काबा, एक शिव मन्दिर ही है… : कुछ तथ्य, कुछ विचित्र संयोग (भाग-1) Kaaba a Hindu Temple – PN Oak

हाल ही में एक सेमिनार में प्रख्यात लेखिका कुसुमलता केडिया ने विभिन्न पश्चिमी पुस्तकों और शोधों के हवाले से यह तर्कसिद्ध किया कि विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में बहुत गहरे अन्तर्सम्बन्ध रहे हैं। पुस्तक “फ़िंगरप्रिंट्स ऑफ़ द गॉड – लेखक ग्राहम हैन्नोक” तथा एक अन्य पुस्तक “1434” (लेखक – गेविन मेनजीस) का “रेफ़रेंस” देते हुए उन्होंने बताया कि पश्चिम के शोधकर्ताओं को “सभ्यताओं” सम्बन्धी खोज करते समय अंटार्कटिका क्षेत्र के नक्शे भी प्राप्त हुए हैं, जो कि बेहद कुशलता से तैयार किये गये थे, इसी प्रकार कई बेहद प्राचीन नक्शों में कहीं-कहीं चीन को “वृहत्तर भारत” का हिस्सा भी चित्रित किया गया है। अब इस सम्बन्ध में पश्चिमी लेखकों और शोधकर्ताओं में आम सहमति बनती जा रही है कि पृथ्वी पर मानव का अस्तित्व 12,000 वर्ष से भी पुराना है, और उस समय की कई सभ्यताएं पूर्ण विकसित थीं।

हालांकि “काबा एक शिव मन्दिर है”, इस लेखमाला का ऊपर उल्लेखित तथ्यों से कोई सम्बन्ध नहीं है, लेकिन जैसा कि केडिया जी ने कहा है कि विश्व का इतिहास जो हमें पढ़ाया जाता है या बताया जाता है अथवा दर्शाया जाता है, वह असल में ईसा पूर्व 4000 वर्ष का ही कालखण्ड है और Pre-Christianity काल को ही विश्व का इतिहास मानता है। लेकिन जब आर्कियोलॉजिस्ट और प्रागैतिहासिक काल के शोधकर्ता इस 4000 वर्ष से और पीछे जाकर खोजबीन करते हैं तब उन्हें कई आश्चर्यजनक बातें पता चलती हैं।

यह प्रश्न कई बार और कई जगहों पर पूछा गया है कि क्या मुस्लिमों का तीर्थ स्थल “काबा” एक हिन्दू मन्दिर है या था? इस बारे में काफ़ी लोगों को शक है कि आखिर काबा के बाहर चांदी की गोलाईदार फ़्रेम में जड़ा हुआ काला पत्थर क्या है? काबा में काले परदे से ढँकी हुई उस विशाल संरचना के भीतर क्या है? क्यों काबा के कुछ इलाके गैर-मुस्लिमों के लिये प्रतिबन्धित हैं? आखिर मुस्लिम काबा में परिक्रमा क्यों करते हैं? इन सवालों के जवाब में सबसे प्रामाणिक और ऐतिहासिक तथ्यों और सबूतों के साथ भारतीय इतिहासकार पीएन ओक तथा हिन्दू धर्म के प्रखर विद्वान अमेरिकी इतिहासकार स्टीफ़न नैप की साईटों पर कुछ सामग्री मिलती है। इतिहासकारों में पीएन ओक के निष्कर्षों को लेकर गहरे मतभेद हैं, लेकिन जैसे-जैसे नये-नये तथ्य, नक्शे और प्राचीन ग्रन्थों के सन्दर्भ सामने आते जा रहे हैं, हिन्दू वैदिक संस्कृति का प्रभाव समूचे पश्चिम एशिया और अरब देशों में था यह सिद्ध होता जायेगा। कम्बोडिया और इंडोनेशिया में पहले से मौजूद मंदिर तथा बामियान में ध्वस्त की गई बुद्ध की मूर्ति इस बात की ओर स्पष्ट संकेत तो करती ही है। हिन्दू संस्कृति के धुर-विरोधी इतिहासकार भी इस बात को तो मानते ही हैं कि इस्लाम के प्रादुर्भाव के पश्चात कई-कई मंदिरों और मूर्तियों को तोड़ा गया, लेकिन फ़िर भी संस्कृति की एक अन्तर्धारा सतत मौजूद रही जो कि विभिन्न परम्पराओं में दिखाई भी देती है।

पीएन ओक ने अपने एक विस्तृत लेख में इस बात पर बिन्दुवार चर्चा की है। पीएन ओक पहले सेना में कार्यरत थे और सेना की नौकरी छोड़कर उन्होंने प्राचीन भारत के इतिहास पर शोध किया और विभिन्न देशों में घूम-घूम कर कई प्रकार के लेख, शिलालेखों के नमूने, ताड़पत्र आदि का अध्ययन किया। पीएन ओक की मृत्यु से कुछ ही समय पहले की बात है, कुवैत में एक गहरी खुदाई के दौरान कांसे की स्वर्णजड़ित गणेश की मूर्ति प्राप्त हुई थी। कुवैत के उस मुस्लिम रहवासी ने उस मूर्ति को लेकर कौतूहल जताया था तथा इतिहासकारों से हिन्दू सभ्यता और अरब सभ्यता के बीच क्या अन्तर्सम्बन्ध हैं यह स्पष्ट करने का आग्रह किया था।

जब पीएन ओक ने इस सम्बन्ध में गहराई से छानबीन करने का निश्चय किया तो उन्हें कई चौंकाने वाली जानकारियाँ मिली। तुर्की के इस्ताम्बुल शहर की प्रसिद्ध लायब्रेरी मकतब-ए-सुल्तानिया में एक ऐतिहासिक ग्रन्थ है “सायर-उल-ओकुल”, उसके पेज 315 पर राजा विक्रमादित्य से सम्बन्धित एक शिलालेख का उल्लेख है, जिसमें कहा गया है कि “…वे लोग भाग्यशाली हैं जो उस समय जन्मे और राजा विक्रम के राज्य में जीवन व्यतीत किया, वह बहुत ही दयालु, उदार और कर्तव्यनिष्ठ शासक था जो हरे व्यक्ति के कल्याण के बारे में सोचता था। लेकिन हम अरब लोग भगवान से बेखबर अपने कामुक और इन्द्रिय आनन्द में खोये हुए थे, बड़े पैमाने पर अत्याचार करते थे, अज्ञानता का अंधकार हमारे चारों तरफ़ छाया हुआ था। जिस तरह एक भेड़ अपने जीवन के लिये भेड़िये से संघर्ष करती है, उसी प्रकार हम अरब लोग अज्ञानता से संघर्षरत थे, चारों ओर गहन अंधकार था। लेकिन विदेशी होने के बावजूद, शिक्षा की उजाले भरी सुबह के जो दर्शन हमें राजा विक्रमादित्य ने करवाये वे क्षण अविस्मरणीय थे। उसने अपने पवित्र धर्म को हमारे बीच फ़ैलाया, अपने देश के सूर्य से भी तेज विद्वानों को इस देश में भेजा ताकि शिक्षा का उजाला फ़ैल सके। इन विद्वानों और ज्ञाताओं ने हमें भगवान की उपस्थिति और सत्य के सही मार्ग के बारे में बताकर एक परोपकार किया है। ये तमाम विद्वान, राजा विक्रमादित्य के निर्देश पर अपने धर्म की शिक्षा देने यहाँ आये…”।

उस शिलालेख के अरेबिक शब्दों का रोमन लिपि में उल्लेख यहाँ किया जाना आवश्यक है…उस स्र्किप्ट के अनुसार, “…इट्राशाफ़ई सन्तु इबिक्रामतुल फ़ाहालामीन करीमुन यात्राफ़ीहा वायोसास्सारु बिहिल्लाहाया समाइनि एला मोताकाब्बेरेन सिहिल्लाहा युही किद मिन होवा यापाखारा फाज्जल असारी नाहोने ओसिरोम बायिआय्हालम। युन्दान ब्लाबिन कज़ान ब्लानाया सादुन्या कानातेफ़ नेतेफ़ि बेजेहालिन्। अतादारि बिलामासा-रतीन फ़ाकेफ़तासाबुहु कौन्निएज़ा माज़ेकाराल्हादा वालादोर। अश्मिमान बुरुकन्कद तोलुहो वातासारु हिहिला याकाजिबाय्माना बालाय कुल्क अमारेना फानेया जौनाबिलामारि बिक्रामातुम…” (पेज 315 साया-उल-ओकुल, जिसका मतलब होता है “यादगार शब्द”)। एक अरब लायब्रेरी में इस शिलालेख के उल्लेख से स्पष्ट है कि विक्रमादित्य का शासन या पहुँच अरब प्रायद्वीप तक निश्चित ही थी।

उपरिलिखित शिलालेख का गहन अध्ययन करने पर कुछ बातें स्वतः ही स्पष्ट होती हैं जैसे कि प्राचीन काल में विक्रमादित्य का साम्राज्य अरब देशों तक फ़ैला हुआ था और विक्रमादित्य ही वह पहला राजा था जिसने अरब में अपना परचम फ़हराया, क्योंकि उल्लिखित शिलालेख कहता है कि “राजा विक्रमादित्य ने हमें अज्ञान के अंधेरे से बाहर निकाला…” अर्थात उस समय जो भी उनका धर्म या विश्वास था, उसकी बजाय विक्रमादित्य के भेजे हुए विद्वानों ने वैदिक जीवन पद्धति का प्रचार तत्कालीन अरब देशों में किया। अरबों के लिये भारतीय कला और विज्ञान की सीख भारतीय संस्कृति द्वारा स्थापित स्कूलों, अकादमियों और विभिन्न सांस्कृतिक केन्द्रों के द्वारा मिली।

इस निष्कर्ष का सहायक निष्कर्ष इस प्रकार हैं कि दिल्ली स्थित कुतुब मीनार विक्रमादित्य के अरब देशों की विजय के जश्न को मनाने हेतु बनाया एक स्मारक भी हो सकता है। इसके पीछे दो मजबूत कारण हैं, पहला यह कि तथाकथित कुतुब-मीनार के पास स्थित लोहे के खम्भे पर शिलालेख दर्शाता है कि विजेता राजा विक्रमादित्य की शादी राजकुमारी बाल्हिका से हुई। यह “बाल्हिका” कोई और नहीं पश्चिम एशिया के बाल्ख क्षेत्र की राजकुमारी हो सकती है। ऐसा हो सकता है कि विक्रमादित्य द्वारा बाल्ख राजाओं पर विजय प्राप्त करने के बाद उन्होंने उनकी पुत्री का विवाह विक्रमादित्य से करवा दिया हो।

अथवा, दूसरा तथ्य यह कि कुतुब-मीनार के पास स्थित नगर “महरौली”, इस महरौली का नाम विक्रमादित्य के दरबार में प्रसिद्ध गणित ज्योतिषी मिहिरा के नाम पर रखा गया है। “महरौली” शब्द संस्कृत के शब्द “मिहिरा-अवली” से निकला हुआ है, जिसका अर्थ है “मिहिरा” एवं उसके सहायकों के लिये बनाये गये मकानों की श्रृंखला। इस प्रसिद्ध गणित ज्योतिषी को तारों और ग्रहों के अध्ययन के लिये इस टावर का निर्माण करवाया गया हो सकता है, जिसे कुतुब मीनार कहा जाता है।

अपनी खोज को दूर तक पहुँचाने के लिये अरब में मिले विक्रमादित्य के उल्लेख वाले शिलालेख के निहितार्थ को मिलाया जाये तो उस कहानी के बिखरे टुकड़े जोड़ने में मदद मिलती है कि आखिर यह शिलालेख मक्का के काबा में कैसे आया और टिका रहा? ऐसे कौन से अन्य सबूत हैं जिनसे यह पता चल सके कि एक कालखण्ड में अरब देश, भारतीय वैदिक संस्कृति के अनुयायी थे? और वह शान्ति और शिक्षा अरब में विक्रमादित्य के विद्बानों के साथ ही आई, जिसका उल्लेख शिलालेख में “अज्ञानता और उथलपुथल” के रूप में वर्णित है? इस्ताम्बुल स्थित प्रसिद्ध लायब्रेरी मखतब-ए-सुल्तानिया, जिसकी ख्याति पश्चिम एशिया के सबसे बड़े प्राचीन इतिहास और साहित्य का संग्रहालय के रूप में है। लायब्रेरी के अरेबिक खण्ड में प्राचीन अरबी कविताओं का भी विशाल संग्रह है। यह संकलन तुर्की के शासक सुल्तान सलीम के आदेशों के तहत शुरु किया गया था। उस ग्रन्थ के भाग “हरीर” पर लिखे हुए हैं जो कि एक प्रकार का रेशमी कपड़ा है। प्रत्येक पृष्ठ को एक सजावटी बॉर्डर से सजाया गया है। यही संकलन “साया-उल-ओकुल” के नाम से जाना जाता है जो कि तीन खण्डों में विभाजित किया गया है। इस संकलन के पहले भाग में पूर्व-इस्लामिक अरब काल के कवियों का जीवन वर्णन और उनकी काव्य रचनाओं को संकलित किया गया है। दूसरे भाग में उन कवियों के बारे में वर्णन है जो पैगम्बर मुहम्मद के काल में रहे और कवियों की यह श्रृंखला बनी-उम-मय्या राजवंश तक चलती है। तीसरे भाग में इसके बाद खलीफ़ा हारुन-अल-रशीद के काल तक के कवियों को संकलित किया गया है। इस संग्रह का सम्पादन और संकलन तैयार किया है अबू आमिर असामाई ने जो कि हारुन-अल-रशीद के दरबार में एक भाट था। “साया-उल-ओकुल” का सबसे पहला आधुनिक संस्करण बर्लिन में 1864 में प्रकाशित हुआ, इसके बाद एक और संस्करण 1932 में बेरूत से प्रकाशित किया गया।

यह संग्रह प्राचीन अरबी कविताओं का सबसे आधिकारिक, सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण संकलन माना जाता है। यह प्राचीन अरब जीवन के सामाजिक पहलू, प्रथाओं, परम्पराओं, तरीकों, मनोरंजन के तरीकों आदि पर पर्याप्त प्रकाश डालता है। इस प्राचीन पुस्तक में प्रतिवर्ष मक्का में आयोजित होने वाले समागम जिसे “ओकाज़” के नाम से जाना जाता है, और जो कि काबा के चारों ओर आयोजित किया जाता है, के बारे में विस्तार से जानकारियाँ दी गई हैं। काबा में वार्षिक “मेले” (जिसे आज हज कहा जाता है) की प्रक्रिया इस्लामिक काल से पहले ही मौजूद थी, यह बात इस पुस्तक को सूक्ष्मता से देखने पर साफ़ पता चल जाती है।

(इस लेखमाला के भाग-2 में हम देखेंगे हिन्दू संस्कृति से मिलती-जुलती इस्लामिक पद्धतियाँ… और भारतीय वैदिक संस्कृति और परम्पराओं का अरब पर प्रभाव) जारी रहेगा भाग…2 में…

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133 Comments

  1. भारतीय नागरिक - Indian Citizen said,

    August 24, 2009 at 8:46 am

    अब स्वच्छ संदेश और कैरानवी जी के लिये मैं आमन्त्रित करता हूं कि सनातनी हो जायें. वैसे वे खुद भी मानते ही हैं. तो किधर हैं सलीम मिय़ां और कैरानवी जी. आपका लेख बहुत सारगर्भित, तथ्यों पर आधारित है तथा सनातन संस्कृति को उजागर करता है. यह उन पर चोट है जो भारतीय संस्कृति को मात्र चार हजार वर्ष पुराना मानते हैं.

  2. August 24, 2009 at 8:46 am

    अब स्वच्छ संदेश और कैरानवी जी के लिये मैं आमन्त्रित करता हूं कि सनातनी हो जायें. वैसे वे खुद भी मानते ही हैं. तो किधर हैं सलीम मिय़ां और कैरानवी जी. आपका लेख बहुत सारगर्भित, तथ्यों पर आधारित है तथा सनातन संस्कृति को उजागर करता है. यह उन पर चोट है जो भारतीय संस्कृति को मात्र चार हजार वर्ष पुराना मानते हैं.

  3. संजय बेंगाणी said,

    August 24, 2009 at 9:30 am

    लाल लगूँरों को छोड़ कर शायद ही कोई माने कि हमारी संस्कृति मात्र चार हजर साल पूरानी है.

    कुतुब मिनार वगेरे को तोड़ें तो मंदिर के अवशेष मिलेंगे. अतः यह मुस्लिम शासकों का ही काम हो सकता है. आश्चर्य बर्बर लोगो ने लौह स्तंभ को कैसे छोड़ दिया.

  4. August 24, 2009 at 9:30 am

    लाल लगूँरों को छोड़ कर शायद ही कोई माने कि हमारी संस्कृति मात्र चार हजर साल पूरानी है. कुतुब मिनार वगेरे को तोड़ें तो मंदिर के अवशेष मिलेंगे. अतः यह मुस्लिम शासकों का ही काम हो सकता है. आश्चर्य बर्बर लोगो ने लौह स्तंभ को कैसे छोड़ दिया.

  5. flare said,

    August 24, 2009 at 9:46 am

    humm…….. interesting…. some more facts and pictures/ diagrams will make this article more reliable reading …… right now its infancy stage……

    should have given picture/ url of book from where you have taken the excerpt……if possible

  6. flare said,

    August 24, 2009 at 9:46 am

    humm…….. interesting…. some more facts and pictures/ diagrams will make this article more reliable reading …… right now its infancy stage……should have given picture/ url of book from where you have taken the excerpt……if possible

  7. दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi said,

    August 24, 2009 at 10:01 am

    लिंग पूजा तो पूरी दुनिया में प्रचलित थी। उस से भी पहले योनि पूजा प्रचलित हो चुकी थी। समूह में रहने वाले आरंभिक मानव को अपने समूह में एक भी संतान की वृद्धि बहुत प्रसन्नता देती थी। असली समृद्धि वही थी। जो योनि से प्राप्त होती थी। आरंभिक मनुष्य जहाँ जहाँ गया इसे साथ ले गया। जब मनुष्य को यह ज्ञान हुआ कि केवल स्त्री ही नहीं पुरुष का भी संतानोत्पत्ति में योगदान है तो लिंग पूजा भी आरंभ हो ली। इस कारण से लिंग तो पूरी दुनिया पूजे गए और सर्वत्र मिलते हैं। काबा का पत्थर भी लिंग हो तो आश्चर्य नहीं।

    ग़ालिब तो खुद कह गए हैं-

    खुदा के वास्ते पर्दा न काबे से उठा जालिम
    कहीं ऐसा न हो याँ भी वही काफिर सनम निकले

  8. August 24, 2009 at 10:01 am

    लिंग पूजा तो पूरी दुनिया में प्रचलित थी। उस से भी पहले योनि पूजा प्रचलित हो चुकी थी। समूह में रहने वाले आरंभिक मानव को अपने समूह में एक भी संतान की वृद्धि बहुत प्रसन्नता देती थी। असली समृद्धि वही थी। जो योनि से प्राप्त होती थी। आरंभिक मनुष्य जहाँ जहाँ गया इसे साथ ले गया। जब मनुष्य को यह ज्ञान हुआ कि केवल स्त्री ही नहीं पुरुष का भी संतानोत्पत्ति में योगदान है तो लिंग पूजा भी आरंभ हो ली। इस कारण से लिंग तो पूरी दुनिया पूजे गए और सर्वत्र मिलते हैं। काबा का पत्थर भी लिंग हो तो आश्चर्य नहीं। ग़ालिब तो खुद कह गए हैं-खुदा के वास्ते पर्दा न काबे से उठा जालिमकहीं ऐसा न हो याँ भी वही काफिर सनम निकले

  9. जी.के. अवधिया said,

    August 24, 2009 at 10:26 am

    बहुत साल पहले मैंने भी एक लेख पढ़ा था जिसमें बताया गया था कि कुतुब मीनार का निर्माण "वाराह मिहिर" ने करवाया था और उन्हीं के नाम से उस क्षेत्र का नाम "मिहिरावली" हुआ जो कि बदलते बदलते आज महरौली बन गया है।

