धर्मेन्द्र-हेमामालिनी का उदाहरण तो हमारे सामने है ही कि किस तरह से हेमा से शादी करने के लिये धर्मेन्द्र झूठा शपथ-पत्र दायर करके मुसलमान बने…। दूसरा केस चन्द्रमोहन (चाँद) और अनुराधा (फ़िज़ा) का है, दोनों प्रेम में इतने अंधे और बहरे हो गये थे कि एक-दूसरे को पाने के लिये इस्लाम स्वीकार कर लिया। ऐसा ही एक और मामला है बंगाल के गायक सुमन चट्टोपाध्याय का… सुमन एक गीतकार-संगीतकार और गायक भी हैं। ये साहब जादवपुर सीट से लोकसभा के लिये भी चुने गये हैं। एक इंटरव्यू में वह खुद स्वीकार कर चुके हैं कि वह कभी एक औरत से संतुष्ट नहीं हो सकते, और उन्हें ढेर सारी औरतें चाहिये। अब एक बांग्लादेशी गायिका सबीना यास्मीन से शादी(?) करने के लिये इन्होंने इस्लाम स्वीकार कर लिया है, यह इनकी पाँचवीं शादी है, और अब इनका नाम है सुमन कबीर। आश्चर्य तो इस बात का है कि इस प्रकार के लम्पट किस्म के और इस्लामी शरीयत कानूनों का अपने फ़ायदे के लिये इस्तेमाल करने वाले लोगों को, मुस्लिम भाई बर्दाश्त कैसे कर लेते हैं?

मुझे यकीन है कि, मेरे इस लेख के जवाब में मुझे सुनील दत्त-नरगिस से लेकर रितिक रोशन-सुजैन खान तक के (गिनेचुने) उदाहरण सुनने को मिलेंगे, लेकिन फ़िर भी मेरा सवाल वही रहेगा कि क्या सुनील दत्त या रितिक रोशन ने अपनी पत्नियों को हिन्दू धर्म ग्रहण करवाया? या शाहरुख खान ने गौरी के प्रेम में हिन्दू धर्म अपनाया? नहीं ना? जी हाँ, वही वन-वे-ट्रैफ़िक!!!!

सवाल उठना स्वाभाविक है कि ये कैसा प्रेम है? यदि वाकई “प्रेम” ही है तो यह वन-वे ट्रैफ़िक क्यों है? इसीलिये सभी सेकुलरों, प्यार-मुहब्बत-भाईचारे, धर्म की दीवारों से ऊपर उठने आदि की हवाई-किताबी बातें करने वालों से मेरा सिर्फ़ एक ही सवाल है, “कितनी मुस्लिम लड़कियों (अथवा लड़कों) ने “प्रेम”(?) की खातिर हिन्दू धर्म स्वीकार किया है?” मैं इसका जवाब जानने को बेचैन हूं।

मुझे “कट्टर” और Radical साबित करने और मुझे अपनी गलती स्वीकार करने के लिये कृपया आँकड़े और प्रसिद्ध व्यक्तियों के आचरण द्वारा सिद्ध करें, कि “भाईचारे”(?) की खातिर कितने मुस्लिम लड़के अपनी हिन्दू प्रेमिका की खातिर हिन्दू धर्म में आये? यदि आँकड़े और तथ्य आपके पक्ष में हुए तो मैं खुशी-खुशी आपसे माफ़ी माँग लूंगा… मैं इन्तज़ार कर रहा हूं… यदि नहीं, तो हकीकत को पहचानिये और मान लीजिये कि कुछ न कुछ गड़बड़ अवश्य है। अपनी लड़कियों को अच्छे संस्कार दीजिये और अच्छे-बुरे की पहचान करना सिखाईये। सबसे महत्वपूर्ण बात कि यदि लड़की के सच्चे प्रेम में कोई मुसलमान युवक, हिन्दू धर्म अपनाने को तैयार होता है तो उसका स्वागत खुले दिल से कीजिये…
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(इस लेख में उल्लेखित घटनाएं असली जिन्दगी से सरोकार रखती हैं तथा बंगाली लेखक रबिन्द्रनाथ दत्ता की पुस्तक “The Silent Terror” से ली गई हैं)

http://www.faithfreedom.org/islam/why-hindu-or-non-muslim-girl-must-not-marry-muslim-part-3-0

(यदि बोर हो गये हों, तो इतना लम्बा लेख लिखने के लिये मुझे माफ़ करें, लेकिन आठ-दस दिनों के लम्बे अन्तराल के बाद इतना बड़ा लेख तो बनता ही है, फ़िर तथ्यों, घटनाओं और आँकड़ों के कारण लेख की लम्बाई बढ़ना स्वाभाविक भी है)

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58 Comments

  1. April 12, 2010 at 7:49 am

    "मुझे विश्वास है कि 2-4 बच्चे पैदा करने के बाद “रंगीला रसिया” शोएब मलिक उसे “छोड़” देगा और दुरदुराई हुई सानिया मिर्ज़ा अन्ततः वापस भारत में ही पनाह लेगी"एक दिक्कत नजर आ रही है मुझे तो, ठीक है कि फिर सोएब तो उसे महाआपा कहना शुरू कर देगा मगर क्या बच्चे इसको मामा बोलेंगे ?:)

  2. April 12, 2010 at 7:51 am

    99% एक मार्गी है. लड़का या लड़की मुस्लिम है तो उसके प्रेम में पागल व्यक्ति को मुस्लिम बनना पड़ता है. जाहिर है प्रेम हिन्दुओं में ही ज्यादा जोर मारता है अतः मुस्लिम बन जाते है. (अपवाद भी है जिसमें मुस्लिम नहीं बनते, मगर ऐसे में दुसरा साथी भी हिन्दु नहीं बनता, यह 100% सही है) हिन्दु धर्म इतना विराट है कि जात-पात के आड़े आने का सवाल ही नहीं. मैं खुद को हिन्दु कहता हूँ, मुझे किस श्रेणी से रखेंगे? जो विदेशी हिन्दु बने है वे किस श्रेणी में आते है? जो खुद को हिन्दु कहे वो हिन्दु है.

  3. April 12, 2010 at 7:54 am

    comment likhna chahta tha…par kya likhu yahi samajh nahi aya.abhi bhi kisi ke liye bhi galiya likhne layak kabiliyat nahi jama kar paya hun.

