पिता : घर का अस्तित्व

“माँ” घर का मंगल होती है तो पिता घर का “अस्तित्व” होता है, परन्तु इस अस्तित्व को क्या कभी हमनें सच में पूरी तरह समझा है ? पिता का अत्यधिक महत्व होने के बावजूद उनके बारे में अधिक बोला / लिखा नहीं जाता, क्यों ? कोई भी अध्यापक माँ के बारे में अधिक समय बोलता रहता है, संत-महात्माओं ने माँ का महत्व अधिक बखान किया है, देवी-देवताओं में भी “माँ” का गुणगान भरा पडा़ है, हमेशा अच्छी बातों को माँ की उपमा दी जाती है, पिता के बारे में कुछ खास नहीं बोला जाता । कुछ लेखकों ने बाप का चित्रण किया भी है तो गुस्सैल, व्यसनी, मार-पीट करने वाला इत्यादि । समाज में एक-दो प्रतिशत बाप वैसे होंगे भी, लेकिन अच्छे पिताओं के बारे में क्यों अधिक नहीं लिखा जाता, क्यों हमेशा पुरुष को भावनाशून्य या पत्थरदिल समझा जाता है ? माँ के पास आँसू हैं तो पिता के पास संयम । माँ तो रो-धो कर तनावमुक्त हो जाती है, लेकिन सांत्वना हमेशा पिता ही देता है, और यह नहीं भूलना चाहिये कि रोने वाले से अधिक तनाव सांत्वना / समझाईश देने वाले को होता है । दमकती ज्योति की तारीफ़ हर कोई करता है, लेकिन माथे पर तेल रखे देर तक गरम रहने वाले दीपक को कोई श्रेय नहीं दिया जाता । रोज का खाना बनाने वाली माँ हमें याद रहती है, लेकिन जीवन भर के खाने की व्यवस्था करने वाला बाप हम भूल जाते हैं । माँ रोती है, बाप नहीं रो सकता, खुद का पिता मर जाये फ़िर भी नहीं रो सकता, क्योंकि छोटे भाईयों को संभालना है, माँ की मृत्यु हो जाये भी वह नहीं रोता क्योंकि बहनों को सहारा देना होता है, पत्नी हमेशा के लिये साथ छोड जाये फ़िर भी नहीं रो सकता, क्योंकि बच्चों को सांत्वना देनी होती है । जीजाबाई ने शिवाजी निर्माण किया ऐसा कहा जाता है, लेकिन उसी समय शहाजी राजा की विकट स्थितियाँ नहीं भूलना चाहिये, देवकी-यशोदा की तारीफ़ करना चाहिये, लेकिन बाढ में सिर पर टोकरा उठाये वासुदेव को नहीं भूलना चाहिये… राम भले ही कौशल्या का पुत्र हो लेकिन उनके वियोग में तड़प कर जान देने वाले दशरथ ही थे । पिता की एडी़ घिसी हुई चप्पल देखकर उनका प्रेम समझ मे आता है, उनकी छेदों वाली बनियान देखकर हमें महसूस होता है कि हमारे हिस्से के भाग्य के छेद उन्होंने ले लिये हैं… लड़की को गाऊन ला देंगे, बेटे को ट्रैक सूट ला देंगे, लेकिन खुद पुरानी पैंट पहनते रहेंगे । बेटा कटिंग पर पचास रुपये खर्च कर डालता है और बेटी ब्यूटी पार्लर में, लेकिन दाढी़ की क्रीम खत्म होने पर एकाध बार नहाने के साबुन से ही दाढी बनाने वाला पिता बहुतों ने देखा होगा… बाप बीमार नहीं पडता, बीमार हो भी जाये तो तुरन्त अस्पताल नहीं जाते, डॉक्टर ने एकाध महीने का आराम बता दिया तो उसके माथे की सिलवटें गहरी हो जाती हैं, क्योंकि लड़की की शादी करनी है, बेटे की शिक्षा अभी अधूरी है… आय ना होने के बावजूद बेटे-बेटी को मेडिकल / इंजीनियरिंग में प्रवेश करवाता है.. कैसे भी “ऎड्जस्ट” करके बेटे को हर महीने पैसे भिजवाता है.. (वही बेटा पैसा आने पर दोस्तों को पार्टी देता है) । पिता घर का अस्तित्व होता है, क्योंकि जिस घर में पिता होता है उस घर पर कोई बुरी नजर नहीं डालता, वह भले ही कुछ ना करता हो या ना करने के काबिल हो, लेकिन “कर्तापुरुष” के पद पर आसीन तो होता ही है और घर की मर्यादा का खयाल रखता है.. किसी भी परीक्षा के परिणाम आने पर माँ हमें प्रिय लगती है, क्योंकि वह तारीफ़ करती है, पुचकारती है, हमारा गुणगान करती है, लेकिन चुपचाप जाकर मिठाई का पैकेट लाने वाला पिता अक्सर बैकग्राऊँड में चला जाता है… पहली-पहली बार माँ बनने पर स्त्री की खूब मिजाजपुर्सी होती है, खातिरदारी की जाती है (स्वाभाविक भी है..आखिर उसने कष्ट उठाये हैं), लेकिन अस्पताल के बरामदे में बेचैनी से घूमने वाला, ब्लड ग्रुप की मैचिंग के लिये अस्वस्थ, दवाईयों के लिये भागदौड करने वाले बेचारे बाप को सभी नजरअंदाज कर देते हैं… ठोकर लगे या हल्का सा जलने पर “ओ..माँ” शब्द ही बाहर निकलता है, लेकिन बिलकुल पास से एक ट्रक गुजर जाये तो “बाप..रे” ही मुँह से निकलता है । जाहिर है कि छोटी मुसीबतों के लिये माँ और बडे़ संकटों के लिये बाप याद आता है…। शादी-ब्याह आदि मंगल प्रसंगों पर सभी जाते हैं लेकिन मय्यत में बाप को ही जाना पड़ता है.. जवान बेटा रात को देर से घर आता है तो बाप ही दरवाजा खोलता है, बेटे की नौकरी के लिये ऐरे-गैरों के आगे गिड़गिडा़ता, घिघियाता, बेटी के विवाह के लिये पत्रिका लिये दर-दर घूमता हुआ, घर की बात बाहर ना आने पाये इसके लिये मानसिक तनाव सहता हुआ.. बाप.. सच में कितना महान होता है ना !
(यह एक मराठी रचना का अनुवाद है)