  10. August 24, 2009 at 10:26 am

    बहुत साल पहले मैंने भी एक लेख पढ़ा था जिसमें बताया गया था कि कुतुब मीनार का निर्माण "वाराह मिहिर" ने करवाया था और उन्हीं के नाम से उस क्षेत्र का नाम "मिहिरावली" हुआ जो कि बदलते बदलते आज महरौली बन गया है।

  11. hindugang said,

    August 24, 2009 at 11:57 am

    दिनेशराय द्विवेदी जी
    लिंग पूजा का मतलब है की परमात्मा १ है न की लोग अपने लिंग की पूजा करते है वे तो परमात्मा की पूजा करते है जब हम भगवान शिव के मंदिर में लिंग पूजन करते है तो इसका मतलब ये नहीं है की हम भगवान शिव जी के लिंग की पूजा कर रहे है बल्कि इसका मतलब तो ये है की हम परमात्मा की पूजा कर रहे है जो १ है अकाल है और ये सच है की काबा १ हिन्दू मंदिर है जिसे मुसलमानों के पैगम्बर साहेब ने तुड़वाया था और तो और पैगम्बर साहेब भारत के कश्मीर के पास बाल्यावस्था में शिक्षा ग्रहण के लिए आये थे ये सच है मानों या न मानो और हमने तो यहाँ तक सुन रखा है की अगर काबा के उस लिंग पर गौमाता का दुध या गंगा जल चढा दिया जाय तो भगवान शिव अवतरित हो जायेंगे शायद इसी डर के मारे काबा के मुसलमान रोज वहा १ गोमाता को काट कर लटका देते है जिससे गोमाता का खून लिंग पर गिरे और वहा जो भी मुसलमान जाता है उसे गाय का खून पिकया गता है तभी उसे अन्दर प्रवेश मिल पता है ये सच है मानों या न मानो और हिन्दू का दुर्भाग्य देखो किसी हिन्दू के पिछवाडे में इतना दम नहीं है की वो उस लिंग पर गाय का दुध या गंगाजल चढा दे
    राम राम जी

  12. hindugang said,

    August 24, 2009 at 11:57 am

    दिनेशराय द्विवेदी जी लिंग पूजा का मतलब है की परमात्मा १ है न की लोग अपने लिंग की पूजा करते है वे तो परमात्मा की पूजा करते है जब हम भगवान शिव के मंदिर में लिंग पूजन करते है तो इसका मतलब ये नहीं है की हम भगवान शिव जी के लिंग की पूजा कर रहे है बल्कि इसका मतलब तो ये है की हम परमात्मा की पूजा कर रहे है जो १ है अकाल है और ये सच है की काबा १ हिन्दू मंदिर है जिसे मुसलमानों के पैगम्बर साहेब ने तुड़वाया था और तो और पैगम्बर साहेब भारत के कश्मीर के पास बाल्यावस्था में शिक्षा ग्रहण के लिए आये थे ये सच है मानों या न मानो और हमने तो यहाँ तक सुन रखा है की अगर काबा के उस लिंग पर गौमाता का दुध या गंगा जल चढा दिया जाय तो भगवान शिव अवतरित हो जायेंगे शायद इसी डर के मारे काबा के मुसलमान रोज वहा १ गोमाता को काट कर लटका देते है जिससे गोमाता का खून लिंग पर गिरे और वहा जो भी मुसलमान जाता है उसे गाय का खून पिकया गता है तभी उसे अन्दर प्रवेश मिल पता है ये सच है मानों या न मानो और हिन्दू का दुर्भाग्य देखो किसी हिन्दू के पिछवाडे में इतना दम नहीं है की वो उस लिंग पर गाय का दुध या गंगाजल चढा दे राम राम जी

  13. स्वच्छ संदेश: हिन्दोस्तान की आवाज़ said,

    August 24, 2009 at 11:57 am

    पूरे के पूरे लेख में संभावनाएं ही दर्शाई गयी हैं…अपनी बात को या यों कहें कि लेख को पूरा करने की तलब ने 'यूँ ही' का सा बन दिया है….. काबा में स्थित पत्थर क्या है के लिए मेरे लेख का अध्ययन करें (भगवान् शिव काबा में विराजमान हैं!?) और रहा सवाल राजा विक्रमादित्य का तो ज़रा इस लेख को दोबारा पढें, सिर्फ राजा विक्रमादित्य का नाम लेकर संभावनाओं का ही ज़िक्र है….."हो सता है ये हुआ होगा,हो सकता है ये होगा.. हो सकता है… वगैरह वगैरह…"

    मेरे लेखों को जब भी आप पढेंगे वह साक्ष्यों के साथ साथ तार्किक भी होतें हैं……… और इतिहास के आईने में खरे भी…….

  14. August 24, 2009 at 11:57 am

    पूरे के पूरे लेख में संभावनाएं ही दर्शाई गयी हैं…अपनी बात को या यों कहें कि लेख को पूरा करने की तलब ने 'यूँ ही' का सा बन दिया है….. काबा में स्थित पत्थर क्या है के लिए मेरे लेख का अध्ययन करें (भगवान् शिव काबा में विराजमान हैं!?) और रहा सवाल राजा विक्रमादित्य का तो ज़रा इस लेख को दोबारा पढें, सिर्फ राजा विक्रमादित्य का नाम लेकर संभावनाओं का ही ज़िक्र है….."हो सता है ये हुआ होगा,हो सकता है ये होगा.. हो सकता है… वगैरह वगैरह…"मेरे लेखों को जब भी आप पढेंगे वह साक्ष्यों के साथ साथ तार्किक भी होतें हैं……… और इतिहास के आईने में खरे भी…….

  15. स्वच्छ संदेश: हिन्दोस्तान की आवाज़ said,

    August 24, 2009 at 11:59 am

    पूरे के पूरे लेख में संभावनाएं ही दर्शाई गयी हैं…अपनी बात को या यों कहें कि लेख को पूरा करने की तलब ने 'यूँ ही' का सा बना दिया है….. काबा में स्थित पत्थर क्या है के लिए मेरे लेख का अध्ययन करें (भगवान् शिव काबा में विराजमान हैं!?) और रहा सवाल राजा विक्रमादित्य का तो ज़रा इस लेख को दोबारा पढें, सिर्फ राजा विक्रमादित्य का नाम लेकर संभावनाओं का ही ज़िक्र है….."हो सकता है ये हुआ होगा,हो सकता है ये होगा.. हो सकता है… वगैरह वगैरह…"

    मेरे लेखों को जब भी आप पढेंगे वह साक्ष्यों के साथ साथ तार्किक भी होतें हैं……… और इतिहास के आईने में खरे भी…….

  16. August 24, 2009 at 11:59 am

    पूरे के पूरे लेख में संभावनाएं ही दर्शाई गयी हैं…अपनी बात को या यों कहें कि लेख को पूरा करने की तलब ने 'यूँ ही' का सा बना दिया है….. काबा में स्थित पत्थर क्या है के लिए मेरे लेख का अध्ययन करें (भगवान् शिव काबा में विराजमान हैं!?) और रहा सवाल राजा विक्रमादित्य का तो ज़रा इस लेख को दोबारा पढें, सिर्फ राजा विक्रमादित्य का नाम लेकर संभावनाओं का ही ज़िक्र है….."हो सकता है ये हुआ होगा,हो सकता है ये होगा.. हो सकता है… वगैरह वगैरह…"मेरे लेखों को जब भी आप पढेंगे वह साक्ष्यों के साथ साथ तार्किक भी होतें हैं……… और इतिहास के आईने में खरे भी…….

  17. स्वच्छ संदेश: हिन्दोस्तान की आवाज़ said,

    August 24, 2009 at 12:01 pm

    ख़ास इसी लेख के प्रतुत्तर में, एक एक सवालों या संभावनाओं का जवाब में. मेरा लेख पढ़े…."भगवान् शिव काबा में विराजमान हैं (Answer to Suresh Chiplunkar)" शीघ्र ही…

  18. August 24, 2009 at 12:01 pm

    ख़ास इसी लेख के प्रतुत्तर में, एक एक सवालों या संभावनाओं का जवाब में. मेरा लेख पढ़े…."भगवान् शिव काबा में विराजमान हैं (Answer to Suresh Chiplunkar)" शीघ्र ही…

  19. स्वच्छ संदेश: हिन्दोस्तान की आवाज़ said,

    August 24, 2009 at 12:07 pm

    संजय बाबू,

    आपको शयेद आर्श्चय हो रहा होगा……….मगर सवाल फिर भी यही है कि हज़ार साल तक एक-क्षत्र राज करने के बाद भी यहाँ अस्सी प्रतिशत कौन हैं…….!??

    नफ़रत की आग में आप लोग जो आवेशित हो जाते हैं…….वह केवल विनाश ही ला सकता है……….. आप उन्हीं सब बातों को मुख्य आधार मान कर अपने आपको विद्वान् समझ लेते हो जो आपको पढाया गया……………..इतिहास कि जितनी माँ-बहन अंग्रेजों ने की है उससे ज़्यादा जघन्यतम हत्या सावरकर जैसे लोगों ने की है……….. (इस सम्बन्ध में मेरा लेख पढें…"साम्प्रदायिकता का निवारण")

  20. August 24, 2009 at 12:07 pm

    संजय बाबू, आपको शयेद आर्श्चय हो रहा होगा……….मगर सवाल फिर भी यही है कि हज़ार साल तक एक-क्षत्र राज करने के बाद भी यहाँ अस्सी प्रतिशत कौन हैं…….!??नफ़रत की आग में आप लोग जो आवेशित हो जाते हैं…….वह केवल विनाश ही ला सकता है……….. आप उन्हीं सब बातों को मुख्य आधार मान कर अपने आपको विद्वान् समझ लेते हो जो आपको पढाया गया……………..इतिहास कि जितनी माँ-बहन अंग्रेजों ने की है उससे ज़्यादा जघन्यतम हत्या सावरकर जैसे लोगों ने की है……….. (इस सम्बन्ध में मेरा लेख पढें…"साम्प्रदायिकता का निवारण")

  21. स्वच्छ संदेश: हिन्दोस्तान की आवाज़ said,

    August 24, 2009 at 12:10 pm

    संजय बाबू, कुतुब मीनार भी तोड़ लो…….वहां भी आपको फैज़ाबाद की तरह कुछ नहीं मिलेगा….

  22. August 24, 2009 at 12:10 pm

    संजय बाबू, कुतुब मीनार भी तोड़ लो…….वहां भी आपको फैज़ाबाद की तरह कुछ नहीं मिलेगा….

  23. स्वच्छ संदेश: हिन्दोस्तान की आवाज़ said,

    August 24, 2009 at 12:28 pm

    अरब की संस्कृति , एक वो थी जो इस्लाम के प्रादुर्भाव के पहले की थी और एक जो इस्लाम के प्रादुर्भाव के बाद की

  24. August 24, 2009 at 12:28 pm

    अरब की संस्कृति , एक वो थी जो इस्लाम के प्रादुर्भाव के पहले की थी और एक जो इस्लाम के प्रादुर्भाव के बाद की

  25. संजय बेंगाणी said,

    August 24, 2009 at 1:28 pm

    भाई स्वच्छ…मुस्लिम शासन के दौरान बनी मस्जिदें व कई स्मारक मंदिर तोड़ कर ही बनाए गए थे. रही बात इतिहास की तो मुझे लगता है, मैं गलत भी हो सकता हूँ मगर आपसे ज्यादा न केवल पढ़ा है, मनन भी किया है.

  26. August 24, 2009 at 1:28 pm

    भाई स्वच्छ…मुस्लिम शासन के दौरान बनी मस्जिदें व कई स्मारक मंदिर तोड़ कर ही बनाए गए थे. रही बात इतिहास की तो मुझे लगता है, मैं गलत भी हो सकता हूँ मगर आपसे ज्यादा न केवल पढ़ा है, मनन भी किया है.

  27. aarya said,

    August 24, 2009 at 4:22 pm

    सुरेश जी
    सादर वन्दे!
    मैंने भी ओक् साहब को पढ़ा है, उन्होंने और भी जगह पर शिवलिंग का होना बताया है, ये जो लोग संभावनाओं कि दुहाई दे रहें हैं उन्होंने कितना शोध किया हैं भगवान जाने लेकिन पि एन ओक् ने जो लिखा है वो कमरे में बैठकर नहीं लिखा है, उनके बातों को एक सिरे से नकार देना मुझे लगता है कि उनके द्वारा किये गए काम का अपमान करना है, अगर वो गलत हैं तो उन्हें गलत, कमरे में बैठकर नही साबित किया जा सकता, जो लोग अक्सर करते हैं,
    चूँकि मै इतिहास का विद्यार्थी हूँ अतः इतिहास ढूढ़ना मेरा काम है और मै तो ऐसे विषय पर शोध कर रहा हूँ जिसको ये तथ्यवादी एक सिरे से नकार चुके थे लेकिन उस विषय पर हो रहे शोधों ने इनको बगले झांकने पर मजबूर कर दिया है? ये बिमारीग्रस्थ लोग क्या जाने कि सत्य को दबाया जा सकता है छिपाया नहीं जा सकता, आप सभ्यता को ४००० हजार वर्ष पुरानामान रहे हैं, एक उदहारण ये भी देखिये,
    जिनको असत्य लगे वो अपना पता मेरे ब्लॉग पर छोड़ दें मै बहस ही नहीं उनकी सोच भी बदल सकता हूँ कमरे में बैठकर नही अपने व विद्वानों के द्वारा किये काम के आधार पर,
    वो तथ्य यह है कि ये सरस्वती नदी को नहीं मानते थे और कहते थे ये कपोल कल्पना है, फिर कहने लगे वो तो २००० हजार वर्ष पहले सुख चुकी है, अब जबकि उसपर व्यापक शोध के जरिये सिद्ध हो चूका है कि सरस्वती नदी आज भी धरती के नीचे अपने प्रवाह मार्ग पर आज भी बहती है तो, ये कहने लगे कि (माफ़ करिए "ये" मतलब अपने मूर्धन्य विद्वान इरफान हबीब जी) ये सरस्वती नदी तो अफगानिस्तान में बहती है, इतना ही नहीं ऋग्वेद का काल १५०००-१७००० ईसा पूर्व मानते हैं जबकि ऋग्वेद में सरस्वती नदी का वर्णन मिलता है और वह भी कैसा? 'पर्वतों को तोड़ती हुई' यानि कि ऋग्वेद २००० हजार वर्ष का हुआ लेकिन यही सरस्वती नदी महाभारत में सूखने कि अवस्था में वर्णित है अर्थात ५००० हजार वर्ष पूर्व. इसका मतलब ये हुआ कि सरस्वती जो ऋग्वेद में वर्णित है वो अपनी यौवनावस्था को दर्शाती है. महाभारत व ऋग्वेद के वर्णन के हिसाब से (सरस्वती जो १६००० किलोमीटर बहने वाली नदी थी )उसको सूखने में कम से कम कितना समय लगा होगा? इस हिसाब से ये नदी रामायण के बाद व महाभारत के बीच के काल कि कही जा सकती है ( ये कही जा सकती है तथ्यों पर आधारित है) यानि हमारी संस्कृति कितनी पुरानी है येकहने कि जरुरत नहीं है, और शोध होने दीजिये सिर्फ बोलने वालों को भागने का मौका नहीं मिलेगा,
    कुलमिलाकर आपके पोस्ट को मै सार्थक मनाता हूँ, इसे सिर्फ इसलिए नकार देना कि इससे कुछलोगों को बुरा लग सकता है , मेरा मानना है कि सच हमेश कड़वा होता है ?
    रत्नेश त्रिपाठी

  28. aarya said,

    August 24, 2009 at 4:22 pm

    सुरेश जीसादर वन्दे!मैंने भी ओक् साहब को पढ़ा है, उन्होंने और भी जगह पर शिवलिंग का होना बताया है, ये जो लोग संभावनाओं कि दुहाई दे रहें हैं उन्होंने कितना शोध किया हैं भगवान जाने लेकिन पि एन ओक् ने जो लिखा है वो कमरे में बैठकर नहीं लिखा है, उनके बातों को एक सिरे से नकार देना मुझे लगता है कि उनके द्वारा किये गए काम का अपमान करना है, अगर वो गलत हैं तो उन्हें गलत, कमरे में बैठकर नही साबित किया जा सकता, जो लोग अक्सर करते हैं,चूँकि मै इतिहास का विद्यार्थी हूँ अतः इतिहास ढूढ़ना मेरा काम है और मै तो ऐसे विषय पर शोध कर रहा हूँ जिसको ये तथ्यवादी एक सिरे से नकार चुके थे लेकिन उस विषय पर हो रहे शोधों ने इनको बगले झांकने पर मजबूर कर दिया है? ये बिमारीग्रस्थ लोग क्या जाने कि सत्य को दबाया जा सकता है छिपाया नहीं जा सकता, आप सभ्यता को ४००० हजार वर्ष पुरानामान रहे हैं, एक उदहारण ये भी देखिये,जिनको असत्य लगे वो अपना पता मेरे ब्लॉग पर छोड़ दें मै बहस ही नहीं उनकी सोच भी बदल सकता हूँ कमरे में बैठकर नही अपने व विद्वानों के द्वारा किये काम के आधार पर,वो तथ्य यह है कि ये सरस्वती नदी को नहीं मानते थे और कहते थे ये कपोल कल्पना है, फिर कहने लगे वो तो २००० हजार वर्ष पहले सुख चुकी है, अब जबकि उसपर व्यापक शोध के जरिये सिद्ध हो चूका है कि सरस्वती नदी आज भी धरती के नीचे अपने प्रवाह मार्ग पर आज भी बहती है तो, ये कहने लगे कि (माफ़ करिए "ये" मतलब अपने मूर्धन्य विद्वान इरफान हबीब जी) ये सरस्वती नदी तो अफगानिस्तान में बहती है, इतना ही नहीं ऋग्वेद का काल १५०००-१७००० ईसा पूर्व मानते हैं जबकि ऋग्वेद में सरस्वती नदी का वर्णन मिलता है और वह भी कैसा? 'पर्वतों को तोड़ती हुई' यानि कि ऋग्वेद २००० हजार वर्ष का हुआ लेकिन यही सरस्वती नदी महाभारत में सूखने कि अवस्था में वर्णित है अर्थात ५००० हजार वर्ष पूर्व. इसका मतलब ये हुआ कि सरस्वती जो ऋग्वेद में वर्णित है वो अपनी यौवनावस्था को दर्शाती है. महाभारत व ऋग्वेद के वर्णन के हिसाब से (सरस्वती जो १६००० किलोमीटर बहने वाली नदी थी )उसको सूखने में कम से कम कितना समय लगा होगा? इस हिसाब से ये नदी रामायण के बाद व महाभारत के बीच के काल कि कही जा सकती है ( ये कही जा सकती है तथ्यों पर आधारित है) यानि हमारी संस्कृति कितनी पुरानी है येकहने कि जरुरत नहीं है, और शोध होने दीजिये सिर्फ बोलने वालों को भागने का मौका नहीं मिलेगा,कुलमिलाकर आपके पोस्ट को मै सार्थक मनाता हूँ, इसे सिर्फ इसलिए नकार देना कि इससे कुछलोगों को बुरा लग सकता है , मेरा मानना है कि सच हमेश कड़वा होता है ?रत्नेश त्रिपाठी

  29. Neeraj Rohilla said,

    August 24, 2009 at 5:04 pm

    इतिहासकारों में पीएन ओक के निष्कर्षों को लेकर गहरे मतभेद हैं |

    आपके लेख में किसी एक बात पर तो हम भी सहमत हो गये, 😉

    बाकी लेख रोचक है लेकिन इस प्रकार के लेख इंटरनेट पर लगभग १९९८-१९९९ से टहल रहे हैं और अब तो सीरियस इंटरनेट फ़ोरम्स पर इनकी चर्चा भी नहीं होती।

    पी. एन. ओक इतने पसन्द हैं तो कभी वर्तक की थ्योरीज पर भी लिखियेगा, उनको पढने में और आनन्द आता है।

    ऊपर वाली टिप्पणी आपसे मौज लेने के लिये लिखी क्योंकि भरोसा है आप अन्यथा नहीं लेंगे।

  30. August 24, 2009 at 5:04 pm

    इतिहासकारों में पीएन ओक के निष्कर्षों को लेकर गहरे मतभेद हैं |आपके लेख में किसी एक बात पर तो हम भी सहमत हो गये, ;-)बाकी लेख रोचक है लेकिन इस प्रकार के लेख इंटरनेट पर लगभग १९९८-१९९९ से टहल रहे हैं और अब तो सीरियस इंटरनेट फ़ोरम्स पर इनकी चर्चा भी नहीं होती। पी. एन. ओक इतने पसन्द हैं तो कभी वर्तक की थ्योरीज पर भी लिखियेगा, उनको पढने में और आनन्द आता है।ऊपर वाली टिप्पणी आपसे मौज लेने के लिये लिखी क्योंकि भरोसा है आप अन्यथा नहीं लेंगे।

  31. अविनाश वाचस्पति said,

    August 24, 2009 at 5:05 pm

    मैंने भी अपने बचपन में
    श्री पी. एन. ओक जी की
    रचित कुछ पुस्‍तकें पढ़ी थीं
    और मैं उनमें दिए गए
    तथ्‍यों से सहमत हूं।

    अच्‍छा है यह सब तथ्‍य
    ब्‍लॉग पर लाए गए हैं।
    एक प्रशंसनीय कार्य।

  32. August 24, 2009 at 5:05 pm

    मैंने भी अपने बचपन में श्री पी. एन. ओक जी कीरचित कुछ पुस्‍तकें पढ़ी थीं और मैं उनमें दिए गए तथ्‍यों से सहमत हूं।अच्‍छा है यह सब तथ्‍यब्‍लॉग पर लाए गए हैं।एक प्रशंसनीय कार्य।

  33. aarya said,

    August 24, 2009 at 5:19 pm

    17 वीं लाइन पर ऋग्वेद का काल १५०० -१७०० कि जगह १५०००-१७००० लिख गयी है अतः इसे सुधार के पढें.
    रत्नेश त्रिपाठी

  34. aarya said,

    August 24, 2009 at 5:19 pm

    17 वीं लाइन पर ऋग्वेद का काल १५०० -१७०० कि जगह १५०००-१७००० लिख गयी है अतः इसे सुधार के पढें.रत्नेश त्रिपाठी

  35. Vivek Rastogi said,

    August 24, 2009 at 5:29 pm

    हम भी यही मानते हैं क्योंकि यही सब सुखसागर में भी लिखा है, परंतु इन नापाक लोगों को कौन समझाये, अगर इन्हें इतना ही काबा पर गुमान है तो क्यों नहीं किसी हिंदू को गाय का दूध चढ़ाने की अनुमति दे देते हैं ?