  4. April 12, 2010 at 8:03 am

    आपका लेख पढ़ा… आपकी चिंता जायज़ है…जहां तक प्रेम विवाह का संबंध है, हमारा मानना है की प्रेम सर्वोपरि होता है… ऐसे में किसका क्या मज़हब है कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता…हम ऐसी कई महिलाओं को जानते हैं जो हिन्दू धर्म से हैं, और एक मुस्लिम पुरुष से शादी करके अच्छी जिंदगी बसर कर रही हैं… और हम ऐसी मुस्लिम लड़कियों को भी जानते हैं, जिन्होंने हिन्दू लड़के के साथ शादी की है… आज उनकी ज़िन्दगी बहुत ख़ुशहाल है… ये सभी मामले प्रेम के हैं… हम आपकी बात से सौ फ़ीसदी सहमत हैं कि ज़्यादातर मुस्लिम लड़के 'जेहाद' के मक़सद से हिन्दू लड़कियों से शादी करते हैं या करना चाहते हैं…इसके पीछे सबसे अहम बात 'धर्म परिवर्तन' होती है… उनको सिखाया जाता है कि अगर तुमने एक हिन्दू लड़की से शादी कर ली और फिर उसे 'कलमा' पढ़ा लिया तो तुम्हें 10 हज का सवाब मिलेगा… (ख़ास बात यह कि मुस्लिम मर्दों को 'मज़हब' के नाम पर 'जनहित' के बजाय 'अय्याशी' की बातें सिखाई जाती हैं…वो चाहें जन्नत में 72 हूरों की बात है, चार औरतों से निकाह को जायज़ बताना या फिर हिन्दू लड़कियों को प्रेम के जाल में फंसाना…)लेकिन मुस्लिम लड़कियों के मामले में स्थिति ठीक इसके विपरीत होती है… तर्क होता है… मुस्लिम लड़की हिन्दू के परिवार में गई तो वो हिन्दू हो जाएगी… हमारा मानना है कि 'प्रेम' के नाम पर किसी लड़की की 'ज़िन्दगी' के साथ 'खिलवाड़' करने को किसी भी सूरत में जायज़ नहीं ठहराया जा सकता…हो सकता कि कुछ लोग फिर से हमें 'काफ़िर' या 'ग़ैर मुस्लिम' घोषित कर दें, लेकिन हमें इसकी परवाह नहीं…इंसान को हमेशा सच का साथ देना चाहिए…

  5. April 12, 2010 at 8:10 am

    फ़िरदौस मैडम सकारात्मक टिप्पणी के लिये धन्यवाद। जो बातें आपने लिखीं, वही मैं लिखना चाहता था, लेकिन मुझ पर हमेशा कुतर्की होने का आरोप लगता है, तथा 72 हूरों या 10 हज के बारे में लिखने पर मुझसे "तथ्य" माँगे जाते। अच्छा हुआ कि आपने ही स्थिति स्पष्ट कर दी। मैंने तो सिर्फ़ इतिहास से उदाहरण दिये और सिद्ध करने की कोशिश की है कि "लव जेहाद" एक सच्चाई है। एक बार पुनः आपका धन्यवाद…

  6. April 12, 2010 at 8:12 am

    100% सही लिखा है आप ने… जेहादियो को बेनकाब कर दिया है! अब देखना है क्या समाज के लोग आप के इस आखे खोल देन वाले लेख से सीख लेते है और अपने घर वालो को बरबाद होने से बचा पाते है ???

  7. April 12, 2010 at 8:18 am

    अब मै मानता हूँ कि हिन्दुओ को भी अपने बच्चो को कट्टर धार्मिक होना सिखाना चाहिये !जो धर्म के नाम पर जान लेना और देने को तत्पर रहे !

  8. April 12, 2010 at 8:22 am

    आलेख का प्रत्येक शब्द सत्यपूर्ण है, ये आप, मैं और छद्म धर्मनिरपेक्षतावादी भी जानते हैं, लेकिन समस्या यह है कि ये तीसरे प्रकार के लोग इसे जानते हुए, और (तथा भीतर ही भीतर) मानते हुए भी इसे सार्वजनिक रूप से कह नहीं सकते। यह तो सर्वमान्य बात है कि नवमतांतरित मुस्लिमों ने जितना भारतीय जनता पर अत्याचार किया, उतना मूल मुसलमानों ने नहीं। उसी प्रकार ये छद्म धर्मनिरपेक्षतावादी भी नवमतांतरित लोग हैं, जिन्हे सच्चाई से अलग हटकर सोचना-लिखना-बोलना पड़ता है।

  9. April 12, 2010 at 8:29 am

    सुरेश जी, मूल समस्या है "हमारे समाज में एका न होने की"। यदि एक मुस्लिम परिवार/व्यक्ति के विरुद्ध कोई बात होती है, उदाहरणार्थ- कोई मुस्लिम लड़की किसी हिन्दू लड़के से शादी कर भी ले तो पूरा मुस्लिम समाज इसके खिलाफ खड़ा हो जाता है, किन्तु इसके उलट कोई हिन्दू लड़की ऐसा करती है, तो उसे पूरा हिन्दू समाज उस लड़की के परिवार का व्यक्तिगत मामला समझता है, एवं उल्टे उसके परिवार वालों को तरह-तरह के तानों से जीना हराम कर देता है। साथ ही कोई हिन्दू लड़का किसी मुस्लिम लड़की से शादी करके घर बसा ले, तब भी पूरा हिन्दू समाज उसे एवं उसके परिवार को समाज से बहिष्कृत कर देता है। मान्यवर, जब तक हिन्दू समाज "इस तरह के प्रेम-विवाह" को खुशी-खुशी स्वीकार करना नहीं शुरू कर देता, तब तक ये समस्या बनी रहेगी। साथ ही, यदि दहेज का बंधन भी ढीला हो जाए तो यकीन मानिए हालात और बेहतर हो जाएंगे।

  10. April 12, 2010 at 8:36 am

    ऎसा एक वकाया मेरे यहा भी हुआ .एक ठाकुर लडका मुस्लिम लड्की के लिये मुस्लिम बन गया . कई सालो बाद मेरे बाबा को पता चला तब तक उनके कई बच्चे बडे हो गये . बाबा ने उन्हे सम्झाया दुबारा हिन्दु धर्म मे वापिस लाने की कोशिश की . समस्या यह आई उन्की बेटी से शादी कौन करेगा . मेरे बाबा ने उस आदमी और उस्के परीवार को हिन्दु फ़िर से बनाया और उसे अपना बेटा स्वीकार किय और सम्पत्ति मे हिस्सा दिया . उसकी बेटी की शादी धूम धाम से एक प्रतिष्ठित परीवार मे की .

  11. Manish gupta said,

    April 12, 2010 at 8:36 am

    for some stats plz read the linkhttp://www.faithfreedom.org/wordpress/?p=8912

  12. kunwarji's said,

    April 12, 2010 at 9:02 am

    फिरदौस जी का साहस सच में काबिल-ए-तारीफ़ है,जैसे कि आपका हर प्रयास!आज जो पढ़े-लिखो का लेखा-जोखा आपने दिया है वो पर्याप्त है किसी की भी आँख खोलने के लिए!लेकिन यदि हम एक बात पर और गौर करे जो कि सच भी हो सकती है,वो ये कि जो लड़किया उन बेकारा,बेरोजगार,अनपढ़ टाइप के मुल्लो के चक्करों में,झांसो में आसानी से आ जाती है,उसका एक कारण ये भी तो है सकता कि उनपर किसी तरह के जादुई-इल्म का प्रयोग भी किय जाता हो!भई,लव और जेहाद में सब जायज है,और यहाँ तो दोनों एक साथ भी है!ये तो कितना भी गिर सकते है अपने इरादों को पूरा करने के चक्कर में!आज कि पीढ़ी को ये लेख जरुर पढना चाहिए!जो भी इसे पढ़े जितना हो सके फैला दे…. जय श्री राम,कुंवर जी,

  13. April 12, 2010 at 9:08 am

    लेख के द्वारा अच्छे मुद्दे उठए गये हैं!

  14. April 12, 2010 at 9:29 am

    सुरेश जीआपके विचारों व तर्कों से १०० % सहमत !!

  15. nikhil said,

    April 12, 2010 at 10:19 am

    sachin pilot to muslim nahi bana??indrajit gupta ne to kabhi islaam kabool nahi kara,ho sakta hai ki aap unke personal sec. rahe ho ya nazdiki rahe ho,hume to aisi jaankaari kaheen nahi mili aur jahaan tak hum indrjit gupta ji ko jante hain unone kabhi islaam kabool nahi kara hai aap apni jaankaari daroost kare.

