आज "अफ़ज़ल गुरु" का हैप्पी बर्थ-डे है, आईये विश करें… (माइक्रो पोस्ट)

शीर्षक पढ़कर चौंकिये नहीं… आपको भी उत्सुकता होगी कि आखिर मुझे अफ़ज़ल गुरु के बर्थ-डे के बारे में कैसे पता चला? बताता हूं… जैसा कि सभी जानते हैं कांग्रेस का एक “दामाद” अफ़ज़ल गुरु, फ़िलहाल तिहाड़ जेल में छुट्टियाँ बिताने गया हुआ है। उसे हमारे देश की सर्वोच्च न्यायिक संस्था सुप्रीम कोर्ट मौत की सजा सुना चुकी है, लेकिन फ़िर भी वह अभी तक जिन्दा है तो किसके बल पर… कांग्रेस और मानवाधिकार(?) संगठनों की वजह से। जी हाँ… अब सही समझे आप, आज 10 दिसम्बर को “विश्व मानवाधिकार दिवस” है, अब ज़रा सोचिये यदि हमारे महान मानवाधिकार संगठन न होते तो अफ़ज़ल गुरु को खुदा की गोद में (या शायद 72 हूरों की गोद में) बैठे कितने बरस बीत चुके होते, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा…।

तात्पर्य यह कि, भाईयों जिस व्यक्ति की मौत लगभग तय हो चुकी हो, उसे पुनर्जन्म देने का काम किया है कांग्रेस और मानवाधिकार संगठनों ने, और आज मानवाधिकार दिवस है इसलिये हमें इसे अफ़ज़ल गुरु के “पुनर्जन्म दिवस” अर्थात बर्थ-डे के रूप में मनाना चाहिये।

सो, हम सब ब्लॉगर और पाठक उसे विश करें… टिप्पणी करते वक्त ध्यान रखें कि “म”, “भ”, “ग” तथा “ल” शब्दों से शुरु होने वाली “अतिमाइक्रो शब्दात्मक” टिप्पणियों को प्रतीकात्मक तौर पर *$*%*&#^%*$  ऐसे लिखें, ताकि मानहानि के दावों से बच सकें…। क्या कहा, कैसी मानहानि? अरे भाई, अफ़ज़ल गुरु का भी मान-सम्मान है कि नहीं? जब सरकार खुद ही उसे जेल में मालिश, टीवी और पुस्तकें-अखबार की सुविधा देकर मान बढ़ा रही है तो हो सकता है कि कोई दो कौड़ी का वकील, अफ़ज़ल की मानहानि का दावा भी आप पर ठोक दे… इसलिये नीचे दिये गये उदाहरण के मुताबिक ही टिप्पणी करें…

1) मानवाधिकार संगठनों की   *$*%*&#^%*$

2) कांग्रेस की   *$*%*&#^%*$

3) स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी “अफ़ज़ल गुरु” की   *$*%*&#^%*$

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शेष शुभ। वैवाहिक समारोहों में व्यस्त रहने की वजह से अगले 8 दिन कोई पोस्ट नहीं आयेगी इसलिये सोचा कि जाते-जाते कम से कम अफ़ज़ल गुरु को एक “माइक्रो विश” तो कर ही दूं, कहीं बुरा न मान जाये…

42 Comments

  1. December 10, 2009 at 6:52 am

    @ # $ % # ^ & * ## @ $$% # %&$

  2. December 10, 2009 at 6:57 am

    @#$%^&*$%#@#@%$%&%^%$#$#^&%& >: @#$%^&*$%#@#@%$%&%^%$#$#^&%& >:@#$%^&*$%#@#@%$%&%^%$#$#^&%& >:@#$%^&*$%#@#@%$%&%^%$#$#^&%& >:@#$%^&*$%#@#@%$%&%^%$#$#^&%& >:@#$%^&*$%#@#@%$%&%^%$#$#^&%& >:@#$%^&*$%#@#@%$%&%^%$#$#^&%& >:@#$%^&*$%#@#@%$%&%^%$#$#^&%& >:

  3. December 10, 2009 at 6:58 am

    1) मानवाधिकार संगठनों की *$*%*&#^%*$ 2) कांग्रेस की *$*%*&#^%*$ 3) स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी "अफ़ज़ल गुरु" की *$*%*&#^%*$