    और हमारा इतिहास पहले तो इन मुसलमान शासकों ने गलत लिखवाया और फ़िर अंग्रेजों ने गलत लिखा अब सही इतिहास जानने के लिये तो हमें टाईममशीन को ईजाद करना होगा।

  36. August 24, 2009 at 5:29 pm

    हम भी यही मानते हैं क्योंकि यही सब सुखसागर में भी लिखा है, परंतु इन नापाक लोगों को कौन समझाये, अगर इन्हें इतना ही काबा पर गुमान है तो क्यों नहीं किसी हिंदू को गाय का दूध चढ़ाने की अनुमति दे देते हैं ?और हमारा इतिहास पहले तो इन मुसलमान शासकों ने गलत लिखवाया और फ़िर अंग्रेजों ने गलत लिखा अब सही इतिहास जानने के लिये तो हमें टाईममशीन को ईजाद करना होगा।

  37. काशिफ़ आरिफ़/Kashif Arif said,

    August 24, 2009 at 5:29 pm

    मैने पी.एन.ओके. जी को नही पढा है तो उनके किये गये शोध और खोज के बारे में कुछ नही कहुंगा।

    सुरेश जी, आपके लेख में सिर्फ़ सम्भावनायें ही बतायी गयी है जैसे हो सकता है, वगैरह वगैरह कोई ठोस सबुत नही है।

    आपने अपने लेख में कुछ सवाल किये है…….मैं उनका जवाब दे रहा हूं….

    काबा को इब्राहिम अलैहि सलाम ने अल्लाह के हुक्म से बनाया था…..

    ये मार्बल के १० इंच के बेस पर मक्का के पास की पहाडियों से लाये गये ग्रेनाइट से बनाया गया है।

    इब्राहिम अलैहि सलाम के बाद मक्का की कुरैश बिरादरी ने इसमें अपने ३०० खुदाओं के बुत रख दिये….हज और तव्वाफ़ (परिक्र्मा) तब भी होती थी लेकिन तब उन ३०० खुदाओं की परिक्रमा होती थी।

    मुहम्मद सल्लाहो अलैहि वसल्लम की नबुवत के वक्त में उस कुरैश बिरादरी का सरदार "उम्मया" था

    जब मुसलमानों ने कुरैश बिरादरी को हराकर मक्का फ़तह किया तो अल्लाह के रसुल ने काबा में रखें उन सारे बुतों को तोडते गये और कहते गये "हक आ गया, बातिल चला गया"

  38. August 24, 2009 at 5:29 pm

    मैने पी.एन.ओके. जी को नही पढा है तो उनके किये गये शोध और खोज के बारे में कुछ नही कहुंगा।सुरेश जी, आपके लेख में सिर्फ़ सम्भावनायें ही बतायी गयी है जैसे हो सकता है, वगैरह वगैरह कोई ठोस सबुत नही है।आपने अपने लेख में कुछ सवाल किये है…….मैं उनका जवाब दे रहा हूं….काबा को इब्राहिम अलैहि सलाम ने अल्लाह के हुक्म से बनाया था….. ये मार्बल के १० इंच के बेस पर मक्का के पास की पहाडियों से लाये गये ग्रेनाइट से बनाया गया है।इब्राहिम अलैहि सलाम के बाद मक्का की कुरैश बिरादरी ने इसमें अपने ३०० खुदाओं के बुत रख दिये….हज और तव्वाफ़ (परिक्र्मा) तब भी होती थी लेकिन तब उन ३०० खुदाओं की परिक्रमा होती थी।मुहम्मद सल्लाहो अलैहि वसल्लम की नबुवत के वक्त में उस कुरैश बिरादरी का सरदार "उम्मया" थाजब मुसलमानों ने कुरैश बिरादरी को हराकर मक्का फ़तह किया तो अल्लाह के रसुल ने काबा में रखें उन सारे बुतों को तोडते गये और कहते गये "हक आ गया, बातिल चला गया"

  39. काशिफ़ आरिफ़/Kashif Arif said,

    August 24, 2009 at 5:29 pm

    मैने पी.एन.ओके. जी को नही पढा है तो उनके किये गये शोध और खोज के बारे में कुछ नही कहुंगा।

    सुरेश जी, आपके लेख में सिर्फ़ सम्भावनायें ही बतायी गयी है जैसे हो सकता है, वगैरह वगैरह कोई ठोस सबुत नही है।

    आपने अपने लेख में कुछ सवाल किये है…….मैं उनका जवाब दे रहा हूं….

    काबा को इब्राहिम अलैहि सलाम ने अल्लाह के हुक्म से बनाया था…..

    ये मार्बल के १० इंच के बेस पर मक्का के पास की पहाडियों से लाये गये ग्रेनाइट से बनाया गया है।

    इब्राहिम अलैहि सलाम के बाद मक्का की कुरैश बिरादरी ने इसमें अपने ३०० खुदाओं के बुत रख दिये….हज और तव्वाफ़ (परिक्र्मा) तब भी होती थी लेकिन तब उन ३०० खुदाओं की परिक्रमा होती थी।

    मुहम्मद सल्लाहो अलैहि वसल्लम की नबुवत के वक्त में उस कुरैश बिरादरी का सरदार "उम्मया" था

    जब मुसलमानों ने कुरैश बिरादरी को हराकर मक्का फ़तह किया तो अल्लाह के रसुल ने काबा में रखें उन सारे बुतों को तोडते गये और कहते गये "हक आ गया, बातिल चला गया"

  40. August 24, 2009 at 5:29 pm

    मैने पी.एन.ओके. जी को नही पढा है तो उनके किये गये शोध और खोज के बारे में कुछ नही कहुंगा।सुरेश जी, आपके लेख में सिर्फ़ सम्भावनायें ही बतायी गयी है जैसे हो सकता है, वगैरह वगैरह कोई ठोस सबुत नही है।आपने अपने लेख में कुछ सवाल किये है…….मैं उनका जवाब दे रहा हूं….काबा को इब्राहिम अलैहि सलाम ने अल्लाह के हुक्म से बनाया था….. ये मार्बल के १० इंच के बेस पर मक्का के पास की पहाडियों से लाये गये ग्रेनाइट से बनाया गया है।इब्राहिम अलैहि सलाम के बाद मक्का की कुरैश बिरादरी ने इसमें अपने ३०० खुदाओं के बुत रख दिये….हज और तव्वाफ़ (परिक्र्मा) तब भी होती थी लेकिन तब उन ३०० खुदाओं की परिक्रमा होती थी।मुहम्मद सल्लाहो अलैहि वसल्लम की नबुवत के वक्त में उस कुरैश बिरादरी का सरदार "उम्मया" थाजब मुसलमानों ने कुरैश बिरादरी को हराकर मक्का फ़तह किया तो अल्लाह के रसुल ने काबा में रखें उन सारे बुतों को तोडते गये और कहते गये "हक आ गया, बातिल चला गया"

  41. BS said,

    August 24, 2009 at 6:01 pm

    काबा में एक गणेस जी से मिलते-जुलते देवता की मूर्ति थी जिसका नाम हूगल था और उस मूर्ति को तोड़ा गया था। वहां लगा काला पत्थर उसी देवता की मूर्ति का टुकड़ा है। काबा की जगह अत्यधिक पवित्र और शक्तिशाली है। जब तक काबा में इस्लाम का राज है तब तक इस्लाम शक्तिशाली रहेगा।

  42. BS said,

    August 24, 2009 at 6:01 pm

    काबा में एक गणेस जी से मिलते-जुलते देवता की मूर्ति थी जिसका नाम हूगल था और उस मूर्ति को तोड़ा गया था। वहां लगा काला पत्थर उसी देवता की मूर्ति का टुकड़ा है। काबा की जगह अत्यधिक पवित्र और शक्तिशाली है। जब तक काबा में इस्लाम का राज है तब तक इस्लाम शक्तिशाली रहेगा।

  43. BS said,

    August 24, 2009 at 6:01 pm

    काबा में एक गणेस जी से मिलते-जुलते देवता की मूर्ति थी जिसका नाम हूगल था और उस मूर्ति को तोड़ा गया था। वहां लगा काला पत्थर उसी देवता की मूर्ति का टुकड़ा है। काबा की जगह अत्यधिक पवित्र और शक्तिशाली है। जब तक काबा में इस्लाम का राज है तब तक इस्लाम शक्तिशाली रहेगा।

  44. BS said,

    August 24, 2009 at 6:01 pm

    काबा में एक गणेस जी से मिलते-जुलते देवता की मूर्ति थी जिसका नाम हूगल था और उस मूर्ति को तोड़ा गया था। वहां लगा काला पत्थर उसी देवता की मूर्ति का टुकड़ा है। काबा की जगह अत्यधिक पवित्र और शक्तिशाली है। जब तक काबा में इस्लाम का राज है तब तक इस्लाम शक्तिशाली रहेगा।

  45. Common Hindu said,

    August 24, 2009 at 6:34 pm

    Hello Blogger Friend,

    Your excellent post has been back-linked in
    http://hinduonline.blogspot.com/

    – a blog for Daily Posts, News, Views Compilation by a Common Hindu
    – Hindu Online.

  46. Common Hindu said,

    August 24, 2009 at 6:34 pm

    Hello Blogger Friend,Your excellent post has been back-linked inhttp://hinduonline.blogspot.com/– a blog for Daily Posts, News, Views Compilation by a Common Hindu- Hindu Online.

  47. Rakesh Singh - राकेश सिंह said,

    August 24, 2009 at 6:41 pm

    सुरेश भाई अच्छा किया आपने इस विषय पे लिख कर | बहुत सुन्दर |

    पी.एन. ओक के अलावा भी कैसे इतिहासकार ये मानते हैं की काबा एक शिव मंदिर था |

    आपके दुसरे भाग का इन्तजार रहेगा |

    काशिफ़ आरिफ़ और सलीम खान से इतना ही कहूंगा की दुसरे भाग का इन्तजार कीजिये , शायद आपके प्रश्नों का उत्तर दुसरे भाग मैं मिल जाए | यदि नहीं मिले तो हम प्रमाण दे देंगे की कैसे काबा एक शिव मंदिर था ?

    फिलहाल इतना जान लीजिये :
    The Arabs derived technical guidance in every branch of study such as astronomy, mathematics and physics from India. A noted scholar of history, W.H. Siddiqui notes:

    "The Arab civilization grew up intensively as well as extensively on the riches of Indian trade and commerce. Nomadic Arab tribes became partially settled communities and some of them lived within walled towns practised agriculture and commerce, wroteon wood and stone, feared the gods and honored the kings."

  48. August 24, 2009 at 6:41 pm

    सुरेश भाई अच्छा किया आपने इस विषय पे लिख कर | बहुत सुन्दर | पी.एन. ओक के अलावा भी कैसे इतिहासकार ये मानते हैं की काबा एक शिव मंदिर था | आपके दुसरे भाग का इन्तजार रहेगा |काशिफ़ आरिफ़ और सलीम खान से इतना ही कहूंगा की दुसरे भाग का इन्तजार कीजिये , शायद आपके प्रश्नों का उत्तर दुसरे भाग मैं मिल जाए | यदि नहीं मिले तो हम प्रमाण दे देंगे की कैसे काबा एक शिव मंदिर था ?फिलहाल इतना जान लीजिये : The Arabs derived technical guidance in every branch of study such as astronomy, mathematics and physics from India. A noted scholar of history, W.H. Siddiqui notes:"The Arab civilization grew up intensively as well as extensively on the riches of Indian trade and commerce. Nomadic Arab tribes became partially settled communities and some of them lived within walled towns practised agriculture and commerce, wroteon wood and stone, feared the gods and honored the kings."

  49. Rakesh Singh - राकेश सिंह said,

    August 24, 2009 at 9:40 pm

    स्वच्छ संदेश: हिन्दोस्तान की आवाज़ (सलीम खान) ने अपने साईट पे बड़े बड़े अक्षरों मैं ये लगा रखा है – "इस्लाम काबुल करने से पहले अब्दुल्लाह अदियार … एक समाचार पात्र के १७ साल तक संपादक रहे थे | … "

    सलीम भाई आपने "रस खान" का नाम सूना है ? रस खान एक मुस्लिम, पर था भगवान् कृष्ण का भक्त | कृष्ण की भक्ती मैं रस खान ऐसे रमे की कृष्ण भगवान् की भक्ती मैं एक काव्य ही रच डाला | और भी कई ऐसे मुस्लिम बंधू हुए जो कृष्ण, राम को भगवान् मानते थे | आज भी कई मुस्लमान भाई .. हरे राम .. हरे कृष्ण भजन गाते हैं | देखिये इधर :

    http://www.youtube.com/watch?v=JRvp1mdsit0

  50. August 24, 2009 at 9:40 pm

    स्वच्छ संदेश: हिन्दोस्तान की आवाज़ (सलीम खान) ने अपने साईट पे बड़े बड़े अक्षरों मैं ये लगा रखा है – "इस्लाम काबुल करने से पहले अब्दुल्लाह अदियार … एक समाचार पात्र के १७ साल तक संपादक रहे थे | … " सलीम भाई आपने "रस खान" का नाम सूना है ? रस खान एक मुस्लिम, पर था भगवान् कृष्ण का भक्त | कृष्ण की भक्ती मैं रस खान ऐसे रमे की कृष्ण भगवान् की भक्ती मैं एक काव्य ही रच डाला | और भी कई ऐसे मुस्लिम बंधू हुए जो कृष्ण, राम को भगवान् मानते थे | आज भी कई मुस्लमान भाई .. हरे राम .. हरे कृष्ण भजन गाते हैं | देखिये इधर :http://www.youtube.com/watch?v=JRvp1mdsit0

  51. Dikshit Ajay K said,

    August 25, 2009 at 5:18 am

    सुरेश भाई,

    उपर चर्चित विषय से हट कर आप तथा अन्या भाईओं से एक राई लाने थी, अगर कोई काम का सुझाव मिला तो मेरे नाती-पोते सन 2030 के आस पास आप को दुआ देंगे.

    राहुल गाँधी ने तो किन्ही अग्यात कार्नो से शादी ना करने का maan banaa hee maan लिया है. अब चिंता की
    बात यह है की हमारे देश का स्न 2030 के बाद क्या होगा ? क्या नेहरू- गाँधी राज वंश राहुल गाँधी के बाद…………… (ईश्वर मेरे मुख से कुछ अशुभ ना निकले)?
    या नेहरू ……गन्धि……….वाद्रा……फिर इसी तरह ये वंश परंपरा सदिओं तक हम पर राज करती रहे gee ?

  52. August 25, 2009 at 5:18 am

    सुरेश भाई, उपर चर्चित विषय से हट कर आप तथा अन्या भाईओं से एक राई लाने थी, अगर कोई काम का सुझाव मिला तो मेरे नाती-पोते सन 2030 के आस पास आप को दुआ देंगे. राहुल गाँधी ने तो किन्ही अग्यात कार्नो से शादी ना करने का maan banaa hee maan लिया है. अब चिंता की बात यह है की हमारे देश का स्न 2030 के बाद क्या होगा ? क्या नेहरू- गाँधी राज वंश राहुल गाँधी के बाद…………… (ईश्वर मेरे मुख से कुछ अशुभ ना निकले)? या नेहरू ……गन्धि……….वाद्रा……फिर इसी तरह ये वंश परंपरा सदिओं तक हम पर राज करती रहे gee ?

  53. पी.सी.गोदियाल said,

    August 25, 2009 at 5:35 am

    काबा में क्या है और कौन विराजमान है, इसके ऊपर से तो पूरा पर्दा तभी उठ सकता है जब समूचे इस्लाम धर्म पर से ही पर्दा उठे ! क्योंकि बुर्के/पर्दों के अन्दर क्या क्या रहस्य छिपे है, यह कोई ख़ास नहीं जानता और एक शोध का विषय है ! लेकिन यह सत्य है कि प्राचीन हिन्दू संस्कृति सुदूर पुर्व एशिया से लेकर पश्चिम में यूरोप और अमेरिका तक फैली थी ! जैसा कि कुछ वैज्ञानिक तथ्य बताते है कि पृथ्वी का अमेरिकी भूखंड कभी यूरोप से जुडा था,और लोग जमीन से चल कर अमेरिका जाते थे ! यह भी एक कटु सत्य है कि दुष्ट किस्म की मानव प्रजातिया अरब और खाडी देश में सदियों से निवास करती थी, जिन्होंने प्राचीन सभ्यता और संस्कृति को मिटियामेट करने में कोई कसर नहीं छोडी ! और अनेको प्राचीन दुर्लभ सांस्कृतिक धरोहरों को सिर्फ अपने भोग विलास के लिए नष्ट करते चले गए! इसका एक उदाहरण मैं इस तौर पर दे सकता हूँ कि प्राचीन कहानियों और किस्स्सो में "थीफ आफ बग़दाद और रेगिस्तान के चोर जैसे अनेको किस्से इस और संकेत करते है कि वहा बसने वाले लोग चोर थे और अपने फायदे के लिए जो भी धातु की बनी मूर्तिया उन्हें मिलती वे नष्ट कर बेच डालते थे !ब्राजील के बारे में आपने सूना ही होगा कि वहा समय समय पर खुदाइयो और गुफाओं में हिन्दू मूर्तिया अनेको बार मिली ! इसी पर एक खोजकर्ता का निमांकित लेख देखिये:
    Percy Fahwcett ogaahad always been fascinated in archaeology and history. He often took long walks, exploring. In 1893, while a young British officer stationed at Tricomalee, Ceylon, he ventured out on one of his long walks into the remote jungle areas of the island.

    That day, a storm overtook him, forcing him to seek refuge for the night under some trees. The following morning, much to his surprise, he discovered a huge rock with strange inscriptions of unknown character and meaning.

