>यह महादान “सिर्फ़ सेवा” के लिये नहीं है… … Foreign Fundings to NGOs in India

>केन्द्र सरकार द्वारा हाल ही में जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में कार्यरत विभिन्न NGOs को सन् 2007-08 के दौरान लगभग 10,000 करोड़ का अनुदान विदेशों से प्राप्त हुआ है। इसमें दिमाग हिला देने वाला तथ्य यह है कि पैसा प्राप्त करने वाले टॉप 10 संगठनों में से 8 ईसाई संगठन हैं। अमेरिका, ब्रिटेन व जर्मनी दानदाताओं(?) की लिस्ट में टॉप तीन देश हैं, जबकि सबसे अधिक पैसा पाने वाले संगठन हैं वर्ल्ड विजन इंडिया, रुरल डेवलपमेण्ट ट्रस्ट अनन्तपुर एवं बिलीवर्स चर्च केरल।

राज्यवार सूची के अनुसार सबसे अधिक पैसा मिला है दिल्ली को (1716.57 करोड़), उसके बाद तमिलनाडु को (1670 करोड़) और तीसरे नम्बर पर आंध्रप्रदेश को (1167 करोड़)। जिलावार सूची के मुताबिक अकेले चेन्नै को मिला है 731 करोड़, बंगलोर को मिला 669 करोड़ एवं मुम्बई को 469 करोड़। सुना था कि अमेरिका में मंदी छाई थी, लेकिन “दान”(?) भेजने के मामले में उसने सबको पीछे छोड़ा है, अमेरिका से इन NGOs को कुल 2928 करोड़ रुपया आया, ब्रिटेन से 1268 करोड़ एवं जर्मनी से 971 करोड़… इनके पीछे हैं इटली (514 करोड़) व हॉलैण्ड (414 करोड़)।

दानदाताओं की लिस्ट में एकमात्र हिन्दू संस्था है ब्रह्मानन्द सरस्वती ट्रस्ट (चौथे क्रमांक पर 208 करोड़) इसी प्रकार दान लेने वालों की लिस्ट में भी एक ही हिन्दू संस्था दिखाई दी है, नाम है श्री गजानन महाराज ट्रस्ट महाराष्ट्र (70 करोड़)…एक नाम व्यक्तिगत है किसी डॉ विक्रम पंडित का… 

इस भारी-भरकम और अनाप-शनाप राशि के आँकड़ों को देखकर मूर्ख से मूर्ख व्यक्ति भी समझ सकता है कि इतना पैसा “सिर्फ़ गरीबों-अनाथों की सेवा” के लिये नहीं आता। ऐसे में ईसाई संस्थाओं द्वारा समय-समय पर किये जाने वाले धर्मान्तरण के खिलाफ़ आवाज़ उठाने वालों का पक्ष मजबूत होता है।

यहाँ सवाल उठता है कि गरीबी, बेरोज़गारी एवं अपर्याप्त संसाधन की समस्या दुनिया के प्रत्येक देश में होती है… सोमालिया, यमन, एथियोपिया, बांग्लादेश एवं पाकिस्तान जैसे इस्लामी देशों में भी भारी गरीबी है, लेकिन इन ईसाई संस्थाओं को वहाँ पर न काम करने में कोई रुचि है और न ही वहाँ की सरकारें मिशनरी को वहाँ घुसने देती हैं। मजे की बात यह है कि ढेर सारे ईसाई देशों जैसे पेरु, कोलम्बिया, मेक्सिको, ग्रेनाडा, सूरिनाम इत्यादि देशों में भी भीषण गरीबी है, लेकिन मिशनरी और मदर टेरेसा का विशेष प्रेम सिर्फ़ “भारत” पर ही बरसता है। इसी प्रकार चीन, जापान और इज़राइल भी न तो ईसाई देश हैं न मुस्लिम, लेकिन वहाँ धर्मान्तरण के खिलाफ़ सख्त कानून भी बने हैं, सरकारों की इच्छाशक्ति भी मजबूत है और सबसे बड़ी बात वहाँ के लोगों में अपने धर्म के प्रति सम्मान, गर्व की भावना के साथ-साथ मातृभूमि के प्रति स्वाभिमान की भावना तीव्र है, और यही बातें भारत में हिन्दुओं में कम पड़ती हैं… जिस वजह से अरबों रुपये विदेश से “सेवा” के नाम पर आता है और हिन्दू-विरोधी राजनैतिक कार्यों में लगता है। हिन्दुओं में इसी “स्वाभिमान की भावना की कमी” की वजह से एक कम पढ़ी-लिखी विदेशी महिला भी इस महान प्राचीन संस्कृति से समृद्ध देशवासियों पर आसानी से राज कर लेती है। भारत के अलावा और किसी और देश का उदाहरण बताईये, जहाँ ऐसा हुआ हो कि वहाँ का शासक उस देश में नहीं जन्मा हो, एवं जिसने 15 साल देश में बिताने और यहाँ विवाह करने के बावजूद हिचकिचाते हुए नागरिकता ग्रहण की हो।