  4. December 10, 2009 at 7:13 am

    सुरेश जी, पहले तो अपना एक विरोध दर्ज करना चाहूंगा( सिर्फ आपसे नहीं बल्कि उस सभी लोगो सेजो अक्सर आपके ब्लॉग पर आकर बड़ी-बड़ी बाते करते है टिपण्णी के तौर पर ) ! यूँ तो हम लोग, तथाकथित 'कागजी शेर' जब कोई सत्य बात सामने लाते है तो हमें हिन्दुत्ववादी का भगवा चोला पहना दिया जाता है, यह सब नकारने के लिए इस सेकुलर देश में ! लेकिन वहीं दूसरी ओर जब हमरी ही अपनी कहीं पर संगठित होकर लड़ने, सपोर्ट करने जैसी कोई बात आती है, तो हम लोग पोलिटीशियन की तरह की बस गोल-माल बात करने लगते है, दूसरो के समक्ष अपने को भला आदमी साबित करने की जुगत में ! हम अपने बीच के उस वीर योद्धा को वह सम्मान या सपोर्ट नहीं देते, जिसका वह हकदार है ! और यही हम तथाकथित हिन्दुओ की सदियों से मानसिकता रही है, जिसकी वजह से हम बार-बार पिटे है ! कुछ चीजे सभ्यता के मापदंड पर निश्चित तौर पर अशोभनीय है, मगर अगर आपका दुश्मन आपकी बात सुनने को कतई राजी ही न हो, और असभ्यता की सीमाए लांघ गाली गलौच पर उतर आये, तो फिर आप क्या करोगे ? सिर्फ इस बात का इन्तजार कि फिर कोई विमान अपहरण करे और बदले में कसाब और अफजल गुरु को छुडा ले जाए ? जहां पर हम हिन्दुओ का प्रश्न आता है, मैं तो कहता हूँ कि हमसे बेहतर और वीर तो महफूज अली भाई है ! हाँ, सौरभ भाई को एक बार फिर से सलाम ! बड़ी हिम्मत वाला काम किया अगले ने !!

  5. December 10, 2009 at 7:28 am

    "मैं तो कहता हूँ कि हमसे बेहतर और वीर तो महफूज अली भाई है !"आप सभी से निवेदन करूंगा कि मेरे उपरोक्त पंक्तियों को किसी साम्प्रदायिक ढंग से न देखे, यह सिर्फ मैंने उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए लिखा है !

  6. December 10, 2009 at 7:43 am

    अफज़ल गुरु की @#$%उसको बचाने वाले दो कौड़ी के वकील की @#$%उसको सरकारी दामाद बनाकर पालने वाली कांग्रेस सरकार की @#$%लालची कुत्तों से भरी सरकार की चमची मीडिया की @#$%

  7. December 10, 2009 at 7:47 am

    मुझे पूरी उम्मीद थी कि अवधिया चाचा की टिप्पणी आयेगी ही, आखिर ये अफ़ज़ल गुरु और कसाब के हमदर्द जो ठहरे… 🙂 फ़िर भी इस अवधिया चाचा उर्फ़ "ब्लॉग जगत के जाने-माने मूर्ख" की टिप्पणी डिलीट की गई है, क्योंकि वह विषय से हटकर थी और उसमें उसने एक लिंक भी दी थी।

  8. December 10, 2009 at 7:59 am

    अवधिया चाचा-मराठी समर्थक दंगा अभीलाषी चिपलूनकर की *$*%*&#^%*$ 'धान के देश में'

  9. December 10, 2009 at 8:01 am

    ऐ दंगा अभीलाषी तू अपनी बात हूर का नाम लिए भी कर सकता था, तब हम तुझे सपोर्ट देते जिसका सपोर्ट हजारों पर भारी होता है, अब मैं तुझे लंगूर बना दूँगाअवधिया चाचाजो कभी अवध ना गया

  10. December 10, 2009 at 8:09 am

    अवधिया चाचा की दो टिप्पणियाँ रख रहा हूं, क्योंकि उसमें लिंक नहीं हैं… बाकी तो सबको पता चल ही चुका है कि अवधिया चाचा कौन है… और इसे कैसी मिर्ची लगती है, और "किस जगह" लगती है… अब बेचारे गालिब को भी नहीं छोड़ा इन्होंने… 🙂