    He copied the inscriptions and showed them to a Buddhist priest. The priest informed Fawcett that the inscription was a form of old Asoke-Buddhist that only those priests could understand. Ten years later, a Ceylonese Oriental Scholar at Oxford University confirmed the ascertion.

    xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
    यह भी देखे :

    Moscow, January 4: An ancient Vishnu idol has been found during excavation in an old village in Russia's Volga region, raising questions about the prevalent view on the origin of ancient Russia.

    The idol found in Staraya (old) Maina village dates back to VII-X century AD. Staraya Maina village in Ulyanovsk region was a highly populated city 1700 years ago, much older than Kiev, so far believed to be the mother of all Russian cities.

    "We may consider it incredible, but we have ground to assert that Middle-Volga region was the original land of Ancient Rus. This is a hypothesis, but a hypothesis, which requires thorough research," Reader of Ulyanovsk State University's archaeology department Dr Alexander Kozhevin told state-run 24-hour news channel Vesti

    तो उसपर कोई आर्श्चय नहीं होना चाहिए जैसा सुरेश जी ने कहा !

  54. August 25, 2009 at 5:35 am

    काबा में क्या है और कौन विराजमान है, इसके ऊपर से तो पूरा पर्दा तभी उठ सकता है जब समूचे इस्लाम धर्म पर से ही पर्दा उठे ! क्योंकि बुर्के/पर्दों के अन्दर क्या क्या रहस्य छिपे है, यह कोई ख़ास नहीं जानता और एक शोध का विषय है ! लेकिन यह सत्य है कि प्राचीन हिन्दू संस्कृति सुदूर पुर्व एशिया से लेकर पश्चिम में यूरोप और अमेरिका तक फैली थी ! जैसा कि कुछ वैज्ञानिक तथ्य बताते है कि पृथ्वी का अमेरिकी भूखंड कभी यूरोप से जुडा था,और लोग जमीन से चल कर अमेरिका जाते थे ! यह भी एक कटु सत्य है कि दुष्ट किस्म की मानव प्रजातिया अरब और खाडी देश में सदियों से निवास करती थी, जिन्होंने प्राचीन सभ्यता और संस्कृति को मिटियामेट करने में कोई कसर नहीं छोडी ! और अनेको प्राचीन दुर्लभ सांस्कृतिक धरोहरों को सिर्फ अपने भोग विलास के लिए नष्ट करते चले गए! इसका एक उदाहरण मैं इस तौर पर दे सकता हूँ कि प्राचीन कहानियों और किस्स्सो में "थीफ आफ बग़दाद और रेगिस्तान के चोर जैसे अनेको किस्से इस और संकेत करते है कि वहा बसने वाले लोग चोर थे और अपने फायदे के लिए जो भी धातु की बनी मूर्तिया उन्हें मिलती वे नष्ट कर बेच डालते थे !ब्राजील के बारे में आपने सूना ही होगा कि वहा समय समय पर खुदाइयो और गुफाओं में हिन्दू मूर्तिया अनेको बार मिली ! इसी पर एक खोजकर्ता का निमांकित लेख देखिये: Percy Fahwcett ogaahad always been fascinated in archaeology and history. He often took long walks, exploring. In 1893, while a young British officer stationed at Tricomalee, Ceylon, he ventured out on one of his long walks into the remote jungle areas of the island.That day, a storm overtook him, forcing him to seek refuge for the night under some trees. The following morning, much to his surprise, he discovered a huge rock with strange inscriptions of unknown character and meaning.He copied the inscriptions and showed them to a Buddhist priest. The priest informed Fawcett that the inscription was a form of old Asoke-Buddhist that only those priests could understand. Ten years later, a Ceylonese Oriental Scholar at Oxford University confirmed the ascertion.xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxयह भी देखे : Moscow, January 4: An ancient Vishnu idol has been found during excavation in an old village in Russia's Volga region, raising questions about the prevalent view on the origin of ancient Russia. The idol found in Staraya (old) Maina village dates back to VII-X century AD. Staraya Maina village in Ulyanovsk region was a highly populated city 1700 years ago, much older than Kiev, so far believed to be the mother of all Russian cities. "We may consider it incredible, but we have ground to assert that Middle-Volga region was the original land of Ancient Rus. This is a hypothesis, but a hypothesis, which requires thorough research," Reader of Ulyanovsk State University's archaeology department Dr Alexander Kozhevin told state-run 24-hour news channel Vestiतो उसपर कोई आर्श्चय नहीं होना चाहिए जैसा सुरेश जी ने कहा !

  55. varun said,

    August 25, 2009 at 6:57 am

    to fir chalo karsevako ko lekar kaba par halla bolneko.ayodhya ki tarha. arbo ko dekhkar dhoti khul javegi sale.

  56. varun said,

    August 25, 2009 at 6:57 am

    to fir chalo karsevako ko lekar kaba par halla bolneko.ayodhya ki tarha. arbo ko dekhkar dhoti khul javegi sale.

  57. khursheed said,

    August 25, 2009 at 7:09 am

    मोहम्मद साहब ने साडी मूर्ती तोड़ दी और शिव के लिंग को छोड़ दिया…………..हा….हा……हा…..हा…..हा…..हा…….

  58. khursheed said,

    August 25, 2009 at 7:09 am

    मोहम्मद साहब ने साडी मूर्ती तोड़ दी और शिव के लिंग को छोड़ दिया…………..हा….हा……हा…..हा…..हा…..हा…….

  59. khursheed said,

    August 25, 2009 at 7:26 am

    संघी अतिवादी आज तक बाबरी मस्जिद को मंदिर साबित नहीं कर पाए अब चले हैं काबा को मंदिर साबित करने…….
    पहले बाबरी मस्जिद के बारे में इनके झूठे तर्क को सुनिए.
    विश्व हिन्दू परिषद का कहना है कि हिन्दुओं का यह विश्वास है कि अयोध्या राम जन्मभूमि है किन्तु यह बात संदेह उत्पन्न करती है क्योंकि हिन्दू धर्म के किसी प्राचीन ग्रंथ में इसका कोई ऐसा वर्णन नहीं मिलता है जिसे साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जा सके। हिन्दुओं के किसी भी धर्मग्रंथ में ऐसा नहीं लिखा गया है कि अयोध्या में अमुक स्थान पर राम का जन्म हुआ था, वहां जाकर आराधना करनी चाहिए। कामिल बुल्के ने अपनी राम कथा में वाल्मीकि रामायण, गोविन्द रामायण, बलराम रामायण, भुषुंडी रामायण, भवभूति का रामचरित, बौद्ध रामायण (दशरथ जातक), रामचरित्‌ मानस, जैन रामायण, भावार्थ रामायण, तिब्बती रामायण, कश्मीरी रामायण, आनंद रामायण, कम्ब रामायण, अग्निवेश रामायण, अध्यात्म रामायण 16-17 किस्म की रामायणों में राम कथाओं का वर्णन किया है किन्तु किसी में भी राम के जन्मस्थल का वर्णन नहीं है। विश्व हिन्दू परिषद अयोध्या में राम जन्मभूमि का साक्ष्य प्रस्तुत करती है, उसका उल्लेख हम पहले करते हैंᄉ
    पहला साक्ष्य- विश्व हिन्दू परिषद केवल एक ग्रंथ ऐसा पेश कर पायी है और वह भी है एक पुराण। स्कंद पुराण में राम के जन्मस्थान का वर्णन है जिसमें अयोध्या का महात्म्य दर्शाया गया है और उसके दर्शन का महत्व समझाया गया है। पुराणों के बारे में यह कौन नहीं जानता है कि ये आल्हा खंड से भी अधिक गपोड़ों के संग्रह हैं और इन पुराणों की रचना का समय सबसे बाद का है। इनकी रचना में उ+लजलूल आख्यानों की भरमार है और इनका इसीलिए कोई लेखक भी नहीं दिखाया गया है। यदि हम स्कंद पुराण को ही लें तो यह पुराण 16वीं सदी के बाद का ही लिखा गया प्रमाणित होता है। इस पुराण में विद्यापति का उल्लेख है जिसकी मृत्यु 16वीं सदी में हुई थी। कुछ विद्वानों की मान्यता है कि स्कंद पुराण का यह ÷अयोध्या महात्म्य' अनुभाग मात्रा क्षेपक है और बाद को जोड़ा गया है। यदि इस पुराण के कथन को मान भी लिया जाय तब भी तो जहां बाबरी मस्जिद बनी हुई है उस स्थान पर राम का जन्म होना प्रमाणित नहीं होता है।

  60. khursheed said,

    August 25, 2009 at 7:26 am

    संघी अतिवादी आज तक बाबरी मस्जिद को मंदिर साबित नहीं कर पाए अब चले हैं काबा को मंदिर साबित करने…….पहले बाबरी मस्जिद के बारे में इनके झूठे तर्क को सुनिए.विश्व हिन्दू परिषद का कहना है कि हिन्दुओं का यह विश्वास है कि अयोध्या राम जन्मभूमि है किन्तु यह बात संदेह उत्पन्न करती है क्योंकि हिन्दू धर्म के किसी प्राचीन ग्रंथ में इसका कोई ऐसा वर्णन नहीं मिलता है जिसे साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जा सके। हिन्दुओं के किसी भी धर्मग्रंथ में ऐसा नहीं लिखा गया है कि अयोध्या में अमुक स्थान पर राम का जन्म हुआ था, वहां जाकर आराधना करनी चाहिए। कामिल बुल्के ने अपनी राम कथा में वाल्मीकि रामायण, गोविन्द रामायण, बलराम रामायण, भुषुंडी रामायण, भवभूति का रामचरित, बौद्ध रामायण (दशरथ जातक), रामचरित्‌ मानस, जैन रामायण, भावार्थ रामायण, तिब्बती रामायण, कश्मीरी रामायण, आनंद रामायण, कम्ब रामायण, अग्निवेश रामायण, अध्यात्म रामायण 16-17 किस्म की रामायणों में राम कथाओं का वर्णन किया है किन्तु किसी में भी राम के जन्मस्थल का वर्णन नहीं है। विश्व हिन्दू परिषद अयोध्या में राम जन्मभूमि का साक्ष्य प्रस्तुत करती है, उसका उल्लेख हम पहले करते हैंᄉपहला साक्ष्य- विश्व हिन्दू परिषद केवल एक ग्रंथ ऐसा पेश कर पायी है और वह भी है एक पुराण। स्कंद पुराण में राम के जन्मस्थान का वर्णन है जिसमें अयोध्या का महात्म्य दर्शाया गया है और उसके दर्शन का महत्व समझाया गया है। पुराणों के बारे में यह कौन नहीं जानता है कि ये आल्हा खंड से भी अधिक गपोड़ों के संग्रह हैं और इन पुराणों की रचना का समय सबसे बाद का है। इनकी रचना में उ+लजलूल आख्यानों की भरमार है और इनका इसीलिए कोई लेखक भी नहीं दिखाया गया है। यदि हम स्कंद पुराण को ही लें तो यह पुराण 16वीं सदी के बाद का ही लिखा गया प्रमाणित होता है। इस पुराण में विद्यापति का उल्लेख है जिसकी मृत्यु 16वीं सदी में हुई थी। कुछ विद्वानों की मान्यता है कि स्कंद पुराण का यह ÷अयोध्या महात्म्य' अनुभाग मात्रा क्षेपक है और बाद को जोड़ा गया है। यदि इस पुराण के कथन को मान भी लिया जाय तब भी तो जहां बाबरी मस्जिद बनी हुई है उस स्थान पर राम का जन्म होना प्रमाणित नहीं होता है।

  61. khursheed said,

    August 25, 2009 at 7:27 am

    छंद 21 से 24 तक के वर्णन में जन्म स्थल लौमश के पच्छिम की ओर 1009 धनुष (1835 मीटर) की दूरी पर स्थित है। हिन्दू मान्यता के अनुसार लोमस की जगह ऋणमोचन घाटवाली जगह है। इस मान्यता के आधार पर राम जन्मभूमि सरयू नदी की तलहटी में ब्रह्मकुंड के पास बैठती है। दूसरा कथन है कि जन्मस्थान विनेश के उत्तर पूर्व में स्थित है। यह विनेश का स्थल ऋणमोचन से दक्षिण पश्चिम को है। यह स्थान भी वह नहीं बैठता जहां बाबरी मस्जिद बनी है।

  62. khursheed said,

    August 25, 2009 at 7:27 am

    छंद 21 से 24 तक के वर्णन में जन्म स्थल लौमश के पच्छिम की ओर 1009 धनुष (1835 मीटर) की दूरी पर स्थित है। हिन्दू मान्यता के अनुसार लोमस की जगह ऋणमोचन घाटवाली जगह है। इस मान्यता के आधार पर राम जन्मभूमि सरयू नदी की तलहटी में ब्रह्मकुंड के पास बैठती है। दूसरा कथन है कि जन्मस्थान विनेश के उत्तर पूर्व में स्थित है। यह विनेश का स्थल ऋणमोचन से दक्षिण पश्चिम को है। यह स्थान भी वह नहीं बैठता जहां बाबरी मस्जिद बनी है।

  63. khursheed said,

    August 25, 2009 at 7:32 am

    कथित व स्वघोषित राष्ट्रवादियों का कहना है कि इन खम्भों पर जो वनमाला का चित्रा अंकित है वह वैष्णव चिह्न है इसलिए ये खम्भे मंदिर के हैं किन्तु इसमें सच्चाई नहीं है। वैष्णव पंथ के विष्णु के शंख, चक्र, गदा और पदम चार प्रतीक हैं किन्तु इन चार में एक भी चिह्न इन खम्भों पर अंकित नहीं है।

  64. khursheed said,

    August 25, 2009 at 7:32 am

    कथित व स्वघोषित राष्ट्रवादियों का कहना है कि इन खम्भों पर जो वनमाला का चित्रा अंकित है वह वैष्णव चिह्न है इसलिए ये खम्भे मंदिर के हैं किन्तु इसमें सच्चाई नहीं है। वैष्णव पंथ के विष्णु के शंख, चक्र, गदा और पदम चार प्रतीक हैं किन्तु इन चार में एक भी चिह्न इन खम्भों पर अंकित नहीं है।

  65. khursheed said,

    August 25, 2009 at 7:34 am

    खुदाई से मस्जिद की ऊपर की खाइयां और मस्जिद के तल के ठीक नीचे कलईदार बर्तन मिले हैं। इससे भी यह निष्कर्ष निकलता है कि मस्जिद स्वतंत्रा जगह पर बनी थी। हिन्दू मंदिर में कलई के बर्तन मिलने का प्रश्न ही नहीं उठता। कलई मुसलमानों की निजी देन है। इससे एक बात सिद्ध होती है कि ये बर्तन जो 13-14वीं सदी के मिले हैं यहां 13-14वीं सदी में मुसलमान बस्ती का होना पाया जाता है और बाबर ने भी वहीं मस्जिद बनवायी थी जहां मुसलमान रहते होंगे, हिन्दू नहीं। खुदाई में कोई हिन्दू पात्रा नहीं निकला है। ये कलई के बर्तन मुसलमानों की बस्ती होने का संकेत देते हैं और मुसलमानों के लिए मस्जिद भी नमाज पढ़ने के लिए बनायी गयी होगी।
    इस प्रकार खम्भों, ईंटों, बर्तनों के आधार पर यह सिद्ध होता कि मस्जिद मंदिर तोड़ कर बनायी गयी है। अतः यहां कथित व स्वघोषित राष्ट्रवादियों ने जो बातें कही हैं उनमें एक भी यह सिद्ध नहीं करती कि आज जहां बाबरी मस्जिद बनी हुई है वहीं कभी कोई मंदिर था।

  66. khursheed said,

    August 25, 2009 at 7:34 am

    खुदाई से मस्जिद की ऊपर की खाइयां और मस्जिद के तल के ठीक नीचे कलईदार बर्तन मिले हैं। इससे भी यह निष्कर्ष निकलता है कि मस्जिद स्वतंत्रा जगह पर बनी थी। हिन्दू मंदिर में कलई के बर्तन मिलने का प्रश्न ही नहीं उठता। कलई मुसलमानों की निजी देन है। इससे एक बात सिद्ध होती है कि ये बर्तन जो 13-14वीं सदी के मिले हैं यहां 13-14वीं सदी में मुसलमान बस्ती का होना पाया जाता है और बाबर ने भी वहीं मस्जिद बनवायी थी जहां मुसलमान रहते होंगे, हिन्दू नहीं। खुदाई में कोई हिन्दू पात्रा नहीं निकला है। ये कलई के बर्तन मुसलमानों की बस्ती होने का संकेत देते हैं और मुसलमानों के लिए मस्जिद भी नमाज पढ़ने के लिए बनायी गयी होगी। इस प्रकार खम्भों, ईंटों, बर्तनों के आधार पर यह सिद्ध होता कि मस्जिद मंदिर तोड़ कर बनायी गयी है। अतः यहां कथित व स्वघोषित राष्ट्रवादियों ने जो बातें कही हैं उनमें एक भी यह सिद्ध नहीं करती कि आज जहां बाबरी मस्जिद बनी हुई है वहीं कभी कोई मंदिर था।

  67. khursheed said,

    August 25, 2009 at 7:38 am

    कथित व स्वघोषित राष्ट्रवादियों ने अपने साहित्य और किसी धर्मग्रंथ से यह सिद्ध नहीं कर सकी है अयोध्या में बाबरी मस्जिद, मंदिर तोड़ कर बनायी गयी हो। परिषद यह कह सकती है कि हमारे धर्मग्रंथ पहले के लिखे गये हैं और बाबर से पहले लिखे गये हैं उनमें बाबरी मस्जिद का वर्णन हो ही नहीं सकता है। यदि यहां कोई राम का मंदिर होता तो उसका वर्णन तो होता जिससे यह सिद्ध किया जा सके कि अयोध्या में राम जन्मस्थल पर कोई मंदिर था। जब शास्त्रा, पुराण, धर्म सूत्रा और स्मृति ग्रंथ में ऐसा कोई वर्णन नहीं है जिससे यह सिद्ध होता है कि राम की जन्मस्थली पर कोई मंदिर बनाया गया था और मंदिर होने का भी कोई वर्णन नहीं है तो किसने बनवाया, कब बनवाया, कैसे बनवाया और क्यों बनवाया, सोचना ही व्यर्थ है।

  68. khursheed said,

    August 25, 2009 at 7:38 am

    कथित व स्वघोषित राष्ट्रवादियों ने अपने साहित्य और किसी धर्मग्रंथ से यह सिद्ध नहीं कर सकी है अयोध्या में बाबरी मस्जिद, मंदिर तोड़ कर बनायी गयी हो। परिषद यह कह सकती है कि हमारे धर्मग्रंथ पहले के लिखे गये हैं और बाबर से पहले लिखे गये हैं उनमें बाबरी मस्जिद का वर्णन हो ही नहीं सकता है। यदि यहां कोई राम का मंदिर होता तो उसका वर्णन तो होता जिससे यह सिद्ध किया जा सके कि अयोध्या में राम जन्मस्थल पर कोई मंदिर था। जब शास्त्रा, पुराण, धर्म सूत्रा और स्मृति ग्रंथ में ऐसा कोई वर्णन नहीं है जिससे यह सिद्ध होता है कि राम की जन्मस्थली पर कोई मंदिर बनाया गया था और मंदिर होने का भी कोई वर्णन नहीं है तो किसने बनवाया, कब बनवाया, कैसे बनवाया और क्यों बनवाया, सोचना ही व्यर्थ है।