  16. April 12, 2010 at 10:20 am

    फिरदोस जी आपने बिलकुल सही बात की है और मै आपसे पूरी तरह सहमत भी हूँ. अगर ५०% मुस्लिमो की सोच सच्चाई के साथ हो जाये तो सारा झगडा ही समाप्त हो जाए.सुरेश जी बहुत ही गंभीर मुद्दे को उठाया है. और हिन्दू समाज की इस बारे में गंभीर सोच होनी चाहिए.

  17. April 12, 2010 at 10:40 am

    प्रिय मित्रो, इसमें दो तीन बातें मिली हुयी हैं और परम्परावादी जिन्हें अपने परम्परा के नशे में देख नहीं पाते। इसी कमजोरी को आधार बनाकर गुरूदत्त अपने उपन्यासों में खेल करते थे वही काम सुरेश और उनके ढोल बजाने वाले करते हैं।1. जब से व्यस्क विवाह होने लगे हैं तब से विवाह व्यक्तिगत निर्णय का विषय है और व्यक्तियों से हज़ारों गलतियाँ भी होती रहती हैं पर उनको छाँट कर एक निष्कर्ष पर धकेलने वालों की नीयत साफ नहीं कही जा सकती। क्या मुसलमानों में या हिन्दुओं में अपने ही धर्म में होने वाली सारी शादियाँ सफल होती हैं? इसी पोस्ट में शाहबानो का उदाहरण दिया गया है और आपके आस पास हज़ारों उदाहरण होंगे।2. पोस्ट लिखने वाले और हमेशा की तरह स्थायी ढोल बजाने वाले लिंग भेद के शिकार हैं हिन्दू या मुसलमान परिवार में पैदा हुयी लड़की दूसरे धर्म के लड़के से शादी करती है तो अपमान उन्हें महसूस होता है जो महिलाओं को स्वतंत्र नागरिक नहीं समझते अपितु एक वस्तु समझते हैं। ऐसे लोग ही नारी को बराबरी पर नहीं आने देते।3. सारे ही धर्म समाज कट्टर और हिंसक होते हैं क्योंकि धर्म परिवर्तन से उनके पुरोहितों की ग्राहकी कम होती है, अब इसमें उन्नीस बीस का फर्क हो सकता है। हरियाना में तो एक ही जाति के सगोत्र विव्वाह पर फांसियाँ दी जा रही हैं किंतु उसे साम्प्रदायिकता लाभांवित नहीं होती इसलिए इस ढंग से नहीं देखा गया।जब तक दुनिया धर्मों से मुक्त न्हीं होगी तब तक इंसानियत संकट में रहेगी, मेरी गज़ल की पंक्तियाँ हैं-जब तक खुदा सलामत चाचाइंसानों की आफत चाचामुल्ला मरे पादरी मरतामरता ग्रंथी पन्डित चाचापाँचों वक़्त नमाजें, पूजनफिर भी किसे हिफाज़त चाचाजो रहता खुद दबा छुपा साभेजो उस पे लानत चाचासहते सहते उमर बीत गई अब तो करो बगावत चाचा

  18. kunwarji's said,

    April 12, 2010 at 11:18 am

    2. "पोस्ट लिखने वाले और हमेशा की तरह स्थायी ढोल बजाने वाले लिंग भेद के शिकार हैं हिन्दू या मुसलमान परिवार में पैदा हुयी लड़की दूसरे धर्म के लड़के से शादी करती है तो अपमान उन्हें महसूस होता है जो महिलाओं को स्वतंत्र नागरिक नहीं समझते अपितु एक वस्तु समझते हैं। ऐसे लोग ही नारी को बराबरी पर नहीं आने देते।"श्रीमानजी,आपकी उम्र के अनुभव को मै सादर प्रणाम करता हूँ!इसी कारण मेरे मन में आपके प्रति अति सम्मान भी है!बस एक उलझन है मन में,वो सुलझा देंगे तो अति कृपा होगी!ऊपर दिए गए वक्तव्य में आप अपनी सगी बेटी रख कर देखे,फिर जो महसूस होवे जरुर बताये!मेरा मकसद आपका जी दुखाना नहीं है!बस पूछ रहा हूँ,जैसे औरो से पूछा वैसे ही आप से भी पूछ लिया!कुंवर जी,

  19. nitin tyagi said,

    April 12, 2010 at 11:50 am

    केवल हिन्दू ही है ,जो बाकि मजहब को सुरक्षित रखता है ,लेकिन दुसरे मजहब बहुसंख्यक होने पर दुसरे किसी भी मजहब को सहन नहीं करते |इसलिए अगर भारत की संस्कृति को बचा के रखना है तो यहाँ पर हिन्दू का ज्यादा संख्या में रहना जरुरी है |बटवारे के बाद बंगलादेश में ३२% हिन्दू थे अब वो ५ %रह गए हैं ,जो रह गए हैं वो दुसरे दर्जे के नागरिक के तौर पर रहते हैं |पाकिस्तान में २०% थे ,अब वहां पर १% रह गए हैं |बंगलादेश व् पाकिस्तान में क्योकि मुस्लिम्स बहुसंख्यक थे तो या तो हिन्दुओं को मारा गया या उनको इस्लाम को कबूल करने पड़ा |अपने ही देश कश्मीर में मुस्लिम्स बहुसंख्यक होने के कारण सभी हिन्दुओं को वहां से भगा दिया गया |लेकिन भारत में मुसलमान ५ % से १५ % हो गए |पाकिस्तान ,बंगलादेश व् कश्मीर की भारतीय संस्कृति समाप्त हो चुकी है | भारत में जो भी हिस्सा हिंदू बहुल नही रहता वह हिस्सा या तो अलग हो जाता है या फ़िर अलग होने का प्रयास शुरू कर देता है। आज का जो पकिस्तान व बांग्लादेश है वह इस बात का सबसे बड़ा उदहारण है कि हिंदू कम होने पर वह हिस्सा भारत से कट गया। कश्मीर की समस्या पूरे विश्व के सामने है। इस समस्या का कारण सिर्फ़ वहाँ पर मुसलमानों की बहुलता होना है।आसाम की स्थिति भी मुस्लिमो की आबादी तेजी के साथ बढ़ने के कारण हाथ से निकलती जा रही है। वहां पर मुसलमानों ने चुनाव में अपने लिए अलग विधानसभा सीटों की मांग शुरू कर दी है। नागालेंड,मिजोरम मेघालय की स्थिति इसलिए जटिल होती जा रही है क्यों कि ये राज्य इसाई बहुसंख्यक हो चुके है,और स्वतंत्र इसाई राष्ट्र की मांग कर रहे है। इनमे विदेशी पादरियों की भूमिका स्पष्ट दिखाई देती है। स्वामी विवेकानंद के अनुसार "जब कोई हिंदू धर्म परिवर्तन करता है तब एक हिंदू ही कम नही होता ,बल्कि उसका एक शत्रु भी बढ़ जाता है। "बाबा भीमराव आंबेडकर ने भी लिखा है कि "जब एक हिंदू का धर्मान्तरण होता है तो वह राष्ट्र वाद से बिल्कुल कट जाता है ।उसकी भक्ति मक्का व वेटिकन सिटी से जुड़ जाती है। पाकिस्तान ,बंगलादेश व् कश्मीर की भारतीय संस्कृति समाप्त हो चुकी है |