32 Comments

  1. अरुण said,

    June 24, 2007 at 1:53 pm

    भाइ ये कहानी कहा है सत्य है जो लगभग हम सभी की होगी,बहुत खुब सूरती से खीची गई रेखाये
    जिसके केन्द्र मे हमारे पिता खडे है,

  2. अरुण said,

    June 24, 2007 at 1:53 pm

    भाइ ये कहानी कहा है सत्य है जो लगभग हम सभी की होगी,बहुत खुब सूरती से खीची गई रेखाये
    जिसके केन्द्र मे हमारे पिता खडे है,

  3. अरुण said,

    June 24, 2007 at 1:53 pm

    भाइ ये कहानी कहा है सत्य है जो लगभग हम सभी की होगी,बहुत खुब सूरती से खीची गई रेखाये जिसके केन्द्र मे हमारे पिता खडे है,

  4. Mired Mirage said,

    June 24, 2007 at 2:01 pm

    सही कह रहे हैं आप ! ये पिता नामक जीव भावनाओं को दबाता हुआ सदा संतान के भले में लगा रहता है । कल ही की बात है मैंने अपने पति व बेटी की फोन पर हुई बातचीत सुनी ।
    पति उसे कह रहे थे कि जब तक वे हैं वह बच्ची बनी रह सकती है । उसे नौकरी करने की जल्दी नहीं होनी चाहिये । कुछ महीने पति के साथ मजे करे और फिर नौकरी की सोचे । पैसे के लिए वे हैं ना । जाओ बेटा पति के साथ अमेरिका जाओ । मौज करो नौकरी वापिस आकर ढूँढना । मैं हूँ ना !
    मेरा मन भर आया । सच ऐसा पिता हर पुत्री को मिले !
    घुघूती बासूती