  69. khursheed said,

    August 25, 2009 at 7:40 am

    बाबर की तीसरी पीढ़ी में अकबर आता है। अकबर के जमाने में तुलसी पैदा होते हैं। वे राम के अनन्य भक्त बनते हैं और रामचरित मानस की रचना अवधी भाषा में करते हैं। यदि तुलसी के आराध्य राम की जन्मस्थली ध्वस्त करके मस्जिद बनायी गयी होती तो क्या तुलसी चुप रहते। तुलसीदास ने अयोध्या को पूज्य स्थली ही नहीं माना है। उन्होंने प्रयाग को पूज्य माना है अयोध्या को नहीं। तुलसी 17वीं सदी में पैदा हुए थे तब ऐसी कहीं कोई चर्चा नहीं थी जहां बाबरी मस्जिद है वहां पहले कभी कोई राम मंदिर था। आइने अकबरी में अयोध्या का वर्णन है किन्तु अबुल फजल ने भी राम जन्मभूमि पर बने मंदिर को खसा कर मस्जिद बनवायी, का कोई वर्णन नहीं किया है। बाबर के डेढ़ सौ दो सौ साल बाद ही अकबर का काल आ जाता है और अकबर के काल में ही तुलसी और अबुल फजल काव्य रचना करते हैं तो हिन्दू और मुसलमान एक भी रचनाकार द्वारा राम के मंदिर को ढहा कर बाबरी मस्जिद बनवायी गयी का वर्णन नहीं है। इससे यही सिद्ध होता है कि बाबर ने मंदिर तुड़वा कर मस्जिद नहीं बनवायी थी।

  70. khursheed said,

    August 25, 2009 at 7:40 am

    बाबर की तीसरी पीढ़ी में अकबर आता है। अकबर के जमाने में तुलसी पैदा होते हैं। वे राम के अनन्य भक्त बनते हैं और रामचरित मानस की रचना अवधी भाषा में करते हैं। यदि तुलसी के आराध्य राम की जन्मस्थली ध्वस्त करके मस्जिद बनायी गयी होती तो क्या तुलसी चुप रहते। तुलसीदास ने अयोध्या को पूज्य स्थली ही नहीं माना है। उन्होंने प्रयाग को पूज्य माना है अयोध्या को नहीं। तुलसी 17वीं सदी में पैदा हुए थे तब ऐसी कहीं कोई चर्चा नहीं थी जहां बाबरी मस्जिद है वहां पहले कभी कोई राम मंदिर था। आइने अकबरी में अयोध्या का वर्णन है किन्तु अबुल फजल ने भी राम जन्मभूमि पर बने मंदिर को खसा कर मस्जिद बनवायी, का कोई वर्णन नहीं किया है। बाबर के डेढ़ सौ दो सौ साल बाद ही अकबर का काल आ जाता है और अकबर के काल में ही तुलसी और अबुल फजल काव्य रचना करते हैं तो हिन्दू और मुसलमान एक भी रचनाकार द्वारा राम के मंदिर को ढहा कर बाबरी मस्जिद बनवायी गयी का वर्णन नहीं है। इससे यही सिद्ध होता है कि बाबर ने मंदिर तुड़वा कर मस्जिद नहीं बनवायी थी।

  71. khursheed said,

    August 25, 2009 at 7:48 am

    17वीं सदी के प्रथम दशक में एक विलियम फ्लिंच ने अयोध्या में रह कर एक शोध लिखा था। उसने लिखा है कि यहां लोग राम का राज्य बताते हैं, उसे देवता मानते हैं। हिन्दू राम को अवतार मानते हैं। चार पांच लाख वर्ष पुरानी नहीं है। इसके किनारे ब्राह्मण रहते हैं जो रोज इसमें प्रातः नहाते हैं। यहां एक गहरी गुफा है। यह माना जाता है कि इस गुफा में राम की अस्थियां गड़ी हैं। बाहर से लोग यहां आते हैं और काले चावल यहां से ले जाते हैं। यहां से काफी सोना निकाला गया है। इस पुस्तक के वर्णन से राम के मरने का वर्णन मिलता है। जैसे स्कंद पुराण में स्वर्ग द्वार का वर्णन, जहां से राम स्वर्ग सिधारे परंतु इस ग्रंथ से भी राम यहां जन्मे थे उल्लेख नहीं मिलता है। इस ग्रंथ में भी तुलसी के मानस की भांति मंदिर का ध्वंस्त कर मस्जिद बनाने का कोई उल्लेख नहीं है। एक हिन्दू सुजान राय भंडारी नामक व्यक्ति के ग्रंथ ÷खुलासात ए तवारीख' में मथुरा और अयोध्या का जिक्र है। यह पुस्तक 1695-96 की मानी जाती है पर इसमें भी ऐसा कहीं वर्णन नहीं मिलता कि राम जन्मभूमि पर बने मंदिर को खसा कर बाबर ने कोई मस्जिद बनवायी। यह लेखक यहां एडम के बेटे शीश और पैगम्बर अयूब के मकबरों का वर्णन करता है पर राम के मंदिर का कोई जिक्र नहीं करता है।
    एक और हिन्दू लेखक राय चर्तुन ने अपनी पुस्तक में राम का वर्णन तो किया है पर राम के मंदिर का वर्णन नहीं किया है। यह पुस्तक 1759-60 में लिखी गयी है।
    इस प्रकार बाबर के समय बनी मस्जिद के निर्माण के दो सौ वर्ष बाद तक भारत के तुलसी, अवुल फजल तथा विदेशी फ्लिंच जैसे कलमकारों ने अयोध्या में राम के मंदिर का उल्लेख तक नहीं किया है। इससे यह स्पष्ट होता है विश्व हिन्दू परिषद के पास ऐसा कोई लिखित साक्ष्य नहीं है जो बाबरी मस्जिद के स्थान पर पहले मंदिर प्रमाणित कर सके। इसने जो पुरातात्विक साक्ष्य प्रस्तुत किये हैं वे बहुत लचर और संदिग्ध हैं।
    अभिलिखित साक्ष्य एक और उपलब्ध है। मस्जिद निर्माण के बाद मस्जिद पर फारसी में खोदे गये अभिलेख हैं जिनका वर्णन बाबरनामा में मिलता है। ए. एस. वेविरिज द्वारा बाबर नामा का जो अनुवाद किया गया है उस बाबरनामा में शासक मीर बाकी का उल्लेख है। बाबरनामा में बाबरी मस्जिद और उस पर खुदे अभिलेखों का वर्णन है पर कहीं पर ऐसा नहीं प्रतीत होता कि कहीं भी मंदिर खसाकर मस्जिद बनवायी गयी हो। इस प्रकार खुदाई से प्राप्त साक्ष्य में मस्जिद में बने खम्भों के पुरातत्वीय साक्ष्य और अभिलेखों के साक्ष्य किसी से यह प्रमाणित नहीं होता है कि मंदिर खसा कर मस्जिद बनायी गयी थी। जो भी साक्ष्य अब तक प्राप्त हुआ है उससे निम्न निष्कर्ष निकलते हैं।
    1. ग्रंथों के आधार पर ऐसा प्रमाणित होता है कि 18वीं सदी से पूर्व अयोध्या में राम जन्मभूमि के रूप में कोई स्थल पूज्यनीय नहीं था।
    2. पुरातत्व और मस्जिद पर खुदे अभिलेखों के आधार पर यह कहीं सिद्ध नहीं होता कि बाबरी मस्जिद के स्थान पर मंदिर था और मंदिर ध्वस्त कर मस्जिद बनायी गयी।
    3. सम्पूर्ण साहित्य के आधार पर यह सिद्ध होता है कि 19वीं सदी के आरम्भ तक राम मंदिर का कोई दावा नहीं था। यह चर्चा 1850 के दशक में प्रारम्भ हुई जब सीता रसोई को ध्वस्त करने की मात्रा बात उठी थी।
    उ+पर के सारे विवेचन से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद राम मंदिर को ध्वस्त कर बनायी गयी है, का बवेला व्यर्थ का ढकोसला है और देश के विरुद्ध एक सोची समझी साजिश है। सोलहवीं सदी से लेकर उन्नीसवीं सदी तक तीन सौ चार सौ वर्षों तक जिसका मस्जिद बनने के बाद में कोई प्रमाण न मिलता हो ऐसा कोई बिन्दु खडा कर देना सोची समझी साजिश ही है और कुछ नहीं। आज मुसलमानों के विरुद्ध उनको नष्ट करने, उनका ईमान भ्रष्ट करने की साजिशें चली जा रही हैं वरना यह कौन बर्दाश्त कर लेगा कि जो मस्जिद सोलहवीं सदी में बनी हो उसे ध्वस्त करने का खिलवाड़ किया जाय।
    इसलिए मेरा मानना है कि जिन्हें देश से प्यार है, जिन्हें इंसानियत से प्यार है उन्हें मंदिर मस्जिद के झगडे को समाप्त करना चाहिए और जो कुछ पाखंडी, स्वार्थी और धूर्त यह बवंडर फैला रहे हैं स्वयं हिन्दू समाज के प्रबुद्ध लोगों को ऐसी साम्प्रदायिकता फैलाने के कारण गला दबा देना चाहिए और मंदिर मस्जिद के प्रकरण को समाप्त कर देना चाहिए।

  72. khursheed said,

    August 25, 2009 at 7:48 am

    17वीं सदी के प्रथम दशक में एक विलियम फ्लिंच ने अयोध्या में रह कर एक शोध लिखा था। उसने लिखा है कि यहां लोग राम का राज्य बताते हैं, उसे देवता मानते हैं। हिन्दू राम को अवतार मानते हैं। चार पांच लाख वर्ष पुरानी नहीं है। इसके किनारे ब्राह्मण रहते हैं जो रोज इसमें प्रातः नहाते हैं। यहां एक गहरी गुफा है। यह माना जाता है कि इस गुफा में राम की अस्थियां गड़ी हैं। बाहर से लोग यहां आते हैं और काले चावल यहां से ले जाते हैं। यहां से काफी सोना निकाला गया है। इस पुस्तक के वर्णन से राम के मरने का वर्णन मिलता है। जैसे स्कंद पुराण में स्वर्ग द्वार का वर्णन, जहां से राम स्वर्ग सिधारे परंतु इस ग्रंथ से भी राम यहां जन्मे थे उल्लेख नहीं मिलता है। इस ग्रंथ में भी तुलसी के मानस की भांति मंदिर का ध्वंस्त कर मस्जिद बनाने का कोई उल्लेख नहीं है। एक हिन्दू सुजान राय भंडारी नामक व्यक्ति के ग्रंथ ÷खुलासात ए तवारीख' में मथुरा और अयोध्या का जिक्र है। यह पुस्तक 1695-96 की मानी जाती है पर इसमें भी ऐसा कहीं वर्णन नहीं मिलता कि राम जन्मभूमि पर बने मंदिर को खसा कर बाबर ने कोई मस्जिद बनवायी। यह लेखक यहां एडम के बेटे शीश और पैगम्बर अयूब के मकबरों का वर्णन करता है पर राम के मंदिर का कोई जिक्र नहीं करता है। एक और हिन्दू लेखक राय चर्तुन ने अपनी पुस्तक में राम का वर्णन तो किया है पर राम के मंदिर का वर्णन नहीं किया है। यह पुस्तक 1759-60 में लिखी गयी है।इस प्रकार बाबर के समय बनी मस्जिद के निर्माण के दो सौ वर्ष बाद तक भारत के तुलसी, अवुल फजल तथा विदेशी फ्लिंच जैसे कलमकारों ने अयोध्या में राम के मंदिर का उल्लेख तक नहीं किया है। इससे यह स्पष्ट होता है विश्व हिन्दू परिषद के पास ऐसा कोई लिखित साक्ष्य नहीं है जो बाबरी मस्जिद के स्थान पर पहले मंदिर प्रमाणित कर सके। इसने जो पुरातात्विक साक्ष्य प्रस्तुत किये हैं वे बहुत लचर और संदिग्ध हैं। अभिलिखित साक्ष्य एक और उपलब्ध है। मस्जिद निर्माण के बाद मस्जिद पर फारसी में खोदे गये अभिलेख हैं जिनका वर्णन बाबरनामा में मिलता है। ए. एस. वेविरिज द्वारा बाबर नामा का जो अनुवाद किया गया है उस बाबरनामा में शासक मीर बाकी का उल्लेख है। बाबरनामा में बाबरी मस्जिद और उस पर खुदे अभिलेखों का वर्णन है पर कहीं पर ऐसा नहीं प्रतीत होता कि कहीं भी मंदिर खसाकर मस्जिद बनवायी गयी हो। इस प्रकार खुदाई से प्राप्त साक्ष्य में मस्जिद में बने खम्भों के पुरातत्वीय साक्ष्य और अभिलेखों के साक्ष्य किसी से यह प्रमाणित नहीं होता है कि मंदिर खसा कर मस्जिद बनायी गयी थी। जो भी साक्ष्य अब तक प्राप्त हुआ है उससे निम्न निष्कर्ष निकलते हैं। 1. ग्रंथों के आधार पर ऐसा प्रमाणित होता है कि 18वीं सदी से पूर्व अयोध्या में राम जन्मभूमि के रूप में कोई स्थल पूज्यनीय नहीं था। 2. पुरातत्व और मस्जिद पर खुदे अभिलेखों के आधार पर यह कहीं सिद्ध नहीं होता कि बाबरी मस्जिद के स्थान पर मंदिर था और मंदिर ध्वस्त कर मस्जिद बनायी गयी। 3. सम्पूर्ण साहित्य के आधार पर यह सिद्ध होता है कि 19वीं सदी के आरम्भ तक राम मंदिर का कोई दावा नहीं था। यह चर्चा 1850 के दशक में प्रारम्भ हुई जब सीता रसोई को ध्वस्त करने की मात्रा बात उठी थी। उ+पर के सारे विवेचन से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद राम मंदिर को ध्वस्त कर बनायी गयी है, का बवेला व्यर्थ का ढकोसला है और देश के विरुद्ध एक सोची समझी साजिश है। सोलहवीं सदी से लेकर उन्नीसवीं सदी तक तीन सौ चार सौ वर्षों तक जिसका मस्जिद बनने के बाद में कोई प्रमाण न मिलता हो ऐसा कोई बिन्दु खडा कर देना सोची समझी साजिश ही है और कुछ नहीं। आज मुसलमानों के विरुद्ध उनको नष्ट करने, उनका ईमान भ्रष्ट करने की साजिशें चली जा रही हैं वरना यह कौन बर्दाश्त कर लेगा कि जो मस्जिद सोलहवीं सदी में बनी हो उसे ध्वस्त करने का खिलवाड़ किया जाय। इसलिए मेरा मानना है कि जिन्हें देश से प्यार है, जिन्हें इंसानियत से प्यार है उन्हें मंदिर मस्जिद के झगडे को समाप्त करना चाहिए और जो कुछ पाखंडी, स्वार्थी और धूर्त यह बवंडर फैला रहे हैं स्वयं हिन्दू समाज के प्रबुद्ध लोगों को ऐसी साम्प्रदायिकता फैलाने के कारण गला दबा देना चाहिए और मंदिर मस्जिद के प्रकरण को समाप्त कर देना चाहिए।

  73. Suresh Chiplunkar said,

    August 25, 2009 at 8:30 am

    खुर्शीद भाई,
    जब इतने लम्बे-लम्बे कमेंट कर लिये हैं तो जरा यह भी पढ़ लेते, ये आर्कियोलॉजिकल सर्वे की रिपोर्ट और विकीपीडिया पर विभिन्न स्रोत दिये हुए हैं (अब ये मत कहना कि आर्कियोलॉजिकल सर्वे भी संघ की जेब में है, क्योंकि उधर का ठेका तो वामपंथियों ने लिया हुआ है)…

    1) http://en.wikipedia.org/wiki/Archaeology_of_Ayodhya

    2) http://en.wikipedia.org/wiki/Ram_Janmabhoomi

    3) http://www.hvk.org/articles/0302/196.html

    4) http://www.hvk.org/specialrepo/rjm/ch4.html

    इसमें साफ़ लिखा है कि 1940 से पहले यह मस्जिद "मस्जिद-ए-जन्मस्थान" कहलाती थी… (किसका जन्मस्थान?)

    5) http://en.wikipedia.org/wiki/Babri_Mosque

    इतिहास के निशान मिटाना इतना आसान नहीं होता भाई…। कम से कम ये तो मानते हो ना कि वैदिक संस्कृति, इस्लाम से बहुत-बहुत पहले की है? या यह भी नहीं मानते?

  74. August 25, 2009 at 8:30 am

    खुर्शीद भाई, जब इतने लम्बे-लम्बे कमेंट कर लिये हैं तो जरा यह भी पढ़ लेते, ये आर्कियोलॉजिकल सर्वे की रिपोर्ट और विकीपीडिया पर विभिन्न स्रोत दिये हुए हैं (अब ये मत कहना कि आर्कियोलॉजिकल सर्वे भी संघ की जेब में है, क्योंकि उधर का ठेका तो वामपंथियों ने लिया हुआ है)… 1) http://en.wikipedia.org/wiki/Archaeology_of_Ayodhya2) http://en.wikipedia.org/wiki/Ram_Janmabhoomi3) http://www.hvk.org/articles/0302/196.html 4) http://www.hvk.org/specialrepo/rjm/ch4.htmlइसमें साफ़ लिखा है कि 1940 से पहले यह मस्जिद "मस्जिद-ए-जन्मस्थान" कहलाती थी… (किसका जन्मस्थान?) 5) http://en.wikipedia.org/wiki/Babri_Mosque इतिहास के निशान मिटाना इतना आसान नहीं होता भाई…। कम से कम ये तो मानते हो ना कि वैदिक संस्कृति, इस्लाम से बहुत-बहुत पहले की है? या यह भी नहीं मानते?

  75. Alam said,

    August 25, 2009 at 8:50 am

    Arye bhai khursheed kam se kam razaan ke mahine me to jhoot mat bol sale,jahnnum naseeb hoga.

  76. Alam said,

    August 25, 2009 at 8:50 am

    Arye bhai khursheed kam se kam razaan ke mahine me to jhoot mat bol sale,jahnnum naseeb hoga.

  77. khursheed said,

    August 25, 2009 at 11:30 am

    सुरेश भाई आर्कियोलॉजिकल सर्वे की रिपोर्ट भाजपा की सरकार के दौरान आई थी. जिन लोगों ने कानून को ताक पर रखकर मस्जिद गिराई, उन्ही की सरकार की रिपोर्ट कितनी सच्ची होगी ये अगर आप दूध पीते बच्चे से भी पूछे तो जवाब मिल जायेगा. रही बात वैदिक संस्कृति की तो कोई हिन्दू वेदों पर नहीं चलता.

  78. khursheed said,

    August 25, 2009 at 11:30 am

    सुरेश भाई आर्कियोलॉजिकल सर्वे की रिपोर्ट भाजपा की सरकार के दौरान आई थी. जिन लोगों ने कानून को ताक पर रखकर मस्जिद गिराई, उन्ही की सरकार की रिपोर्ट कितनी सच्ची होगी ये अगर आप दूध पीते बच्चे से भी पूछे तो जवाब मिल जायेगा. रही बात वैदिक संस्कृति की तो कोई हिन्दू वेदों पर नहीं चलता.

  79. स्वच्छ संदेश: हिन्दोस्तान की आवाज़ said,

    August 25, 2009 at 12:03 pm

    भारत में परम्परागत रूप से इतिहास के प्रामाणिक स्रोतों के अभाव में पौराणिक मिथकीय कथाओं और शास्त्राो ने ही इतिहास की भूमिका का निर्वाह किया है…

    8 वीं सदी में भारत आने वाले एक यात्राी अमारी डी राएनकोर्ट ने अपनी किताब ÷ सोल ऑफ इण्डिया' में लिखा :

    ÷÷ आर्य भारत में कोई स्मृति नहीं क्योंकि उसका ध्यान शाश्वतता पर है, न कि समय पर… भारतीयों के लिए आध्यात्मिक वास्तविकता ÷ स्थान' है न कि समय, प्रकृति है न कि इतिहास।''

    अच्छी समझदारी रखने वाला कोई भी इंसान बिना इतिहास की प्रामाणिक जानकारी जुटाए प्राचीन ग्रन्थों एवं कृतियों को पढ़ कर लोगों की प्रवृत्तियों को जान सकता है.

  80. August 25, 2009 at 12:03 pm

    भारत में परम्परागत रूप से इतिहास के प्रामाणिक स्रोतों के अभाव में पौराणिक मिथकीय कथाओं और शास्त्राो ने ही इतिहास की भूमिका का निर्वाह किया है…8 वीं सदी में भारत आने वाले एक यात्राी अमारी डी राएनकोर्ट ने अपनी किताब ÷ सोल ऑफ इण्डिया' में लिखा :÷÷ आर्य भारत में कोई स्मृति नहीं क्योंकि उसका ध्यान शाश्वतता पर है, न कि समय पर… भारतीयों के लिए आध्यात्मिक वास्तविकता ÷ स्थान' है न कि समय, प्रकृति है न कि इतिहास।''अच्छी समझदारी रखने वाला कोई भी इंसान बिना इतिहास की प्रामाणिक जानकारी जुटाए प्राचीन ग्रन्थों एवं कृतियों को पढ़ कर लोगों की प्रवृत्तियों को जान सकता है.