  20. April 12, 2010 at 11:51 am

    प्रिय मित्रो, इसमें दो तीन बातें मिली हुयी हैं और परम्परावादी जिन्हें अपने परम्परा के नशे में देख नहीं पाते। इसी कमजोरी को आधार बनाकर गुरूदत्त अपने उपन्यासों में खेल करते थे वही काम सुरेश और उनके ढोल बजाने वाले करते हैं।@ वीरेन्द्र जैन साहब मुझे विश्वास है कि आप ने धूप मे बाल नही सफ़ेद किये है,पर अफ़्सोस सुरेश भाई और उनके ढोल बजाने वालो की ढोल आप सुन तो सके पर समझ न सके !!!अब आप समझ सकते है तो क्या कहूँ ,जो आप न समझ सके तो मै क्या कहूँ ??? अतह सब आप के विवेक को समर्पित है!! जय तथाकथित सेकुलरवाद, जय शर्मनिरपेक्षता!!!नमष्कार!

  21. April 12, 2010 at 12:16 pm

    ये सामाजिक मामला है. इस पर चिंतन बहस जायज है. और आंकड़े की अनदेखी नहीं की जा सकती है.मेरे बचपन में मेरा एक क्रिकेटर दोस्त था, खेल में उम्दा था पर नौकरी मुस्लिम मालिक के यहाँ करता था. मुस्लिम लड़की से प्रेम कर बैठा परन्तु विवाह की शर्त वही थी. आज उसकी स्थिति ऐसी है की एक तरफ वो अपने ससुराल के रस्मों को निभाता है और दूसरी तरफ अपने हिन्दू माँ, बहन की देख भाल भी करता है चूँकि पिता नहीं है. अलग अकेला रहता है दोनों घरों के बीच दौर भाग करता रहता है. जाहिर है उसकी जिंदगी बहुत पेचीदा हो चुकी है. प्रेम ने कुच्छ ज्यादा ही समर्पण और कुर्बानी मांग लिया.बहरहाल, प्रेम विवाह जरुर करें. मगर यह याद रहे, प्रेम करना और खुलुसी से निभाना सिर्फ नेक दिल लोगों के ही बस की बात है.

  22. April 12, 2010 at 1:17 pm

    @ निखिल जी – मैं समझ सकता हूं कि वामपंथी होने की वजह से आपको ठेस पहुँची होगी, लेकिन इन्द्रजीत गुप्त सम्बन्धी तथ्य उस पुस्तक में है जिसका रेफ़रेंस मैंने अन्त में लिखा है… मैंने अपने मन से नहीं लिख दिया है। और @ वीरेन्द्र जैन साहब – जमाने भर की नसीहत तो आपने दी, लेकिन मेरे मूल प्रश्न का जवाब नहीं दिया कि अधिकतर मामलों में शादी करने की शर्त इस्लाम कबूल करना क्यों होती है? निखिल जी और जैन साहब – फ़िरदौस जी की टिप्पणी पर भी ज़रा गौर फ़रमायें, मैं तो आपको ज्ञान दे न सका, शायद फ़िरदौस जी द्वारा दिये गये तथ्यों की रौशनी में आपको कुछ नया दिखाई दे…। आप लोग भले ही आँखें बन्द करके सोने का नाटक करते रहें, लेकिन विश्व भर में जिस तरह से इस्लामिक उग्रवाद पैर पसार रहा है, भारत में असम, केरल और बंगाल इसकी चपेट में आते जा रहे हैं (कश्मीर तो कब का हाथ से निकल चुका), उसे देखते हुए आपकी यह नकली नींद देश को बहुत भारी पड़ने वाली है…

  23. April 12, 2010 at 1:23 pm

    100/100सुरेशजी आपको और फिरदौस खान दोनों को.

  24. Sachi said,

    April 12, 2010 at 2:23 pm

    भाइयों, एक आँखों देखी कहानी मेरे ओर से……JNU से पीएचडी करने वाली बिहार की एक ब्रामहन छात्रा को यही रोग लगा| साहब, सज्जन नहीं जनाब थे|जनाब मेरठ के थे| घर वालों ने बहुत समझाया, मगर मानी नहीं | अंत में माँ- बाप के लिए वह मर गई| बाद में, उसने कोर्ट मैरेज तो कर ली, मगर धर्म नहीं बदला | शादी के बाद, ससुराल में धीरे धीरे उसे इस्लाम की अच्छाइयाँ बतलाई जाने लगी, और हिंदु धर्म की बुराइयाँ| कब तक सहती, शौहर से बोली, कि अब वे दोनों साथ अलग एक घर में रहें तो बेहतर! लेकिन, उन्हें अपनी अम्मी जान ज्यादा प्यारी लगी| लेकिन तब तक महिला गर्भवती हो चुकी थी | शौहर ने उन्हे छोड़ दिया, और जहाँ वे पहले काम करती थी, अंत में उन्हे वहाँ काम पाने के लिए गिरगिराना पड़ा| अंत में, तदर्थ आधार पर काम मिला| बाद में जब लड़की के पिताजी को बात पता चली, तो वे क्या करते, अपनी बेटी के लिए बेटी को माफ किया और अपने घर पटना ले गए | अब मैं उस जगह से बहुत दूर हूँ, नहीं तो इस सच्ची कहानी का अंत जरूर लिखता |

  25. kunwarji's said,

    April 12, 2010 at 2:36 pm

    aadarniya virender ji ne pta nahi padha ya nahi ise ab….kunwar ji,

  26. Jandunia said,

    April 12, 2010 at 2:54 pm

    प्यार को कहां धर्म की जंजीर से बांध रहे हैं। प्यार में कभी कभी ऐसा हो जाता है। आंकड़े एक धर्म के समर्थन में खड़े हो जाते हैं। वैसे माफी मांगने की क्या बात है जो सच है वो सच है। कोई धर्म उदार है तो कोई कट्टर। लेकिन जो भी है ख्याल यही रखा जाना चाहिए कि समाज में धर्म के नाम पर फूट न पड़े।

  27. Pratik Jain said,

    April 12, 2010 at 3:19 pm

    @सुरेशजी बहुत ही अच्छी पोस्ट आप ऐसे ही लिखते रहिये ।@वीरेन्द्र जैन जी जो कह रहा हूँ उससे आपको शायद दुख तो अवश्य होगा किंतु कहना मेरे लिये आवश्यक हो गया है ।एक तो आप अपने नाम के आगे से जैन शब्द हटा लीजिये क्योंकि धर्म तो अफीम है और जब धर्म को मानते नही तो धर्म के सूचक शब्द का उपयोग क्यों करेंदूसरा मैं @कुंवरजी की टिप्पणी से पूरी तरह सहमत हूँ जरा कभी अपने बच्चों के विवाह मुस्लिम घरानो में करने के विषय में गम्भीरतापूर्वक चिंतन अवश्य करें ।