  11. December 10, 2009 at 8:20 am

    अवधिया चाचा अपनी मूर्खता का प्रमाण देते हुए, इकबाल, गालिब इंस्टीट्यूट आदि फ़र्जी नामों से एक ही टिप्पणी कर रहा है… कोई इसे आगरा भेजो यार… 🙂 तथा किसी अन्य ब्लाग पर भी इस प्रकार की कोई टिप्पणी दिखाई दे तो उसे डिलीट करने का आग्रह भी करता हूं… आज तो वाकई बड़ी तेज मिर्च लगी है इसे, असम वाली… 🙂

  12. December 10, 2009 at 8:23 am

    ऐ दंगा अभीलाषी तू अपनी बात हूर का नाम लिए भी कर सकता था, तब हम तुझे सपोर्ट देते जिसका सपोर्ट हजारों पर भारी होता है, अब मैं तुझे लंगूर बना दूँगाअवधिया चाचाजो कभी अवध ना गया

  13. December 10, 2009 at 8:25 am

    चाहता तो पूरी टिप्पणी डिलीट कर सकता था नाम सहित, लेकिन नाम इसलिये छोड़ रहा हूं ताकि सबको पता चल सके… 🙂

  14. December 10, 2009 at 8:27 am

    मिर्ची वाली बात नहीं आज, ब्लागवाणी बोर्ड पर सबकुछ ठंडा है, अब देखो इधर की पोस्‍ट पर कमेंटस पर सब तरफ चर्चा होगी, यानि गरमी आएगी, खेर हमने पहले भी साबित क्‍या है जब तुम दोगली बातें नहीं करते तब सपोर्ट किया है करवाया है, ब्लागवाणी पर गाली पब्लिश होने जैसी बात पर कोई कुछ नहीं कह सकता यह है सारे हिन्‍दी ब्लागर्स की ….(हिम्‍मत)लंच के बाद मिलते हैं

  15. December 10, 2009 at 8:29 am

    जो व्यक्ति अफ़ज़ल गुरु और कसाब के समर्थन में एक भी शब्द कहे, वह देशद्रोह की पक्की मिसाल है, यानी अवधिया चाचा…

  16. December 10, 2009 at 8:47 am

    …आदरणीय सुरेश जी,जहाँ तक मुझे पता है कि अफजल गुरू की मृत्युदंड पर पर पुनर्विचार व क्षमा की याचिका महामहिम राष्ट्रपति महोदय के पास लंबित है। डॉ० कलाम के समय से लंबित यह याचिका वर्तमान राष्ट्रपति महोदया के कार्यकाल में भी लंबित ही है… देर कहाँ हो रही है… और क्यों… क्या कारण हैं… इन तथ्यों के उजागर होने पर ही कुछ कहा जा सकेगा।पर यह जरूर कहूँगा कि हम सबको यह विश्वास बनाये रखना चाहिये कि हमारी चुनी हुई सरकार, नीति निर्धारक और महामहिम राष्ट्रपति महोदया ऐसे मामले में कोई भी निर्णय लेते हुऐ देशहित व जनता की भावनाओं को सर्वोपरि रखेंगे। 'ग्लोबल वार्मिंग' और 'क्लाइमेट चेन्ज' का सच, एक बहुत बड़ा धोखा है यह गरीब देशों के साथ…