  81. स्वच्छ संदेश: हिन्दोस्तान की आवाज़ said,

    August 25, 2009 at 12:05 pm

    अवतारवाद की पौराणिक कल्पना शतरंज की तरह ही ऐसा दिमागी खेल है जिसमें कभी महावीर को, कभी बुद्ध को तो कभी कृष्ण को कारगर मोहरे के रूप में इस्तेमाल किया गया है। इस खेल की विशिष्टता यह है कि मोहरे चाहे काले हों या सफेद, जीत हमेशा ईश्वर की ही होती है। वस्तुतः यह वर्चस्व और प्रतिरोध की संस्कृति के बीच शह और मात का ऐसा खेल है जो धरती की पुकार पर ईश्वर और असुरों के बीच खेला जाता है और ÷रिमोट कंटᆭोल' गगन विहारी देवताओं के हाथ में होता है। आकाश से फूल बरसा कर विजय की घोषणा वही करते हैं। इस खेल में लोक की भूमिका नगण्य है। इसका सुसंगत विकास तुलसीदास के रामचरित मानस में देखने को मिलता है जहां सभी मोहरों को मात देने वाला कृष्ण का शक्तिशाली मोहरा राम में रूपांतरित हो गया है और टीकाकारों की चिन्ता से चिन्तित गोस्वामी तुलसीदास ने बड़ी चतुराई के साथ इस खेल में लोक को भी शामिल कर लिया है।

  82. August 25, 2009 at 12:05 pm

    अवतारवाद की पौराणिक कल्पना शतरंज की तरह ही ऐसा दिमागी खेल है जिसमें कभी महावीर को, कभी बुद्ध को तो कभी कृष्ण को कारगर मोहरे के रूप में इस्तेमाल किया गया है। इस खेल की विशिष्टता यह है कि मोहरे चाहे काले हों या सफेद, जीत हमेशा ईश्वर की ही होती है। वस्तुतः यह वर्चस्व और प्रतिरोध की संस्कृति के बीच शह और मात का ऐसा खेल है जो धरती की पुकार पर ईश्वर और असुरों के बीच खेला जाता है और ÷रिमोट कंटᆭोल' गगन विहारी देवताओं के हाथ में होता है। आकाश से फूल बरसा कर विजय की घोषणा वही करते हैं। इस खेल में लोक की भूमिका नगण्य है। इसका सुसंगत विकास तुलसीदास के रामचरित मानस में देखने को मिलता है जहां सभी मोहरों को मात देने वाला कृष्ण का शक्तिशाली मोहरा राम में रूपांतरित हो गया है और टीकाकारों की चिन्ता से चिन्तित गोस्वामी तुलसीदास ने बड़ी चतुराई के साथ इस खेल में लोक को भी शामिल कर लिया है।

  83. स्वच्छ संदेश: हिन्दोस्तान की आवाज़ said,

    August 25, 2009 at 12:10 pm

    साम्प्रदायिकतावाद परम्परावाद की जड़ से निकलता है। परम्पराओं के प्रति मोह साम्प्रदायिकता को जन्म देता है। यह सही है कि परम्परा में कुछ ऐसे जीवन तत्व होते हैं जो सामाजिक चेतना के अंग होते हैं पर इन परम्पराओं को इतना स्वार्थपरक बना दिया गया है कि इनसे अहित अधिक होता है और हित कम। इसलिए परम्परा का पीछा करना अब औचित्यहीन रह गया है।

  84. August 25, 2009 at 12:10 pm

    साम्प्रदायिकतावाद परम्परावाद की जड़ से निकलता है। परम्पराओं के प्रति मोह साम्प्रदायिकता को जन्म देता है। यह सही है कि परम्परा में कुछ ऐसे जीवन तत्व होते हैं जो सामाजिक चेतना के अंग होते हैं पर इन परम्पराओं को इतना स्वार्थपरक बना दिया गया है कि इनसे अहित अधिक होता है और हित कम। इसलिए परम्परा का पीछा करना अब औचित्यहीन रह गया है।

  85. स्वच्छ संदेश: हिन्दोस्तान की आवाज़ said,

    August 25, 2009 at 12:12 pm

    खोजने पर नये तथ्य प्रकट हुए हैं कि भारत का इतिहास अंग्रेजों ने कम और हिन्दू लेखकों ने अधिक झूठे तथ्य घुसेड़ कर साम्प्रदायिक बनाया है और मुसलमानों के प्रति विषवमन किया है। विशम्भर नाथ पांडे पूर्व राज्यपाल उड़ीसा ने लिखा कि वे जब टीपू सुल्तान पर शोध कर रहे थे तो एक छात्रा के पास पुस्तक देखी, जिसमें लिखा था कि टीपू सुल्तान ने तीन हजार ब्राह्मणों को बलात इस्लाम धर्म कुबूल करने को विवश किया था और तीन हजार ब्राह्मणों ने आत्महत्या कर ली थी। यह लेख एक हिन्दू लेखक पंडित हरप्रसाद शास्त्राी का लिखा हुआ था। विशम्भर दयाल पांडे ने पं. हर प्रसाद से लिख कर पूछा कि यह कहां पर लिखा है तो हर प्रसाद ने कहा कि यह मैसूर के गजट में लिखा है पर गजट देखा गया, तो गजट में यह तथ्य कहीं नहीं पाया गया। इस प्रकार हिन्दू लेखकों ने मुसलमान बादशाहों के बारे में वैमनश्यतावश बहुत कुछ झूठ लिखा है। यही औरंगजेब के बारे में भी है। टीपू के बारे में तो यह प्रसिद्ध है कि उसका सेनापति ब्राह्मण था, वह 150 मंदिरों को प्रतिवर्ष अनुदान देता था, और श्रृंगेरी के जगतगुरु को बहुत मान्यता देता था। इससे साबित होता है कि इतिहास जानबूझ कर अंग्रेज लेखकों ने नहीं हिन्दू लेखकों ने ही झूठ लिखा है।
    देश का विभाजन हुआ इसके लिए मुसलमान दोषी नहीं है। यदि गहराई से खोज की जाय तो तथ्य यही सामने आते हैं कि इसकी योजना तो सावरकर जैसे हिन्दू नेताओं के घरों में बनायी गयी थी। इस प्रकार मुसलमानों को दोषी ठहराना नितांत गलत है।

  86. August 25, 2009 at 12:12 pm

    खोजने पर नये तथ्य प्रकट हुए हैं कि भारत का इतिहास अंग्रेजों ने कम और हिन्दू लेखकों ने अधिक झूठे तथ्य घुसेड़ कर साम्प्रदायिक बनाया है और मुसलमानों के प्रति विषवमन किया है। विशम्भर नाथ पांडे पूर्व राज्यपाल उड़ीसा ने लिखा कि वे जब टीपू सुल्तान पर शोध कर रहे थे तो एक छात्रा के पास पुस्तक देखी, जिसमें लिखा था कि टीपू सुल्तान ने तीन हजार ब्राह्मणों को बलात इस्लाम धर्म कुबूल करने को विवश किया था और तीन हजार ब्राह्मणों ने आत्महत्या कर ली थी। यह लेख एक हिन्दू लेखक पंडित हरप्रसाद शास्त्राी का लिखा हुआ था। विशम्भर दयाल पांडे ने पं. हर प्रसाद से लिख कर पूछा कि यह कहां पर लिखा है तो हर प्रसाद ने कहा कि यह मैसूर के गजट में लिखा है पर गजट देखा गया, तो गजट में यह तथ्य कहीं नहीं पाया गया। इस प्रकार हिन्दू लेखकों ने मुसलमान बादशाहों के बारे में वैमनश्यतावश बहुत कुछ झूठ लिखा है। यही औरंगजेब के बारे में भी है। टीपू के बारे में तो यह प्रसिद्ध है कि उसका सेनापति ब्राह्मण था, वह 150 मंदिरों को प्रतिवर्ष अनुदान देता था, और श्रृंगेरी के जगतगुरु को बहुत मान्यता देता था। इससे साबित होता है कि इतिहास जानबूझ कर अंग्रेज लेखकों ने नहीं हिन्दू लेखकों ने ही झूठ लिखा है। देश का विभाजन हुआ इसके लिए मुसलमान दोषी नहीं है। यदि गहराई से खोज की जाय तो तथ्य यही सामने आते हैं कि इसकी योजना तो सावरकर जैसे हिन्दू नेताओं के घरों में बनायी गयी थी। इस प्रकार मुसलमानों को दोषी ठहराना नितांत गलत है।

  87. स्वच्छ संदेश: हिन्दोस्तान की आवाज़ said,

    August 25, 2009 at 12:13 pm

    @Sanjay Baboo,

    मुसलामानों ने कोई मंदिर नहीं तुड़वाया बल्कि अनेक उदाहरण ऐसे भी मिल जायेंगे जहां स्वयं हिन्दू राजाओं द्वारा मंदिरों को ध्वस्त कराया गया था। कश्मीर के राजा हर्ष ने तो अनेक मूर्तियों को तुड़वाया था। मौर्य शासकों ने तो तमाम हिन्दू मूर्तियों को पिघला कर सिक्कों के लिए धातु इकट्ठी करायी थी।

  88. August 25, 2009 at 12:13 pm

    @Sanjay Baboo,मुसलामानों ने कोई मंदिर नहीं तुड़वाया बल्कि अनेक उदाहरण ऐसे भी मिल जायेंगे जहां स्वयं हिन्दू राजाओं द्वारा मंदिरों को ध्वस्त कराया गया था। कश्मीर के राजा हर्ष ने तो अनेक मूर्तियों को तुड़वाया था। मौर्य शासकों ने तो तमाम हिन्दू मूर्तियों को पिघला कर सिक्कों के लिए धातु इकट्ठी करायी थी।

  89. स्वच्छ संदेश: हिन्दोस्तान की आवाज़ said,

    August 25, 2009 at 12:14 pm

    हिन्दू समाज के उच्च तबकों (जातियों) में श्रेष्ठता का एक महारोग व्याप्त है। धर्म, जाति और लिंग सम्बंधी श्रेष्ठता की मानसिकता भी बहुत कुछ हमारी साम्प्रदायिक भावना को उभारने के लिए उत्तरदायी है। श्रेष्ठता की मानसिकता दूसरे के महत्व को स्वीकार करने की गुंजाइश समाप्त कर देता है और जब तथाकथित श्रेष्ठ तबके के अंह को कहीं ठेस पहुंचती है तो वह साम्प्रदायिकता पर उतर आता है। यह एक सामंती मनोवृत्ति है जो समानता की भावना के विपरीत है। यह सामंतवादी दर्शन हिन्दू समाज की आधारशिला है। इसमें सहनशीलता की कोई गुंजाइश नहीं है। आज अनेक हत्याकांड केवल श्रेष्ठता की सामंती भावना के परिणामस्वरूप ही उ+ंचे हिन्दुओं द्वारा दलितों के किये जाते हैं। ये अपने धर्म को श्रेष्ठ मानते हैं इसलिए मुसलमानों की हत्याएं करते हैं। इस प्रकार सामंतवादिता और श्रेष्ठता की भावना ने सहनशीलता समाप्त कर हिन्दू समाज में जड़ता पैदा कर दी है। इस जड़ता को जब कोई कुरेदता है तो हिंसक साम्प्रदायिकता खड़ी हो जाती है। सन्‌ 1955 से लेकर 1989 तक अस्पृश्यता अपराध अधिनियम और अनुसूचित जाति अत्याचार अपराध अधिनियम इसी कारण असफल हो गये

  90. August 25, 2009 at 12:14 pm

    हिन्दू समाज के उच्च तबकों (जातियों) में श्रेष्ठता का एक महारोग व्याप्त है। धर्म, जाति और लिंग सम्बंधी श्रेष्ठता की मानसिकता भी बहुत कुछ हमारी साम्प्रदायिक भावना को उभारने के लिए उत्तरदायी है। श्रेष्ठता की मानसिकता दूसरे के महत्व को स्वीकार करने की गुंजाइश समाप्त कर देता है और जब तथाकथित श्रेष्ठ तबके के अंह को कहीं ठेस पहुंचती है तो वह साम्प्रदायिकता पर उतर आता है। यह एक सामंती मनोवृत्ति है जो समानता की भावना के विपरीत है। यह सामंतवादी दर्शन हिन्दू समाज की आधारशिला है। इसमें सहनशीलता की कोई गुंजाइश नहीं है। आज अनेक हत्याकांड केवल श्रेष्ठता की सामंती भावना के परिणामस्वरूप ही उ+ंचे हिन्दुओं द्वारा दलितों के किये जाते हैं। ये अपने धर्म को श्रेष्ठ मानते हैं इसलिए मुसलमानों की हत्याएं करते हैं। इस प्रकार सामंतवादिता और श्रेष्ठता की भावना ने सहनशीलता समाप्त कर हिन्दू समाज में जड़ता पैदा कर दी है। इस जड़ता को जब कोई कुरेदता है तो हिंसक साम्प्रदायिकता खड़ी हो जाती है। सन्‌ 1955 से लेकर 1989 तक अस्पृश्यता अपराध अधिनियम और अनुसूचित जाति अत्याचार अपराध अधिनियम इसी कारण असफल हो गये

  91. Rakesh Singh - राकेश सिंह said,

    August 25, 2009 at 3:51 pm

    सुरेश भाई देखा आपने, सलीम भाई कह रहे हैं :
    " अवतारवाद की पौराणिक कल्पना शतरंज की तरह ही ऐसा दिमागी खेल है जिसमें कभी महावीर को, कभी बुद्ध को तो कभी कृष्ण को कारगर मोहरे के रूप में इस्तेमाल किया गया है। " वो अपने साईट पे भोपू लगा कर कह रहे हैं की मुहम्मद साहब ही हिन्दू ओं के कल्की अवतार हैं और यहाँ अवतारवाद को पौराणिक कल्पना | अब समझ मैं आया की कुछ लोगों के लिए दोग्लेपनी की कोई सीमा नहीं होती |

  92. August 25, 2009 at 3:51 pm

    सुरेश भाई देखा आपने, सलीम भाई कह रहे हैं :" अवतारवाद की पौराणिक कल्पना शतरंज की तरह ही ऐसा दिमागी खेल है जिसमें कभी महावीर को, कभी बुद्ध को तो कभी कृष्ण को कारगर मोहरे के रूप में इस्तेमाल किया गया है। " वो अपने साईट पे भोपू लगा कर कह रहे हैं की मुहम्मद साहब ही हिन्दू ओं के कल्की अवतार हैं और यहाँ अवतारवाद को पौराणिक कल्पना | अब समझ मैं आया की कुछ लोगों के लिए दोग्लेपनी की कोई सीमा नहीं होती |

  93. kmmishra said,

    August 25, 2009 at 3:54 pm

    खुर्शीद मियां अगर ए एस आई की रिपोर्ट भजपा के शासन काल में आयी थी और उस पर आप संदेह जाहिर कर रहे हैं तब आपने जो इतिहास ऊपर दिया है उस पर हम काहे न संदेह जाहिर करें जबकि ये तो मानी हुयी बात है कि वो इतिहास गैर भारतीय कम्युनिस्टों ने लिखा है। पहली बात ।
    2003 – 2004 के दौरान ए एस आई को अयोध्या में खुदाई के दौरान इतनी चीजें मिली थीं जिससे वहां पर एक नहीं अलग अलग काल खण्ड में कई मंदिरों की बात सामने आती है । कृपया करके उस खुदाई का विवरण पड़े ।

  94. kmmishra said,

    August 25, 2009 at 3:54 pm

    खुर्शीद मियां अगर ए एस आई की रिपोर्ट भजपा के शासन काल में आयी थी और उस पर आप संदेह जाहिर कर रहे हैं तब आपने जो इतिहास ऊपर दिया है उस पर हम काहे न संदेह जाहिर करें जबकि ये तो मानी हुयी बात है कि वो इतिहास गैर भारतीय कम्युनिस्टों ने लिखा है। पहली बात । 2003 – 2004 के दौरान ए एस आई को अयोध्या में खुदाई के दौरान इतनी चीजें मिली थीं जिससे वहां पर एक नहीं अलग अलग काल खण्ड में कई मंदिरों की बात सामने आती है । कृपया करके उस खुदाई का विवरण पड़े ।

  95. Rakesh Singh - राकेश सिंह said,

    August 25, 2009 at 3:55 pm

    सुरेश भाई सलीम, खुर्शीद और उमर भाई को कितना भी प्रमाण दे दीजिये ये नहीं माननेवाले | इनको तो जाकिर नायक जैसे लोग जो बोलेंगे वही सही बाकि सब गलत और काफिर |

    भैंस की आगे बीन बजाये भैंस रहे पगुराय |

  96. August 25, 2009 at 3:55 pm

    सुरेश भाई सलीम, खुर्शीद और उमर भाई को कितना भी प्रमाण दे दीजिये ये नहीं माननेवाले | इनको तो जाकिर नायक जैसे लोग जो बोलेंगे वही सही बाकि सब गलत और काफिर | भैंस की आगे बीन बजाये भैंस रहे पगुराय |

  97. haal-ahwaal said,

    August 25, 2009 at 6:00 pm

    @salim miya,
    हिन्दू समाज के उच्च तबकों (जातियों) में श्रेष्ठता का एक महारोग व्याप्त है। धर्म, जाति और लिंग सम्बंधी श्रेष्ठता की मानसिकता भी बहुत कुछ हमारी साम्प्रदायिक भावना को उभारने के लिए उत्तरदायी है। श्रेष्ठता की मानसिकता दूसरे के महत्व को स्वीकार करने की गुंजाइश समाप्त कर देता है………

    SHRESHTH-TA ke aise hi bhav se prerit hokar aap bhi to ISLAM ke prachar me lage huwe hain mahashay…

  98. haal-ahwaal said,

    August 25, 2009 at 6:00 pm

    @salim miya,हिन्दू समाज के उच्च तबकों (जातियों) में श्रेष्ठता का एक महारोग व्याप्त है। धर्म, जाति और लिंग सम्बंधी श्रेष्ठता की मानसिकता भी बहुत कुछ हमारी साम्प्रदायिक भावना को उभारने के लिए उत्तरदायी है। श्रेष्ठता की मानसिकता दूसरे के महत्व को स्वीकार करने की गुंजाइश समाप्त कर देता है………SHRESHTH-TA ke aise hi bhav se prerit hokar aap bhi to ISLAM ke prachar me lage huwe hain mahashay…

  99. काजल कुमार Kajal Kumar said,

    August 25, 2009 at 6:24 pm

    अफसोस, इतिहास को सब अपने अपने चश्मे से ही देखना चाहते हैं

  100. August 25, 2009 at 6:24 pm

    अफसोस, इतिहास को सब अपने अपने चश्मे से ही देखना चाहते हैं

  101. RAJ said,

    August 26, 2009 at 5:29 am

    @सलीम एवं खुर्सीद जी : सुरेश जी की बातों से कुछ लोगों की सहमति बन सकती है…अगर आप इस्लाम के मूल मे जाएँ तो दो बातें स्पष्ट है
    1. मूर्ति पूजा का विरोध .
    2. एकेश्वरवाद.

    कुछ विरोधी सवाल स्वतः उत्पन्न होते हैं.
    1. काबा मे स्वयं मोहम्मद साहब ने एक पत्थर को स्थापित किया .
    2. सारी इस्लामिक दुनिया उसी पत्थर के चारों ओर परिक्रमा करती है ….पहले उसे चूमती भी थी.
    3. इस पत्थर को नष्ट करने के अनेक प्रयास कई कबीलाईयों द्वारा हुए जिससे यह 7 टुकड़ों मे खंडित हो गया फिर भी इसे चाँदी के आवरण मे पुन: स्थापित किया गया .
    4. इस पत्थर के स्रोत के बारे मे भी अनेक धारणाएँ है.. जहाँ तक आस पास की पहाड़ियों पर इसके मिलने की संभावना है वो व्यर्थ है.यदि ऐसा होता तो आजतक दूसरा वैसा पत्थर कभी क्यों नही प्राप्त हुआ.
    5. इस्लाम की मूल विचारधारा के विरुद्ध ऐसी पूजा पद्यति की स्थापना का क्या उद्देश्य हो सकता है.