  28. April 12, 2010 at 3:38 pm

    सुरेशजी आपने लाजवाब मुद्दा उठाया है. कोई मुसलमान हिन्दू लड़के या लड़की से मुहब्बत करने के बात हिन्दू धर्म स्वीकार नहीं करता. बल्कि मैं एक दूसरी बात आपकी इस पोस्ट में जोड़ना चाहता हूँ… हिन्दू लड़कियों को फ़ासने में मुसलमान लड़के इसलिये कामयाब हो जाते हैं कि उनकी भाषा बहुत आकर्षक होती है.शायरी का पुट होता है उसमें और हमारी हमारी हिन्दी बड़ी साहित्यिक होती है और माफ़ कीजियेगा कभी कभी बड़ी रूखी भी. हिदू लड़के कभी मुसलमान लड़कियों को फ़सा नहीं पाते…मुसलमान लड़के ही कामयाब हो जाते हैं…जब वह हमारी बहन से कहता है तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है..तो हमारी बहन गई काम से……शेर सुना देना शायरी सुना देना मुसलमान लड़कों का करिश्मा होता है और हमारी बहने इस तिलस्म का शिकार हो जाती हैं…इस देश में सेकूलर के नाम से जितनी नौटंकी होती है उसनी दुनिया के किसी और भाग में नहीं होती…मुरारी बापू किसी मजार पर जाकर रामकथा कर आते हैं…लेकिन कभी सुना है आपने कि किसी राम मंदिर में जाकर कोई मौलवी अल्लामिया पर तकरीर फ़रमा रहे हैं…बस यहीं से सेकूलर की दोहरी मानसिकता साबित हो जाती है…हिन्दू अपने मंदिर में ईद मना सकता है क्या कभी किसी मंदिर में कुरान की आयतें पढ़ी जा सकेगी….इस देश को बचाने के लिये तो सबसे पहले धर्म पर सार्वजनिक बहस बंद होना चाहिये. हम मुसलमान की आलोचना करे तो धर्मांध हो जाते हैं और वे हिन्दू की आलोचना करे तो तालिया….ये कैसा धर्मनिरपेक्ष भारत है भाई…..ट्रेन मे जलाए गए रामसेवकों की बात कोई सेकूलरवादी नहीं करता…बेस्ट बेकरी को लेकर हाहाकार मचा हुआ है…क्यों भाई इतना दोगलापन क्यों…..

  29. impact said,

    April 12, 2010 at 4:58 pm

    मुस्लिम लड़के से हिन्दू लड़की इसलिए शादी करती है क्योंकि,१. उसे पता है की मुस्लिम लड़का कभी दूसरी औरतों से नाजायज़ सम्बन्ध नहीं बनाएगा. क्योंकि उसके मज़हब में यह एलाऊ नहीं. अगर वह दूसरी जगह सम्बन्ध भी बनाएगा तो सीना तानकर सबके सामने निकाह करके. जबकि हिन्दू पति बीवी रखते हुए और कितनी जगह मुंह मारता है यह उस पति को भी पता नहीं होता.२. मुस्लिम लड़का प्यार में कभी बिजनेस नहीं करता. जबकि हिन्दू लड़का प्यार भी करता है तो घर देखकर.३. हिन्दू लड़कों के माँ बाप उसके बचपन से ही उसकी कीमत तय करने लगते हैं. और यही बात वह अपने लड़के के दिमाग में भरते हैं. अगर गलती से कहीं लड़का किसी लायक हो गया तो उसकी कीमत आसमान छूने लगती है और आम आदमी व लड़कियों की सामर्थ्य से बाहर हो जाती है. मजबूरी में वे दूसरे धर्म वालों की तरफ देखने लगते हैं.४. हिन्दू लड़का लव स्टोरी में शादी से पहले ही लड़की के साथ सब कुछ कर गुजारता है, और फिर छोड़ छाड़कर निकल लेता है. जबकि मुस्लिम लड़का शादी से पहले इसे गुनाह समझता है. 5. हिन्दू लडकियां लटके झटके ज्यादा दिखाती हैं, क्योंकि उनका माहोल ही खुला होता है. नतीजे में भोले भाले मुस्लिम युवक आसानी से दाम में आ जाते हैं. क्योंकि उनके धर्म की लडकियां परदे में रहती हैं.6. हिन्दू लडकियां अधिकतर शादी से पहले ही सारे करम कर चुकी होती हैं, और ये बात उनके खानदान वालों व मित्र मंडली को मालूम होती है, इसलिए हिन्दू लड़का तो कतरा कर निकल जाता है, लेकिन अनजान मुस्लिम लड़का फंस जाता है.7. मुस्लिम लड़कों को उनके मज़हब से भटकाने के लिए भी दूसरे धर्म वाले अक्सर लड़कियों का सहारा लेते हैं. नतीजे में अक्सर शादी के बाद मुस्लिम होते हुए भी लड़का अपने धर्म के उसूलों से विमुख हो जाता है. ये दरअसल लव जिहाद नहीं बल्कि एंटी इस्लाम युद्ध है.वजहें और भी हैं, लेकिन फिलहाल इतना ही.

  30. April 12, 2010 at 5:35 pm

    @कुंवरजीटिप्पणी का मंच बहस और तर्क के लिए होता है यदि तर्क हों, प्रमाण हों तो बहस में उतरना चाहिए मैनें सुरेश्जी के ढोल शब्द इसलिए स्तेमाल किया है कि उनकी पोस्ट को फालो करने, उनकी प्रशंसा करने वाले कुछ स्थायी स्तम्भ हैं जिनमें से अनेक के परिचय[प्रोफाइल] उपलब्ध नहीं है और पूरी सम्भावना है कि वे ज़ाली हों। व्यस्कता के बाद उम्र नहीं देखी जाती तर्क रखा जाता है अगर मेरे बाल देख कर मेरे ऊपर दया कर रहे हों तो न करें मैं आप से अधिक युवा हूं। क्योंकि युवा वह है जो आगे देखता है। मेरी कोई ऐसी बेटी नहीं है जिसे उदाहरण के बतौर रख कर फइर सोचूं, मैं स्वतंत्र रूप से भी सोच सकता हूं और अगर आपके यहाँ सोचने का यही तरीका है तो मैं आपकी बहिन बेटी मँ को सामने रख कर सोच सकता हूं क्योंकि वे मेरी भी बहिन बेटी या माँ के पबराबर होन्गीं। और ऐसा करके सोचने के बाद भी म्मैं उसी निष्कर्ष पर कायम हूं।@नितिनजीपाकिस्तान में तो मुस्लिम ब्बहुसंख्यक थे फिर पाकिस्तान क्यों टूट गया और पकिस्तान और बंगला देश क्यों बन गये? प्पाकिस्तान में तालिबान बमबार्डिंग करके हज़ारों मुसलमानों को क्यों मार चुके है%?@ सुरेशजीशादी करने की शर्त रखना प्रेम से ज्यादा धर्म को महत्व देने की कट्टरता है और इसे प्रेमिका को सोचने दें। मेरी निगाह में कोई धर्म एक दूसरे से बेहतर नहीं मेरे मन में सभी के प्रति समान घृणा है वे सब इंसानियत के शत्रु हैं@प्रतीक जैननाम के पीछे जैन लगा होना मेरे विश्वासों को नहीं मेरी पहचान को प्रकट करता है इसे हटा देने से दूसरों को क्य फरक पड़ जायेगा इसे मैं नहीं समझ पाता किंतु यदि कोई जैन धर्म में आस्था का विज्ञापन करने के बाद भी हिंसकों, नफरत फैलाने वालों के साथ होता है तो वह शर्मनाक है। जैन धर्म तो सभी प्राणियों पर दया करना सिखाता है।@ इम्पैक्ट वगैरहछद्म नाम वालों की बदमाशियों पर समय व्यर्थ नहीं करना चाहता@ फिरदौसजब कुछ कहने के लिए हो तब हमॆ6 छेड़ना में अपने विवेक से ही काम करता हूं भावुकता से नहीं

  31. PARAM ARYA said,

    April 12, 2010 at 5:53 pm

    खरी बात कही अपने और सोने पे सुहागा कि गवाही भी मिल उसी समाज की बेटी से !