  5. Mired Mirage said,

    June 24, 2007 at 2:01 pm

    सही कह रहे हैं आप ! ये पिता नामक जीव भावनाओं को दबाता हुआ सदा संतान के भले में लगा रहता है । कल ही की बात है मैंने अपने पति व बेटी की फोन पर हुई बातचीत सुनी ।
    पति उसे कह रहे थे कि जब तक वे हैं वह बच्ची बनी रह सकती है । उसे नौकरी करने की जल्दी नहीं होनी चाहिये । कुछ महीने पति के साथ मजे करे और फिर नौकरी की सोचे । पैसे के लिए वे हैं ना । जाओ बेटा पति के साथ अमेरिका जाओ । मौज करो नौकरी वापिस आकर ढूँढना । मैं हूँ ना !
    मेरा मन भर आया । सच ऐसा पिता हर पुत्री को मिले !
    घुघूती बासूती

  6. Mired Mirage said,

    June 24, 2007 at 2:01 pm

    सही कह रहे हैं आप ! ये पिता नामक जीव भावनाओं को दबाता हुआ सदा संतान के भले में लगा रहता है । कल ही की बात है मैंने अपने पति व बेटी की फोन पर हुई बातचीत सुनी ।
    पति उसे कह रहे थे कि जब तक वे हैं वह बच्ची बनी रह सकती है । उसे नौकरी करने की जल्दी नहीं होनी चाहिये । कुछ महीने पति के साथ मजे करे और फिर नौकरी की सोचे । पैसे के लिए वे हैं ना । जाओ बेटा पति के साथ अमेरिका जाओ । मौज करो नौकरी वापिस आकर ढूँढना । मैं हूँ ना !
    मेरा मन भर आया । सच ऐसा पिता हर पुत्री को मिले !
    घुघूती बासूती

  7. Mired Mirage said,

    June 24, 2007 at 2:01 pm

    सही कह रहे हैं आप ! ये पिता नामक जीव भावनाओं को दबाता हुआ सदा संतान के भले में लगा रहता है । कल ही की बात है मैंने अपने पति व बेटी की फोन पर हुई बातचीत सुनी ।पति उसे कह रहे थे कि जब तक वे हैं वह बच्ची बनी रह सकती है । उसे नौकरी करने की जल्दी नहीं होनी चाहिये । कुछ महीने पति के साथ मजे करे और फिर नौकरी की सोचे । पैसे के लिए वे हैं ना । जाओ बेटा पति के साथ अमेरिका जाओ । मौज करो नौकरी वापिस आकर ढूँढना । मैं हूँ ना ! मेरा मन भर आया । सच ऐसा पिता हर पुत्री को मिले !घुघूती बासूती

  8. maithily said,

    June 24, 2007 at 2:25 pm

    सुरेश जी; पिता के मौन प्रेम का अच्छा खाका खींचा है आपने

  9. maithily said,

    June 24, 2007 at 2:25 pm

    सुरेश जी; पिता के मौन प्रेम का अच्छा खाका खींचा है आपने

  10. maithily said,

    June 24, 2007 at 2:25 pm

    सुरेश जी; पिता के मौन प्रेम का अच्छा खाका खींचा है आपने

  11. mamta said,

    June 24, 2007 at 2:41 pm

    बहुत ही अच्छा लिखा है और बहुत सच लिखा है ।

  12. mamta said,

    June 24, 2007 at 2:41 pm

    बहुत ही अच्छा लिखा है और बहुत सच लिखा है ।

  13. mamta said,

    June 24, 2007 at 2:41 pm

    बहुत ही अच्छा लिखा है और बहुत सच लिखा है ।

  14. Udan Tashtari said,

    June 24, 2007 at 3:55 pm

    दिल को छूता हुआ सुन्दर आलेख.

  15. Udan Tashtari said,

    June 24, 2007 at 3:55 pm

    दिल को छूता हुआ सुन्दर आलेख.

  16. June 24, 2007 at 3:55 pm

    दिल को छूता हुआ सुन्दर आलेख.

  17. काकेश said,

    June 24, 2007 at 4:51 pm

    बहुत अच्छा रेखा चित्र एक पिता का.सचमुच एक पिता की पीड़ा एक पिता ही समझ सकता है.साधुवाद इस रचना के लिये.

  18. काकेश said,

    June 24, 2007 at 4:51 pm

    बहुत अच्छा रेखा चित्र एक पिता का.सचमुच एक पिता की पीड़ा एक पिता ही समझ सकता है.साधुवाद इस रचना के लिये.