बहरहाल… दान देने-लेने वालों की लिस्ट में हिन्दुओं की संस्थाओं का नदारद होना भी कोई आश्चर्य का विषय नहीं है, हिन्दुओं में दान-धर्म-परोपकार की परम्परा अक्सर मन्दिरों-मठों-धार्मिक अनुष्ठानों-भजन इत्यादि तक ही सीमित है। दान अथवा आर्थिक सहयोग का “राजनैतिक” अथवा “रणनीतिक” उपयोग करना हिन्दुओं को नहीं आता, न तो वे इस बात के लिये आसानी से राजी होते हैं और न ही उनमें वह “चेतना” विकसित हो पाई है। मूर्ख हिन्दुओं को तो यह भी नहीं पता कि जिन बड़े-बड़े और प्रसिद्ध मन्दिरों (सबरीमाला, तिरुपति, सिद्धिविनायक इत्यादि) में वे करोड़ों रुपये चढ़ावे के रुप में दे रहे हैं, उन मन्दिरों के ट्रस्टी, वहाँ की राज्य सरकारों के हाथों की कठपुतलियाँ हैं… मन्दिरों में आने वाले चढ़ावे का बड़ा हिस्सा हिन्दू-विरोधी कामों के लिये ही उपयोग किया जा रहा है। कभी सिद्धिविनायक मन्दिर में अब्दुल रहमान अन्तुले ट्रस्टी बन जाते हैं, तो कहीं सबरीमाला की प्रबंधन समिति में एक-दो वामपंथी (जो खुद को नास्तिक कहते हैं) घुसपैठ कर जाते हैं, इसी प्रकार तिरुपति देवस्थानम में भी “सेमुअल” राजशेखर रेड्डी ने अपने ईसाई बन्धु भर रखे हैं… जो गाहे-बगाहे यहाँ आने वाले चढ़ावे में हेरा-फ़ेरी करते रहते हैं… यानी सारा नियन्त्रण राज्य सरकारों का, सारे पैसों पर कब्जा हिन्दू-विरोधियों का… और फ़िर भी हिन्दू व्यक्ति मन्दिरों में लगातार पैसा झोंके जा रहे हैं…
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विषय से अपरोक्ष रुप से जुड़ी एक घटना –

संयोग देखिये कि कुछ ही दिनों पहले मैंने लिखा था कि “क्या हिन्दुत्व के प्रचार-प्रसार के लिये आर्थिक योगदान दे सकते हैं”, इसी सिलसिले में कुछ लोगों से बातचीत चल रही है, ऐसे ही मेरी एक “धन्ना सेठ” से बातचीत हुई। उक्त “धन्ना सेठ” बहुत पैसे वाले हैं, विभिन्न मन्दिरों में हजारों का चढ़ावा देते हैं, कई धार्मिक कार्यक्रम आयोजन समितियों के अध्यक्ष हैं, भण्डारे-कन्या भोज-सुन्दरकाण्ड इत्यादि कार्यक्रम तो इफ़रात में करते ही रहते हैं। मैंने उन्हें अपना ब्लॉग दिखाया, अपने पिछले चार साल के कामों का लेखा-जोखा बताया… सेठ जी बड़े प्रभावित हुए, बोले वाह… आप तो बहुत अच्छा काम कर रहे हैं… हिन्दुत्व जागरण के ऐसे प्रयास और भी होने चाहिये। मैंने मौका देखकर उनके सामने इस ब्लॉग को लगातार चलाने हेतु “चन्दा” देने का प्रस्ताव रख दिया…