  17. December 10, 2009 at 9:08 am

    सुरेश जी और अन्य टिप्पणीकार बंधुओं, अपनी मुख्य बात कहने से पहले मेरी ओर से भी [१] "अफजल, कसाब इत्यादि" हरामियों के लिए लानत-मलानत युक्‍त &%^$#@&^%$# [२] इटलीवासी, भारत को कैथोलिक रहवासी बनाने की अभिलाषी सोनिया मादाम और उनके गोद में विराजमान खिलौना कांग्रेस पार्टी को भी अफजल को फाँसी से बचाने के लिए करोड़ों-करोड़ &%^$#@&^%$# &%^$#@&^%$# &%^$#@&^%$# [३] लिब्राहन, सच्चर, यू.सी.बनर्जी टाइप के पूर्वाग्रही (अ)न्यायाधीशों से गठित (अ)मानवाधिकार आयोग** के लिए कोटिशः &%^$#@&^%$# &**इसे "आतंकवादी अधिकार आयोग" के रूप में पढ़ें…==========================================================अब आता हूँ अपनी मुख्य बात पर…….काफी दिनों से मैं उत्सुक था कि आखिर ये "अवधिया चाचा" है कौन, जो माननीय "जी.के.अवधिया" और उनके ब्लॉग "धान के देश में" का नाम लेकर अपना भौडा खेल खेल रहा है, और जिसके बारे में पूरी तरह से जानते हुए भी सुरेश जी नाम नहीं उद्‍घाटित कर रहे हैं। इस माइक्रोपोस्ट पर अवधिया चाचा(?) के द्वारा लिखी गयी एक टिप्पणी ने उसका चेहरा पूरी तरह कम-से-कम मेरे सामने तो बेनकाब कर ही दिया है। जरा पहले उसके द्वारा लिखे टिप्पणी की भाषा और लेखन शैली को देखें, फिर मैं उसका नाम भी बताता हूं——————————अवधिया चाचा said…"ऐ दंगा अभीलाषी तू अपनी बात हूर का नाम लिए भी कर सकता था, तब हम तुझे सपोर्ट देते जिसका सपोर्ट हजारों पर भारी होता है, अब मैं तुझे लंगूर बना दूँगाअवधिया चाचाजो कभी अवध ना गया"—————————-अवधिया चाचा said…मिर्ची वाली बात नहीं आज, ब्लागवाणी बोर्ड पर सबकुछ ठंडा है, अब देखो इधर की पोस्‍ट पर कमेंटस पर सब तरफ चर्चा होगी, यानि गरमी आएगी, खेर हमने पहले भी साबित क्‍या है जब तुम दोगली बातें नहीं करते तब सपोर्ट किया है करवाया है, ब्लागवाणी पर गाली पब्लिश होने जैसी बात पर कोई कुछ नहीं कह सकता यह है सारे हिन्‍दी ब्लागर्स की ….(हिम्‍मत)लंच के बाद मिलते हैं———————————उपरोक्त उसकी टिप्पणी में जो बोल्ड किया वाक्यांश है, यही द्योतित कर देता है कि यह "अवधिया चाचा" और कोई नहीं "मियां उमर कैरानवी" ही है। जी हां, अगर इसके लेखन (हालांकि, यह लेखन नहीं अपितु गंदगी का इतस्ततः उत्सर्जित करना है..) को आपने देखा हो तो……========================================================

  18. December 10, 2009 at 9:26 am

    आदरणीय सुरेश जीप्रवीण शाह की टिप्‍पणि पर विचार करो कितना शानदार जवाब है, और उसमें लिंक देख रहे हो, या केवल मुझे दिखाई दे रहा है, प्रवीण जी का धन्‍यवाद आपने हमेशा की तरह बात की यानि इधर की ना उधर की, विचार करो कौन मूर्ख है जो बात या सवाल ब्लागिंग हित में है तुम उस बात का लिक हटा रहे हो, जबकि ब्लागवाणी उसे शान से पब्लिश कर रही है, क्‍या इसका मतलब यह नहीं कि वह ब्‍्लागवाणी चाहता है इस सवाल पर ब्लागर्स अपनी राए दें,विचार करो किसी को मूर्ख कहना अधिक बुरा है या लंगूरविचार करो कि तुम्‍हारा टिप्‍पणियां डिलिट न करने का नियम किसने बदला और अब हो सके तो इस ब्लाग पर टिप्‍पणि करने के नियम टाँग दो ताकि उन नियमों का पालन किया जासके या उन नए विचारों बदलने पर मजबूर किया जा सकेअवधिया चाचाजो कभी अवध न गया