  19. June 24, 2007 at 4:51 pm

    बहुत अच्छा रेखा चित्र एक पिता का.सचमुच एक पिता की पीड़ा एक पिता ही समझ सकता है.साधुवाद इस रचना के लिये.

  20. जोगलिखी संजय पटेल की said,

    June 24, 2007 at 5:52 pm

    पिता का साया सर पर होने से हम उम्र में छोटे दिखाई देते हैं सुरेश भाई.

  21. जोगलिखी संजय पटेल की said,

    June 24, 2007 at 5:52 pm

    पिता का साया सर पर होने से हम उम्र में छोटे दिखाई देते हैं सुरेश भाई.

  22. June 24, 2007 at 5:52 pm

    पिता का साया सर पर होने से हम उम्र में छोटे दिखाई देते हैं सुरेश भाई.

  23. Sanjeet Tripathi said,

    June 24, 2007 at 6:02 pm

    बहुत बढ़िया सुरेश भाई!

  24. Sanjeet Tripathi said,

    June 24, 2007 at 6:02 pm

    बहुत बढ़िया सुरेश भाई!

  25. June 24, 2007 at 6:02 pm

    बहुत बढ़िया सुरेश भाई!

  26. संजय बेंगाणी said,

    June 25, 2007 at 5:32 am

    पिता, पिता होते है. एक सम्बल.

    अच्छी रचना.

  27. संजय बेंगाणी said,

    June 25, 2007 at 5:32 am

    पिता, पिता होते है. एक सम्बल.

    अच्छी रचना.

  28. June 25, 2007 at 5:32 am

    पिता, पिता होते है. एक सम्बल. अच्छी रचना.

  29. sunita (shanoo) said,

    June 25, 2007 at 8:06 am

    सबसे पहले तो माफ़ी चाहूँगी आपकी मेल आने के बावजूग मै कोई कमैंट नही कर पाई…

    आज आपने जो लिखा अक्षरश्य सत्य है…माँ को जितना दर्जा मिला है पिता को नही मिला…पिता के प्यार को भी कोई नही पहचानता…उसका एक मात्र कारण है पिता जो की घर का मुखिया है उसे घर की सारी व्यवस्था को बनाये रखना है…और जो संचालक है वह सभी से दोस्ताना व्यवहार रखता है तो घर में सब अपनी-अपनी चलाते है…इसीलिये तो आजकल पिता बच्चो के साथ दोस्त बन जाते है तब बच्चे उनके कन्धे पर हाथ रख कर चलते है..पैर छूने में उन्हे शर्म महसूस होती है…
    आपका लेख आज अपने बच्चो को पढ़वा रही हूँ…मुझे बेहद खुशी होगी अगर आज हर औलाद इस लेख को पढ़े…सचमुच पिता का स्थान एक परिवार में बहुत ऊँचा होता है…माँ जननी है तो जनम-दाता पिता भी है माँ के बिना बच्चों की परवरिश में बहुत फ़र्क आता है…मगर सच में देखें तो पिता के बिना तो सारा घर ही तबाह हो जाता है औरत को पिता बनना पड़ता है जब वो पिता बन कर कमायेगी तो माँ का फ़र्ज कौन निभायेगा…बहुत सी एसी बातें है जो पिता के सरंक्षण में ही हो पाती है..बहुत कुछ लिख गई मै भी…:)

    बहुत-बहुत धन्यवाद अच्छा लेख है…

    सुनीता(शानू)

  30. sunita (shanoo) said,

    June 25, 2007 at 8:06 am

    सबसे पहले तो माफ़ी चाहूँगी आपकी मेल आने के बावजूग मै कोई कमैंट नही कर पाई…

    आज आपने जो लिखा अक्षरश्य सत्य है…माँ को जितना दर्जा मिला है पिता को नही मिला…पिता के प्यार को भी कोई नही पहचानता…उसका एक मात्र कारण है पिता जो की घर का मुखिया है उसे घर की सारी व्यवस्था को बनाये रखना है…और जो संचालक है वह सभी से दोस्ताना व्यवहार रखता है तो घर में सब अपनी-अपनी चलाते है…इसीलिये तो आजकल पिता बच्चो के साथ दोस्त बन जाते है तब बच्चे उनके कन्धे पर हाथ रख कर चलते है..पैर छूने में उन्हे शर्म महसूस होती है…
    आपका लेख आज अपने बच्चो को पढ़वा रही हूँ…मुझे बेहद खुशी होगी अगर आज हर औलाद इस लेख को पढ़े…सचमुच पिता का स्थान एक परिवार में बहुत ऊँचा होता है…माँ जननी है तो जनम-दाता पिता भी है माँ के बिना बच्चों की परवरिश में बहुत फ़र्क आता है…मगर सच में देखें तो पिता के बिना तो सारा घर ही तबाह हो जाता है औरत को पिता बनना पड़ता है जब वो पिता बन कर कमायेगी तो माँ का फ़र्ज कौन निभायेगा…बहुत सी एसी बातें है जो पिता के सरंक्षण में ही हो पाती है..बहुत कुछ लिख गई मै भी…:)