बस फ़िर क्या था साहब, “धन्ना सेठ” अचानक इतने व्यस्त दिखाई देने लगे, जितने 73 समितियों के अध्यक्ष प्रणब मुखर्जी भी नहीं होंगे। इसके बावजूद मैं जब एक “बेशर्म लसूड़े” की तरह उनसे चिपक ही गया, तो मेरे हिन्दुत्व कार्य को लेकर चन्दा माँगने से पहले वे जितने प्रभावित दिख रहे थे, अब उतने ही बेज़ार नज़र आने लगे और सवाल-दर-सवाल दागने लगे… इससे क्या होगा? आखिर कैसे होगा? क्यों होगा? यदि हिन्दुत्व को फ़ायदा हुआ भी तो कितना प्रभावशाली होगा? इससे मेरा क्या फ़ायदा है? क्या आप भाजपा के लिये काम करते हैं? जो पैसा आप माँग रहे हैं उसका कैसा उपयोग करेंगे (अर्थात दबे शब्दों में वे पूछ रहे थे कि मैं इसमें से कितना पैसा खा जाउंगा) जैसे ढेरों प्रश्न उन्होंने मुझ पर दागे… मैं निरुत्तर था, क्या जवाब देता?

चन्दा माँगने के बाद अब तो शायद धन्ना सेठ जी मेरे ब्लॉग से दूर ही रहेंगे, परन्तु यदि कभी पढ़ें तो वे विदेशों से ईसाई संस्थाओं को आने वाली यह लिस्ट (और धन की मात्रा) अवश्य देख लें… और खुद विचार करें… कि हिन्दुओं में “बतौर हिन्दू”  कितनी राजनैतिक चेतना है? विदेश से जो लोग भारत में मिशनरीज़ को पैसा भेज रहे हैं क्या उन्होंने कभी इतने सवाल पूछे होंगे? जो लोग सेकुलरिज़्म के भजन गाते नहीं थकते, वे खुद ही सोचें कि क्या अरबों-खरबों की यह धनराशि “सिर्फ़ गरीबी दूर करने”(?)  के लिये भारत भेजी जाती है? यदि मुझ पर विश्वास नहीं है तो खुद ही केरल, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, उड़ीसा के दूरदराज इलाकों में जाकर देख लीजिये कैसे रातोंरात चर्च उग रहे हैं, “क्राइस्ट” की बड़ी-बड़ी मूर्तियाँ लगाई जा रही हैं। याद करें कि मुख्य मीडिया में आपने कितनी बार पादरियों के सेक्स स्कैण्डलों या चर्च के भूमि कब्जे के बारे में खबरें सुनी-पढ़ी हैं?

“राजनैतिक चेतना” किसे कहते हैं इसे समझना चाहते हों तो ग्राहम स्टेंस की हत्या, झाबुआ में नन के साथ कथित बलात्कार, डांग जिले में ईसाईयों पर कथित अत्याचार, कंधमाल में धर्मान्तरण विरोधी कथित हिंसा… जैसी इक्का-दुक्का घटनाओं को लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मचे हल्ले को देखिये, सोचिये कि कैसे विश्व के तमाम ईसाई संगठन किसी भी घटना को लेकर तुरन्त एकजुट हो जाते हैं, यूएनओ से प्रतिनिधिमंडल भेज दिये जाते हैं, अखबारों-चैनलों को हिन्दू-विरोधी रंग से पोत दिया जाता है… भले बाद में उसमें से काफ़ी कुछ गलत या झूठ निकले… जबकि इधर कश्मीर में हिन्दुओं का “जातीय सफ़ाया” कर दिया गया है, लेकिन उसे लेकर विश्व स्तर पर कोई हलचल नहीं है… इसे कहते हैं “राजनैतिक चेतना”… मैं इसी “चेतना” को जगाने और एकजुट करने का छोटा सा एकल प्रयास कर रहा हूँ… “धन्ना सेठ” मुझे पैसा नहीं देंगे तब भी करता रहूंगा…

काश… कहीं टिम्बकटू, मिसीसिपी या झूमरीतलैया में मेरा कोई दूरदराज का निःस्संतान चाचा-मामा-ताऊ होता जो करोड़पति होता और मरते समय अपनी सारी सम्पत्ति मेरे नाम कर जाता कि, “जा बेटा, यह सब ले जा और हिन्दुत्व के काम में लगा दे…” तो कितना अच्छा होता!!!  🙂 🙂