  32. aarya said,

    April 12, 2010 at 7:10 pm

    सादर वन्दे!ध्रुव सत्य लिखा है आपने सुरेश जी , और हाँ पेंड काटने लोहा लेकर लकड़ी भी आ रही है, जैन साहब माफ़ करें और आप युवा की बात ना करें क्योंकि जो अपने को ही नहीं पहचान पाया वो दूसरों को क्या शिक्षा देगा, आप पर दया नहीं घृणा आती है. रत्नेश त्रिपाठी

  33. PD said,

    April 12, 2010 at 7:44 pm

    भाई जी, आपकी इस बात से सहमत हूँ कि सब संस्कार कि ही बात है..वैसे एक अच्छा उदहारण अपने हिंदी ब्लॉग में भी है, जहाँ मुस्लिम लड़के में संस्कार भी है.. हम सबके प्रिय युनुस भाई.. उन्होंने ममता जी से शादी कि, और उनके और ममता जी के लेख से पता चलता है कि वे मंदिर और मस्जिद दोनों ही जगह जाते हैं..मैं सिर्फ एक उजला और अच्छा पक्ष भी दिखाना चाह रहा हूँ..

  34. mukesh567 said,

    April 13, 2010 at 3:10 am

    Dear Sureshji, Pranam. Mai pahli bar comment likh raha hu. Maire bachche chhote hai mai abhi se unke dimaag mai dusre dharma ke prati nafarat rakhna sikha raha hu. Kyonki yadi abhi se nafarat rahegi to wo kabhi love jihad ke zaanse me nahi aayenge. AND I THINK THIS WAY IS BEST FOR ME TO PROTECT MY CHILD FROM LOVE??? JEHAD.

  35. April 13, 2010 at 3:44 am

    Impact -हिन्दू लडकियां लटके झटके ज्यादा दिखाती हैं………,हिन्दू लडकियां अधिकतर शादी से पहले ही सारे करम कर चुकी होती हैं……… मुस्लिम लड़कों को उनके मज़हब से भटकाने के लिए भी दूसरे धर्म वाले अक्सर लड़कियों का सहारा लेते हैं. …..———बेहद शर्मनाक है कि आपकी सोच ऐसे काम करती है !किसी मुगालते में न रहें तो अच्छा है, लड़कियाँ हिन्दू या मुसलमान नही हैं ….उन्हें आपके धर्म-जेहाद से कोई मतलब नही है!क्योंकि कोई भी धर्म हो स्त्री के लिए उसने केवल दोज़ख ही बनाए हैं और यूँ भी जब स्त्री के लिए उसका पति ही सबसे बड़ा धर्म माना जाता हो तो किसी और धर्म से मतलब नही !!ये धर्म के नाम की लड़ाइयाँ भी पुरुषों की हैं और यदि कुछ लव-जिहाद जैसा है तो वह भी पुरुष की ही सोच है !किसी जिहाद के लिए न स्त्री प्यार करती है न शादी !यूँ भी अपने ही धर्म मे अलग गोत्र मे शादी करने की सज़ा जब मृत्युदण्ड हो किसी समाज में तो वहाँ किसीअन्य धर्म मे लड़की के लिए शादी करना कोई खेल नही है जिसे आपकी बताई बेहूदा बातों के लिए सामान्यत: कोई लड़की खेलती हो !

  36. April 13, 2010 at 4:09 am

    हर बार की तरह एक तर्कसंगत लेख. इसे पढ़ कर जो चाहे जितनी बहस कर ले, मैं एक लाईन में फिर वही दोहराऊंगा जो मैंने इससे सम्बंधित पिछले लेख कि टिप्पणी में लिखा था और जिसे सुरेश जी ने भी लिखा है कि प्रत्येक माता पिता का फर्ज है कि वो अपने बच्चो को को अच्छे संस्कार दे और अच्छे-बुरे की पहचान करना सिखाए. संस्कारो की बुनियाद पर ही आने वाली पीढ़ी का भविष्य तय होगा. उपरोक्त सारे वाकयो में अगर कही कोई सच्चा प्यार होता तो मुमकिन था कि दोनों पक्ष एक दूसरे के धर्म का आदर करते हुए अपने वैवाहिक जीवन का निर्वाह करते न कि कोई भी एक ही तरफ (वन वे) धर्म परिवर्तन की और अग्रसर होता.

  37. April 13, 2010 at 4:32 am

    सुरेश जी मै आपको बताना चाहूँगा की सुनील दत्त ने नर्गिस के साथ मुसलमान बन जाने के बाद ही शादी की थी. मेरे को याद नहीं आ रहा है की musalmaan बन्ने के बाद सुनील दत्त ने क्या नाम रक्खा था.और धर्मेन्द्र भी हेमा मालिनी से शादी करने के लिए पहले मुसल्मा बना था .

  38. April 13, 2010 at 5:20 am

    सुरेश जी से पूरी तरह सहमत.. मुझसे भी यही कहा गया था… लेकिन यह मुझे मंजूर न हुआ.. नतीजा शून्यफिरदौस जी ने खरी बात कही यदि जैन साहब जैसों की समझ में आये तो…

  39. Baba said,

    April 13, 2010 at 5:23 am

    फ़िरदौस ख़ान…. Good Job.Mera Ek Dost Muslim Hai…. Use To Mullao se Nafrat hai…. In Gandi Soch ki Vajah se to Vah Gali Deta hai..

  40. April 13, 2010 at 5:36 am

    "हिन्दू-मुस्लिम के बीच प्यार-मुहब्बत के इस “खेल” में अक्सर मामला या तो इस्लाम की तरफ़ “वन-वे-ट्रैफ़िक” जैसा होता है"ये “वन-वे-ट्रैफ़िक” जैसा होता है" क्या है? ऐसा ही है।

  41. April 13, 2010 at 6:01 am

    ये सोचने वाली बात है की ये "वन वे ट्रेफिक" ही क्यों है, फिर चाहे मामला राष्ट्रीय स्तर का हो या अंतर्राष्ट्रीय. कुछेक साल पहले ओसामा लादेन के दर्जनों बच्चो की फ़ौज में से एक सताईस वर्षीया ओमर बिन लादेन ने त्रेपन वर्षीया अँगरेज़ फेलिक्स ब्राउनी से शादी की थी. शादी के बाद फेलिक्स का धर्म इस्लाम और नाम जैना मोहम्मद हो गया है.