  19. alka sarwat said,

    December 10, 2009 at 10:25 am

    मैंने ऊपर के कमेन्ट पढ़े हैंबड़े लोगों की बड़ी बातें मैं चिंता में थी कि मेरे देश का आखिर भला क्यों नहीं हो रहा जबकि यहाँ इतने विचारवान ब्लॉगर हैं ,आज समझ में आया कि यहाँ के महारथियों को आपस में ही वीरता दिखानी आती है ,अपने से फुर्सत मिले तब न देश के बारे में सोचे ,मैं आप सभी को लानत भेजती हूँ

  20. December 10, 2009 at 10:43 am

    itna pramukh prashn uthaya gaya aur uska ye haal kar diya gaya…………ye prashn to aaj sabhi bhartiyon ke dil mein faans ban kar chubh raha hai……….apne vyaktigat swarthon se upar uthkar jab tak ek jut hokar aawaz nahi uthayenge roj chahe afzal ho ya kasaab desh ke damad hi bane nazar aayenge.

  21. December 10, 2009 at 10:48 am

    अलका जी की बात से पूरी तरह सहमत लानत …लानत….लानत

  22. December 10, 2009 at 11:33 am

    @प्रवीण भाई, मैं आपकी बात में थोडा सा सुधार करना चाहूँगा- डा0 अब्दुल कलाम के कार्यकाल में वह फाइल कभी राष्ट्रपति भवन नहीं भेजी गई, यह खुलासा स्वयं डा0 कलाम कर चुके हैं.अब दूसरी बात, दरअसल दयायाचिका राष्ट्रपति को संबोधित होती है परन्तु उस पर फैसला कैबिनेट करती है और इस मामले में संविधान में कोई समय सीमा नहीं तय की गयी है सो हम मान सकते हैं कि यह फाइल अब भी सरकार के पिछवाड़े के बोझ तले दबी हुई है. अब सवाल उठता है कि ऐसा क्यों हो रहा है??? क्या आप कुछ अनुमान लगा सकते हैं?

  23. Common Hindu said,

    December 10, 2009 at 11:35 am

    Hello Blogger Friend,Your excellent post has been back-linked inhttp://hinduonline.blogspot.com/– a blog for Daily Posts, News, Views Compilation by a Common Hindu- Hindu Online.

  24. December 10, 2009 at 12:16 pm

    मानवाधिकार संगठनों की *$*%*&#^%*$ कांग्रेस की *$*%*&#^%*$ स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी "अफ़ज़ल गुरु" की *$*%*&#^%*$ अवधिया चाचा )*&^%%$#$#@#@@!@उमर कैरानवी %$^&*(*&&^%$%#$#$#@#@!

  25. December 10, 2009 at 12:17 pm

    संजय बेगाणी जी की बात से पूर्ण सहमत।

  26. SHIVLOK said,

    December 10, 2009 at 4:10 pm

    ALKA SARWAT , VANDANAKE COMMENT KOMERABHIICOMMENTMANAJAYE.sANJAY BENGANII SE PURN SAHMATMAHFOOJ BHIIKO SADAR PRANAM.

  27. December 10, 2009 at 9:32 pm

    मानवाधिकार संगठनों की *$*%*&#^%*$ कांग्रेस की *$*%*&#^%*$ स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी "अफ़ज़ल गुरु" की *$*%*&#^%*$ @गोदियाल जी आपसे पूर्णतः सहमत हूँ | मैंने महफूज भाई के ब्लॉग पे लगभग यही टिप्पणी की थी …. | आम तौर पे हिंदी ब्लॉग जगत मैं यही देखा जा रहा है की गलत को गलत सही को सही ना कहकर गलत सही दोनों को ही गलत कह दिया जाता है … |

  28. Kumar Dev said,

    December 10, 2009 at 11:13 pm

    अवधिया के तशरीफ़ पे मिर्ची लगी और इसका लाल हो गया बन्दर की तरह अवधिया ये बता तालाब के पानी से ठंडा करेगा या टोटीवाले प्लास्टिक के लोटे से धोएगा,लगता है अवधिया की बेटी बहु नवाब के खानदान से है, कहीं इसे भी नवाबो वाले शौक तो नहीं है और हाँ वाजूं करना मत भूलना अवधिया वरना आँखे लाल हो जाएगी गुस्से से.मानवाधिकार संगठनों की *$*%*&#^%*$ कांग्रेस की *$*%*&#^%*$ स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी "अफ़ज़ल गुरु" की *$*%*&#^%*$ अवधिया चाचा )*&^%%$#$#@#@@!@उमर कैरानवी(कसाबी)%$^&*(*&&^%$%#$#$#@#@……………………………..जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान और जय भगवान्