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26 Comments

  1. Anonymous said,

    December 27, 2010 at 8:59 am

    >Vikram pandit is the CEO of Citibank. He's a very rich man (as is evident from the donation of 70 Crores), and he must have definitely not donated to a christian organization.Judging that he's an expert financial banker who knows everything about money management. It would be interesting to know which ngo he gave the money to 🙂

  2. P K Surya said,

    December 27, 2010 at 9:09 am

    >धन्ना सेठ” अचानक इतने व्यस्त दिखाई देने लगे, जितने 73 समितियों के अध्यक्ष प्रणब मुखर्जी भी नहीं होंगे। kya kaha aisa ho gaya Bade Bhai sahab aisa he hota he, or ap to ek aise kam k liye Rupya mang baithe he wo sukra manaiye kee apko BJP YA RSS se jor k jail me dalne wali koi Ghatna nahi Ghati nahi to humare desh hundustan (desh ka nam bhi galat he isaistan ya mushlimistan hona tha)me hunduon k bare me jo achchha karne ka sochega wo ta bus Congres k hatthe chada, rahi bat NGO kee to apne jada sahi se bata diya he baki hum common hindustani common sence lagake samjhne kee kosis karenge, hindu wirodhi kuchh b ho hum sah lenge itne sahansil jo hen, jai BHARAT

  3. December 27, 2010 at 10:44 am

    >सुरेश भईया आप इस प्रयास में अकेले नहीं हैं हम सब अपने सर्वस्‍व के साथ आपके साथ हैंा आपसे ही प्रेरणा लेकर मैं यहां छत्‍तीसगढ में एक संगठन खडा करने के लिए प्रयासरत हूंा इसके साथ ही कम से कम 10 लोगों को तो आपके मुहिम में भी साथ लाउंगा ही

  4. SKY13 said,

    December 27, 2010 at 11:37 am

    >ईसाइयों को इससे ज्यादा पैसे तो हिन्दू अपने बच्चो को इन ईसाइयों के स्कूल में donation और फ़ीस के रुप में दे देते है और बहुत खुस होते है की हमारा बच्चा बहुत बड़े स्कूल(ST MARY और सोफिया) में पढ़ रहा है और फिर यही हमारा पैसा हमारे खिलाफ ही इस्तेमाल होता है (धर्म परिवर्तन के लिए ) और हिन्दुओ को पता भी नहीं चलता है की हम अपनी ही जड़ खोद रहे है | फिर इन स्कूलों में पड़े बच्चो को बचपन से ही हिंदुत्व से दूर कर देते है |इन स्कूलों में पड़े बच्चो के मन में ईसाइयों के प्रति हमेसा एक सोफ्ट कॉर्नर रहता है |फिर यही बच्चे जब बड़े होकर IAS ,पत्रकार,लेखक आदि बनते है तो हिंदुत्व की जड़ मे मट्ठा डालते है और अपना ही उलटा करके बहुत खुस होते है और इन्हें पता भी नहीं होता है की जो ये आज कर रहे है इसकी नीव तो बचपन में ही पड़ गई थी जब इनके दिमाग पर ईसाइयों ने कब्ज़ा कर लिया था ये तो बस गुलामी कर रहे है और बिना इस सच्चाई को जाने बिना |इसे पड़ने के बाद ५ मिनट या १० मिनट और आधा घंटा और ज्यादा से ज्यादा एक घंटा तक हमारे भोले हिन्दू जागेंगे और जब अप्रैल में (ST MERRY और सोफिया में अप्रैल में ही admission होता है) admission की बारी आएँगी तो फिर से भोले बन जायेंगे और ईसाइयों के स्कूल में donation के साथ अपना मासूम बच्चा भी दे आयंगे |नोट :- धर्म परिवर्तन के लिए चर्च और ईसाइयों द्वारा आत्माओं की फसल काटना word प्रयोग में लाया जाता है |धर्म परिवर्तन के लिए ये एक रस्म कराते है जिसे बपतिस्मा कहते है |बपतिस्मा रस्म में ये पानी में खड़ा करते है या डूबकी लगवाते है|ये पानी ड्रम में हो सकता है ,तालाब का हो सकता है ,नदी का हो सकता है और यहाँ तक की नाले का पानी भी हो सकता है (नाले के पानी में बपतिस्मा कराने की घटना दैनिक जागरण में भी छपी थी ) | अक्सर ये चर्च में stage के निचे पानी भरने के लिए जगह बनाते है जिससे किसो को पता भी न चले |