    पत्थर की उत्पत्ति के बारे में एक अनुमान ये भी है की कश्मीर यात्रा के दौरान मोहम्मद साहब को ये हिमालय से प्राप्त हुआ. यहाँ के आध्यात्मिक समाज से प्रभावित होकर वे इसे अपने साथ ले गए. जो की काफी हद तक संभव भी है. भारत में दीर्घ्व्रत्ताकर पत्थर हिमालय से बहकर गंगा नदी की घटी में बहुतायत से मिलते हैं.

  102. RAJ said,

    August 26, 2009 at 5:29 am

    @सलीम एवं खुर्सीद जी : सुरेश जी की बातों से कुछ लोगों की सहमति बन सकती है…अगर आप इस्लाम के मूल मे जाएँ तो दो बातें स्पष्ट है 1. मूर्ति पूजा का विरोध . 2. एकेश्वरवाद.कुछ विरोधी सवाल स्वतः उत्पन्न होते हैं.1. काबा मे स्वयं मोहम्मद साहब ने एक पत्थर को स्थापित किया .2. सारी इस्लामिक दुनिया उसी पत्थर के चारों ओर परिक्रमा करती है ….पहले उसे चूमती भी थी.3. इस पत्थर को नष्ट करने के अनेक प्रयास कई कबीलाईयों द्वारा हुए जिससे यह 7 टुकड़ों मे खंडित हो गया फिर भी इसे चाँदी के आवरण मे पुन: स्थापित किया गया .4. इस पत्थर के स्रोत के बारे मे भी अनेक धारणाएँ है.. जहाँ तक आस पास की पहाड़ियों पर इसके मिलने की संभावना है वो व्यर्थ है.यदि ऐसा होता तो आजतक दूसरा वैसा पत्थर कभी क्यों नही प्राप्त हुआ.5. इस्लाम की मूल विचारधारा के विरुद्ध ऐसी पूजा पद्यति की स्थापना का क्या उद्देश्य हो सकता है.पत्थर की उत्पत्ति के बारे में एक अनुमान ये भी है की कश्मीर यात्रा के दौरान मोहम्मद साहब को ये हिमालय से प्राप्त हुआ. यहाँ के आध्यात्मिक समाज से प्रभावित होकर वे इसे अपने साथ ले गए. जो की काफी हद तक संभव भी है. भारत में दीर्घ्व्रत्ताकर पत्थर हिमालय से बहकर गंगा नदी की घटी में बहुतायत से मिलते हैं.

  103. RAJ said,

    August 26, 2009 at 5:55 am

    प्रिय सलीम भाई,

    " इसका सुसंगत विकास तुलसीदास के रामचरित मानस में देखने को मिलता है जहां सभी मोहरों को मात देने वाला कृष्ण का शक्तिशाली मोहरा राम में रूपांतरित हो गया है और टीकाकारों की चिन्ता से चिन्तित गोस्वामी तुलसीदास ने बड़ी चतुराई के साथ इस खेल में लोक को भी शामिल कर लिया है।"

    उपरोक्त कमेन्ट में आपने जो बात कही है वो तभी सच हो सकती थी जब राम और कृष्ण के बीच कोई भेद होता.
    भक्ति काल के सभी कवियों ने कृष्ण की आरधना तो की लेकिन सभी के मन में राम को लेकर कोई भेद नहीं था.
    अनन्य कृष्ण भक्त मीराबाई की प्रभु श्री राम की आराधना से भी ये बात सही सिद्ध होती है.

    अनन्य भक्त गोस्वामी तुलसीदास जी को आप समझ ही न सके इस बात का बेहद अफ़सोस है.

    लोक तो सदैव से श्री राम की भक्ति में मग्न था……….
    ||श्री राम ||

  104. RAJ said,

    August 26, 2009 at 5:55 am

    प्रिय सलीम भाई," इसका सुसंगत विकास तुलसीदास के रामचरित मानस में देखने को मिलता है जहां सभी मोहरों को मात देने वाला कृष्ण का शक्तिशाली मोहरा राम में रूपांतरित हो गया है और टीकाकारों की चिन्ता से चिन्तित गोस्वामी तुलसीदास ने बड़ी चतुराई के साथ इस खेल में लोक को भी शामिल कर लिया है।"उपरोक्त कमेन्ट में आपने जो बात कही है वो तभी सच हो सकती थी जब राम और कृष्ण के बीच कोई भेद होता.भक्ति काल के सभी कवियों ने कृष्ण की आरधना तो की लेकिन सभी के मन में राम को लेकर कोई भेद नहीं था.अनन्य कृष्ण भक्त मीराबाई की प्रभु श्री राम की आराधना से भी ये बात सही सिद्ध होती है. अनन्य भक्त गोस्वामी तुलसीदास जी को आप समझ ही न सके इस बात का बेहद अफ़सोस है. लोक तो सदैव से श्री राम की भक्ति में मग्न था……….||श्री राम ||

  105. RAJ said,

    August 26, 2009 at 6:35 am

    प्रिय सलीम :
    "हिन्दू समाज के उच्च तबकों (जातियों) में श्रेष्ठता का एक महारोग व्याप्त है। धर्म, जाति और लिंग सम्बंधी श्रेष्ठता की मानसिकता भी बहुत कुछ हमारी साम्प्रदायिक भावना को उभारने के लिए उत्तरदायी है। श्रेष्ठता की मानसिकता दूसरे के महत्व को स्वीकार करने की गुंजाइश समाप्त कर देता है और जब तथाकथित श्रेष्ठ तबके के अंह को कहीं ठेस पहुंचती है तो वह साम्प्रदायिकता पर उतर आता है।"

    उपरोक्त कथन की पहली पंक्ति से सहमत हुआ जा सकता है. लेकिन बाद की साम्प्रदायिकता सम्बन्धी बात में दम नहीं है.

    अगर आप हिन्दू समाज के बारे में जाने तो एक बात स्पष्ट है की उसने इतनी सदियों बाद भी अपने आप को बचाए रखा मुस्लिम और क्रिश्चियन धर्मान्तरणकारियों से जानते हैं क्यों ?
    सनातन धर्म की सर्वव्यापकता और स्वयं को दूसरों के अनुरूप ढलने की कला के कारण.

    भारत पर हुए हर आक्रमण के साथ ही उन जातियों का सबसे अधिक धर्मान्तरण हुआ जो धर्म के प्रति कठोर थे.
    राजपूतों और ब्राह्मणों की अनेक मुस्लिम जातियां आपको उत्तर भारत में मिल जाएँगी.
    धर्मान्तरण से एक बहुत बड़ा असर समाज पर आया जो उन्हें मुस्लिमों से दूर ले गया अनेक हिन्दू राजाओं के द्वारा किये गए हमले इन्ही वजहों से थे….

    आज जो साम्प्रदायिकता समाज को खोखला कर रही है उसके जिम्मेदार एकेश्वर्वादिता का दर्शन देने वाले मुस्लिम और क्रिश्चियन धर्मान्तरणकरी हैं .

    जिसने भोले भले हिन्दुओं को भी अपना अस्तित्व बचाने के लिए कट्टरता के मार्ग पर चलने को मजबूर कर दिया. कोई हिन्दू जन्म से साम्प्रदायिक नहीं होता परिस्थितियां ही उसे मजबूर करती है अपना अस्तित्व बचाने के लिए….

    आपके द्वारा चलाया जा रहा इस्लामिक धर्मान्तरण अभियान सांप्रदायिक नहीं है क्या ? इससे तात्कालिक रूप से कुछ हिन्दुओं को बरगलाया जा सकता है लेकिन कुछ समय बाद उसका प्रभाव यही होगा की आपके आस पास रहने वाले लोग आपके प्रति विरोधी बन जायेंगे .

  106. RAJ said,

    August 26, 2009 at 6:35 am

    प्रिय सलीम :"हिन्दू समाज के उच्च तबकों (जातियों) में श्रेष्ठता का एक महारोग व्याप्त है। धर्म, जाति और लिंग सम्बंधी श्रेष्ठता की मानसिकता भी बहुत कुछ हमारी साम्प्रदायिक भावना को उभारने के लिए उत्तरदायी है। श्रेष्ठता की मानसिकता दूसरे के महत्व को स्वीकार करने की गुंजाइश समाप्त कर देता है और जब तथाकथित श्रेष्ठ तबके के अंह को कहीं ठेस पहुंचती है तो वह साम्प्रदायिकता पर उतर आता है।"उपरोक्त कथन की पहली पंक्ति से सहमत हुआ जा सकता है. लेकिन बाद की साम्प्रदायिकता सम्बन्धी बात में दम नहीं है.अगर आप हिन्दू समाज के बारे में जाने तो एक बात स्पष्ट है की उसने इतनी सदियों बाद भी अपने आप को बचाए रखा मुस्लिम और क्रिश्चियन धर्मान्तरणकारियों से जानते हैं क्यों ?सनातन धर्म की सर्वव्यापकता और स्वयं को दूसरों के अनुरूप ढलने की कला के कारण. भारत पर हुए हर आक्रमण के साथ ही उन जातियों का सबसे अधिक धर्मान्तरण हुआ जो धर्म के प्रति कठोर थे.राजपूतों और ब्राह्मणों की अनेक मुस्लिम जातियां आपको उत्तर भारत में मिल जाएँगी.धर्मान्तरण से एक बहुत बड़ा असर समाज पर आया जो उन्हें मुस्लिमों से दूर ले गया अनेक हिन्दू राजाओं के द्वारा किये गए हमले इन्ही वजहों से थे….आज जो साम्प्रदायिकता समाज को खोखला कर रही है उसके जिम्मेदार एकेश्वर्वादिता का दर्शन देने वाले मुस्लिम और क्रिश्चियन धर्मान्तरणकरी हैं . जिसने भोले भले हिन्दुओं को भी अपना अस्तित्व बचाने के लिए कट्टरता के मार्ग पर चलने को मजबूर कर दिया. कोई हिन्दू जन्म से साम्प्रदायिक नहीं होता परिस्थितियां ही उसे मजबूर करती है अपना अस्तित्व बचाने के लिए….आपके द्वारा चलाया जा रहा इस्लामिक धर्मान्तरण अभियान सांप्रदायिक नहीं है क्या ? इससे तात्कालिक रूप से कुछ हिन्दुओं को बरगलाया जा सकता है लेकिन कुछ समय बाद उसका प्रभाव यही होगा की आपके आस पास रहने वाले लोग आपके प्रति विरोधी बन जायेंगे .

  107. RAJ said,

    August 26, 2009 at 6:37 am

    स्वामी विवेकानंद जी की अमेरिका यात्रा के दौरान हजारों ईसाई हिन्दू धर्म अपनाने के लिए उनके पास आते थे लेकिन स्वामी जी ने उनसे यही कहा :

    "सनातन धर्म एक जीवन पद्यति है जिसे आप अपने जीवन में ढालें भले ही आप किसी भी धर्म को मानते हों"

    यदि वो अपनी प्रसिद्दि का फायेदा दुसरे मुस्लिम एवं ईसाई धर्मान्तरणकरियो की तरह उठाते तो क्या होता….
    ईसाई समुदाये भी हिन्दुओं के प्रति कठोरता अपना लेता और आज जो लाखों ईसाई स्वतः सनातन धर्म की और खींचे चले आते है वो भी हमें साम्प्रदायिक नजरिये से देखने लगते ….और इस धर्म और आध्यात्म की दुनिया से दूर हो जाते.

    जरूरी यह नहीं है की आप की संख्या कितनी है .
    जरूरी यह है की आप के अन्दर अच्छाई कितनी है .

  108. RAJ said,

    August 26, 2009 at 6:37 am

    स्वामी विवेकानंद जी की अमेरिका यात्रा के दौरान हजारों ईसाई हिन्दू धर्म अपनाने के लिए उनके पास आते थे लेकिन स्वामी जी ने उनसे यही कहा : "सनातन धर्म एक जीवन पद्यति है जिसे आप अपने जीवन में ढालें भले ही आप किसी भी धर्म को मानते हों" यदि वो अपनी प्रसिद्दि का फायेदा दुसरे मुस्लिम एवं ईसाई धर्मान्तरणकरियो की तरह उठाते तो क्या होता….ईसाई समुदाये भी हिन्दुओं के प्रति कठोरता अपना लेता और आज जो लाखों ईसाई स्वतः सनातन धर्म की और खींचे चले आते है वो भी हमें साम्प्रदायिक नजरिये से देखने लगते ….और इस धर्म और आध्यात्म की दुनिया से दूर हो जाते. जरूरी यह नहीं है की आप की संख्या कितनी है .जरूरी यह है की आप के अन्दर अच्छाई कितनी है .

  109. स्वच्छ संदेश: हिन्दोस्तान की आवाज़ said,

    August 26, 2009 at 6:59 am

    अवतार की अवधारणा केवल कल्पना मात्र है…. हज़रत मुहम्मद (स.) कल्कि अवतार जहां केवल इसलिए कहा जाता है क्यूंकि जिस कल्कि अवतार का इंतज़ार आप लोग कर रहे हो वह पहले ही दुनिया में १४ सौ साल पहले आ चुका है और वेदों में कहीं भी अवतार शब्द नहीं लिखा है………………….

    यह धारणा बनी

    "यदा यदा ही धर्मस्य….." से

    आप अगर गहन रूप से अध्ययन करेंगे तो पता चलेगा कि वेदों में ऋषियों के आने की बात कही गयी है…. कहीं भी अवतार का ज़िक्र नहीं है…..

  110. August 26, 2009 at 6:59 am

    अवतार की अवधारणा केवल कल्पना मात्र है…. हज़रत मुहम्मद (स.) कल्कि अवतार जहां केवल इसलिए कहा जाता है क्यूंकि जिस कल्कि अवतार का इंतज़ार आप लोग कर रहे हो वह पहले ही दुनिया में १४ सौ साल पहले आ चुका है और वेदों में कहीं भी अवतार शब्द नहीं लिखा है………………….यह धारणा बनी "यदा यदा ही धर्मस्य….." से आप अगर गहन रूप से अध्ययन करेंगे तो पता चलेगा कि वेदों में ऋषियों के आने की बात कही गयी है…. कहीं भी अवतार का ज़िक्र नहीं है…..

  111. RAJ said,

    August 26, 2009 at 7:01 am

    प्रिय सलीम:
    " साम्प्रदायिकतावाद परम्परावाद की जड़ से निकलता है। परम्पराओं के प्रति मोह साम्प्रदायिकता को जन्म देता है। यह सही है कि परम्परा में कुछ ऐसे जीवन तत्व होते हैं जो सामाजिक चेतना के अंग होते हैं पर इन परम्पराओं को इतना स्वार्थपरक बना दिया गया है कि इनसे अहित अधिक होता है और हित कम। इसलिए परम्परा का पीछा करना अब औचित्यहीन रह गया है।"

    वास्तव में सनातन धर्मियों ने जो भी परम्पराएँ बनायीं उनमे ज्यादातर अपने समाज , प्रकृति , जीव जंतुओं के अस्तित्व और उनकी स्वतंत्रता को बचाए रखने के लिए स्थापित की गयीं. इन परम्पराओं में यही देखने को मिलता है. हमें इसी परंपरा को निभाते हुए चलना होगा जरूरी यह है की हम अन्धविश्वास से दूर और सत्य के निकट रहें .

    इस्लामिक जगत में जो परम्पराएँ है वो कही ज्यादा रूढिवादी और संकुचित हैं यदि आपका यह कमेन्ट इसलाम से सम्बंधित था तो उचित है .

    क्योंकि बहुत ही कम मुस्लिम भाई हैं जो यह बात समझते हैं की इसलाम को समय के साथ चलना ही होगा …..उन्हें अपने तबके के सबसे गरीब आदमी को भी आधुनिक ज्ञान युक्त और रूढिवादिता मुक्त बनाना होगा जो उनकी समृधि के रास्ते में सबसे बड़ी रुकावट है.

  112. RAJ said,

    August 26, 2009 at 7:01 am

    प्रिय सलीम: " साम्प्रदायिकतावाद परम्परावाद की जड़ से निकलता है। परम्पराओं के प्रति मोह साम्प्रदायिकता को जन्म देता है। यह सही है कि परम्परा में कुछ ऐसे जीवन तत्व होते हैं जो सामाजिक चेतना के अंग होते हैं पर इन परम्पराओं को इतना स्वार्थपरक बना दिया गया है कि इनसे अहित अधिक होता है और हित कम। इसलिए परम्परा का पीछा करना अब औचित्यहीन रह गया है।"वास्तव में सनातन धर्मियों ने जो भी परम्पराएँ बनायीं उनमे ज्यादातर अपने समाज , प्रकृति , जीव जंतुओं के अस्तित्व और उनकी स्वतंत्रता को बचाए रखने के लिए स्थापित की गयीं. इन परम्पराओं में यही देखने को मिलता है. हमें इसी परंपरा को निभाते हुए चलना होगा जरूरी यह है की हम अन्धविश्वास से दूर और सत्य के निकट रहें . इस्लामिक जगत में जो परम्पराएँ है वो कही ज्यादा रूढिवादी और संकुचित हैं यदि आपका यह कमेन्ट इसलाम से सम्बंधित था तो उचित है . क्योंकि बहुत ही कम मुस्लिम भाई हैं जो यह बात समझते हैं की इसलाम को समय के साथ चलना ही होगा …..उन्हें अपने तबके के सबसे गरीब आदमी को भी आधुनिक ज्ञान युक्त और रूढिवादिता मुक्त बनाना होगा जो उनकी समृधि के रास्ते में सबसे बड़ी रुकावट है.

  113. स्वच्छ संदेश: हिन्दोस्तान की आवाज़ said,

    August 26, 2009 at 11:00 am

    islam men ek bhi baat jo aap ko galatfahmi ka shikar bana rahi Mr. Raj, tell me… I think aisa ek bhi sawaal nahin hoga aur agar hai to aisa koi sawaal nahin jise main apne jawaab aapko mutmaeen na kar sakun………. islam sare insaniyat ke liye aman ka paigaam hai………ismen aasaani hi aasaani hai sakhti kahin koi gunjaeesh nahin….

  114. August 26, 2009 at 11:00 am

    islam men ek bhi baat jo aap ko galatfahmi ka shikar bana rahi Mr. Raj, tell me… I think aisa ek bhi sawaal nahin hoga aur agar hai to aisa koi sawaal nahin jise main apne jawaab aapko mutmaeen na kar sakun………. islam sare insaniyat ke liye aman ka paigaam hai………ismen aasaani hi aasaani hai sakhti kahin koi gunjaeesh nahin….