  29. December 11, 2009 at 12:29 am

    आज की राजनीति कहीं राष्ट्र ही न ले डूबे…क्षोभनीय

  30. PD said,

    December 11, 2009 at 4:45 am

    1) मानवाधिकार संगठनों की *$*%*&#^%*$ 2) कांग्रेस की *$*%*&#^%*$ 3) स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी "अफ़ज़ल गुरु" की *$*%*&#^%*$

  31. cmpershad said,

    December 11, 2009 at 5:52 am

    अल्लाह उन्हें जन्नतनशीं करें और हूरों की सौगात भी:)

  32. December 11, 2009 at 7:16 am

    सुरेश जी, आपका यह आलेख बहुत हद तक मर्यादित कहा जायेगा.लेकिन टिप्पणियों की ऐसी तैसी होना लाजिम था.तभी तो ग़ज़ल में कहा है –टिप्पणी कीजिये खूब कोई शरारत ना कीजिये – ग़ज़ल

  33. RDS said,

    December 11, 2009 at 11:20 am

    ब्लोग के माध्यम से वैचारिक आन्दोलन के पुरोधा सुरेश जी ने पुराने मुद्दे को रोचक अन्दाज़ में उभारा है । टिप्णियों का ओछापन नज़रअंदाज़ कर मूल भावना की बात करें तो कुछ दूसरी ही चिंताएं सामने आती हैं । एक, सर्वमान्य देशद्रोही से शासन भयभीत रहती है । दो, मानव अधिकार आयोग पीडितों से अधिक अपराधियों की चिंता करता है । तीन, राष्ट्रपति का पद रबर स्टेम्प की महिमा भी नही छू पा रहा है । चार, देश की आर्थिक समृद्धि के बावज़ूद मज़हब की तथाकथित दीवारें अधिक ऊंची होती जा रही हैं । पांच, देश का विचारवान तबका अंधा और गूंगा है । छः , हमारे देश में देशद्रोहियों की पैरवी करना बहुत आसान और क्षम्य कृत्य है । कोई साहसी कौटिल्य जन्मे तो यह धरा मानसिक परतंत्रता से मुक्त हो ।

  34. ASHWANI JAIN said,

    December 11, 2009 at 2:46 pm

    "अवधिया के तशरीफ़ पे मिर्ची लगी और इसका लाल हो गया बन्दर की तरह अवधिया ये बता तालाब के पानी से ठंडा करेगा या टोटीवाले प्लास्टिक के लोटे से धोएगा,लगता है अवधिया की बेटी बहु नवाब के खानदान से है, कहीं इसे भी नवाबो वाले शौक तो नहीं है और हाँ वाजूं करना मत भूलना अवधिया वरना आँखे लाल हो जाएगी गुस्से से.मानवाधिकार संगठनों की *$*%*&#^%*$ कांग्रेस की *$*%*&#^%*$ स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी "अफ़ज़ल गुरु" की *$*%*&#^%*$ अवधिया चाचा )*&^%%$#$#@#@@!@उमर कैरानवी(कसाबी)%$^&*(*&&^%$%#$#$#@#@"wah wah wah …..

  35. ASHWANI JAIN said,

    December 11, 2009 at 2:46 pm

    "अवधिया के तशरीफ़ पे मिर्ची लगी और इसका लाल हो गया बन्दर की तरह अवधिया ये बता तालाब के पानी से ठंडा करेगा या टोटीवाले प्लास्टिक के लोटे से धोएगा,लगता है अवधिया की बेटी बहु नवाब के खानदान से है, कहीं इसे भी नवाबो वाले शौक तो नहीं है और हाँ वाजूं करना मत भूलना अवधिया वरना आँखे लाल हो जाएगी गुस्से से.मानवाधिकार संगठनों की *$*%*&#^%*$ कांग्रेस की *$*%*&#^%*$ स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी "अफ़ज़ल गुरु" की *$*%*&#^%*$ अवधिया चाचा )*&^%%$#$#@#@@!@उमर कैरानवी(कसाबी)%$^&*(*&&^%$%#$#$#@#@"wah wah wah …..