  5. December 27, 2010 at 12:13 pm

    >इसके पीछे एक कारण यह भी है कि हिंदू धर्मस्थान (मंदिर, मठ आदि) हिंदू धर्म की शिक्षाओं के प्रचार-प्रसार और लोगों में हिंदू चेतना जगाने के लिए काम करने के बजाए बस ढकोसले-बाजी के अड्डे बनते जा रहे हैं… आप चर्चों और मस्जिदों के रोल से मंदिरों के रोल की तुलना कर के देखें.. हर कोइ घी के लड्डू खा के पड़ा है.. अच्छा नहीं लगता ऐसा कहकर पर यह सत्य है.. हिंदू धर्म अगर आज भी जीवित है तो वह आम हिंदू के मन में संचित श्रद्धा के कारण.. लेकिन अब समय है कि उस श्रद्धा को हम थोड़ा सक्रिय रूप दें.. हर आम हिंदू को अपने को हिन्दू धर्म की शिक्षाओं के एक प्रचारक के रूप में परिवर्तित करना होगा.. तभी हिंदुत्व की सही तस्वीर को हम दुनिया के सामने ला पाएंगे….

  6. December 27, 2010 at 12:25 pm

    >..क्या कहें….ऐसी घटनाओं को देख-सुन-पढ़कर भी हम इनमें छुपी हुई घटिया मानसिकता को समझ नहीं पाते ।बधाई के पात्र हैं….धन्ना सेठ भी ।जय हो…….

  7. SHIVLOK said,

    December 27, 2010 at 2:02 pm

    >ऐसे धन्नासेठ हिंदुओं में बहुत हैं| ये सारे धन्ना सेठ निहायत ही मूर्ख, अंधविश्वासी, ढोंगी, अहंकारी और तथाकथित रूप से बड़े धार्मिक (?) होते हैं | इनसे मिलने का तरीका अलग होता है | सच ये है की ये धन्नासेठ झूठी प्रतिष्ठा के भूखे होते हैं | आप ऐसे सेठों से अकेले ना मिलें | आठ- दस लोगों के समूह के साथ ऐसे लोगों से मिलें, तो ये अक्सर जेब ढीली करते हैं|

  8. Anonymous said,

    December 28, 2010 at 4:01 am

    >SKY13 @ ne kaha ki Hum Gn School main Paise Fee Dete hai… SKY13 ka Pata nahi ki Unake School kiFee Bahut hi Kam Hoti hai…

  9. December 28, 2010 at 6:40 am

    >सुरेश जी,हिंदुत्व पर काम करना कठिन तो है पर असंभव नहीं है. हम सब को अपने काम में लगे रहना है. सफलता अवश्य मिलेगी . सहयोग करने वालों की कमी नहीं आयेगी ऐसा विश्वास है.नारायण भूषणिया

  10. December 28, 2010 at 7:26 am

    >दरअसल आज भी अधिकांश हिन्दुओं को लगता है कि मंदिरों में दान देना और सार्वजानिक पूजा करवाना ही एकमात्र स्त्रोत है पुण्य का. हिंदुत्व की गतिविधियों में भी पैसा देना पुण्य का काम है, हिंदुत्व आधारित संघठनो में समय , श्रम और पैसा देना भी पुण्य का काम है, देश के आन-बान-शान की रक्षा करना भी पुण्य का ही काम है.