    बहुत-बहुत धन्यवाद अच्छा लेख है…

    सुनीता(शानू)

  31. sunita (shanoo) said,

    June 25, 2007 at 8:06 am

    सबसे पहले तो माफ़ी चाहूँगी आपकी मेल आने के बावजूग मै कोई कमैंट नही कर पाई…

    आज आपने जो लिखा अक्षरश्य सत्य है…माँ को जितना दर्जा मिला है पिता को नही मिला…पिता के प्यार को भी कोई नही पहचानता…उसका एक मात्र कारण है पिता जो की घर का मुखिया है उसे घर की सारी व्यवस्था को बनाये रखना है…और जो संचालक है वह सभी से दोस्ताना व्यवहार रखता है तो घर में सब अपनी-अपनी चलाते है…इसीलिये तो आजकल पिता बच्चो के साथ दोस्त बन जाते है तब बच्चे उनके कन्धे पर हाथ रख कर चलते है..पैर छूने में उन्हे शर्म महसूस होती है…
    आपका लेख आज अपने बच्चो को पढ़वा रही हूँ…मुझे बेहद खुशी होगी अगर आज हर औलाद इस लेख को पढ़े…सचमुच पिता का स्थान एक परिवार में बहुत ऊँचा होता है…माँ जननी है तो जनम-दाता पिता भी है माँ के बिना बच्चों की परवरिश में बहुत फ़र्क आता है…मगर सच में देखें तो पिता के बिना तो सारा घर ही तबाह हो जाता है औरत को पिता बनना पड़ता है जब वो पिता बन कर कमायेगी तो माँ का फ़र्ज कौन निभायेगा…बहुत सी एसी बातें है जो पिता के सरंक्षण में ही हो पाती है..बहुत कुछ लिख गई मै भी…:)

    बहुत-बहुत धन्यवाद अच्छा लेख है…

    सुनीता(शानू)

  32. June 25, 2007 at 8:06 am

    सबसे पहले तो माफ़ी चाहूँगी आपकी मेल आने के बावजूग मै कोई कमैंट नही कर पाई…आज आपने जो लिखा अक्षरश्य सत्य है…माँ को जितना दर्जा मिला है पिता को नही मिला…पिता के प्यार को भी कोई नही पहचानता…उसका एक मात्र कारण है पिता जो की घर का मुखिया है उसे घर की सारी व्यवस्था को बनाये रखना है…और जो संचालक है वह सभी से दोस्ताना व्यवहार रखता है तो घर में सब अपनी-अपनी चलाते है…इसीलिये तो आजकल पिता बच्चो के साथ दोस्त बन जाते है तब बच्चे उनके कन्धे पर हाथ रख कर चलते है..पैर छूने में उन्हे शर्म महसूस होती है…आपका लेख आज अपने बच्चो को पढ़वा रही हूँ…मुझे बेहद खुशी होगी अगर आज हर औलाद इस लेख को पढ़े…सचमुच पिता का स्थान एक परिवार में बहुत ऊँचा होता है…माँ जननी है तो जनम-दाता पिता भी है माँ के बिना बच्चों की परवरिश में बहुत फ़र्क आता है…मगर सच में देखें तो पिता के बिना तो सारा घर ही तबाह हो जाता है औरत को पिता बनना पड़ता है जब वो पिता बन कर कमायेगी तो माँ का फ़र्ज कौन निभायेगा…बहुत सी एसी बातें है जो पिता के सरंक्षण में ही हो पाती है..बहुत कुछ लिख गई मै भी…:)बहुत-बहुत धन्यवाद अच्छा लेख है…सुनीता(शानू)


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