  42. nikhil said,

    April 13, 2010 at 7:03 am

    kabhi muslim samjhte ho kabhi vaampanti…chalo koi baat nahi jaisi aapki marzi,par ghatiya lekhko ki prachaar paane ke liy likhi gayi kitabe nahi padhe to aapkelye acha rahega kam se kam digbhramit karne wali post to nahi likhenge.rahi baat firdaus bahan ki to me unse puri tarah sahmat hun lekin wo puri baat nahi likhti hai,unhone yeh nahi bataya ki sanghi log 1 muslim ladki se balatkaar karne ka punya 100 gaay daan karne k barabar batate hain aur isi tarah punya karne ki puri list hai unke paas…waise communist party me bahut se leader aur karyakarta hain jinhone dusre dharm me shadi kari hai aur bahut se aam log bhi bina dharmpariwartan ke sukhi jeewan bita rahe hain list bataunga to lambi ho jayegi aur aapko pramanik bhi nahi lagegi

  43. nitin tyagi said,

    April 13, 2010 at 7:50 am

    कुछ हिन्दू लव जिहाद का मतलब जब समझेगे जब उनकी बेटी या बहन इस जाल में नहीं फंसती |कुछ हिंदू की वो दुर्दशा है कि कोई उसकी माँ के चरित्र पर भी ऊँगली उठाएगा तो उसे भी पचा जाये

  44. April 13, 2010 at 8:11 am

    अमिताव घोष की पुस्तक "HUSBAND OF A FANATIC" के सन्दर्भ में यही बात जब मैंने महान साहित्यकार श्री उदय प्रकाश जी से पूछ ली थी कि एक पाकिस्तानी मुस्लिम लड़की से शादी करने के लिए भारतीय हिन्दू लड़के (अमिताव) को मुल्ला से इजाजत कि आवश्यकता क्यों पड़ी और वह धर्म परिवर्तन (अमिताव के मुसलमान बनने) पर ही मिली?? इस पर उदय जी भड़क गए और मुझे सांप्रदायिक, युद्ध पिपासु, मूढ़ मगज और जाने क्या-क्या कहने लग पड़े थे……… खुद ही पढ़ लीजिये-http://thethbhartiya.blogspot.com/2009/10/blog-post.html

  45. April 13, 2010 at 8:44 am

    @nikhilएक बार शिवाजी के साथियों ने एक मुस्लिम आक्रांता की पत्नी को लङाई मैं पकङकर शिवाजी को भेंट कियाय….तब शिवाजी महाराज ने उस मुस्लिम युवती को कहा कि यदि मेरी मां आपकी तरह सुंदर होती तो मैं भी शायद सुंदर होता….उन्होने अपने साथियों को डांटा और उसे वापिस ससम्मान अपने खेमे मैं भिजवा दिया….ये कहानी संघ की शाखाओं मैं रोज सुनाई जाती है…..आपने जो गलीज आरोप संघ के स्वयंसेवक पर लगाया है इससे ये बात तो साबित है कि संघ के बारें मैं आप हद दर्जे के पूर्वाग्रही हैं…..व्यक्ति निर्माण द्वारा राष्ट्रनिर्माण करने का संकल्प लेकर चलने वाले लोगों के बारें मैं इस तरह का घिनौना आरोप आपकी मानसिकता बयान कर रहा हैं…..खैर फिर भी आपने सुरेश भाई के किसी बात का आपने कोई जवाब नहीं दिया हैं……सोचो….सोचो…

  46. मौसम said,

    April 13, 2010 at 8:52 am

    सुरेश जी,आप किन लोगों से जवाब की आशा कर रहे हैं?उनसे फ़िरदौस जी के एक भी सवाल का जवाब नहीं दिया गया.और 'खिसियानी बिल्ली' की तरह सब इकट्ठे अपना 'धर्म प्रचार' छोड़कर फ़िरदौस जी के खिलाफ लिखने में व्यस्त हो गए हैं.वैसे आपके सवाल का जवाब तो फ़िरदौस जी की टिप्पणी में ही है- "हम आपकी बात से सौ फ़ीसदी सहमत हैं कि ज़्यादातर मुस्लिम लड़के 'जेहाद' के मक़सद से हिन्दू लड़कियों से शादी करते हैं या करना चाहते हैं…इसके पीछे सबसे अहम बात 'धर्म परिवर्तन' होती है… उनको सिखाया जाता है कि अगर तुमने एक हिन्दू लड़की से शादी कर ली और फिर उसे 'कलमा' पढ़ा लिया तो तुम्हें 10 हज का सवाब मिलेगा… (ख़ास बात यह कि मुस्लिम मर्दों को 'मज़हब' के नाम पर 'जनहित' के बजाय 'अय्याशी' की बातें सिखाई जाती हैं…वो चाहें जन्नत में 72 हूरों की बात है, चार औरतों से निकाह को जायज़ बताना या फिर हिन्दू लड़कियों को प्रेम के जाल में फंसाना…)लेकिन मुस्लिम लड़कियों के मामले में स्थिति ठीक इसके विपरीत होती है… तर्क होता है… मुस्लिम लड़की हिन्दू के परिवार में गई तो वो हिन्दू हो जाएगी…"

  47. मौसम said,

    April 13, 2010 at 8:57 am

    एक बात और, फ़िरदौस जी ने भारतीय सभ्यता की बात की, देश की बात की और इंसानियत की बात की तो इन लोगों ने उन्हें 'मुसलमान मानने तक से ही इनकार कर दिया. फ़िरदौस जी के एक लेख का अंश, जिसने तमाम तालिबानियों की नींद हराम कर दी-"मज़हब के ठेकेदारों के खौफ़ से हम हिन्दू धर्म अपना लें, ऐसा कभी हो नहीं सकता…क्योंकि पलायन हमारी फ़ितरत में शामिल नहीं है… यानि 'न दैन्यम न पलायनम'हमने कट्टरपंथियों के विरोध से घबराकर हिन्दू धर्म अपना लिया तो…हमारी कौम की बहनों का क्या होगा…???हम बेशक मज़हब के लिहाज़ से मुसलमान हैं, लेकिन सबसे पहले हम इंसान हैं… और मज़हब से ज़्यादा इंसानियत और रूहानियत में यक़ीन करते हैं… हम नमाज़ भी पढ़ते हैं, रोज़े रखते हैं और 'क़ुरआन' की तिलावत भी करते हैं… हम गीता भी पढ़ते हैं और बाइबल भी… क़ुरआन में हमारी आस्था है, तो गीता और बाइबल के लिए भी हमारे मन में श्रद्धा है… हमने कई बार अपनी हिन्दू सखियों के लिए 'माता की कथा' पढ़ी है… और यज्ञ में आहुतियां भी डाली हैं…अगर इंसान अल्लाह या ईश्वर से इश्क़ करे तो… फिर इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि उसने किसी मस्जिद में नमाज़ पढ़कर उसकी (अल्लाह) इबादत की है… या फिर किसी मन्दिर में पूजा करके उसे (ईश्वर) याद किया है…"

  48. April 13, 2010 at 10:45 am

    मुझे विश्वास है कि 2-4 बच्चे पैदा करने के बाद “रंगीला रसिया” शोएब मलिक उसे “छोड़” देगा और दुरदुराई हुई सानिया मिर्ज़ा अन्ततः वापस भारत में ही पनाह लेगी, सत्य कहा आपने ..ऐसा ही होगा

  49. April 13, 2010 at 10:48 am

    जैन साब हम भी कभी मन्दीर के द्वारे नहीं जाते, ना ही जैन होते हुए कभी व्याख्यान में जाते है. मगर आप धर्म विरोधी होते हुए भी एक धर्म का नाम अपने नाम से क्यों चिपकाए हुए है? सवाल व्यक्तिगत सा है मन हो तो ही दें. आपने लेख सम्बन्धि जो बाते कही वह सत्य है. मगर आपको यह सत्य स्वीकारने से कौन रोक रहा है कि मुस्लिम लड़की हो या लड़का जिससे ब्याह करते है उसे धर्म परिवर्तन करना पड़ता है. ये लोग धर्मांतरण के पीछे इतने पागल है कि जेलों के कैदियों को भी नहीं छोड़ते. हर बात में पहली शर्त होती है मुसलमान बन जाओ.