  11. December 28, 2010 at 7:47 am

    >आदरणीय सुरेश भाई, बहुत ही अच्छा लेख…कॉन्वेंट का तो कहना ही क्या? यहाँ के पादरी तो हमें आज भी तुच्छ समझते हैं और बच्चों को आज भी विदेशी शिक्षा ही देते हैं…बच्चों के मन में आज भी ये हीन भावना ही भर रहे हैं…वैसे तो चौथी कक्षा तक मै भी कॉन्वेंट में पढ़ा हूँ, किन्तु इसकी असलियत को जानने के बाद मेरे पिता ने मुझे दुसरे किसी स्कूल में पढने भेजा…अभी क्रिसमस की रात को मै जयपुर के सैंट एन्स्लम स्कूल के चर्च में गया था…तीन घंटे तक पादरी हमारे सामने प्रभु येशु की महिमा का बखान करते रहे कि प्रभु की नज़रों में सभी समान हैं, प्रभु किसी में भेद नहीं करते, प्रभु सबसे प्रेम करते हैं, प्रभु के लिए सभी जाति व सम्प्रदाय एक ही हैं आदि आदि| किन्तु समापन के समय जब होली वाटर का वितरण हुआ तो पादरी ने कहा कि अब सब रोमन कैथोलिक लोग आगे आएं व प्रभु कि भक्ति में प्रसाद लें…अन्य किसी जाति व धर्म को आगे आने की परमीशन नहीं थी…तब मन में आया कि अभी कुछ देर पहले तक तो सभी धर्म प्रभु के लिए समान थे फिर अचानक ये क्या हुआ?इस प्रकार की हरकतों से वे बच्चों के मन में यही हीन भावना भरना चाहते हैं कि तुम तुच्छ हो, जब तक तुम इसाई धर्म स्वीकार नहीं करते तुम्हे प्रभु की कृपा नहीं मिलेगी…इस प्रकार के कई उदाहरण मै पहले भी देख चूका हूँ कि किस प्रकार छोटे छोटे बच्चों के मन में उनके धर्म के प्रति नफरत भरकर इसाइयत के प्रति प्रेम भरा जाता है…और अभिभावक तो सबसे बड़े बेवकूफ होते हैं जो अपने बच्चों को यहाँ भेज कर शान समझते हैं, बिना यह जाने कि इन कौन्वेंट्स का इतिहास क्या है, ये कहाँ से पैदा हुए? बस पश्चिम के पीछे दौड़ने के चक्कर में अपने बच्चों को अनाथ आश्रम में पढने भेज रहे हैं…आदरणीय सुरेश भाई आप अपने प्रयासों में लगे रहें हम आपके साथ हैं…

  12. December 28, 2010 at 8:51 am

    >o dhanna seth sirg hindu ka labada odhe kuch aur hain.

  13. December 28, 2010 at 12:25 pm

    >यह हाल सभी धर्मो का है…हर धर्म के इंसान को पैसा घरीब की सेवा, मजबूर लाचार की मदद, पढ़ाई के लिए, बीमार ग़रीब के इलाज के लिए देना चाहिए.

  14. December 28, 2010 at 1:11 pm

    >आपका लेख पढ़ कर मेरी आँखें खुल गयीं.

  15. December 28, 2010 at 3:19 pm

    >@ मैं इसी “चेतना” को जगाने और एकजुट करने का छोटा सा एकल प्रयास कर रहा हूँ… “धन्ना सेठ” मुझे पैसा नहीं देंगे तब भी करता रहूंगा… ।आदरनिय सुरेश जी, आप का कार्य अनुपम है….. के संगठन कर के थक कर बैठ गए…… परमात्मा आपको उर्जा प्रदान करे….. और कसम से कहता हूँ – ये धन्ना सेठ आप से ५ मिनट की मुलाकात के लिए घुमते रहेंगे….. वकात आएगा……. २१वी शताब्दी हिंदू शताब्दी है – ये शब्द मैंने एक प्रचारक के मुंह से सुने थे……… हिन्दुस्तान का राम मालिक है. राम जी, कि कृपा रहेगी……… तो जरूर एक बार फिर हिंदुओं की कद्र जमाना करेगा…… ये में दिल से मानता हूँ…….. आप निराश मत होइए … आंधियों में हमने दिए जलाए हैं……

  16. SHIVLOK said,

    December 28, 2010 at 4:09 pm

    >दीपक बाबा से पूर्ण सहमत | परमात्मा आपको उर्जा प्रदान करे….. और कसम से कहता हूँ – ये धन्ना सेठ आप से ५ मिनट की मुलाकात के लिए घुमते रहेंगे…..मुलाकात के लिए तरसेंगे , चक्कर काटेंगे | वकात आएगा…….