  115. Rakesh Singh - राकेश सिंह said,

    August 26, 2009 at 3:20 pm

    भाई सलीम खान आपने अपने साईट पे तो यही लगा रखा है की मुहम्मद साहब कल्की अवतार हैं | कितनी बार आपसे अनुरोध किया की भाई आप कुरान की बात करो हिन्दू धर्म ग्रंथों पे मत बोलो, हिन्दू धर्म ग्रन्थ आप ये जाकिर जैसे लोग सलझ नहीं पाओगे | phir भी आप तो बस आँख मूंद कर इस्लामिक धर्मान्तरण अभियान चला रहे हो | आपके कुरान के कई आयातों का बहुत गलत अर्थ निकलता है, लेकिन हम चुप बैठे हैं की भाई आप कुरान को पवित्र मानते हो क्यों किसी के भावना को ठेंस पहुचना | आप कुरान के बारे बोलने के लिए स्वतंत्र है , आप भी हिन्दुओं की भावना को समझो और हिन्दू धर्म ग्रंथों के बारे मैं मत बोलो |

  116. August 26, 2009 at 3:20 pm

    भाई सलीम खान आपने अपने साईट पे तो यही लगा रखा है की मुहम्मद साहब कल्की अवतार हैं | कितनी बार आपसे अनुरोध किया की भाई आप कुरान की बात करो हिन्दू धर्म ग्रंथों पे मत बोलो, हिन्दू धर्म ग्रन्थ आप ये जाकिर जैसे लोग सलझ नहीं पाओगे | phir भी आप तो बस आँख मूंद कर इस्लामिक धर्मान्तरण अभियान चला रहे हो | आपके कुरान के कई आयातों का बहुत गलत अर्थ निकलता है, लेकिन हम चुप बैठे हैं की भाई आप कुरान को पवित्र मानते हो क्यों किसी के भावना को ठेंस पहुचना | आप कुरान के बारे बोलने के लिए स्वतंत्र है , आप भी हिन्दुओं की भावना को समझो और हिन्दू धर्म ग्रंथों के बारे मैं मत बोलो |

  117. रंजना said,

    August 26, 2009 at 5:07 pm

    सुरेश भाई, आपने जिस विषय पर अपना यह महत आलेख प्रेषित किया है,उसपर पहले भी बहुत कुछ पढ़ा है,इसलिए यह पढना बहुत ही सुखकर लगा…..लेकिन इस बहाने जो बहस छिडी और जो रोचक दृष्टिकोण देखने जानने को मिला वह नितांत ही नया है मेरे लिए ..मुझे बिलकुल भी आभास नहीं था कि समाज में इस तरह की सोच फल फूल रही है…..

    झटका तो बहुत जोर का लगा है….पर ईश्वर से प्रार्थना है कि यह सोच पूरे सम्प्रदाय की न हो,अन्यथा यह हमारे देश के लिए परम अनिष्टकारक होगा…

  118. August 26, 2009 at 5:07 pm

    सुरेश भाई, आपने जिस विषय पर अपना यह महत आलेख प्रेषित किया है,उसपर पहले भी बहुत कुछ पढ़ा है,इसलिए यह पढना बहुत ही सुखकर लगा…..लेकिन इस बहाने जो बहस छिडी और जो रोचक दृष्टिकोण देखने जानने को मिला वह नितांत ही नया है मेरे लिए ..मुझे बिलकुल भी आभास नहीं था कि समाज में इस तरह की सोच फल फूल रही है…..झटका तो बहुत जोर का लगा है….पर ईश्वर से प्रार्थना है कि यह सोच पूरे सम्प्रदाय की न हो,अन्यथा यह हमारे देश के लिए परम अनिष्टकारक होगा…

  119. दिवाकर मणि said,

    August 27, 2009 at 11:03 am

    आपका आलेख काफ़ी ज्ञानवर्धक लगा. और जहां तक मियां सलीम जैसों की बात है, तो भई उनके ब्लॉग "स्वच्छ संदेश" (?) पर के आलेख ही उनकी बुद्धिजीविता का परिचय दे देते है। मेरी सभी प्रबुद्ध पाठकों से गुजारिश है कि जैसे "शिशु की बातों निरर्थक बातों पर, विक्षिप्त की बातों पर, अधकचरी समझ वालों की बातों पर, पूर्वाग्रहग्रस्तों की बातों पर" ध्यान नहीं दिया जाता, वैसे ही इनके भी प्रलाप को नजरअंदाज कर दें। इन महाशय से अपने ब्लॉग पर लिखी बातों पर उठाई गई शंकाओं का तो जवाब ही नहीं दिया जाता है।

  120. August 27, 2009 at 11:03 am

    आपका आलेख काफ़ी ज्ञानवर्धक लगा. और जहां तक मियां सलीम जैसों की बात है, तो भई उनके ब्लॉग "स्वच्छ संदेश" (?) पर के आलेख ही उनकी बुद्धिजीविता का परिचय दे देते है। मेरी सभी प्रबुद्ध पाठकों से गुजारिश है कि जैसे "शिशु की बातों निरर्थक बातों पर, विक्षिप्त की बातों पर, अधकचरी समझ वालों की बातों पर, पूर्वाग्रहग्रस्तों की बातों पर" ध्यान नहीं दिया जाता, वैसे ही इनके भी प्रलाप को नजरअंदाज कर दें। इन महाशय से अपने ब्लॉग पर लिखी बातों पर उठाई गई शंकाओं का तो जवाब ही नहीं दिया जाता है।

  121. Mohammed Umar Kairanvi said,

    August 28, 2009 at 7:39 pm

    @ श्री राकेश सिंह जी जहाँ कहीं भी हों ध्‍यान दें, पुस्‍तक 'कल्कि अवतार और मुहम्मद साहब' पर आपके लिये एक अजनबी ने निम्‍नलिखित कमेंटस छोडा है सभी कुप्रचारीयों से मशवरा करके जवाब से नवाजियेगा, और मुझे जो कमेंटस द्वारा आपने बताया था कि अंतिम अवतार पर पुस्‍तक लिखने वाले श्रीवास्‍तव जी मुसलमान होगये हैं उनका मुस्लिम नाम बतादिजिये ताकि वह शुभ नाम भी उसके साथ लिख सकूं आपके सहयोग का जिक्र भी वहां अवश्‍य करूंगा,
    Anonymous said…
    राकेश सिंह जी आपकी टिप्पणी के लिए धन्यवाद, मैं भी विभिन्न धर्मों का ज्ञान प्राप्त करने में बहुत रुचि रखता हूँ, और मैं जानता हूँ कि शायद इस पुस्तक का अपजैसे कुछ लोगों पर कोई प्रभाव नहीं होगा – लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस अवतार के चक्कर ने कई हिन्दूओं का धर्मपरिवर्तन करा दिया है, जी हाँ – वे मुसलमान तो नहीं बन पाए लेकिन बहाईयों (बहाई धर्म – जिनका नई दिल्ली में लोटस मंदिर है) ने इस शब्द का उपयोग कर के लाखों हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन करा दिया. आज भारत में 15 से 20 लाख बहाई हैं और इन में से सिर्फ 1 प्रतिशत मुसलमान थे बाकी सभी हिन्दू थे. क्या आपने कभी इस धर्म का क्रिटिकल अभ्यास किया है. मैं आपकी सेवा में एक लिंक दे रहा हूँ, अगर आप इसको पढ़ेंगे तो शायद आपके लिए यह मामला और साफ होजाए.

    http://www.h-net.org/~bahai/bhpapers/vol2/india2.htm

    इसे ज़रूर पढ़ीयेगा ज़रूर

    आपका छोटा भाई.

  122. August 28, 2009 at 7:39 pm

    @ श्री राकेश सिंह जी जहाँ कहीं भी हों ध्‍यान दें, पुस्‍तक 'कल्कि अवतार और मुहम्मद साहब' पर आपके लिये एक अजनबी ने निम्‍नलिखित कमेंटस छोडा है सभी कुप्रचारीयों से मशवरा करके जवाब से नवाजियेगा, और मुझे जो कमेंटस द्वारा आपने बताया था कि अंतिम अवतार पर पुस्‍तक लिखने वाले श्रीवास्‍तव जी मुसलमान होगये हैं उनका मुस्लिम नाम बतादिजिये ताकि वह शुभ नाम भी उसके साथ लिख सकूं आपके सहयोग का जिक्र भी वहां अवश्‍य करूंगा, Anonymous said… राकेश सिंह जी आपकी टिप्पणी के लिए धन्यवाद, मैं भी विभिन्न धर्मों का ज्ञान प्राप्त करने में बहुत रुचि रखता हूँ, और मैं जानता हूँ कि शायद इस पुस्तक का अपजैसे कुछ लोगों पर कोई प्रभाव नहीं होगा – लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस अवतार के चक्कर ने कई हिन्दूओं का धर्मपरिवर्तन करा दिया है, जी हाँ – वे मुसलमान तो नहीं बन पाए लेकिन बहाईयों (बहाई धर्म – जिनका नई दिल्ली में लोटस मंदिर है) ने इस शब्द का उपयोग कर के लाखों हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन करा दिया. आज भारत में 15 से 20 लाख बहाई हैं और इन में से सिर्फ 1 प्रतिशत मुसलमान थे बाकी सभी हिन्दू थे. क्या आपने कभी इस धर्म का क्रिटिकल अभ्यास किया है. मैं आपकी सेवा में एक लिंक दे रहा हूँ, अगर आप इसको पढ़ेंगे तो शायद आपके लिए यह मामला और साफ होजाए.http://www.h-net.org/~bahai/bhpapers/vol2/india2.htmइसे ज़रूर पढ़ीयेगा ज़रूरआपका छोटा भाई.

  123. Mohammed Umar Kairanvi said,

    August 28, 2009 at 8:11 pm

    चिपलूनकर जी आप हिन्‍दू विरोधी हो,मिडिया को हिन्‍दू विरोधी बताकर वहाँ धर्म को ठेस पहुंचाई खामखाह दूसरे धर्म वालों को भी जगा दिया अब वह कहेंगे भैया हमारा भी पैसा लगा है इस टी.वी चेनल में हमारे धर्म का भी प्रचार करो, अब इस पोस्ट से तो आपने हिन्‍दू-मुस्लिम को एक करने का सिरा ही थमा दिया, मेरी तबियत बाग-बाग करदी अरे जनाब इस तोड मरोड कहानी का तो हर जवाब मैं एक पुस्‍तक के रूप में नेट जगत को प्रस्‍तुत कर चुका, जिसमें श्री अनुवाद सिंह का सहयोग का वर्णन अवश्‍य करूंगा उन्‍होंने मनु श्‍लोक पर बहस करी तो मैं ले आया 'वेद-कुरआन' की शिक्षाओं पर आधारित पुस्‍तक 'अगर अब भी ना जागे तो' जिसने मेरे विचार ही बदल दिये, मुझे मालूम हुआ तुम लोग तो मेरे बिछुडे भाई हो, मनु नौकासवार की नसल से तुम भी हम भी, scribd पर है इस लिये 2 मिनट भी नहीं लगेंगे,जरा झांक आओ अध्‍याय14 'वैदिक धर्मों में काबे की हक़ीक़त, पृष्‍ठ 139 से 143'
    http://www.scribd.com/doc/19003014/AGAR-AB-BHI-NA-JAGE-TO-HINDI-

    झलक दिखादूं तब जाओगे तो लो, दुनिया जानती है काबा को हमने पृथ्‍वी का मध्‍य साबित किया है, वहीं है आपका हमारा तीर्थ, पुस्‍तक में यह भी बताया गया है कि वह आपको कैसे मिल सकता हैः, नीचे दिया गये श्‍लोक का अनुवाद करने की आवश्‍यकता नहीं पडेगी,
    'इलायास्‍तवा पदे वयं नाभा पृथिव्‍या अधि' ऋगवेद 3-29-4

  124. August 28, 2009 at 8:11 pm

    चिपलूनकर जी आप हिन्‍दू विरोधी हो,मिडिया को हिन्‍दू विरोधी बताकर वहाँ धर्म को ठेस पहुंचाई खामखाह दूसरे धर्म वालों को भी जगा दिया अब वह कहेंगे भैया हमारा भी पैसा लगा है इस टी.वी चेनल में हमारे धर्म का भी प्रचार करो, अब इस पोस्ट से तो आपने हिन्‍दू-मुस्लिम को एक करने का सिरा ही थमा दिया, मेरी तबियत बाग-बाग करदी अरे जनाब इस तोड मरोड कहानी का तो हर जवाब मैं एक पुस्‍तक के रूप में नेट जगत को प्रस्‍तुत कर चुका, जिसमें श्री अनुवाद सिंह का सहयोग का वर्णन अवश्‍य करूंगा उन्‍होंने मनु श्‍लोक पर बहस करी तो मैं ले आया 'वेद-कुरआन' की शिक्षाओं पर आधारित पुस्‍तक 'अगर अब भी ना जागे तो' जिसने मेरे विचार ही बदल दिये, मुझे मालूम हुआ तुम लोग तो मेरे बिछुडे भाई हो, मनु नौकासवार की नसल से तुम भी हम भी, scribd पर है इस लिये 2 मिनट भी नहीं लगेंगे,जरा झांक आओ अध्‍याय14 'वैदिक धर्मों में काबे की हक़ीक़त, पृष्‍ठ 139 से 143'http://www.scribd.com/doc/19003014/AGAR-AB-BHI-NA-JAGE-TO-HINDI-झलक दिखादूं तब जाओगे तो लो, दुनिया जानती है काबा को हमने पृथ्‍वी का मध्‍य साबित किया है, वहीं है आपका हमारा तीर्थ, पुस्‍तक में यह भी बताया गया है कि वह आपको कैसे मिल सकता हैः, नीचे दिया गये श्‍लोक का अनुवाद करने की आवश्‍यकता नहीं पडेगी,'इलायास्‍तवा पदे वयं नाभा पृथिव्‍या अधि' ऋगवेद 3-29-4

  125. Rakesh Singh - राकेश सिंह said,

    August 28, 2009 at 8:25 pm

    उमर भाई आश्चर्य हुआ की आप phir से सभ्य लोगों का चोल पहें कर यहाँ आ गए !… पिछली बार तो आप तुम-ताम (गली गलौज ) पे उतर आए थे | कैसे भरोषा करूँ की आप इस बार गाली गलौज नहीं करेंगे ?

    चलिए भरोषा कर के देखते हैं | देखिये भाई आपने लिखा है की कुप्रचारियों से मशविरा कर लें … तो इसके लिए सबसे पहले मुझे सलीम खान ( स्वच्छ हिंदोस्ता वाले …) और आपसे ही मशविरा करनी चाहिए | क्योंकी आपही लोग ये बोंल रहे हैं की मुहम्मद साहब ही कल्कि अवतार हैं | क्या कुरान मैं ये लिखा है की मुहम्मद साहब ही कल्कि अवतार हैं ? मैं बार-बार एक ही request लगा रहा हूँ की आप लोग कुरान पे बोलो पर हिन्दू धर्म ग्रंथों पे उल-जलूल बोंल कर हमारी भावना को चोट मत पहुचाओ … पर आप लोग सुनाने को तैयार ही नहीं | खैर एक बात बताता हूँ की कुरान मैं भी कई ऐसे आयत हैं जिसका बहुत गलत अर्थ लगाया जा सकता है लेकिन … |

    आपने एक-आध लाख हिन्दुओं के बहाई धर्म अपनाने की बात कर रहे हैं | भाई भारत मैं २-४ लोग ईसाई बन गए हैं (ज्यादातर हिन्दू पर १-२ % मुस्लिम भी ) , इसपे आप आँख मूंदे बैठे हैं | देखिये मैं किसी भी प्रकार के धर्म परिवर्तन के खिलाफ हूँ चाहे वो हिन्दू -> ईसाई , हिन्दू -> इसलाम, इसलाम -> ईसाई या बहाई हो |

    उमर भाई २०-३० साल रुकिए तब भारत मैं ही मुस्लिम भाई को क्रिश्चियन लोग से कैसे – कैसे पल्ला पडेगा | आप भी जानते हैं क्रिश्चियन जैसे ही २०-३० % हुआ तो स्थितियां क्या होंगी !!!

  126. August 28, 2009 at 8:25 pm

    उमर भाई आश्चर्य हुआ की आप phir से सभ्य लोगों का चोल पहें कर यहाँ आ गए !… पिछली बार तो आप तुम-ताम (गली गलौज ) पे उतर आए थे | कैसे भरोषा करूँ की आप इस बार गाली गलौज नहीं करेंगे ? चलिए भरोषा कर के देखते हैं | देखिये भाई आपने लिखा है की कुप्रचारियों से मशविरा कर लें … तो इसके लिए सबसे पहले मुझे सलीम खान ( स्वच्छ हिंदोस्ता वाले …) और आपसे ही मशविरा करनी चाहिए | क्योंकी आपही लोग ये बोंल रहे हैं की मुहम्मद साहब ही कल्कि अवतार हैं | क्या कुरान मैं ये लिखा है की मुहम्मद साहब ही कल्कि अवतार हैं ? मैं बार-बार एक ही request लगा रहा हूँ की आप लोग कुरान पे बोलो पर हिन्दू धर्म ग्रंथों पे उल-जलूल बोंल कर हमारी भावना को चोट मत पहुचाओ … पर आप लोग सुनाने को तैयार ही नहीं | खैर एक बात बताता हूँ की कुरान मैं भी कई ऐसे आयत हैं जिसका बहुत गलत अर्थ लगाया जा सकता है लेकिन … |आपने एक-आध लाख हिन्दुओं के बहाई धर्म अपनाने की बात कर रहे हैं | भाई भारत मैं २-४ लोग ईसाई बन गए हैं (ज्यादातर हिन्दू पर १-२ % मुस्लिम भी ) , इसपे आप आँख मूंदे बैठे हैं | देखिये मैं किसी भी प्रकार के धर्म परिवर्तन के खिलाफ हूँ चाहे वो हिन्दू -> ईसाई , हिन्दू -> इसलाम, इसलाम -> ईसाई या बहाई हो | उमर भाई २०-३० साल रुकिए तब भारत मैं ही मुस्लिम भाई को क्रिश्चियन लोग से कैसे – कैसे पल्ला पडेगा | आप भी जानते हैं क्रिश्चियन जैसे ही २०-३० % हुआ तो स्थितियां क्या होंगी !!!

  127. wahreindia said,

    August 29, 2009 at 5:27 pm

    जानेगे कैसे नही अमेरिका और इसराइल ने नाक मे जो दम कर रखा है इनकी.
    http://wahreindia.blogs.linkbucks.com/

  128. wahreindia said,

    August 29, 2009 at 5:27 pm

    जानेगे कैसे नही अमेरिका और इसराइल ने नाक मे जो दम कर रखा है इनकी. http://wahreindia.blogs.linkbucks.com/

  129. Ankhen said,

    September 3, 2009 at 12:08 am

    मोहम्मद साहब ने साडी मूर्ती तोड़ दी और शिव के लिंग को छोड़ दिया…………..हा….हा……हा…..हा…..हा…..हा……. khursheed
    और अपने लिंग के साथ क्या किया यह जरा खुल कर बताओ , क्यूं इतने सालों से लिंग को कटवाये फ़िर रहे हो , अरे अल्लाह की देन है पूरा रखते ….

  130. Ankhen said,

    September 3, 2009 at 12:08 am

    मोहम्मद साहब ने साडी मूर्ती तोड़ दी और शिव के लिंग को छोड़ दिया…………..हा….हा……हा…..हा…..हा…..हा……. khursheed और अपने लिंग के साथ क्या किया यह जरा खुल कर बताओ , क्यूं इतने सालों से लिंग को कटवाये फ़िर रहे हो , अरे अल्लाह की देन है पूरा रखते ….

  131. safat alam said,

    September 17, 2009 at 4:58 pm

    टिप्पणी बड़ी लम्बी है और मैं एक बात संक्षिप्त में कहूंगा कि अज्ञानता काल के जो लोग काबा में मुर्तियों को पूजते थे और काले पत्थर को भी तो उन लोगों ने मुहम्मद सल्ल0 की कोशिश से मुसलमान हो गए। जिस समय उनका देहांत हुआ उस समय मुसलमानों की संख्या अनुमानतः डेढ़ लाख थी। आज आप लोग भी इस सभ्यता के युग में उन से अपना रिश्ता जोड़ रहे हैं तो उनके जैसे आप सब भी बन जाओ। इसी के लिए ना क्लकि अवतार अर्थात मुहम्मद सल्ल0 आए थे। वह तो सारे संसार के लिए मार्गदर्शक बना कर भेजे गए थे। खैर जब काबा से अपना रिश्ता जोड़ ही लिया तो अज्ञानता युग वालों के जैसे आप सब भी उसका सम्मान करने लग जाओ। इसी की ओर तो हम आप सबको निमंत्रन दे रहे हैं। जब अज्ञानता युग के लोगों ने ज्ञान आने के बाद बुतों को तोड़ दिया तो आज सभ्य होने के बावजूद लोग इन बुतों से रिश्ता क्यों लगाए हुए हैं। ??????????????

  132. May 18, 2010 at 6:49 pm

    for true detail and Real image of kaaba and muhammad sallallahoalaihewasallam please visit my blog : (सीरते मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम )(abdulaleemsalafi)

  133. डाँ० संकर्षण त्रिपाठी said,

    September 20, 2010 at 3:23 pm

    प्रयास अच्छा है। और अधिक जानकारी अपेक्षित है।


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