  36. December 11, 2009 at 5:55 pm

    शिखंडीयों की जमात में और क्या उम्मीद की जा सकती है.?अफ़ज़ल गुरु से व्यक्तिगत दुश्मनी मानता हूं मैं अपनी क्योंकि:अ. उसने मेरे देश की अखंडता और संप्रभुता को चुनौती दी है.(मेरे देश)ब. संसद हमले के दिन उसके अनुयायी की एक गोली मुझे लगते लगते बची थी. मेरा बचना भाग्य के कारण था.मगर अफ़ज़ल गुरु का अब तक बचना?

  37. December 13, 2009 at 5:36 pm

    आपको बराबर पढ़ता हूँ। दिसंबर अंक वाले मासिक "पाखी" में आपके ब्लौग की चर्चा की है पाखी की उप-संपादिका प्रतिभा कुशवाहा जी ने। एक अच्छी चर्चा। आपकी उस पोस्ट को लेकर नामवर सिंह और इलाहाबाद ब्लौगर सम्मेलन वाली पोस्ट।सोचा आपको बता दूं।

  38. December 13, 2009 at 6:47 pm

    सिर्फ % $ @ # से काम नहीं चलेगा. ऐसे 'दामादों' की आवभगत में लगकर बिरयानी खिलाने वाले 'ससुरो' को पहचान कर दण्डित करने पर ही इस समस्या का हल निकलेगा. और यह मौक़ा हर पांच साल में हमें एक बार मिलता है. तब हम भांग खाकर सो जाते हैं. फिर अफजल-अजमल के 'ससुरे' चुन कर आ जाते हैं. और देश और समाज की छाती पर मूंग दलते हैं.

  39. December 14, 2009 at 9:27 am

    मुस्लिम अपने वोटों की पूरी कीमत वसूलते हैं और हिन्दू अपने वोटों को फेंक आते हैं. मुस्लिम अपने धर्म के लिये हर किसी से टक्कर लेने को तैयार हो जाते हैं जबकि हिन्दू पहले ही आपस में लड़ने लगते हैं, एक दो लानत भेजने वाले ही इसे सिद्ध कर रहे हैं. मुख्य मुद्दा था कि अफजल को बचाने में सब धर्मनिरपेक्षी लगे हुये हैं, यदि किसी हिन्दू ने ऐसा किया होता तो आज शायद सब उसे फांसी पर टांगने को उत्सुक होते और दो-चार विधायक सांसद तो शायद गला भी दबा चुके होते. जब तक हिन्दू अपने वोट के लिये अपनी ताकत नहीं बनायेगा यही होता रहेगा और जो खुशफहमी पाले हैं, उनकी खुशफहमी मुस्लिमों की जनसंख्या (वोट) के तीस प्रतिशत होते ही दूर हो जायेगी. ऐसे धर्मनिरपेक्ष हिन्दुओं की ……..

  40. December 15, 2009 at 9:36 pm

    जब तक वो बैंक के लालची नेता, वैचारिक रूप से नपुंसक हिन्दू और बिका हुआ मीडिया इस देश में रहेंगे…अफजल जैसे दानव ससम्मान बिरयानी खाते रहेंगे. अब तो महात्मा गांधी और भगतसिंह के साथ स्कूली पाठ्यक्रम में इस महान क्रांतिकारी अफजल गुरू के जीवन और योगदान के बारे में एक पाठ आना बाकी है. अगली बार कोंग्रेस आई तो यह भी हो जाएगा. और रोमिला थापर जैसे इतिहासकार और अरुंधती रॉय जैसे 'कुबुद्धीजीवी' इसके महिमामंडन में किताब भी लिखकर देंगे.

  41. vaibhav said,

    December 16, 2009 at 4:29 pm

    kya kahane sahab.aaye hum sab milkar use do jute markar wish kare.

  42. RDS said,

    December 18, 2009 at 3:39 am

    किपलूणकर जी , जरा इस प्रकार के यू ट्यूब वीडिओ पर नज़र दौडाएं और कुछ लिखें । http://www.youtube.com/watch?v=tPIr0V3rDcw


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