  17. Man said,

    December 28, 2010 at 4:30 pm

    >वन्दे मातरम सर ,हिन्दू अपने निज स्वार्थ वश ही मंदिरों में धोख ,पूजा ,अगरबती करते हे ,६०% लोगो का धर्म यंही तक सीमित हे ,जंहा रास्ट्र धर्म की बात हो वंहा पिछवाडा दिखा देते हे |

  18. December 28, 2010 at 5:01 pm

    >सुरेश भाई ,आपकी पोस्ट को देख कर बस एक ही इच्छा होती है ..सैल्यूट सर ..मेरा नया ठिकाना

  19. SANJEEV RANA said,

    December 29, 2010 at 6:20 am

    >bahut ache bhaijiaise hi lage rahokoi baat nhi agar aises seth saath nhi de rahe h to bhi jari rakho

  20. SKY13 said,

    December 29, 2010 at 10:14 am

    >Anonymous शायद तुमने वहा ये कहावत नहीं सुनी की "बूँद बूँद से सागर भरता है" |और एक बात अगर वहा की फीस इतनी ही कम होती है तो वहा(कॉन्वेंट) पर क्यों धन्नासेठ ही अपने बच्चो को पड़ा पाते है वो भी donation दे कर |

  21. December 29, 2010 at 11:19 am

    >सुरेशजीआप का जो मिसन है उसे सुरु करे, ऐसे कितने ही धन्ना सेठों कि लाइन लग जाये गी.और दूसरी बात हम यानि हम सब ( हिन्दुत्व के पुजारी ) किस धन्ना सेठ से कम है.????

  22. chirag said,

    December 29, 2010 at 2:21 pm

    >kaafi accha laga apake blog ko padhkari know before reading your blogbut ye nahi janta tha aap itna accha likhate hain…i came to your shop lot of timemake a visit to my blog alsohope you will make a visithttp://iamhereonlyforu.blogspot.com/

  23. December 30, 2010 at 5:30 pm

    >सुरेश जी किसी भी आरोप से डर कर रुकना आपकी नियति नहीं है. आप धारदार लिखते रहे ऐसी मेरी आप से उमीद है. आप जैसे समर्पण, शक्ति और जज्बे की हर हिन्दू को आवश्यकता है.

  24. Anonymous said,

    January 24, 2011 at 10:06 pm

    >this post is very usefull thx!

  25. March 14, 2011 at 4:15 am

    >सतीश चन्द्र सत्यार्थी जी ने सही कहा ''इसके पीछे एक कारण यह भी है कि हिंदू धर्मस्थान (मंदिर, मठ आदि) हिंदू धर्म की शिक्षाओं के प्रचार-प्रसार और लोगों में हिंदू चेतना जगाने के लिए काम करने के बजाए बस ढकोसले-बाजी के अड्डे बनते जा रहे हैं…''और अगर कोई हिन्दू ही ऐसे पाखंडी बाबाओ को बुरा भला कहता है, तो हिंदुत्व का झंडा बुलंद करना वाले लोग ही इन बाबाओं समर्थन में खड़े होते नज़र आते हैं. और जो हिन्दू हिन्दू-धर्म से ऐसे ढोंगियों [जो सिर्फ कथा वाचक का धंधा करते हैं, हिन्दू समाज सुधार का कोई काम नहीं करते] को खदेड़ना चाहते हैं उनको उनके ही भाई-बंधू आधुनिक-सेकुलर [जिसमे धर्म-निरपेक्ष का अर्थ हिंदुत्व को गाली, अल्पसंख्यक का अर्थ मुसलमान माना जाता है, मुसलमानों द्वारा किये जा रहे अत्याचारों को नज़रअंदाज किया जाता है, और हिन्दुओ द्वारा किये को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया जाता है] जैसी गाली देते हैं. इस तरह के कामों से ये लोग क्रूर चेहरा सामने रखते हैं, जिसका लाभ हिन्दू तालिबान, या हिन्दू आतंकवाद कहने वालों को मिलता है. [यहाँ, हिन्दू में सभी हिन्दू और मुसलमान ने सभी मुसलमान शामिल नहीं है].दरअसल, हिंदुत्व आज जिस स्तिथि में है उसका एक बड़ा कारण दूसरे नहीं बल्कि अपने ही हैं. अति हिंदूवादी और अति सेकुलर दोनों.


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