  50. April 13, 2010 at 10:57 am

    जैन साब ने मेरे सवाल का जवाब उपर दे दिया है. देखा नहीं था. क्षमा करें. एक धर्म में आपको अच्छाई नजर आयी यह अच्छी बात है, वैसे मैंने वर्तमान जैन साधू-संतो की बहुत आलोचनाएं की है. उनके कूकर्म भी जानता हूँ. फिर भी काफी कुछ अच्छा भी है. यही दुनिया है.

  51. nikhil said,

    April 13, 2010 at 12:28 pm

    mihirbhoj ji bachpan me niymit roop se shakha me jata raha hun,aap mukhe mat bataye ki sangh me kya kahaniya sunayi jati hai,shivaji ka udaharan dekar aap aya sabit karna chahate hai?yahi ki pura bharatvarsh unke sidhanto ka 100% pratishat palan kar raha hai??kaash ki aisa hota.aapne shayad tak koi danga bhi nahi dekha hoga.. rahi baat suresh ji k jawaab ki maine to indrajit gupta ke bare me gyan darust karne ko kaha tha,maine one way traffic to bahut dekha hai lekin saath me yeh bhi dekha hai kikaise bahut se log bina dharm oarivartan karwa kar saath sukhi jeevan ji rahe hain.antardharmik vivah karne walo ki 1 sanstha bhi hai delhi me naam yaad nahi aa raha hai,kuch saal pahale isi sanstha ke 1 program me bhi gaya tha me.

  52. nitin tyagi said,

    April 13, 2010 at 2:03 pm

    @आज़ाद आवाज़urdu is not a language Teri ankhon ke siva is a hindi song मुस्लिम्स लीग ने अलगाव वाद के चलते हिंदी को फारसी शब्द के साथ अरबी स्क्रिप्ट का चोल पहना कर उसे उर्दू नाम देकर पाकिस्तान बनवा दिया ,लेकिन हमारे सेकुलर नेता अभी तक इस मुस्लिम लीग की मानसिकता को पोषित कर रहें हैं |क्योकि उनको मुस्लिम वोट चाहिए |जिस भाषा की अपनी व्याकरण ,अपने शब्द ,अपनी लिपि न हो |वो भाषा कैसे हो सकती है |हिंदी ने अगर कुछ शब्द सिर्फ बोलचाल में फारसी के लिए हैं जैसा की आम है सब भाषा एक दुसरे से शब्द लेती हैं ,लेकिन भारत में हिंदी को ही अरबी लिपि में लिख कर इसे मजहब के आधार पर उर्दू नाम देना ,ये मुस्लिम लीग का पाप है ,और उसकी सजा इस देश को पाकिस्तान बन कर मिल चुकी है |उसके बाद हमारे सेकुलर नेता इसको मुस्लिम वोट के लिए पोषित कर रहे हैं |

  53. nitin tyagi said,

    April 13, 2010 at 2:11 pm

    @impact हिन्दू की जो भी लड़कियां मुस्लिम्स से शादी करती हैं जब वो अपने बाप की नहीं होती तो उस मुल्लो की क्या होंगी |मुस्लिम्स की लड़कियां घर में अपने चाचा ,मौसी आदि के बच्चों से सब कुछ करा लेती हैं इसलिए उनकी बुद्धि बचपन से ही ख़राब रहती है |तभी तो वो उस इस्लाम की जेल से नहीं निकल पति है |मुस्लिम्स की गंदगी के बारे में सब को पता है की कैसे बुरखा में वो अपने भाई जानों को छुपा-२ कर क्या -२ नहीं करती |

  54. impact said,

    April 13, 2010 at 4:20 pm

    @Nitin Tyagiसही कह रहे हो की हिन्दू की जो भी लड़कियां मुस्लिम्स से शादी करती हैं जब वो अपने बाप की नहीं होती तो उस मुल्लो की क्या होंगी | इसीलिये, जब सुनता हूँ की कोई लायेक मुसलमान लड़का गैर मुस्लिम लड़की के लड़के झटके में फंस गया तो बड़ा दुःख होता है.हमारी कौम की अच्छी नेक लडकियां बूढी हो जाती हैं और शर्म उन्हें कुछ करने की आज़ादी नहीं देती और उनका हक आज़ाद गैर मुस्लिम लडकियां ले उडती हैं. ऊपर से चिप्लूकर जैसे सस्ते बुद्धिजीवियों का लव जिहाद जैसा इलज़ाम और झेलिये. अर्थात हम ही को लूटा और हम ही को लुटेरा बना दिया. यही गैर मुस्लिम लडकियां लायेक मुस्लिम लड़कियों का हक चबाती हैं. या फिर संगीता बिजलानी बनकर नूरीन जैसी वफादार बीवियों को घर से बाहर निकलवा देती हैं.

  55. Anurag Geete said,

    April 14, 2010 at 4:33 am

    आप सभी को एक असली वाकया बताता हु.. ट्रेन में एक मुस्लमान युवक मिला जो एक हिन्दू लड़की से इश्क करता था.. और शादी भी करना चाहता था.. उसका कहना था की जीतनी इज्ज़त एक हिन्दू लड़की अपने पति को देती है, उतनी मुस्लमान लड़की नहीं, कही न कही ये बात सच है, ज्यादातर मुस्लमान लड़के हिन्दू लडकियों से इसीलिए शादी करना चाहते है ताकि वो अपनी इज्ज़त बचा सके.

  56. nitin tyagi said,

    April 14, 2010 at 9:12 am

    @impact मुस्लिस्म लड़कियां और नेक कभी नहीं सुना था ऐसा जोक मुस्लिम्स लड़कियां कैसे अपने भाईजान के साथ मजे लेते हैं सब को मालूम है |सिर्फ माँ के बेटे को छोड़ कर सब के साथ |मुस्लिम्स लड़कियों के चाचा ,मामा के बच्चों का उन पर पहला हक़ होता है इसलिए कोई नेक मुस्लिम लड़का (जो की एक अपवाद ही है )मुस्लिम्स लड़कियों से निकाह नहीं करता क्योकि उसे मालूम है की ताज़ी तो मुस्लिम्स लड्कियियाँ मिलती नहीं |सब कम चुप-२ घर में ही हो जाता है |

  57. impact said,

    April 14, 2010 at 12:46 pm

    @Nitin Tyagiमेरे ही शब्दों को 'हिन्दू' की जगह 'मुसलमान' रखकर दोहरा रहे हो. तुममें तो ओरिजनल सोचने की भी क्षमता नहीं. वैसे तुम्हारी जानकारी की दाद देनी पड़ेगी. ऐसी ख़बरें तो चैनेल वाले भी नहीं देते. पुराने ज़माने में मुस्लिम बादशाहों के हरम की ख़बरें दो ही लोगों के पास होती थीं. या तो बेगमों के पास या फिर उन बीच वालों के पास जो बेगमों की खिदमतें किया करते थे.

  58. sleem said,

    April 15, 2010 at 4:23 pm

    nitin ji bhai shab milawat hamesha gandgee paidaa kartee he …arbee suvaro ke saatha hinduvo ki milaawat ek ajeeb see gandgee ???? kya kahoo sir…ye milawat


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